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बाबरी मस्जिद विवाद; तीसरा भाग : साल 1990 से अब तक

अभी तक आपने बाबरी मामले में गुलाम भारत से आज़ाद भारत यानी 1885 से 1949 और 1949 से 1990 तक की तथ्यों पर आधारित कहानी पढ़ी। आज जब इस मामले में अंतिम फ़ैसला आने को है तो पेश है इसका तीसरा भाग।
babri masjid
Image courtesy: THC

साल 1986 में फ़ैजाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का आदेश आता है। विश्व हिन्दू परिषद द्वार ताले तोड़ दिए जाते हैं। उन लोगों से पूछा तक नहीं जाता, जो साल 1949 से मस्जिद की देखरेख कर रहे थे। जिन्हें देखरेख करने की जिम्मेदारी साल 1949 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट ने दी थी। इस उग्र कार्रवाई से पूरे देश में तनाव हो जाता है। अयोध्या का स्थानीय मुद्दा पूरे देश का मुद्दा बन जाता है। देश भर में आने वाले समय में हिन्दू और मुस्लिम के  बीच भयंकर दरार पड़ने की नींव पड़ जाती है।

इसी समय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन होता है। इस नाम को पढ़कर ऐसा मत समझिये कि इसके गठन और कामों पर सारे मुस्लिमों की रजामंदी थी। साल 1987 में भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि मुस्लिमों को अपने दावे को छोड़ देना चाहिए और सद्भावना में हिन्दुओं को मंदिर बनाने की इजाजत दे देनी चाहिए। 11 जून 1987 को भाजपा ने विवादित ढांचे की जगह को हिन्दुओं को देने का संकल्प पारित कर दिया। साल 1989 विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास की मांग करनी शुरू कर दी। इस मांग का मौजूदा कांग्रेस सरकार ने भरपूर समर्थन किया। यहीं से राजीव गाँधी अपनी चुनावी यात्रा पर शुरू करते हैं।  जनता से राम राज्य लाने का वादा करते है और साथ में यह भी कहते हैं कि उन्हें अपने हिन्दू होने पर गर्व है।

कोने कोने से हिन्दू आस्था में चूर लोग मंदिर का शिलान्यास करने के लिए निकल पड़े। फ्रंटलाइन में छपी रिपोर्ट कहती है कि लोग केसरिया कपड़ें में बांधकर ईंट ले जा रहे थे। इस भाव से भरे थे कि श्री राम मंदिर बनाने में उनका भी हिस्सा है।

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शिलान्यास के दिन बाबरी मस्जिद के 200 गज के आस पास बहुत अधिक भीड़ इकठ्ठा हो चुकी थी। स्थानीय प्रशासन ने हाई कोर्ट को लोगों को मस्जिद के 200 गज दूर रहने के आदेश देने की अपील की। लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस शिलापूजन की प्रतिक्रिया में देश भर में कई दंगें हुए और कई बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

1989 में शिलान्यास के समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। लेकिन फिर बोफोर्स का मामला उठता है और राजीव गांधी की सरकार चली जाती है। इस पतन का कारण या कहें कि हीरो वीपी सिंह बीजेपी और वाम मोर्चे के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बनते हैं। फिर लागू होता है मंडल आयोग और उसी की काट में शुरू होती है बीजेपी की कमंडल यात्रा।

25 नवम्बर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक की रथ यात्रा शुरू की। इस यात्रा को किसी ने नहीं रोका लेकिन बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव ने 23 अक्टूबर 1990 में इस यात्रा को रोक दिया। यात्रा को रोकते ही बीजेपी ने वीपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।

इस दौरान अयोध्या मामले पर वी पी सिंह के भाषण का एक हिस्सा याद रखने लायक है। सरकारें आएंगी और जायेंगी लेकिन देश का बने रहना बहुत जरूरी है।
30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई कर दी। उस समय यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी और उन्होंने कारसेवकों के मंसूबे नाकाम कर दिए। लेकिन उस दौरान भी यूपी समेत देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे हुए।

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उसके बाद 24 जून 1991 को कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इनके चुनाव प्रचार में राम का प्रतीक बहुत अधिक इस्तेमाल किया जाता है। बहुत लोग इसकी आलोचना करते हैं कि जो राम सबके हैं वह एक पार्टी विशेष के कैसे हो गए ? 7 अक्टूबर 1991 को बाबरी मस्जिद के आस-पास मौजूद 2.77 एकड़ की जमीन को अपने कब्जे में ले लिया। इस जमीन को तीर्थस्थल के तौर पर विकसित करके पर्यटन को बढ़ाने की बात कही गयी।

