Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सवाल पूछती हल्द्वानी की मुस्लिम महिलाओं पर 'शाहीन बाग़' के नाम पर हमला

शाहीन बाग़ की दादियों-नानियों ने पहले ही कह दिया था कि “शाहीन बाग़ ज़िंदा है और ज़िंदा रहेगा। कुछ हम रखेंगे और कुछ सरकार। अब आप ही देखिए, जब भी कोई इनके (सरकार के) सामने तन कर खड़ा हो, सच बोले तो इन्हें हमारी छाया नज़र आने लगे है।"
Haldwani
अपना घर बचाने के लिए हल्द्वानी की सड़कों पर उतरीं महिलाएं। साभार: ट्विटर

फिर वही सर्द दिसंबर और जनवरी है और एक बार फिर से अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं आंखों में बेबसी के आंसू और हाथों में उम्मीद की मोमबत्ती लिए सड़कों पर हैं। वो शाहीन बाग़ था और ये उत्तराखंड का हल्द्वानी है। जहां, हर तरफ़ से नाउम्मीद हो चुकी महिलाओं के पास गिरते तापमान में अपनी बेबसी बयां करने के लिए सड़क पर बैठने के सिवा कोई चारा न बचा।

तथाकथित मेन स्ट्रीम मीडिया से ग़ायब चालीस हज़ार से ज़्यादा लोगों के बेघर होने की ख़बर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचाई तो लोगों का ध्यान गया। लेकिन जैसे ही मुस्लिम टोपी और हिजाब और बुर्के में महिलाएं दिखीं गोदी मीडिया एक्टिव हो गया और उन्हें टीआरपी का मसाला मिल गया। तुरंत ही उनकी स्क्रीन ''ज़मीन जिहाद'', ''जिहादी गैंग'', ''क़ानून विरोधी मोमबत्ती गैंग'' जैसे अल्फ़ाज़ की मंडी से सज गए। ''मासूम गोदी मीडिया'' मुस्लिम टोपी और हिजाब, बुर्के में महिलाओं को देखते ही जितने भी तरह के जिहाद गढ़ सकता था गढ़ दिए। शाहीन बाग़ का ज़िक्र एक बार फिर छिड़ गया लेकिन दुनिया जहान में आंदोलन की नई मिसाल पेश करने वाले शाहीन बाग़ को पूरी तरह नेगेटिव नैरेटिव के साथ हल्द्वानी के साथ टैग कर दिया गया।

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में चालीस हज़ार से ज़्यादा लोगों के आशियाने टूटने की कगार पर हैं, बताया जा रहा है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद हल्द्वानी रेलवे स्टेशन की ज़मीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दे दिया गया है, हर तरफ़ से मायूस हो चुकी यहां की महिलाओं ने ख़ामोशी के साथ कैंडल मार्च किया। हाथों में मोमबत्ती लेकर चल रही इन महिलाओं की तस्वीर जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई गोदी मीडिया को एक एजेंडा मिल गया। लेकिन अपने प्रोपेगेंडा की आड़ में ये चैनल एक बहुत ही बुनियादी बात भूल गए।

चलिए जिसे याद करने के लिए पत्रकार भाषा सिंह की किताब ''शाहीन बाग़: लोकतंत्र की नई करवट'' के पन्ने पटलते हैं।

एक छोटी सी तख़्ती पर लिखा था

''परेशानी के लिए माफ़ी। औरतें काम पर हैं। हम एक नए राष्ट्र को जन्म दे रही हैं। कृपया सहयोग बनाएं रखें''

दरअसल चंद अल्फ़ाज़ में बुजुर्गियत से दिया गया दादी-नानियों का ये जवाब उन सवालों के एवज में था जिसमें बार-बार पूछा जा रहा था कि आख़िर शाहीन बाग़ की तर्ज पर पूरे देश में जगह-जगह जो शाहीन बाग़ आंदोलन हो रहे हैं, उसकी अगुआई कर रही महिलाएं आख़िर क्यों इस तरह सड़कों पर बैठी हैं और आख़िर वो चाहती क्या हैं?

इस किताब के अध्याय ''आंदोलन के औज़ार'' में 2019-20 में NRC-CAA के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में हुए आंदोलन के दौरान संविधान में दिए उनके उस अधिकार का ज़िक्र किया गया है जो शायद सबसे मज़बूत हथियार है। शांतिपूर्वक अपनी बात रखने का अधिकार संविधान देता है लेकिन इस अधिकार को अगर मुस्लिम महिलाएं इस्तेमाल करती हैं तो क्या वो जिहादी हो जाती हैं?

