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कला विशेष: हितकारी मानवतावाद से प्रेरित चित्रकार अर्पणा कौर के चित्र

मैंने अर्पणा कौर को अपनी मनचाही जगह पर ही पहली बार देखा था। दिल्ली के गढ़ी स्टूडियो में। 1997-98 के दौरान। इससे पहले छात्र जीवन से ही अर्पणा कौर और उनके चित्रों को कला पत्रिकाओं में ही देखा था।
कला
दिन, चित्रकार: अर्पणा कौर, साभार, समकालीन कला, प्र. राष्ट्रीय ललित कला अकादमी

अर्पणा कौर को 2020 का सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकार का पुरस्कार मिला है। जो कि बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था। कला के क्षेत्र में आधुनिकता के होड़ में नित नई कला शैलियां ईजाद करने कोशिश की जा रही हैं वहीं अपर्णा निरंतर सहज और सरल ढंग से अपने चित्रों में अपनी भाव अभिव्यिक्त कर रही हैं।

समकालीन चित्रकला में आखिर खास क्या है? इसे बुद्धिमान लोग भी क्यूं नहीं समझ पा रहे हैं। तो आसानी से कहा जा सकता है, सार्थक चित्रकार बहुत कम हैं। जो हैं उन्हें सामने लाया नहीं जा रहा। उनके चित्रों को केवल बड़े और भव्य कला विथिकाओं में प्रर्दशित किया जाता है। जहां आम साधारण जन भी जिसे केवल पेट भर जाये और देह पर थोड़े कपड़े आ जाये के अंदर ये लालसा जगती है - कुछ घूम आया जाय, कुछ देखसुन आया जाय, कुछ नया जाना-समझा जाय - वह वहां जाने की हिम्मत ही नहीं करेगा। इन आधुनिक कला विथिकाओं के आगे जो पहरेदार खड़े रहते हैं सख्त हिदायत के साथ कि देखने आने वाले की जेब पर भी नजर रखना, दर्शक खरीदार भी  होना चाहिए ऐसे में कला और कलाकार लोकप्रिय कैसे होंगे?

बहरहाल मैंने अर्पणा कौर को अपनी मनचाही जगह पर ही पहली बार देखा था। दिल्ली के गढ़ी स्टूडियो में। 1997-98 के दौरान। इससे पहले छात्र जीवन से ही अर्पणा कौर और उनके चित्रों को कला पत्रिकाओं में ही देखा था। गढ़ी के उस बिखरे स्टूडियो में वे सलवार सूट में बेहद शांत, स्निग्ध और जीवंत लगीं। उनकी आंखें बहुत भावप्रवण थीं।

अर्पणा कौर। फोटो साभार : wikipedia

कलाकार का व्यक्तित्व कई बार उसके कृतियों की भाषा और संवाद से हमें परिचित करा देता है। उसे आप चलते-फिरते सतही ढंग से नहीं समझ सकते। इसके लिए आपको गहरे मानवीय संवेदना में पैठना होता है। आप कलाकार हैं तो कुशल राजनीतिज्ञ नहीं हो सकते, राजनीति समझ जरूर सकते हैं। और कला में राजनीति करनेवाला कलाकार नहीं हो सकता। संवेदनशीलता या भावुकता मनुष्य की कमजोरी नहीं है। यही मानवीयता है जिसका हमारे समाज में तेजी से ह्रास हो रहा है। अपर्णा कौर एक सरल और संवेदनशील चित्रकार हैं। जहां भारतीय कलाकार पाश्चात्य अमूर्त और अभिव्यंजनावाद से प्रभावित और त्रस्त नजर आते हैं। अर्पणा की चित्राकृतियां सहजता से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को परत दर परत उधेड़ती हैं तो उनके चित्रों में बुद्ध, नानक, सोहनी-महिवाल और योगी भी उपस्थित रहते हैं, चित्र विषय के रूप में।

अपने किसी साक्षात्कार के दौरान अर्पणा ने स्वयं के चित्रों के बारे में बताया, ''मेरी कला संवेदना का दायरा थोड़ा विस्तृत है। मेरे चित्र की आकृतियां मानवतावाद से अनुप्राणित हैं।'' अर्पणा का कहना है, "मुझे लगता है कि चित्रों में आम आदमी आए और आम आदमी को समर्पित चित्र आम आदमी तक भी पहुंचे।' अपने चित्रों को मात्र धर्म और आध्यात्म से जोड़ने पर और अपने ' नानक' चित्र शृंखला की चर्चा आने पर वे बताती हैं। "नानक श्रृंखला को चित्रित करते समय मैं धार्मिक भावना से अनुप्राणित नहीं थी बल्कि 'नानक' के हितकारी मानवतावादी अध्यात्म से प्रभावित थी। वे पहले ऐसे समाज सुधारक थे जिन्होंने स्त्रियों के सामाजिक एवं पारिवारिक शोषण का खुल कर प्रतिवाद किया था। जातिवाद , कर्मकाण्ड , अस्पृश्यता इत्यादि को वे आध्यात्मिक पाप मानते थे। उनके इन्हीं सरोकारों ने मुझे 'नानक श्रृंखला' करने के लिए प्रेरित किया।"__ (समकालीन कला अंक 27 , प्र॰ राष्ट्रीय ललित कला अकादमी ) ।

अपनी चित्र श्रृंखला 'द लीजेंड आफ सोहनी' के बारे में अर्पणा का मानना है कि सोहनी का प्रेम का आदर्श आज के युग को एक नई ऊर्जा से सराबोर करने में सक्षम है।

सोहनी : चित्रकार-अर्पणा कौर, तैल रंग, साभार: समकालीन कला, प्र॰ राष्ट्रीय ललित कला अकादमी

'सोहनी' को उन्होंने इसलिए चित्रित किया कि आदमी को अपने को व्यक्तिवादी अहं संकीर्ण समझ के दायरे से बाहर निकल कर इस दुनिया को सुंदर बनाने की ओर अग्रसर हो। निस्संदेह अर्पणा की यह सोच उनकी मनुष्य के नैसर्गिक  प्रेम  की उदात्त व सुन्दरतम चित्र अभिव्यक्ति है।

उनकी 'समय' चित्र शृंखला वृंदावन की त्रासदपूर्ण स्थितियों पर है। जिन्हें उनके संबंधी, पति के मृत्यु के बाद संपत्ति से वंचित कर गुमनाम और अथाह दुखमय ज़िंदगी जीने के लिए वृंदावन छोड़ आते हैं।

समय - चित्रकार :अपर्णा कौर , 6/6 फीट, तैल रंग, साभार : क पत्रिका

1984 में सिक्खों के ऊपर हुए दंगों को अर्पणा ने प्रत्यक्ष देखा था। वे बहुत विचलित हो गईं। इन दंगों की अमानवीयता और भयावहता के दर्द को उन्होंने,  'वर्ल्ड गोज ऑन' चित्र शृंखला में उड़ेलकर रख दिया,  जिसकी दुनिया भर में प्रशंसा हुई।

अर्पणा की ' बुद्ध और समय' चित्र शृंखला में बहुत ही भावपूर्ण कलाकृतियां हैं।

'ह्वेयर आल दीज फ्लावर्स हैव गॉन' चित्र उन्होंने हिरोशिमा की त्रासदी के ऊपर बनाया है। इस विशाल कला कृति का सृजन अपर्णा कौर ने जापान पर हुए परमाणु बम विस्फोट की 50वीं बरसी पर बनाया जो आधुनिक कला संग्रहालय के स्थायी संग्रह में है। दरअसल जब वे बच्ची थीं, तभी उन्होंने अपनी मां को हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम विस्फोट में मारे गए लोगों के लिए प्रार्थना करते देखा करती थी। जिनकी अपर्णा के बाल मन पर गहरा असर पड़ा। अपनी मां के जीवन संघर्षों और रचनात्मक संघर्षों से अर्पणा को बहुत प्रेरणा मिली। इसके फलस्वरूप महिला उनके चित्रों की प्रमुख विषय बन गईं। अपने चित्रों में अपर्णा ने समाज की असहाय, पीड़ित औरतों और उनके संघर्षों को आवाज दी है।

अर्पणा कौर की चित्रण शैली में अजंता शैली और भारतीय लघु चित्रण शैली का असर सहज ही देखा जा सकता है। जैसे विस्तृत आकाश, पृथ्वी और जलीय भाग। पहाड़ी लघुचित्रों से प्रभावित प्रतीत होते हैं। जिनमें रंगों का इस्तेमाल विषयनुसार होता है।

अर्पणा पंजाबी साहित्य से बहुत प्रभावित हैं। उनकी मां अजित कौर प्रसिद्ध पंजाबी लेखिका रही हैं। अतः स्वाभाविक है कि घर में कला और साहित्य का माहौल था,- जहां अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती जैसी दिग्गज हस्तियों का आना जाना था।

अर्पणा कौर का जन्म 1954 में नई दिल्ली में हुआ था। वे एक तरह से स्व प्रशिक्षित कलाकार थीं। 1975 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए किया। 1979 में लंदन के सेंट मार्टिन स्कूल आफ आर्ट में दाखिला लिया जो किसी वजह से पूरा नहीं हो पाया।

1997 में जब आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली में भारत की प्रमुख भारतीय महिला कलाकारों की प्रदर्शनी हुई तो वहां मैंने अर्पणा कौर के चित्रों का कई बार अवलोकन किया। उन्हें देश के कई प्रमुख कला पुरस्कार मिल चुके हैं और विश्व भर‌ में उनके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं।

मानो या ना मानो अर्पणा कौर के चित्र और चित्रण शैली, संस्थापन कला  (इन्स्टालेशन) और डिजिटल कलर एक्सप्रेशन के दौर से परे नव कलाकारों को प्रेरणादायक हैं।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।) 

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