क़ानून के जानकार फैज़ान मुस्तफा अपने यू-ट्यूब चैनल पर कहते हैं कि यहां पर कोर्ट ने एक दिलचस्स्प बात कही कि वक्फ की सम्पति को सरकार अपने कब्जे में ले सकती है जबकि कानूनन यह बात सही है कि एक बार जो सम्पति वक्फ की हो जाती है वह दूसरों को ट्रांसफर नहीं की जा सकती है।

फरवरी 1992 में बाबरी मस्जिद को घेरकर एक दीवार बना दी गयी। 20 मार्च 1992 को उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विवादित जमीन को रामजन्म भूमि ट्रस्ट को दे दिया। बाद में जाकर सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित जमीन को रामजन्मभूमि ट्रस्ट को दिए जाने को फ्रॉड घोषित कर दिया। इस जमीन पर रामजन्मभूमि ट्रस्ट के मालिकाना हक को खरिज कर दिया। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस मालिकाना हक़ को ख़ारिज करने में कोर्ट ने बहुत अधिक देर लगा दी।

ए. जी. नूरानी अपनी किताब 'द बाबरी मस्जिद क्वेश्चन' में लिखते हैं कि 13 जुलाई 1992 को इलाहाबाद हाई कोर्ट से फिर गलती हुई। बाबरी मस्जिद के इलाके में  खुदाई होने लगी। लेकिन कोर्ट से उसे रोकने की अपील करने के बाद भी कोर्ट ने उस खुदाई को नहीं रोका।

5 दिसम्बर 1992 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वह भाषण दिया जो छवि पर सबसे बड़े दाग की तरह हमेशा मौजूद रहेगा। इस दिन लखनऊ के अपने भाषण में वाजपेयी जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमें कारसेवा से मना नहीं किया है। अगर कारसेवा होगी तो भजन कीर्तन भी होंगे। और भजन कीर्तन ऐसे ही नहीं हो सकता। इसके लिए एक संरचना की जरूरत होगी। ऐसा कहते - कहते यह भी कह दिया कि ''वहाँ पर नुकीले पत्थर हैं। (यानी गुम्बद) अगर हमें वहाँ बैठना है तो इसे समतल करना पड़ेगा।'' इसी आशय का भाषण मुरली मनोहर जोशी ने मथुरा में दिया और लालकृष्ण आडवाणी ने भी दिया था।

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छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी मस्जिद के आसपास सीआरपीएफ को आने नहीं दिया जा रहा था। राज्य के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह विरोध कर रहे थे कि बिना उनकी इजाजत के सीआरपीएफ को क्यों इंट्री दी जा रही है ? इसके बाद छह दिसम्बर को कार सेवकों ने 6 -7 घंटे के अंदर रस्सियों और फावड़े के सहारे पूरे मस्जिद ढाह दी।

इसके बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह इस्तीफ़ा दे देते हैं। रिकॉर्डों से यह साफ पता चलता है कि कल्याण सिंह पहले इस्तीफा देना चाहते थे। लेकिन आडवाणी की तरफ से उन्हें रोका गया था। वजह यह थी कि अगर कल्याण सिंह मस्जिद गिरने से पहल इस्तीफा दे देते तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाता। और वैसा होने में मुश्किलें आती जैसा हिन्दुत्वादी ताकतें चाहती थीं। हालांकि इससे पहले कल्याण सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दिया था कि अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाई रखी जाएगी।

अयोध्या की एसपी अंजू गुप्ता ने लिब्राहन कमीशन के सामने यह बात कही कि वहाँ सीआरपीएफ को नहीं जाने दिया जा रहा था। आरएएफ की एक टुकड़ी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने मंगवाई थी, उसे राज्य सरकार ने अनुमति नहीं दी। और वापस चले जाने को कह दिया। 8 दिसम्बर को सीआरपीएफ को वहां जाने की जाने की अनुमति मिलती है, जब तक सारा खेल खत्म हो चुका था। वहाँ पर एक अस्थायी मंदिर बन चुका था।
दस दिसम्बर को आरएसएस, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। साथ में जमात-ए- इस्लामी और इस्लामिक सेवा संघ पर भी बैन लगा दिया। समझिये कि बैलेंस करने के लिए मुस्लिमों के संगठन पर भी बैन लगता है।

