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ख़बरों के आगे-पीछे:  बजट, चुनाव और बीजेपी

पहली फरवरी को पेश होने वाले आम बजट से लेकर तेल की कीमतों, दिल्ली विधानसभा, और लोकसभा चुनावों तक की सरगर्मियों पर अपने साप्ताहिक कॉलम में बात कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
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बजट में मध्य वर्ग को कुछ नहीं मिलेगा

इस बार भी केंद्र सरकार के बजट में मध्य वर्ग को कुछ नहीं मिलना है। सरकार का पूरा फोकस 'गरीब कल्याण’ पर है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो मुफ्त अनाज का ऐलान हो चुका है और हो सकता है कि बजट में कुछ और घोषणाएं हों। लेकिन मध्य वर्ग, जिसका आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है उसे इस बार भी सरकार की कृपा से वंचित रहना पड़ सकता है। इस बात का संकेत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों आरएसएस के मुखपत्र 'पांचजन्य’ के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में दिया है। उन्होंने कहा है कि मध्य वर्ग के लिए सरकार पहले ही काफी काम कर चुकी है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने मध्य वर्ग के ऊपर कोई टैक्स नहीं लगाया है। उन्होंने कहा कि मेट्रो का विस्तार हुआ है, जो मध्य वर्ग के फायदे के लिए है। यह भी सोचने की बात है, क्योंकि मेट्रो को सार्वजनिक परिवहन का रॉल्स रायस कहा जाता है। यानी यह सबसे महंगी सार्वजनिक परिवहन सेवा है। ऊपर से केंद्र सरकार इसके किराए में न खुद छूट दे रही है और न राज्य सरकारों को देने दे रही है। मध्य वर्ग के फायदे की तीसरी बात वित्त मंत्री ने स्मार्ट सिटी की कही। सरकार ने जिन एक सौ शहरों को स्मार्ट सिटी की श्रेणी में रखा है वहां की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इस योजना के तहत कोई नया बुनियादी ढांचा शायद ही किसी शहर में विकसित हुआ है। यह हैरान करने वाली बात है कि सरकार बुनियादी ढांचे के विकास की योजनाओं को एक वर्ग के साथ जोड़ कर उसे संतुष्ट करने की बात कर रही है।

ख़ूब कमा रही हैं तेल कंपनियां और सरकारें

भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम कई महीनों से स्थिर है। पिछले साल मार्च में आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक महीने तक दाम बढ़े थे लेकिन उसके बाद से दाम स्थिर है। उनमें न बढ़ोतरी हो रही है और न कमी। लेकिन इस दौरान दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमत में बड़ी कमी आई है और साथ ही रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने का भारत ने रिकॉर्ड बनाया है। यह कमाल है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जहां सारी दुनिया रूस से दूरी बना रही है वहीं भारत ने रूस से पिछले साल रिकॉर्ड खरीद की है। दिसंबर आते-आते भारत रोजाना इराक और सऊदी अरब से भी ज्यादा तेल रूस से खरीदने लगा। अक्टूबर और नवंबर में भारत ने रूस से हर दिन नौ लाख बैरल से कुछ ज्यादा कच्चा तेल खरीदा था। लेकिन दिसंबर मे भारत ने हर दिन 12 लाख बैरल के करीब तेल खरीदा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत घट कर 75 डॉलर प्रति बैरल है और रूस से कोई 60 डॉलर प्रति बैरल में खरीद हो रही है। इसके बावजूद भारत में खुदरा बाजार में कीमत कम नहीं की जा रही है। ऊंची कीमत रख कर सरकारें और कंपनियां रिकॉर्ड कमाई कर रही हैं। दिसंबर में खत्म हुई तिमाही में तेल कंपनियों का मुनाफा 82 फीसदी बढ़ा है। भारत सरकार चालू वित्त वर्ष यानी 2022-23 में तेल से आठ लाख करोड़ रुपया कमाएगी तो राज्य सरकारें तीन लाख करोड़ रुपए की कमाई करेंगी।

