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“गांधी से डरती है BJP-RSS” : गांधी विद्या संस्थान पर ‘कब्ज़े’ का आरोप, गांधीवादियों ने खोला मोर्चा!

“भारतीय समाज में गांधी दर्शन के ख़िलाफ़ जो लोग गोडसे दर्शन लेकर खड़े हैं, उन्हें उन सभी प्रतीकों और प्रतिष्ठानों से और भी ज़्यादा डर लगता है जहां से गांधी के विचारों की प्रतिध्वनि होती है।”
Gandhi Vidya Sansthan

बनारस के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ की ज़मीन और गांधी विद्या संस्थान (गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज़) के भवनों पर कब्ज़े को अवैध बताते हुए देशभर के 'गांधीवादियों' ने मोदी सरकार व राष्ट्रीय सेवक संघ (आरएसएस) के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। पिछले बीस दिनों से जेपी प्रतिमा के सामने धरना-उपवास आंदोलन चल रहा है। क्रांति दिवस के अवसर पर देश भर से आए गांधीवादी कार्यकर्ताओं और चिंतकों ने सड़क पर उतरने और देश भर में आंदोलन करने की चेतावनी दी है। इस मुहिम के तहत दिल्ली और लखनऊ में 'प्रतिवाद सम्मेलन' आयोजित कर इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की मुहिम छेड़ी जाएगी।

बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने 15 मई 2023 को गांधी विद्या संस्थान के कमरों का ताला तुड़वाकर उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया था। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय इस केंद्र के मुखिया हैं, जो फिलहाल राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े हैं। गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज़ पर कब्ज़े को अवैध बताते हुए गांधी के अनुयायी और विचारक गुस्से में हैं। संपूर्ण क्रांति दिवस के मौके पर 4-5 जून 2023 को सर्व सेवा संघ में देश भर के गांधीवादी विचारक बनारस पहुंचे और प्रतिरोध सम्मेलन में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बड़ी मुहिम छेड़ने का निर्णय लिया। साथ ही यह ऐलान भी किया कि जब तक सर्व सेवा संघ की ज़मीन और गांधी विद्या संस्थान के भवनों को कब्ज़ा मुक्त नहीं किया जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

'प्रतिकार सम्मेलन' में लिए गए निर्णय के मुताबिक, “17 जून 2023 को दिल्ली में और इसके बाद जुलाई महीने में लखनऊ में सरकार व राष्ट्रीय सेवक संघ के ख़िलाफ़ 'प्रतिवाद सम्मेलन' आयोजित किया जाएगा। गांधी, जयप्रकाश और विनोबा के वैचारिक स्थलों को बचाने के लिए गांधीवादियों की टोलियां बनारस की गलियों में घूमेंगी और सरकार व प्रशासन के कारनामों को 'उजागर' करेंगी। आगामी 09-10 अगस्त 2023 को दोबारा राजघाट में जनप्रतिवाद सम्मेलन होगा। संपूर्ण क्रांति दिवस से अगस्त क्रांति दिवस तक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा के समक्ष लगातार धरना-प्रदर्शन और उपवास के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। पटना स्थित जेपी निवास से एक यात्रा निकलेगी, जो उनके जन्म स्थान सिताबदियारा होते हुए 08 अगस्त 2023 को बनारस स्थित राजघाट पहुंचेगी।”

कानून के उल्लंघन का आरोप

सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदन पाल, वरिष्ठ नेता अलख, समाजवादी नेता रघु ठाकुर, पूर्व विधायक व किसान नेता डॉ. सुनीलम, लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण के संयोजक प्रो. आनंद कुमार, गांधी विद्या संस्थान के प्रो. डीएम दिवाकर, उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि के सचिव लालबहादुर राय ने मोदी सरकार और आरएसएस की नीतियों की जमकर आलोचना की और कहा, “महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की विरासत और उनके विचारों को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम छेड़ी जाएगी। सत्ता के दबाव में नौकरशाही, सर्व सेवा संघ की उन ज़मीनों को कब्ज़ाने में जुटा है जो उसने धन का भुगतान करके खुद खरीदी है। कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के वर्कशॉप के लिए 02 दिसंबर 2020 को ज़मीन घेरी और उस पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। वह कब्ज़ा आज भी बरकरार है। इसके बाद 15 मई 2023 को गांधी विद्या संस्थान के भवनों पर बलपूर्वक कब्ज़ा करके उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला के हवाले कर दिया। प्रशासन का यह कदम अनुचित और क्षेत्राधिकार का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है।”

गांधी विचारकों ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “बीजेपी सरकार के इशारे पर बनारस के कमिश्नर और उत्तर रेलवे के अफसर साठ-गांठ कर सर्व सेवा संघ की उस ज़मीन को खुर्दबुर्द करने में जुटे हैं जो पैसे देकर खरीदी गई है। इस मामले में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री, समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण, विनोबा भावे और पूर्व रेलमंत्री जगजीवन राम को लक्षित किया गया है। महापुरुषों के ऊपर ‘कूटरचित आपराधिक कृत्य’ का आरोप लगाया है जो लज्जाजनक है। इस मामले में रेलवे एक फर्जी मामला दर्ज कराया है जो दु:खद और हास्यास्पद है।”

प्रतिकार सम्मेलन में शामिल कर्नाटक के डॉ. एमएच पाटिल, पश्चिम बंगाल से विश्वजीत घोरई, सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल व पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुगन बरंठ, सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष एवं लोकतंत्र सेनानी रामधीरज समेत कई लोगों ने बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाया और कहा, “इनके लिए भारतीय कानून की किताब और उसमें उल्लेखित नियम-अधिनियम कोई मायने नहीं रखते। गांधी के समर्थक जब भी उनसे मिलने की कोशिश करते हैं वो न तो मिलते हैं और न ही ई-मेल अथवा ट्विटर का जवाब देते हैं। साबरमती, सेवाग्राम, राजघाट-वाराणसी, भीतिहरवा हमारे लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। सत्ता के मद में चूर लोग महापुरुषों की विरासत को विकृत करने की कोशिश न करें तो अच्छा है। गांधी विद्या संस्थान और सर्व सेवा संघ को हड़पने की आरएसएस-बीजेपी की कोशिश कामयाब नहीं होगी। अगर सरकार नहीं मानती है तो व्यापक जनचेतना अभियान शुरू किया जाएगा।”

प्रतिकार सम्मेलन में मौजूद 104 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ खन्ना ने कहा, “गांधी-विनोबा-जेपी की विरासत को हम मिटने नहीं देंगे। मोदी सरकार ने जिस तरह साबरमती को अपने कब्ज़े में लेकर गांधी की विरासत पर कब्ज़ा किया है वही कहानी यहां भी दोहराना चाहते हैं।”

जेपी आंदोलन के प्रतिनिधि पंकज कहते हैं, “सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए संघर्ष, अब हमारे अस्तित्व विचारों को बचाने का संघर्ष है। गांधी विद्या संस्थान को प्रायोजित विवाद का शिकार बनाया गया है। इस संस्थान के उद्देश्यों को अक्षुण्ण बनाए रखना हम सभी का दायित्व है। देश को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका अदा करने वाले महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की विरासत और उनके विचारों को बचाने के लिए जनता के साथ मिलकर आंदोलन करेंगे।”

प्रतिकार सम्मेलन में यह भी कहा गया, “नौकरशाही की मनमानी के चलते नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है। मोदी सरकार पूंजीपतियों के इशारों पर चल रही है। जो गरीब हैं, उन्हें फटेहाल बनाया जा रहा है और जो अमीर हैं उनकी झोलियां भरी जा रही हैं। गांधी, विनोबा और जेपी के विचारों को सुनियोजित ढंग से ख़त्म किया जा रहा है। संवैधानिक मूल्यों की खुलआम हत्या की जा रही हैं। गांधीवादी लोग और विचारक अब चुप नहीं बैठेंगे। सर्व सेवा संघ को किसी भी कीमत पर साबरमती नहीं बनने देंगे। सर्व सेवा संघ के मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया जाएगा।”

imageसर्व सेवा संघ परिसर में विरोध प्रदर्शन करते गांधीवादी नेता

गांधीवादियों ने छेड़ी बड़ी मुहिम

गांधी समर्थकों के द्वारा बड़ा आंदोलन शुरू किए जाने से बनारस जिला प्रशासन की नींद हिली हुई है। मोदी-योगी सरकार के ख़िलाफ़ यह मुहिम ऐसे समय में शुरू की गई है जब बीजेपी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी है। वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार को लगता है कि "जेपी और विनोबा की विरासत पर हमला सुनियोजित है और एक कुटिल रणनीति के तहत इसे अमलीजामा पहनाया जा रहा है।"

प्रदीप कुमार कहते हैं, “बीजेपी और आरएसएस के टारगेट जेपी-विनोबा नहीं, महात्मा गांधी हैं, जिनसे उन्हें बहुत डर लगता है। गांधी के विचार और कर्म सामाजिक चेतना पैदा करते हैं। किसी भी सत्ता व्यवस्था को सामाजिक चेतना से चिढ़ होती है और उसे खतरा महसूस होता है। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि सामाजिक चेतना से ही सत्ता को चुनौती मिलती है। भारतीय समाज में गांधी दर्शन के ख़िलाफ़ जो लोग गोडसे दर्शन लेकर खड़े हैं उन्हें उन सभी प्रतीकों और प्रतिष्ठानों से और भी ज़्यादा डर लगता है जहां से गांधी विचारों की प्रतिध्वनि होती है। आज जो लोग सत्ता पर काबिज़ हैं उनका एजेंडा साफ़ है। बीजेपी-आरएसएस के लोग लोकशाही को ख़त्म कर एक ऐसा अधिनायकवाद लेकर आना चाहते हैं जिस पर लोकतंत्र का बोर्ड तो लगा हो, लेकिन अंदरखाने सारे ऐसे काम हों, जो जनतंत्र को कमज़ोर करते हों। इसे अगर एक वाक्य में परिभाषित करना हो तो गोड़सेवादी विचारधारा लोकतंत्र को कुचल नहीं रही, बल्कि कुतर रही है, ताकि उसकी जड़ें खोखली हो जाएं और लोकशाही ढह जाए।”

वह आगे कहते हैं, “बीजेपी-आरएसएस की मुहिम में सबसे बड़ी चट्टान गांधी ही हैं। यही वजह है कि वो सभी संस्थाएं, प्रतिष्ठान धीरे-धीरे ख़त्म किए जा रहे हैं जहां से गांधी दर्शन की धारा आगे बढ़ती और मजबूत होती है। देश के दूसरे हिस्सों में इस तरह की कई संस्थाएं इनकी इन हरकतों के चलते अपनी चमक खो चुकी हैं। यही प्रयोग ये लोग बनारस के सर्व सेवा संघ और गांधी विद्या संस्थान में करना चाहते हैं। इसके पहले भी उन्होंने कई मर्तबा ऐसी कोशिश की, लेकिन प्रबल प्रतिरोध के चलते इन्हें मुंह की खानी पड़ी। अब फिर नई ताकत बटोरकर गांधी दर्शन को तोड़ने में जुट गए हैं। यह मसला अदालत और कानून के दायरे में लड़ने के साथ ही इस संघर्ष को जनता के बीच ले आना होगा। जब तक मोर्चों पर समान रूप से एक जुट संघर्ष नहीं होगा, तब तक इनकी ये हरकतें जारी रहेंगी।”

“गांधी की विरासत पर कब्ज़ा करना चाहते हैं”

प्रदीप यह भी कहते हैं, “मरा हुआ समाज किसी को चैलेंज नहीं करता। वह व्यवस्था के अनुरूप खुद को ढाल लेता है। जीवंत समाज अधिकार और समानता की बात करता है। वो खुद मुख्तारी चाहता है। ये ऐसे बिंदु हैं जो सत्ता के केंद्रीकरण को बराबर दरकाते रहते हैं। अच्छी बात यह है कि धर्म निरपेक्षता, समानता और लोकतंत्र की पक्षधर ताकतें इनकी इस साज़िश को समझते हुए एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं। हाल ही में सर्व सेवा संघ में ऐसे लोगों का प्रतिकार सम्मेलन और वहां लिए गए फैसले उत्साह व आशा का संचार करते हैं। ज़रूरत है इसे और व्यापक स्वरूप देने की। यह बात बेहद साफ़ है कि लड़ाई सिर्फ़ दो तरह के लोगों के बीच आकर टिक गई है। एक तरफ वो ताकतें जो गांधी के ख़िलाफ़ विषवमन करते हुए भारतीय राजनीति, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को सामंती अधिनायकवाद की तरफ ले जाना चाहती हैं। दूसरी तरफ वो ताकतें जो गांधी, लोहिया और जयप्रकाश के दर्शन पर आधारित देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को मूर्त रूप देना चाहती हैं।”

सर्व सेवा संघ के जुड़े सर्वोदय नेता सौरभ सिंह कहते हैं, “जेपी का आंदोलन भ्रष्टाचार के विषय पर शुरू हुआ था। उस समय उन्होंने कहा था कि यह आंदोलन सामाजिक न्याय, जाति व्यवस्था तोड़ने, जनेऊ हटाने, नर-नारी समता के लिए है। वह आंदोलन स्वत: स्फूर्त था, जिससे लोकतांत्रिक अधिकारों की नागरिक चेतना का विकास हुआ। बीजेपी और आरएसएस ने गांधी को अपनी सुविधा के अनुसार स्वीकार किया है। वह केवल दिखाने के लिए गांधी का नाम लेते हैं, क्योंकि उन्हें महसूस हो गया है कि गांधी की हत्या के बाद भी वो मरे नहीं। गांधी, विनोबा और जेपी के विरासत पर कब्ज़ा करना एक व्यापक साज़िश का हिस्सा है। गोडसे को लेकर आरएसएस समय-समय पर राष्ट्रीय भावना टटोलता रहा है। गोडसे आतंकवादी नहीं हत्यारा है, यह चर्चा भी उसी साज़िश का एक हिस्सा है। हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संघ जो माहौल बना रहा है, ये भी उसी का हिस्सा है। इसलिए संघ के लिए गोडसे प्यारे हैं न कि गांधी।”

सौरभ यह भी कहते हैं, “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और गांधीवादी आंदोलन दो अलग-अलग विचारधाराओं और लक्ष्यों को प्रतिष्ठित करते हैं। आरएसएस का उद्देश्य हिंदू राष्ट्रवाद को प्रमुखता देना है, जबकि गांधीवादी आंदोलन में महात्मा गांधी के विचारों पर आधारित अहिंसा, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को प्रचारित किया जाता है। इसलिए, इन दोनों संगठनों के मध्य विचारधारा और लक्ष्यों के बीच टकराव है। साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात नाथूराम गोडसे, जो आरएसएस के सदस्य थे, ने गांधीवादियों के समर्थकों के बीच बड़ी चिढ़ पैदा की। यह घटना गांधीवादी आंदोलन के समर्थकों के मन में आरएसएस के प्रति आपत्ति पैदा कर सकती है। गांधीवादी आंदोलन ने अहिंसा, असहिष्णुता, सामरिकता और देश में समानता को बढ़ावा दिया है।”

समाजवादी नेता रामधीरज कहते हैं, “सर्व सेवा संघ, संस्कृति, सेवा, शिक्षा और धार्मिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखता है। संस्था का मुख्य केंद्रित क्षेत्र सेवा और शिक्षा है। संघ विभिन्न धर्मों, समाजों और जातियों के लोगों की सेवा करने का प्रयास करता है। गरीबों, विकलांगों, असहाय बच्चों, वृद्धों की सहायता करता है। हाल के दिनों में ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ ताकतें गांधी विचार केंद्रों और शोध संस्थानों पर सुनियोजित तरीके से हमले कर रही हैं। जब तक गांधीजी के विचार ज़िंदा रहेंगे, कोई ताकत इनके वजूद को नहीं मिटा सकेगी। सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए हम कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और अब जनता के बीच जाकर सत्तालोलुप लोगों की कारगुज़ारियों का पर्दाफाश करेंगे।”

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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