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पश्चिम बंगाल की राजनीति में बीजेपी का प्रयास बनेगा फ़ैक्टर, सीपीआईएम का भी बढ़ रहा आधार

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार में हुए कई घोटालों के ख़िलाफ़ कोलकाता में रैलियों के दौरान दोनों दलों ने अपनी ताक़त दिखाई।
west bengal

कोलकाता: बीजेपी द्वारा 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में एक व्यावहारिक राजनीतिक रणनीति तैयार करने में विफल रहने को लेकर निष्कर्ष सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का केंद्रीय नेतृत्व अब अपनी ग़लतियों को सुधारने और राज्य इकाई में अनुशासन बहाल करने की कोशिश कर रहा है।

ज़मीनी हक़ीक़त ने केंद्रीय भाजपा को राज्य इकाई के कामकाज में सुधार करने के लिए मजबूर कर दिया है। ज्ञात हो कि कुछ ही महीनों में यहां पंचायत चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर बीजेपी ज़िला और उप-मंडल स्तर पर संगठन को फिर से मज़बूत करने का एक मौक़ा दे दिया है। इसके ज़रिए पार्टी संभावित उम्मीदवार के तौर पर कार्यकर्ताओं की पहचान करेगी और उन्हें बैठकों का आयोजन करने लगाएगी।

पश्चिम बंगाल को ज़्यादा महत्व देने का दूसरा कारण 2024 का लोकसभा चुनाव भी है। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी जिससे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और सियासी गलियारों में खलबली मच गई थी। तब से पार्टी के सांसदों की संख्या घटकर 16 हो गई है। विधानसभा में इसकी संख्या 77 सीटों से घटाकर 70 हो गई है।

इसलिए, शीर्ष अधिकारियों के लिए जो पहले से ही अन्य राज्यों में सत्ता-विरोधी कारकों का आकलन करने की कोशिश कर चुके हैं उनको ज़िम्मेदारी सौंप दी गई है। उन्हें न सिर्फ़ 2019 के चुनावों जैसी स्थिति को दोहराने के लिए बल्कि इसमें [पूर्वी क्षेत्र ओडिशा पर भी जोर देने के लिए कहा गया है जहां पार्टी ने 2019 में 21 में से आठ सीटें जीती थीं और सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने 13 पर जीत हासिल की थी] सुधार भी करने के लिए कहा गया है।

लोकसभा सदस्य डॉ सुकांत मजूमदार को 20 सितंबर 2021 को दिलीप घोष के स्थान पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त करने के बाद पश्चिम बंगाल को लेकर आलाकमान बिल्कुल भी सक्रिय नहीं था। राज्य के नए प्रमुख को बड़े पैमाने पर गुटबाजी, अनुशासनहीनता और पार्टी छोड़ने वाले लोगों के साथ संघर्ष करना था। मुख्यालय ने हाल ही में बेहतर राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड वाले नेताओं की वरिष्ठ स्तर पर नियुक्तियां की हैं।

बिहार के मंगल पांडे जिन्होंने पार्टी की अखिल भारतीय युवा शाखा और राज्य इकाई का नेतृत्व किया था और जो राज्य में मंत्री भी थे उन्हें पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था। रांची की मेयर और राष्ट्रीय सचिव डॉ आशा लाकड़ा को सह प्रभारी बनाया गया है। यूपी की राजनीति में अनुभव रखने वाले राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल को भी ओडिशा और तेलंगाना की ज़िम्मेदारी के साथ साथ कोऑर्डिनेटर बनाया गया है।

पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार ध्यान देने वाली बात यह है कि पूर्वी क्षेत्र से अच्छी तरह वाकिफ लोगों को ज़िम्मेदारियां दी गई हैं। पर्यवेक्षकों की टीम में रांची के मेयर को शामिल करना जंगल महल क्षेत्र में उपयोगी साबित होगा। यह क्षेत्र झारखंड के बगल में है और जहां भाजपा काफ़ी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर पाई थी। उस आधार को हाल के दिनों में नुक़सान का सामना करना पड़ा। टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी पार्टी की खोई हुई आधार को वापस पाने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

पार्टी संरचना के बारे में पूछे जाने पर मजूमदार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि आगामी पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए "हमने ज़िला और मंडल स्तर के संगठनों का पुनर्गठन किया है और अब हम यह देख रहे हैं कि हम बूथ स्तर की स्थिति कैसे बेहतर सकते हैं। हम पंचायत चुनावों में पूरी कोशिश करेंगे कि पार्टी की उपस्थिति दर्ज हो।" [बता दें कि 2018 के पंचायत चुनावों में टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा हिंसा और डराने-धमकाने की घटनाएं सामने आई थीं। नतीजतन, विपक्ष हज़ारों सीटों के लिए उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सका। यहां तक कि विपक्ष के सीमित स्थान पर भी टीएमसी ने क़ब्ज़ा कर लिया था]।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, भाजपा का बार-बार 294 सदस्यों के सदन में लगभग 200 सीटें जीतने और पश्चिम बंगाल में अपना पहला मंत्रालय बनाने का दावा अंततः कई कारणों से खोखला साबित हुआ। पहला, पार्टी सभी 294 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की स्थिति में नहीं थी; दूसरा, मुख्यालय प्रबंधन टीएमसी के दलबदलुओं पर बहुत अधिक निर्भर था। इस तरह परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में सीटों पर उम्मीदवारों के रूप में दलबदलू लोगों को खड़ा किया गया था। राजनीति में ज़मीनी स्तर के कम अनुभव वाले कलाकारों को बड़ी संख्या में भी मैदान में उतारा गया था। साथ ही बांग्ला का भाव दर्शाने के लिए कलकत्ता पोर्ट ट्रस्ट का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट ट्रस्ट रखा गया।

शीर्ष नेतृत्व को उपेक्षित भाजपा कार्यकर्ताओं और नए शामिल होने वाले कार्यकर्ताओं पर भी विचार करना पड़ा। शायद, रणनीति में सबसे कमज़ोर बिंदु एक ऐसे चेहरे की पहचान करना और उसे पेश करना था जिसके साथ मतदाताओं का बड़ा वर्ग जुड़ सकता था।

ऊपर में उल्लेख की गई कमज़ोरी तो क़ायम रहती है लेकिन आने वाली लड़ाइयों में अन्य कमियों और ग़लतियों से बचा जाएगा। हिंसा और भद्दी भाषा के इस्तेमाल के बावजूद 13 सितंबर को नबन्ना तक मार्च जो बाद में विधानसभा तक गई उसने भी पार्टी को निष्क्रिय कार्यकर्ताओं और नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सक्षम बनाया। इस समय यही एकमात्र पार्टी को फ़ायदा मिला है।

राज्य महासचिव जगन्नाथ चट्टोपाध्याय और दीपक बर्मन ने न्यूज़क्लिक से कहा कि, "छुट्टियों की घोषणा करने में मुख्यमंत्री की उदारता के कारण पूरे अक्टूबर में त्योहारों के मौसम को पार्टी द्वारा राजनीतिक गतिविधि के लिए टाला जाएगा। पार्टी के नेता और सदस्य इस अवसर का इस्तेमाल लोगों से मेलजोल बढ़ाने में करेंगे। नवंबर से, पार्टी आम लोगों से जुड़े मुद्दों, टीएमसी मंत्रालय की शासन विफलता और निश्चित रूप से मंत्रियों और अधिकारियों से जुड़े घोटालों को लेकर रैलियों और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करेगी।"

बीजेपी एक संगठन आधारित पार्टी है और नेतृत्व का ज़ोर संरचना पर है। चट्टोपाध्याय के अनुसार, एक अनुभवी समन्वयक, प्रभारी और सह-प्रभारी के साथ नई व्यवस्था बहुत ज़रूरी प्रोत्साहन प्रदान करेगी।

बर्मन के अनुसार, संगठित गतिविधि को फिर से शुरू करने के लिए सचिवालय तक निकाली गई रैली ने एक सूत्रधार के रूप में काम किया है।

घोटाले के मुद्दे पर 22 सितंबर को द इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित मजूमदार की टिप्पणी में लिखा गया है, "डब्लूबीएसएससी घोटाला हरियाणा में हुए एक घोटाले जैसा है।" बता दें कि हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को इस मामले में जेल जाना पड़ा था।

उन्होंने आगे कहा कि, "ममता बनर्जी की अनुमति के बिना उनकी पार्टी में कुछ नहीं हो सकता।"

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि 2024 की लोकसभा की लड़ाई के लिए भाजपा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को एक बड़ा मुद्दा बनाएगी, जिसमें बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता के अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डाला जाएगा। विपरीत परिस्थितियों में बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल आए मतुआ समुदाय को सीएए के लागू होने का बेसब्री से इंतज़ार है। इसके तहत नियम बनाने में देरी मतुआ समुदाय के सदस्यों के लिए एक पीड़ादायक मुद्दा बना हुआ है। राज्य पार्टी प्रमुख और दो महासचिवों ने संवाददाता को जो बताया, उससे ऐसा लगता है कि भाजपा 2023 में पंचायत चुनावों में एक फैक्टर बनना चाहती है और 2024 में अच्छी संख्या में लोकसभा सीटों के लिए बड़ा दावेदार बनना चाहती है।

दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति 2023 की पहली तिमाही से एक साल से अधिक समय तक राजनीतिक लड़ाई के लिए तैयार है। इसके लक्षण दिख ही रहे हैं। 20 सितंबर को शहर में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में आयोजित इंसाफ रैली में बड़े पैमाने पर लोग शामिल हुए जिसने आम जनता का ध्यान आकर्षित किया और पुलिस को भी हैरान कर दिया।

इस रैली ने राजनीतिक परिदृश्य में अपनी मौजूदगी को डीवाईएफआई की राज्य सचिव मीनाक्षी मुखर्जी के सशक्त नेतृत्व में मज़बूती से अपनी उपस्थिति दर्ज की। और इन सबको देखते हुए पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी भी वरिष्ठ नेताओं अधीर रंजन चौधरी और प्रदीप भट्टाचार्य के साथ सक्रिय हो रही है। इन्हें आलाकमान द्वारा भारत जोड़ो यात्रा के विस्तार के रूप में राज्यव्यापी यात्रा आयोजित करने का काम सौंपा है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

WB: Renewed BJP bid to be a Factor in Bengal Politics, CPIM Also Gaining Ground

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