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विधानसभा चुनाव 2019: बीजेपी का छद्म राष्ट्रवादी प्रयोग

अगर बीजेपी इन चुनावों में जीत हासिल करती है तो यह उसके छद्म राष्ट्रवाद और उसकी आर्थिक नीतियों के लिए जनादेश नहीं होगा। यह केवल इसलिए होगा क्योंकि विपक्षी कांग्रेस इसका विरोध कर पाने में नाकाम रही है।
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महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के साथ विभिन्न राज्यों में हुई 51 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव और एकमात्र लोकसभा सीट के लिए मतदान समाप्त होने के साथ ही एक अजीबो ग़रीब चुनाव प्रक्रिया ख़त्म हुई।

क्या यह निर्धारक प्रकृति है? इसकी निर्धारक प्रकृति सत्तारुढ़ दल का खुद का राष्ट्रवाद और जातीय समीकरण है। 'अच्छे दिन' और 'सबका साथ, सबका विकास' लोकलुभावन योजनाओं और विकास के भुला दिए गए नारे थे। स्थानीय नेता क्षतिपूर्ति के रूप में धीमी आवाज़ में ऐसी चीजों को लेकर चर्चा करते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह या योगी आदित्यनाथ ने अनुच्छेद 370 हटाने, पाकिस्तान को सबक सिखाने, तथाकथित विदेशियों को बाहर निकालने, पूरी दुनिया में देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने आदि पर ही ध्यान केंद्रित किया।

क्या इस तरह के 'राष्ट्रवादी’ गरिमा में कुछ ग़लत है? क्या देश की प्रतिष्ठा को नहीं बढ़ाना चाहिए? क्या देश के लोगों को एकजुट और इकट्ठा नहीं होना चाहिए? बेशक, ऐसा होना चाहिए।

लेकिन दुखद सच्चाई यह है कि ये सभी दावे सच नहीं हैं। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का प्रचार धोखे का प्रचार है जो देश और इसके लोगों के लिए ख़तरनाक है। आइए हम देखें कि ऐसा क्यों है।

छद्म-राष्ट्रवाद

धारा 370 के हटाए जाने से कश्मीरी लोगों को देश के बाकी हिस्सों के साथ जोड़ा नहीं जा सका है। अगर ऐसा था तो ढाई महीने से अधिक समय तक पूरी घाटी क्यों बंद रही? इस दौरान स्कूलों में छात्र नहीं रहे, बाजार खाली रहे, पर्यटन बर्बाद हो गया और बागों में सेब सड़ गए? संचार बंद क्यों है? ये सभी संकेत बताते हैं कि कश्मीरियों ने सभी उम्मीदों को खो दिया है।

न ही भारत ने पाकिस्तान को कोई सबक सिखाया है। दोनों देशों के लोग शांति और मित्रता चाहते हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों की सरकारें अपने-अपने देशों में अपनी सत्ता चलाने के लिए दुश्मनी की बयानबाजी को हवा दे रही हैं। सैन्य बल और तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक केवल सीमा पार सरकार और कट्टरपंथियों दोनों को ही मदद करते हैं।

इन्हें 'राष्ट्रवाद' के संकेत के रूप में दिखा कर बीजेपी ने वास्तव में देश को कमज़ोर कर दिया है। युद्ध की तैयारी और शायद एक वास्तविक युद्ध कई पूर्वाभासी और अप्रत्याशित नतीजों के साथ एक खतरनाक चाल है, जिसके लिए इऩ देशों के लोगों को भविष्य में भुगतना पड़ेगा करना होगा।

भारत से विदेशियों को बाहर भगाने की सभी बातें बेबुनियाद हैं क्योंकि वास्तविक विदेशी शरणार्थी की संख्या मामूली हैं और मौजूदा क़ानून इससे निपट सकता हैं। लेकिन बीजेपी नाराजगी और अन्याय की झूठी भावना पैदा करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे को उठा रही है जो भारत के अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाना चाहती है जो विदेशी नहीं बल्कि भारतीय हैं। इससे देश में घृणा और वैमनस्य का माहौल पैदा होगा जिससे लोगों पर बुरा असर पड़ेगा।

यह मामले का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष और भी बुरा है। मोदी सरकार ने विदेशी कंपनियों और अनिल अंबानी की कंपनी जैसे अपने स्वदेशी क़रीबी को भी प्रमुख रक्षा उत्पादन अनुबंध दिए हैं। यह विदेशी कंपनियों से कथित तौर पर संदेहपूर्ण सौदों के तहत शस्त्रागार और विमान प्राप्त कर रहा है। इसने खुद को कई समझौतों के माध्यम से दिग्गज अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठान से जोड़ा है।

इसने अमेरिकी समकक्षों के साथ अपनी खुफिया संस्थान को सम्मिलित किया है। संक्षेप में इसने राष्ट्रीय सुरक्षा को तेज़ रफ्तार से समझौता किया है जो विदेशी हथियारों के एकाधिकार और अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण पहलुओं को सौंप रहा है जो अब देश की रक्षा पर अत्यधिक शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं।

देश के राष्ट्रीय संसाधनों प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ उत्पादन क्षमताओं दोनों का बड़े पैमाने पर निजीकरण करके इसने देश की आत्मनिर्भर स्थिति को कमज़ोर कर दिया है। हाल ही में मोदी सरकार ने तेल एवं प्राकृतिक गैस से लेकर बैंकों और बीमा क्षेत्रों में इस तरह के खुले निमंत्रण के बाद कोयले में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की घोषणा की। इसके साथ ही इसने सार्वजनिक क्षेत्र की कई संस्थानों को निजी कंपनियों के हाथों बेच दिया है। क्या इससे देश मज़बूत होगा या कमज़ोर होगा? क्या यही राष्ट्रवाद और देशभक्ति है?