गोदी मीडिया ने जो माहौल बनाना था उसके रुझान सोशल मीडिया पर आने शुरू हो गए हैं। बेहद सर्द रातों में सड़कों पर बैठी इन महिलाओं को बदनाम करने की कोशिश शुरू हो चुकी है। नफ़रती ज़ुबान और फिर 'बिरयानी' के लिए धरना और '500 रुपये' की तोहमत लगानी शुरू कर दी गई है। दरअसल गोदी मीडिया को परेशानी इसलिए हो रही है क्योंकि भले ही कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने का आदेश दे दिया हो लेकिन वहां पर रहने वाले लोगों के भी कुछ सवाल हैं जो वो किससे पूछें उन्हें नहीं पता चल पा रहा, उन्हें वो विकास समझ नहीं आ रहा जो चार हज़ार से ज़्यादा परिवारों को बेघर कर के किया जा रहा है। साथ ही उनका सवाल है कि सालों से वो लोग यहां रह रहे हैं पर पहले कभी क्यों उन्हें ये नहीं बताया गया कि वो रेलवे की ज़मीन पर रह रहे हैं?

वे जानना चाहते हैं कि आख़िर वे यहां से उजड़ कर इस सर्द मौसम में कहां जाएंगे?

साथ ही वो जानना चाहते हैं कि अगर उन्होंने रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण कर रखा था तो फिर बिजली-पानी के बिल कैसे आ रहे थे?

यहां स्कूल में पढ़ रही बच्चियों के भी सवाल हैं कि अगर ये अतिक्रमण वाली ज़मीन थी तो इसपर सरकारी स्कूल कैसे हैं? और अगर उनका स्कूल टूटता है तो वो साल के बीच में आगे की पढ़ाई के लिए कहाँ जाएंगी?

इसे भी पढ़ें: ग्राउंड रिपोर्ट: बनभूलपुरा की 50 हजार आबादी अतिक्रमणकारी या गुजरात प्रयोग की नई पाठशाला

चूंकि गोदी मीडिया के पास इन सवालों का जवाब नहीं है तो उसने आसान रास्ता चुना और सवाल करने वालों को भी बदनाम करना शुरू कर दिया। और इस दौरान वे भूल गया कि 100 दिन से ज़्यादा चलने वाले महिलाओं के अहिंसक और शांतिपूर्वक हुए शाहीन बाग़ आंदोलन का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो चुका है। लेकिन गोदी मीडिया और नफ़रती ज़ेहन के लोगों को शाहीन बाग़ ना उस वक़्त समझ आया था और ना ही उन्हें इस वक़्त हल्द्वानी के बेबस लोगों की गुहार समझ आ रही है।

भाजपा का एजेंडा और गोदी में बैठा मीडिया” अपनी किताब के इस एक अध्याय में भाषा सिंह, सत्तारूढ़ दल और सरकार की साज़िशों और हमारे दौर के मीडिया के इसी चरित्र को बेनक़ाब करती हैं। वे याद दिलाती हैं कि नोम चोम्सकी ने क्या कहा था। चोम्सकी ने कहा था— “जो मीडिया पर नियंत्रण करता है, वही लोगों के दिमाग़ को भी नियंत्रित कर लेता है”।

यही हर बार हर मामले में होता दिखाई दे रहा है।

इस बात को शाहीन बाग़ की नानी-दादियां ने पहले ही समझ लिय़ा था। वे कहती भी हैं—“शाहीन बाग़ ज़िंदा है और ज़िंदा रहेगा। कुछ हम रखेंगे और कुछ सरकार। अब आप ही देखिए, जब भी कोई इनके (सरकार के) सामने तन कर खड़ा हो, सच बोले तो इन्हें हमारी छाया नज़र आने लगे है। हर जगह इन्हें शाहीन बाग़ ही दिखाई दे। दलित बेटी के साथ अन्याय हो तो शाहीन बाग़ जैसी साज़िश, किसान जुट जाएं तो शाहीन बाग़ के पैर दिखाई दे जाएं (हंसते हुए और पैरों को आगे बढ़ाकर दिखाते हुए), हमें तो पता ही नहीं था कि इतने बड़े हैं हमारे पैर, पर हां, ज़मीन पर टिके हुए हैं। ज़मीन हमने न छोड़ी है और मरते दम तक न छोड़ेंगे”। ("शाहीन बाग़: लोकतंत्र की नई करवट" से)

कोर्ट के आदेश के बाद जिस इलाक़े से अतिक्रमण हटाने की बात कही जा रही है वहां 80 से 90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी रहती है। इसलिए सड़कों पर जो लोग दिखाई दे रही हैं वो मुस्लिम हैं और गोदी मीडिया ने जैसे ही मुस्लिम महिलाओं को सड़क पर देखा तो बौखला गई। और बदनाम करने के लिए फिर से एक पाक़ीज़ा आंदोलन शाहीन बाग़ को बदनाम करने की चाल चल दी।

इसे भी देखें: हल्द्वानी :हल्द्वानी : क्यों किया जा रहा है लोगों को बेघर?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest