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बैंक यूनियन ने किया निजीकरण का विरोध, 'राष्ट्र और उसके लोगों' को बताया पीएसबी का असली मालिक

राष्ट्रीय मीडिया हाल ही में विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप को नीति आयोग की तरफ़ से उन सार्वजनिक बैंकों के नामों का सुझाये जाने वाली ख़बरों से भरा पड़ा था जिनका निजीकरण किया जाना है। इसने बैंक इम्पलॉई फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (BEFI) को इस मामले पर अपनी स्थिति फिर से स्पष्ट करने के लिए मजबूर किया है।
बैंक यूनियन ने किया निजीकरण का विरोध, 'राष्ट्र और उसके लोगों' को बताया पीएसबी का असली मालिक

गुरुवार को एक बैंक कर्मचारी महासंघ ने "राष्ट्र और इसके लोगों" को देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मालिक और चुनी हुई सरकार को महज़ इनकी "रखवाली" करने वाला बताते हुए कहा कि इस महासंघ ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के आक्रामक तरीक़े से निजीकरण की तरफ़ बढ़ते क़दम की कड़ी आलोचना की।

बैंक इम्पलॉई फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (BEFI) ने गुरुवार को प्रेस को दिये एक बयान में कहा कि जैसा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट को रखते हुए प्रस्तावित किया था कि दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण किया जायेगा, वह इस विचार का पूरी तरह से विरोध करता है।

सीतारमण ने इस साल 2021-22 के वित्तीय वर्ष में अपने बजट भाषण के दौरान दो पीएसबी (आईडीबीआई बैंक के अलावे एक और बैंक) और एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण का ऐलान किया था। उन्होंने चालू वित्त वर्ष के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीवन बीमा निगम (LIC) की आंशिक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) शुरू करने की केंद्र की प्रतिबद्धता को भी दोहराया था।

15 मार्च को सरकार के इसी क़दम के ख़िलाफ़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और पुराने निजी बैंकों के क़रीब 10 लाख कर्मचारी दो दिन की हड़ताल पर चले गये थे। बैंक कर्मचारियों के साथ जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (GIC) और एलआईसी के कर्मचारी भी शामिल हो गये थे, उन्होंने एक दिन के लिए अपनी ड्यूटी भी छोड़ दी थी।

हाल ही में राष्ट्रीय मीडिया सरकार के विशेषज्ञ समूह वाले नीति आयोग की तरफ़ से विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप को उन सार्वजनिक बैंकों के नाम सुझाने की खबरों से भर गया था, जिनका निजीकरण किया जाना है। यही वजह थी कि बैंक इम्पलॉई फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (BEFI) ने इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।

बीईएफ़आई ने अपने प्रेस बयान में कहा है, "निजी बैंकों का इतिहास बैंकिंग नाकामियों से अटा-पड़ा है, एक के बाद एक बैंक बंद होते गए, जिससे उनके कर्मचारियों और जमाकर्ताओं को बहुत परेशानी हुई।" फ़ेडरेशन यह बात देश में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पहले वाले दौर की बात कर रहा है। 1969 में कम से कम उन 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था, जो उस समय देश में काम कर रहे थे।

बीईएफ़आई ने कहा कि तब से देश के "आर्थिक विकास" और इसकी "संप्रभुता" को लेकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तरफ़ से निभायी गयी "शानदार भूमिका" के साथ देश ने एक लंबा सफ़र तय किया है।

सार्वजनिक बैंकों की संख्या कम करने की सिफ़ारिशें 1991 से उस नयी राष्ट्रीय आर्थिक नीति के आगमन के बाद से गठित कई समितियों की तरफ़ से की जाती रही हैं, जिसने वैश्विक खिलाड़ियों के लिए भारतीय बाज़ार खोल दिये थे।

उन्हीं सिफ़ारिशों को अब मोदी सरकार आक्रामक तरीक़े से आगे बढ़ा रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि 2014 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 27 थी, जो घटकर 12 रह गयी है। यह वही साल था, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने केंद्र में सत्ता संभाली थी।

बीईएफ़आई ने गुरुवार को कहा, "पीएसबी के मालिक देश और उसके लोग हैं। हम मज़बूती के साथ यह मानते हैं कि एक निर्वाचित सरकार महज़ रखवाली करने के लिए होती है, जिसे इसकी संपत्ति बेचने का कोई हक़ नहीं है। पीएसबी का निजीकरण सरकार के उस बड़े एजेंडे का हिस्सा है, जिसने हमारे महान राष्ट्र के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का बड़ी संख्या में निजीकरण की घोषणा की है।”

बीईएफ़आई के महासचिव, देबाशीष बसु चौधरी ने शुक्रवार को न्यूज़क्लिक को बताया, “बैंक कर्मचारी 1991 से ही बैंकों के निजीकरण के विचार का विरोध कर रहे हैं। यह जनता, यानी बैंकों के ग्राहकों को उतना ही नुक़सान पहुंचायेगा, जितना कि बैंक के कर्मचारियों का मनोबल गिरायेगा।”

उनका कहना है कि सभी पीएसबी हर साल परिचालन(Operation) से "भारी" मुनाफ़ा कमाते हैं। हालांकि, उनका कहना था कि मुख्य रूप से "डूबते क़र्ज़ और एनपीए (ग़ैर-निष्पादित संपत्ति) के लिए “प्रावधानिकरण (provisioning)" के चलते शुद्ध नुक़सान" उठाया है।”

यही नहीं, बल्कि बसु के मुताबिक़ तो निजी बैंकिंग क्षेत्र भी देश में बढ़ते एनपीए की समस्या से मुक्त नहीं रहे हैं। बसु ने कहा, 'निजी बैंकों के फंसे कर्ज़ भी बढ़ रहे हैं और ऐसे कई बड़े बैंकों को एनपीए की कम रिपोर्ट देने के लिए दंडित भी किया गया है। सबसे बड़े निजी बैंकों के कुछ शीर्ष अधिकारियों पर तो घोर अनियमितताओं के आरोप हैं।”

यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र ने बैंकों के निजीकरण से पहले बैंक कर्मचारियों को विश्वास में लेने की कभी कोशिश की है, बसु ने बताया कि केंद्र और बैंक कर्मचारी संघ के बीच नीतिगत फ़ैसलों पर अभी तक कोई बैठक ही नहीं हुई है।

बसु ने कहा कि यूनाइटेड फ़ोरम ऑफ़ बैंक यूनियंस, जिसके झंडे तले बीईएफआई भी है, जल्द ही एक बैठक बुलाने वाला है और आगे की कार्रवाई पर फ़ैसला करेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bank Union Opposes Privatisation, Says ‘Nation and its People’ Are Owners of PSBs

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