आर्थिक संकट पर चुप्पी

देश की संप्रभुता को कमज़ोर करने के साथ-साथ मोदी सरकार ने देश को आर्थिक रूप से बर्बाद कर दिया है। बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है। मौजूदा आर्थिक मंदी के कारण लाखों लोग नौकरियां गंवा चुके हैं। किसान और खेतिहर मज़दूर कंगाल बन गए हैं, नौकरी की सुरक्षा ख़त्म हो गई है, कुपोषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, धन के लिए कल्याणकारी योजनाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

यह न केवल मध्यम वर्ग सहित देश में मेहनतकश लोगों के लिए भारी तकलीफ दे रहा है बल्कि बदतर स्थिति से बाहर निकलने की कम संभावनाओं के साथ आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर रहा है।

फिर भी मोदी और बीजेपी के नेता बड़े पैमाने पर इस परेशानी का जिक्र किए बिना पूरा चुनाव प्रचार किया। उनके भाषणों को सुनकर किसी ने सोचा होगा कि लोगों को परेशान करने वाले आर्थिक मुद्दे थे ही नहीं।

क्या वे उस आर्थिक आपदा से अनजान हैं जिससे देश गुज़र रहा है? क्या वे इस बात से अनजान हैं कि महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं पिछले पांच वर्षों की तुलना में भाजपा-शिवसेना के इस पांच वर्षों में 73% बढ़ी हैं, जैसा कि हाल ही में रिपोर्ट किया गया है।

क्या वे इस बात से अनजान हैं कि हरियाणा में दिग्गज ऑटोमोबाइल और ऑटो-कंपोनेंट उद्योग को मौजूदा मंदी में भीषण झटका लगा है और कुछ ही महीनों में एक लाख से अधिक नौकरियों का नुकसान हुआ है। यहां तक कि मंदी के तुरंत बाद मई-अगस्त 2019 का सीएमआईई का आंकड़ा यह दर्शाता है कि हरियाणा में दो मिलियन से अधिक बेरोज़गार हैं जिसमें आधे से अधिक स्नातक हैं। फिर भी, मोदी-शाह और राज्य के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर इस को लेकर चुप हैं।

जातीय गणना

हालांकि शीर्ष नेताओं की सार्वजनिक बैठकों में ये सारा दिखावा बड़े पैमाने पर हो रहा है जिसे मुख्यधारा मीडिया द्वारा दिखाया गया जबकि बीजेपी ज़मीनी स्तर पर जाति-आधारित समीकरण से काम चलाया है।

दलितों और अधिकांश उच्च जातियों के वर्गों के साथ मिलकर मराठा महाराष्ट्र में अपना आधार मज़बूत बनाते हैं। इस जातीय समीकरण को बनाने के लिए आरक्षण के मुद्दे, भीमा कोरेगांव की घटना आदि में हेरफेर किया गया है।

इसी तरह, हरियाणा में पंजाबी समुदाय और उच्च जातियों के साथ जाटों का एक वर्ग स्पष्ट रूप से सीटों के वितरण, आरक्षण वादों और संरक्षण राजनीति के माध्यम से एक साथ आ गया है।

बेशक, यह सब कुछ तब भी किया गया है जब चुनाव प्रचार में जातिगत भेदभाव से ऊपर उठने के बड़े बड़े दावे किए गए हैं।

क्या यह सब काम करेंगे और दोनों विधानसभाओं में बीजेपी को फिर से जीत दिलाएंगे? लोगों की प्रतिक्रियाओं पर सामने आई रिपोर्टों से पता चलता है कि विपक्ष (कांग्रेस और महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का काउंटर अटैक कमज़ोर रहा है।

यह कई रिपोर्टों में सामने आया है कि लोग इन सरकारों की विफलताओं के लिए दोनों राज्यों में मोदी सरकार या संबंधित बीजेपी सरकारों की आलोचना करते हैं लेकिन कोई विकल्प खोजने में असमर्थ हैं।

अगर बीजेपी इन चुनावों में जीत हासिल करती है तो यह उसके छद्म राष्ट्रवाद और उसकी आर्थिक नीतियों के लिए जनादेश नहीं होगा। यह केवल इसलिए होगा क्योंकि विपक्षी कांग्रेस इसका विरोध कर पाने में नाकाम रही है। 

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

Assembly Elections 2019: BJP’s Pseudo-Nationalist Crutches

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