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अयोध्या विध्वंस की गवाह उनकी गलियां, उनकी सड़कें

अयोध्या के इस पूरे आंदोलन में मुखौटे के रूप में विश्व हिन्दू परिषद साधुसंतों को लेकर अगुवाई करती रही लेकिन पर्दे के पीछे संघ और भाजपा और इनसे जुडे़ विभिन्न नामों के संगठनों के लोग थे।
अयोध्या विध्वंस

अयोध्या की सड़कें और गलियां अपनी गवाही देती हैं कि अयोध्या में 9 नवम्बर 1989 को 30 अक्टूबर और दो नवम्बर 1990 को क्या हुआ था। यूं तो 6 दिसम्बर एक तारीख मात्र थी लेकिन छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या का विध्वंस के लिए जानी जाने लगी आखिर इन तारीखों में क्या-क्या हुआ? इसके लिए किसी लेंस को लेकर या माइक्रोस्कोप से देखने की जरूरत नहीं रही है। यह सब कुछ तो खुला खेल फर्रूखाबादी था जहां कुछ भी छिपा नहीं था।

1984 में रामजन्म मुक्ति रथयात्रा और सरयू में जो संकल्प कराया गया था वह कहां के लिए था। शिलान्यास के पहले जो राममंदिर का माॅडल तैयार कराया गया था वह कहां के लिए था? और उसकी लम्बाई बाबरी मस्जिद क्यों पार कर रही थी? कार्यशाला में जो पत्थर तराशे जा रहे थे वे कहां के लिए थे। कल्याण सिंह ने जो आठ बाधायें मुख्यमंत्री बनने के बाद बतायी थीं उसकी आखिरी बाधा क्या थी?

9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने कहा कि यदि ढांचा न गिरा होता तो शायद अदालत को फैसला भी यह न होता। अब तो विध्वंस पर भी फैसला भी आ चुका है। जिसमें अब कोई दोषी नहीं रह गया है सभी बाइज्जत बरी हो चुके हैं।

क्हीं खुशी कहीं गम

अयोध्या के वे लोग जो इन इसमे शामिल थे और इसकी राजनीति से जुडे़ रहे है वे फैसले के साथ ही उत्सव मना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अयोध्या के कजियाना निवासी के नन्हे मियां कहते हैं कि फैसले से पूरे देश का मुसलमान आहत हैं। एक ओर इस घटना को अंजाम देने वाले लोग खुलेआम स्वीकार कर रहे हैं। वहीं अदालत से इस तरह का फैसला आना लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रहा है।

अनीता बताती है कि 28 साल से मामला चला लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। यह सब वोट की राजनीति का मामला है। पान की दुकान लगाने वाले संदीप कुमार बताते है कि यह सब राजनीतिक बातें हैं इससे आम लोगों का कोई भला होने वाला नहीं है।

अयोध्या विवाद की जितनी भी सम्भावनायें तलाशी गयी उनमें यह ढांचा या मस्जिद प्रमुख तत्व बन जाती थी कि इसका क्या किया जायेगा। इसे अपने स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानान्तरित करने का भी प्रस्ताव आया। इसे घेर कर शेष भूमि को मंदिर निर्माण के लिए दिये जाने तक सहमति का निर्माण हुआ।

कल्याण सिंह की बहुमत की सरकार जून 1991 से छह दिसम्बर 1992 तक ही थीं। किसी बहुमत की सरकार के लिए यह एक बहुत छोटा सा समय था।

उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बनाने में अयोध्या को लेकर विश्व हिन्दू परिषद के अभियान की बड़ी भूमिका रही। 1990 में 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर की घटना के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी रामशरण श्रीवास्तव ने शासन को लिखा था कि यदि इसी प्रकार हार्डकोर प्रशिक्षित लोग अयोध्या आते रहे तो मस्जिद को नहीं बचाया जा सकेगा।

30 अक्टूबर 1990 को ऐसे ही प्रशिक्षित कारसेवक मस्जिद पर भगवा लहराकर गुम्बदों और दीवारों को क्षति पहुंचा चुके थे। इसी क्षति को विश्व हिन्दू परिषद अपनी भाषा में ‘कारसेवा’ की संज्ञा देकर दावा करके सरकारों को चुनौती देता रहा कि कारसेवा हो गयी है।

1990 में प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। जिसने पूरे प्रदेश को सील कर दिया था रास्तों में खाइयां खुदवा दी थीं, पुलों पर तार लगवा दिये थे सड़कों पर बैरियर थे। सरकार इस ढांचे या मस्जिद को गिराने देने की पक्षधर नहीं थी। यदि पुलिस प्रशासन जिनमें से अधिकांश विश्व हिन्दू परिषद के आंदोलन के साथ थे फिर भी यदि कुछ अधिकारियों ने रोक-टोक न की होती और एहितियात न बरती होती तो जो कुछ छह दिसम्बर 1992 को हुआ वह 30 अक्टूबर 1990 या 2 नवम्बर 1990 को ही हो गया होता। अयोध्या का सीधा राजनीतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला कि 1984 में लोकसभा में दो सीटों पर जीती भारतीय जनता पार्टी 303 सीटों तक पहुंच गयी।

छह दिसम्बर को कारसेवकों द्वारा मस्जिद विध्वंस यदि असामाजिक तत्वों ने किया तो फिर कल्याण सिंह और उनकी स्थानीय पुलिस प्रशासनिक मशीनरी को उनके साथ सख्ती से निपटना चाहिए। लेकिन ऐसा किये बिना इस्तीफा देने के लिए भी मस्जिद के पूरे विध्वंस का इन्तजार क्यों किया गया।

समय समय पर वे यह भी दावा करते रहे है कि उन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। लेकिन इसके विकल्प क्या अपनाये गये यह पुलिस के मनगढंत रिकार्ड का हिस्सा हो सकते है। लेकिन धरती पर उनका कोई वजूद नहीं था। बाबरी मस्जिद के सामने 2.77 एकड़ भूमि जनसुविधाओं के प्रयोजन से क्यों अधिग्रहीत की गयी थी और एक-डेढ मीटर के गड्ढे खुदवाकर उसका समतलीकरण और हाईकोर्ट के यथास्थिति के आदेश के विपरीत कंक्रीट का चबूतरा बनवाने से कौन सी जनसुविधा उपलब्ध हुई।

सत्तर लाख की लागत से समतलीकरण और चबूतरा निर्माण पर्यटन विभाग द्वारा कराया गया और अधिग्रहीत 40 एकड़ भूमि को एक रूपये के पट्टे पर रामजन्मभूमि न्यास को किसने और किसलिए दिया गया उसके निहितार्थ क्या थे? जिससे आंदोलनकारियों के लिए बाबरी मस्जिद परिसर के पास ही जगह उपलब्ध हो सके।

विध्वंस का माहौल पांच दिसम्बर को ही दिखने लगा था

छह दिसम्बर को अयोध्या में क्या होगा इसका माहौल पांच दिसम्बर की शाम को ही बन गया था जब कारसेवकपुरम में कारसेवा के सम्बन्ध में विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारियों की बैठक में यह तय किया गया कि कारसेवक बाबरी मस्जिद के सामने बने हुए चबूतरे पर सरयू से बालू और पानी लाकर चबूतरे की सफाई करके कारसेवा करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने किसी निर्माण पर प्रतिबंध लगा रखा था ऐसे में मुरादाबाद के जिला जज तेजशंकर को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था कि  वे किसी प्रकार का निर्माण न दें क्योंकि अदालत ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दे रखा है। पर्यवेक्षक तेजशंकर का फोकस इसलिए सिर्फ निर्माण तक ही सीमित था। वहां हो रहे विध्वंस से उनका कोई लेना-देना नहीं था।

चबूतरे पर सरयू के जल और बालू के लाने के फैसले से कारसेवक किसी भी तरह से सहमत नहीं थे। वे इस फैसले से कारसेवक आक्रोशित थे कि हमें बार-बार बुलाया जाता है क्या हम बालू पानी लेकर चबूतरा धोने के लिए आये हैं। इसका प्रभाव राम में ही कारसेवकों के कैंपों में दिखने लगा था। क्या बिना तैयारी के लिए भवन को बेलचे गैंती और लोहे की सरिया से साढे़ चार घंटे में जमींदोज किया जा सकता है।

कारसेवकों से उफना रही थी अयोध्या
 
अयोध्या में लगभग दो लाख कारसेवकों के आने से अयोध्या की सड़कों और गलियों में कंधे छिलने वाली भीड़ जैसा माहौल था। ऐसा नहीं है कि अयोध्या में इतनी भीड़ कभी आती नहीं है। हकीकत तो यह है कि अयोध्या के तीन प्रमुख मेलों में 10-15 लाख की श्रद्धालुओं की भीड़ आती है और चली जाती है अयोध्या पर संकट नहीं आता है।

लेकिन, जब जब कारसेवकों की भीड़ आती है तभी संकट क्यों पैदा हो जाता है। करसेवक जब भी अयोध्या आये अयोध्या ही नहीं कानून व्यवस्था, आमजनों के लिए संकट लेकर ही आये। ये सामान्य श्रद्धालु नहीं थे जो अपने परिवारों को लेकर आस्था के वशीभूत आते हैं। ये युवा और सेना के लोगों की तरह प्रशिक्षित थे। जिस ऊंचाई पर लोग सीढ़ियों से नहीं चढ़ सकते थे वह गुम्बद पर लसते जा रहे थे वे तोड़ भी रहे थे और अपना बैलेंस भी बनाये हुए थे। इनको विश्व हिन्दू परिषद ने ही बुलाया था।

वैसे तो अयोध्या के इस पूरे आंदोलन में मुखौटे के रूप में विश्व हिन्दू परिषद साधुसंतों को लेकर अगुवाई करती रही लेकिन पर्दे के पीछे संघ और भाजपा और इनसे जुडे़ विभिन्न नामों के संगठनों के लोग थे। अयोध्या में कारसेवकों का आना 27 नवम्बर से ही शुरू हो चुका था। अयोध्या से गुजरने वाली सभी ट्रेने कारसेवकों से लद-फंद कर आ रही थीं। वह चाहे फर्स्ट एसी हो या अन्य डिब्बे सबकी स्थिति एक जैसी ही थी किसी की क्या मजाल जो कुछ बोल भी दे।

कारसेवकों का उन्माद तो पहले दिन से ही था

अयोध्या स्टेशन पर उतरते ही कारसेवक प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव मुर्दाबाद, नरसिम्हाराव की अर्थी बनाकर रामनाम सत्य हो, जय श्री राम और मुसलमानों को अभद्र नारे लगाते हुए गलियों में घूमते हुए नजर आते थे। जगह-जगह ये प्रधानमंत्री के पुतले जलाकर अपनी खुशियां मनाते उन्हें चप्पलों से पीटते थे।  

दक्षिण भारत से आये कुछ खास कारसेवकों को जिन्हें रामकथा कुुंज में ठहराने के लिए टेंट लगाये गये थे। वहां की मजारों और टूटी फूटी हाल में पड़ी मस्जिदों को तोड़कर समतल बनाने शुरू कर दिये थे। यह सब छह दिसम्बर के पहले हो रहा था जो अचानक नहीं था।

अयोध्या में था अराजकता का बोलबाला

छह दिसम्बर की सुबह रामकथा कुंज और बाबरी मस्जिद के आस-पास के इलाके में कारसेवकों की भारी भीड़ जमा हो रही थी। बाबरी मस्जिद के बाहर का हिस्से को चबूतरे के पास खाकी पैंट और सफेद कमीज तथा गले में भगवा पटरखा डाले हुए मानव श्रृंखला बना रखा था इसके अन्दर कार्डधारक ही जा सकता था यानी जिसे कारसेवा समिति ने जारी किया हो।

जिस पत्रकार के पास सेवा समिति का पास न हो उसे रोका जा रहा था। कारसेवा का समय 12.07 मिनट तय था एक ओर रामकथा कुंज में मंच पर नेताओं का आना और भाषण जारी था। तभी विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल चबूतरे की ओर कुछ लोगों के साथ जाते हुए दिखे उस समय 11.55 ही थे। अशोक सिंघल का उस ओर जाते ही मस्जिद के पीछे से और तीनों ओर से कारसेवकों एकाएक मस्जिद पर चढ़ते गये और गुम्बदों की तोड़-फोड शुरू कर दी।

इस तोड़-फोड़ के पहले ही गुम्बद के नीचे रखी मूर्तियों को क्यों निकाल लिया गया था जिसे रामकथा कुंज के मंच पर वरिष्ठ नेताओं को दिखाया गया। चारों ओर से लोग सिर्फ तोड़ने के ही कार्य में जुटे हुए थे न कोई लाठाचार्ज हुआ था न ही आंसू के गोले ही प्रयोग किये गये थे। पुलिस तो तमाशबीन बनकर खड़ी थी। कुछ नीचे की दीवारें तोड़ रहे थे तो कुछ रामचबूतरे और बाबरी मस्जिद को विभाजित करने वाली लोहे की रेलिंग को तोड़ने में लगे थे। चारो ओर अफरा-तफरी का माहौल व्याप्त हो गया था।

एक साथ फोटोग्राफरों पत्रकारों पर हुए हमले

तभी कुछ कारसेवक आगे की ओर से पथराव करने लगे और पत्रकार और फोटोग्राफर जो मस्जिद के इर्द-गिर्द चारो ओर फैले थे अपने कैमरों, वीडियो कैमरे से फोटो ले रहे थे। तभी पत्रकारों की खास कर फोटोग्राफरों की जो जहां थे उन्मादी कारसेवकों ने पिटाई शुरू कर दी उनके कैमरे छीन लिए तोड़ दिये रीलें निकाल कर उन्हें फेंक दिया गया। वीडियो कैमरे जला दिये गये पत्रकारों की गाडियां भी तोड़ दी गयीं। जिससे फोटो अयोध्या के बाहर न जा सकें।

जब यह सबकुछ हो रहा था मेरे बगल में खडे़ एक विदेशी पत्रकार जो वीडियो कर रहे थे उन्हें धकेल कर गिरा दिया गया इस अफरातफरी में सभी फोटोग्राफर पत्रकार इधर-उधर भागने लगे। कतारबद्ध पुलिस के लोग लाइन से खडे़ थे लेकिन वे सभी घटनाओं के मूकदर्शक थे। उन्होंने यह सब कुछ देखते हुए अपने डंडे तक नहीं फटकारे और न ही कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त की।

हालात ऐसे थे कि कोई भी किसी के साथ कुछ भी करे कोई बोलने वाला नहीं था लगता था अयोध्या में शासन नाम की कोई चीज ही नहीं थी। गुम्बदों के प्लास्टर टूटने के साथ ही वे चूने सुर्खी से बने होने के कारण गुलाबी आभा लिये हो गये थे। पहला गुम्बद तोड़ने में अधिक समय लगा लेकिन जब ऐसा लगा कि इससे तो बहुत वक्त लग जायेगा तो कुछ लोगों के राय मशवरे से बीच की दीवार को पोला किया गया जिससे पूरी इमारत जो चार सौ साल से अधिक पुरानी थी उसके गुम्बद जल्द ही ढ़ह गये। गुम्बदों के गिरने के साथ पूरी इमारत जमींदोज हो गयी। लोग जयश्रीराम के नारे के साथ तोडे़ गयी ईंटों को अपने साथ लेकर जा रहे थे। पूरी अराजकता का माहौल था।

वहीं रामकथा कुंज में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, आचार्य धर्मेन्द्र देव सहित मंच पर भारी भीड़ जमा थी। जो लाउडस्पीकर लगाये गये थे उन्हें पूरे अयोध्या में विस्तारित किया गया था जिससे एक आवाज पर पूरी अयोध्या को सूचना मिल सकती थी। इससे प्रसारण किया जा रहा था कि किसी को अयोध्या से जाने न दो और किसी को अयोध्या आने न दो।

इन्हें भय था कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की आपत्ति के वावजूद केन्द्र द्वारा भेजे गये अर्द्धसैनिक बल कार्रवाई के लिए आ सकते हैं इसलिए अयोध्या की ओर आने वाले सभी सड़कों पर टायर जला दिये गये अवरोध खडे़ कर दिये गये जिससे जब तक विध्वंस पूरा न हो जाये अर्द्धसैनिक बल अयोध्या के अन्दर प्रवेश न कर सकें। चूंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने इनकी तैनाती नहीं की थी।

राज्य की अनुमति के बिना ही केन्द्र ने अर्द्धसैनिक बल भेजे थे लेकिन सरकार नहीं चाहती थी कि इनकी तैनाती हो यही कारण है कि मस्जिद तोड़ने के दौरान जब अर्द्धसैनिक बल की एक टुकड़ी फैजाबाद से अयोध्या की ओर भेजी गयी तो वह आधे रास्ते से वापस हो गयी वह अयोध्या के अन्दर गयी ही नहीं।

राष्ट्रपति शासन में बना था अस्थाई मंदिर

मस्जिद के टूटते ही मस्जिद के मलबे पर रात भर में एक अस्थाई मंदिर निर्माण कर दिया वहीं शाम से ही रात भर कारसेवकों का उन्मादी समूह मुसलमानों के घरों दूकानों को चुन-चुनकर जलाता रहा। जो लोग भाग पाये वे निकल गये लेकिन जो अयोध्या में रहे गये ऐसे 12 लोगों की हत्या कर दी गयी और 267 घर व दुकानें जला दी गयीं। कुछ लोगों ने अपने पड़ोसियों को पनाह दी वहीं लोग बच सके।

हालात यह थे कि बैगन के खेतों में लोगों को रात गुजारनी पड़ी ऐसे में एक महिला पुलिस अधिकारी अंजू गुप्ता जिनकी पहली पोस्टिंग फैजाबाद में थी, ने लोगों की सहायता की जो बैगन के खेतों से तथा कुछ अन्य स्थानों से बहुत से मुस्लिम परिवारों को फैजाबाद में सुरक्षित सराय में पहुंचाया तो लोगों की जान बच सकी।

अयोध्या में यह नंगा नाच कौन कर रहा था जिसकी ओर सरकार ने आंखे मूंद रखी थीं। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह था कि यह सब सिर्फ कल्याण सिंह की सरकार के दौरान ही नहीं उसके बाद लागू हुए राष्ट्रपति शासन में अस्थाई मंदिर निर्माण किया जाता रहा और मुसलमानों के घरों और दुकानों को आग के हवाले किया जाता रहा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और अयोध्या से प्रकाशित जनमोर्चा अख़बार से जुड़ी हैं)

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