तीन साल बाद भी लागू नहीं हो पाया सीएए

नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को पारित हुए तीन साल से भी ज्यादा समय हो गया है लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है, क्योंकि तीन साल बाद भी सरकार इसे लागू करने के नियम नहीं बना पाई है। पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे लागू करने के लिए संसद की स्टैंडिंग कमेटी ऑन सब ऑर्डिनेट लेजिस्लेशन से सातवीं बार एक्सटेंशन लिया है। यह कानून 11 दिसंबर 2019 को संसद से पास हुआ था और 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। उसके बाद से ही सरकार इसके नियम बनाने के लिए लगातार एक्सटेंशन ले रही है। एक तरफ गृह मंत्रालय इस कानून को लागू करने के नियम नहीं बना रहा है तो दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह ने दो महीने पहले नवंबर में कहा कि जिन लोगों को लग रहा है कि सीएए नहीं लागू होगा, वे गलतफहमी में हैं। सवाल है कि फिर लागू क्यों नहीं हो रहा है? पिछले साल मई में अमित शाह ने कहा था कि कोरोना खत्म होते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। फिर अगस्त में कहा कि टीकाकरण पूरा होते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। ऐसा लग रहा है कि सरकार आकलन कर रही है कि कानून लागू हुआ तो असम में कितना नुकसान और पश्चिम बंगाल में कितना फायदा होगा। अगर नुकसान से ज्यादा फायदा दिखा तो इसे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लागू कर दिया जाएगा। असल में असम में स्थानीय लोगों खास कर असमी भाषा बोलने वालों ने इसका बड़ा विरोध किया था। उसकी वजह से ही इस पर अमल रूका है।

दिल्ली में ख़त्म हो सकती है विधानसभा!

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर चल रही लड़ाई से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए पूछा कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है, जब पूरा प्रशासन केंद्र सरकार के हिसाब से चलना है? यह बहुत जायज सवाल है। जब दिल्ली का प्रशासन उप राज्यपाल के जरिए गृह मंत्रालय चलाएगा तो फिर दिल्ली में विधानसभा और चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है? गौरतलब है कि दिल्ली में कई तरह की शासन व्यवस्थाएं एक साथ काम करती हैं। कुछ विषयों की जिम्मेदारी राज्य की चुनी हुई सरकार संभालती है, कुछ विषय दिल्ली नगर निगम के अधीन आते हैं, कुछ इलाके एनडीएमसी के हैं, जहां सीधे केंद्र का राज चलता है तो कुछ सेना के अधिकार का क्षेत्र है। जमीन और पुलिस का मामला पूरी दिल्ली मे सीधे केंद्र के पास है। पिछले दिनों संसद में गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली यानी जीएनसीटीडी कानून पास किया गया, जिसमें यह प्रावधान है कि सरकार का मतलब उप राज्यपाल है। अब या दिल्ली में यह जीएनसीटीडी एक्ट लागू होगा या चुनी हुई विधानसभा और सरकार रहेगी। दोनों के साथ-साथ रहने का कोई मतलब नहीं है। यह सिर्फ आम आदमी की मेहनत की कमाई की बरबादी है। अगर चुनी हुई सरकार जनादेश के हिसाब से काम नहीं कर सकती है, अपने चुनावी वादों को लागू नहीं कर सकती है, मामूली से मामूली बात के लिए उसे उप राज्यपाल से मंजूरी लेनी है तो फिर उस सरकार के रहने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी भाजपा अब 1998 से लगातार हार कर तंग आई हुई है। इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर इसी विवाद में विधानसभा खत्म हो जाए और 1993 से पहले वाली व्यवस्था बहाल हो जाए।

लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां और चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि अब चुनाव में चार सौ दिन बचे हैं। इससे पहले आमतौर पर जिस साल चुनाव होना होता था उसी चुनावी साल कहते थे और वह साल शुरू होने पर ही चुनाव की तैयारियां होती थी। लेकिन अब एक साल की बजाय प्रधानमंत्री ने चार सौ दिन की बात कही है। यानी लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। इसी हिसाब से उनकी पार्टी ने चुनाव की तैयारियां भी शुरू कर दी है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक और उससे पहले हुई पार्टी पदाधिकारियों की बैठक चुनावी तैयारियों के बारे में थी। इस साल होने वाले राज्यों के चुनावों के साथ-साथ पार्टी नेताओं का एक समूह अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है। केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम पिछली बार हारी हुई सीटों पर काम कर रही है तो उसके साथ-साथ चार सौ से ज्यादा सीटें, जिन पर भाजपा चुनाव लड़ती है उनको भी केंद्रीय मंत्रियों के बीच बांटा गया है और उन्हें हर सीट पर जाने को कहा गया है। हर केंद्रीय मंत्री के जिम्मे तीन, चार या उससे ज्यादा सीट दी गई है। इसके अलावा राज्यसभा के सांसदों को अलग से जिम्मा दिया गया है। पार्टी संगठन लोकसभा चुनाव के लिहाज से चुने गए करीब 74 हजार बूथ पर काम कर रहा है।

ममता खुद ही बनीं प्रधानमंत्री पद की दावेदार

तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव को अपने लिए आखिरी मौका मान रही हैं। अगले लोकसभा चुनाव तक वे 69 साल की होंगी। इसलिए वे 2029 का इंतजार नहीं कर सकतीं। इसीलिए उन्होंने तय किया है कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर ही चुनाव लड़ेगी। हालांकि पिछले दिनों उनकी पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने बिना कोई चेहरा पेश किए चुनाव लड़ने का फॉर्मूला पेश किया था। लेकिन उसके बाद नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के एक बयान से ममता को मौका मिल गया है। अमर्त्य सेन से एक पत्रकार ने ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ममता में यह क्षमता है। ममता ने इसी बात को पकड़ा और ऐलान कर दिया कि अमर्त्य सेन की सलाह उनके लिए आदेश की तरह है। वे इस बात को ऐसे पेश कर रही हैं, जैसे सेन ने उन्हें आदेश दिया हो कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर चुनाव मैदान मे जाएं। ऐसा करके वे बांग्ला अस्मिता का दांव खेल रही हैं। उन्हें मालूम है कि जिस तरह से उन्होंने विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को बाहरी बता कर अपनी बांग्ला अस्मिता के नाम पर चुनाव जीता था, वैसा करिश्मा वे लोकसभा चुनाव में भी कर सकती हैं। अगर वे पहले बंगाली प्रधानमंत्री का दांव चलती है तो उनका प्रदर्शन सुधर सकता है। यह काम वे अमर्त्य सेन के बयान के बहाने कर रही हैं।

कांग्रेस की मुफ़्त बिजली योजना से भाजपा परेशान

कर्नाटक में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाला है, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने अभी से ऐलान कर दिया कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो हर परिवार को दो सौ यूनिट बिजली बिल्कुल मुफ्त मिलेगी। हालांकि इस बात की गारंटी नहीं है कि कांग्रेस इस घोषणा के आधार पर चुनाव जीत जाएगी क्योंकि हिमाचल में मुफ्त बिजली और पुरानी पेंशन योजना के नाम पर कांग्रेस जीती पर गुजरात में नहीं जीत पाई, बल्कि मुफ्त की रेवड़ी खुल कर बांटने की घोषणा करने वाली आम आदमी पार्टी भी बुरी तरह से हारी। लेकिन कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कर्नाटक गुजरात नहीं है। वहां भाजपा का वैसा आधार और संगठन नहीं है, जैसा गुजरात में है और दूसरे कांग्रेस कर्नाटक में बहुत मजबूत है। इसीलिए शिवकुमार ने पहले ही ऐलान कर दिया। कांग्रेस की इस घोषणा से भाजपा कितनी परेशान है इसका अंदाजा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के बयान से लगता है। उन्होंने कांग्रेस की इस घोषणा को गैर जिम्मेदार और अतार्किक बताया है। भाजपा के नेता समझा रहे हैं कि इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से बिगड़ जाएगी। बौखलाहट में भाजपा नेता यह भी आरोप लगा रहे है कि बिजली सेक्टर निजी हाथों में सौंपने के लिए कांग्रेस इस तरह की घोषणा कर रही है। यह दिलचस्प है कि जो पार्टी देश की सारी सेवाएं निजी हाथों में सौंपने की योजना पर काम कर रही है उसके ही नेता कांग्रेस पर निजीकरण को बढ़ावा देने के आरोप लगा रहे है।

बिहार में फिर हो सकती है उठापटक

बिहार की राजनीति में इस समय एक बार फिर कयासों का बाजार गरमाया हुआ है। ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले सूबे की राजनीति में एक बार फिर बडी उठापटक होने वाली है। एक तरफ राजद के नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जिनसे नए विवाद पैदा हो रहे हैं, तो दूसरी ओर जद (यू) की योजना अलग राजनीति करने की दिख रही है। जद (यू) ने अपने पुराने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की लाइन पकड़ी है। प्रशांत किशोर इस समय जन सुराज पदयात्रा कर रहे हैं और लालू प्रसाद के दोनों बेटों की पढ़ाई का मुद्दा बना रहे हैं। दिलचस्प संयोग यह है कि राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार की पार्टी भी अब इस लाइन पर चल पड़ी है। जद (यू) ने एक नया अभियान लांच किया और एक नया नारा दिया है। जद (यू) का नारा है- शिक्षित कुमार, शिक्षित बिहार। कहा जा रहा है कि कुमार का मतलब बिहार के युवाओं से है लेकिन असल में यह नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का अंतर बताने वाला है। जद (यू) के इस नारे के बाद तनाव और बढ़ेगा। पहले ही राजद नेता और राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के रामचरित मानस पर दिए बयान से विवाद है और तेजस्वी यादव ने यह कहते हुए उनका बचाव किया है कि संविधान में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। ऐसा लग रहा है कि अपने अपने तरीके से दोनों सहयोगी पार्टियां अपनी पोजिशनिंग कर रही हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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