सुप्रीम कोर्ट के जज एम वैंकटचलैया कहते हैं कि हमारा दुर्भाग्य है कि हम इसे नहीं रोक पाए। क़ानूनी जानकर फैज़ान मुस्तफा कहते हैं कि जितनी जिम्मेदर इस मसले पर सरकारें और हिंदूवादी ताकतें रही हैं, उतना ही जिम्मेदार कोर्ट भी रहा है। उसके पास कई बार ऐसी बातें रख गयी कि वह इसे रोक दे लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं रोका। कई बार कोर्ट के आदेश को नहीं माना गया। कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट हुआ। लेकिन कोर्ट ने कुछ नहीं किया। कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद का संरक्षण नहीं किया। यह कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट था। इस पर कल्याण सिंह को एक दिन की सांकेतिक सज़ा सुनाई गई। बीस हज़ार जुर्माना भी लगा, लेकिन फर्क कोई नहीं पड़ा इसके बाद भी कल्याण सिंह 2014 में मोदी सरकार के ज़माने में राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए। उधर, किसी भी धार्मिक स्थल को नुकसान पहुँचाने पर इंडियन पीनल कोड के तहत सजा का प्रावधान है लेकिन अभी तक इसे ढाहने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं दी गयी है।

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इसके बाद विश्व हिन्दू अधिवक्ता संघ ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि अस्थायी मंदिर पर दर्शन करने वाले व्यक्तियों के साथ बहुत अधिक दिक्क्त आ रही है। फैज़ान मुस्तफा कहते हैं कि इस मामले की सुनवाई की जस्टिस तिलहरी ने। वो जज जो पहले इसी मामलें में हिन्दू पक्षकारों के वकील रह चुके थे। यह पूरी तरह से न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन था। ठीक वैसा ही जैसा इस समय अरुण मिश्रा के लिए बात की जा रही है कि किसी भी ऐसे मामलें में खुद को ही जज बना लेना न्याययिक प्रक्रिया का उल्लंघन हैं जिसका जुड़ाव किसी भी तरह से जज से हो।  जस्टिस तिलहरी ने हिन्दू अधिवक्ता संघ की प्रशंसा की। और वहां पर दर्शन करने की इजाजत दे दी। इन्हीं जस्टिस तिलहरी को आगे चलकर मुलायम सिंह सरकार ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का अध्यक्ष बनाया। और इन्होंने यह कहा कि मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं।

सात जनवरी 1993 को भारत सरकार एक अध्यादेश लाकर 67.73 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में ले लेती है। और यह कहती है कि जब विवादित जमीन का मालिकाना हक़ निर्धारित हो जाएगा तो बाकी जमीन को उनके मालिकों को लौटा दिया जाएगा। यह अध्यादेश 1993 में अधिनियम बन जाता है। इसे साल 1994 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट के पांचों जजों ने एकमत होकर कहा कि हम इस बात पर जवाब नहीं देंगे कि यहाँ पर किसी हिन्दू मंदिर को ढाहकर मस्जिद बनाई गई थी या नहीं। जस्टिस जे एस वर्मा ने बहुत सख्त टिप्पणी की।  उन्होंने कहा कि मस्ज्दि गिराने वाले बदमाश लोग हैं। जिनकी कोई जाति और धर्म नहीं है। ये केवल आपराधिक चरित्र के लोग हैं।

15 दिसम्बर 1992 को नरसिम्हा राव सरकार ने उत्तर प्रदेश के अलावा जहाँ भी भाजपा की सरकार थी, उसे बर्खास्त कर दिया। भाजपा की हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान की सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया गया था। आरोप था कि इन सभी राज्यों सरकारों ने खुले तौर पर हिंसा में भगीदारी निभाई थी। राजस्थान सरकार के

22 विधायक कारसेवक बनकर अयोध्या गए थे। आते वक्त इनका भव्य स्वागत हुआ और जाते वक्त भव्य विदाई दी गयी। लेकिन हिंसा महाराष्ट्र और गुजरात में भी हुई। लेकिन यहाँ की सरकारों को बर्खास्त नहीं किया गया। जानकारों का कहना है कि ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि यहां पर कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद जब चुनाव हुए तो उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार वापस नहीं आ पायी।

16 दिसंबर 1992 में मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ। जनवरी 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था। जुलाई 2009 में लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

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सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया। जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है, वह हिन्दू महासभा को दिया। एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया, जिसमें सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल था। बाकी एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सौंपा। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।लेकिन असफल रहा। उसके बाद अभी 6 अगस्त, 2019 से लगातार 40 दिन की सुनवाई के बाद बाबरी मामले का फैसला 17 नवम्बर से पहले आने जा रहा है।

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