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कला विशेष : चित्रकार उमेश कुमार की कला अभिव्यक्ति

चित्र विषय और विचारधारा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, किसी कलाकृति का मूल्यांकन करने में। मेरा मानना है कि कलाकृति कभी असुंदर नहीं होती। कलाकार की अभिरुचि ही कला में प्रकट होती है, और सामाजिक स्थिति और परिस्थितियां ही एक निरंतर सृजनशील कलाकार की कृतियों पर हावी हो जाते हैं।
कला
इंस्टालेशन, कलाकार-उमेश कुमार 

अभिव्यक्ति अर्थात अकथ्य को कलात्मकता से कृतियों में साकार करना। वास्तव में हमारा मन। आम तौर प्रबुद्ध जनों की ये शिकायत रहती है कि समकालीन कलाकार की कला अभिव्यक्ति के विषय समसामयिक नहीं है या जन-सरोकारों से नहीं जुड़े हैं। कहा जाता है अंतर्मुखी हैं। मानो कलाकार इह लोक के वासी नहीं हैं। सच तो ये है कि कलाकार भी काल्पनिक दुनिया में नहीं रहते हैं। यही कलाकार जब समाज की वास्तविकता को उसके विद्रूप रूप को दिखाते हैं तो लोग उनसे कतरा कर निकल जाते हैं उसका सामना नहीं करना चाहते। वास्तव में कुछेक अपवाद छोड़ दें तो कलाकारों को भी भौतिक दुनिया से दो चार होना पड़ता है। समाज जिन समस्याओं से जूझता है वो समस्याएं कलाकारों की भी होती हैं। पर्यावरण, आम जनों की पहुंच से दूर होता स्वच्छ जल, दमघोंटू दूषित हवा। सभी कुछ तो कलाकारों को भी पीड़ित करती हैं। ऐसे विषय को अपने चित्रों का मुख्य विषय बना रहे हैं चित्रकार उमेश कुमार।

जल प्रदूषण और ज़िंदगी, माध्यम- जल रंग, चित्रकार : उमेश कुमार 

उमेश मूल रूप से आरा बिहार के रहने वाले हैं। उनका जन्म पटना में हुआ था। पिता श्री विश्वनाथ प्रसाद बोकारो स्टील प्लांट में कार्यरत थे। उनकी मां सुशीला देवी थीं।

छात्र जीवन से ही मैं उनके चित्रों के विकास क्रम को देखती आ रही हूं। शुरुआत में उमेश ने बड़े पैमाने पर भूदृश्य चित्र बनाए। जो जलरंग माध्यम में थे।‌ जिनकी काफी सराहना भी हुई।

उमेश के 1994-95 के चित्रों में स्त्री-पुरूष के आत्मीय-अंतरंग प्रेम की नैसर्गिक स्निग्धता है, जिनके माध्यम एक्रेलिक और तैल रंग हैं।

जैसा की माना जाता है, कहा जाता है,  'पुरुष की सफलता के पीछे एक महिला की प्रेरणा होती है' , निस्संदेह उमेश के संदर्भ में सही माना जाना चाहिए। उनकी प्रेयसी-पत्नी अराधना जो खुद अच्छी चित्रकार हैं। उनका प्रेमपूर्ण सहयोग है कि उमेश की कला में निरंतरता बनी रही। उमेश को बिहार  के  बेहतर कलासृजन करने वाले कलाकारों की श्रेणी में रखा जा सकता है।

चित्र विषय और विचारधारा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, किसी कलाकृति का मूल्यांकन करने में। मेरा मानना है कि कलाकृति कभी असुंदर नहीं होती। कलाकार की अभिरुचि ही कला में प्रकट होती है, और सामाजिक स्थिति और परिस्थितियां ही एक निरंतर सृजनशील कलाकार की कृतियों पर हावी हो जाते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में जहां एक तरफ आकर्षक रंगों वाले विशालकाय भवन बाजार के रूप में है, चटख भड़कीले पोस्टर से लैस और उसके तिलस्म में फंसी आम जनता। जिसका सामान्य सौंदर्य बोध भी उसी में विलीन हो गया हो। तो ऐसे में ईमानदार  कलाकार और उसकी मन:स्थिति दृश्यमान अभिव्यक्ति के दबाव में आ जाती है, वह वस्तुगत यथार्थ को नजरंदाज नहीं कर पाता है।

जो महसूस होगा तो वह वही दिखायेगा, हर समय जिसका उसे प्रत्यक्ष दर्शन और रोजाना का अनुभव है। वास्तव में देश के बड़े शहर, जहां बड़े-बड़े मॉल से भरते जा रहे हैं वहां आम आदमी, स्वच्छ हवा, साफ पानी से वंचित  होता जा रहा है। उसे पौष्टिक खाना-सुंदर वस्त्र मिलने तो दूर भयानक महामारियों से ग्रसित हो जा रहा है।

जल -प्रदूषण और जिन्दगी, माध्यम- जलरंग कागज पर , चित्रकार उमेश कुमार 

उमेश कुमार के महानगरीय जीवन और संस्कृति पर बनाये गये चित्र महत्वपूर्ण तो हैं ही लेकिन डिस्पोजल पानी के बोतलों, जलविहीन चांपाकल, दाने के अभाव में लुढ़के कबूतरों के मॉडल से सज्जित इंस्टालेशन, नवीन और प्रभावशाली कृति है।

यह कृति 95 प्रतिशत भारतीयों की त्रासदपूर्ण जीवन का दर्शन कराती है। इंस्टालेशन या ' संस्थापन ' कला त्रिआयामी (थ्रिडायमेंशनल ) होता है जिसमें कलाकार एक विषय (थीम )को लेकर पूर्वनिर्मित सामग्रियों, ‌पेंटिंग, मूर्ति  आदि को विस्तृत  क्षेत्र में अस्थायी रूप में संयोजित करता है। इसका डिजिटल स्वरूप भी अत्यंत लोकप्रिय है। आजकल भारत में भी प्रचलित है।

चित्रकार: उमेश कुमार 

वर्तमान समय में उमेश कुमार आकर्षक जलरंग माध्यम में जल-जीवन और पर्यावरण को लेकर चित्रण कर रहे हैं। जिसमें उनकी पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता तो दिखती ही है साथ उनसे पीड़ित निरीह जंगली जानवर भी उनके चित्रों में सुंदर रूप में प्रकट हो रहे हैं। इस श्रृंखला के चित्र आकृतियों की बारीकियां हमें पटना कलम की याद दिलाती हैं। जहां मानव जीवन शैली जटिलताओं से भरी हुई है। वहां प्राकृतिक दृश्य हो या गहन नगरीय जीवन अगर उसकी सहज सरल अभिव्यक्ति हो तो वो निस्संदेह लोगों को प्रभावित करेगी।

निस्संदेह उमेश एक बेहतर कलाकार है। उनका जीवन संघर्षशील जरूर है लेकिन उन्होंने अपने कला जीवन में बहुत सारी उपलब्धियां हासिल कर ली हैं। उन्हें राज्य और अखिल भारतीय पुरस्कार मिल चुके हैं। पुरस्कार तो एक सम्मान है कलाकार या कलाकृति का। असल पुरस्कार तो कलाकार को उसी समय मिलता है जब वह अपनी भावनाओं को विचारों को सफलता पूर्वक अपनी कृतियों में अभिव्यक्त कर लेता है। वर्तमान समय में उमेश दिल्ली को अपना कर्म क्षेत्र बनाए हुए हैं।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।) 

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