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ख़बरों के आगे-पीछे: एफ 35 विमान का प्रस्ताव फ़र्ज़ी निकला!

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपे साप्ताहिक कॉलम में F-35 विमान की डील के साथ दिल्ली, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल आदि की राजनीति पर बात कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपे साप्ताहिक कॉलम में F-35 विमान की डील के साथ दिल्ली, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल आदि की राजनीति पर बात कर रहे हैं।
F-35 aircraft

यह कमाल की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को जिस एक बात की वजह से सबसे सफल बताया गया था, उसका कोई आधार नहीं है। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद प्रचारित किया गया था कि भारत की वायु सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अमेरिका एफ 35 लड़ाकू विमान देने जा रहा है और खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसका प्रस्ताव दिया है। इसके बाद मोदी समर्थक जश्न मना रहे थे कि अब चीन और पाकिस्तान की खैर नहीं है। दूसरी ओर भाजपा और मोदी विरोधी इलॉन मस्क के पुराने ट्विट खोज कर निकाल रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि एफ 35 एक कबाड़ विमान है। मोदी विरोधी उनके ऊपर यह कह कर हमला कर रहे थे कि सरकार करदाताओं के पैसे से अमेरिका से कबाड़ खरीद रही है। लेकिन अब पता चला है कि मोदी समर्थक और विरोधी जिस बात पर लड़ रहे थे उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। भारत के वायु सेना प्रमुख अमरप्रीत सिंह ने साफ कहा है कि अभी तक एफ 35 खरीदने का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने इस संभावना को ठंडे बस्ते में डालते हुए कहा कि 80 मिलियन डॉलर का लड़ाकू विमान खरीदना है कोई फ्रिज या वाशिंग मशीन नहीं खरीदना है। सवाल है कि जब ऐसा कोई बात नहीं थी तो इसका प्रचार क्यों और कैसे हुआ और प्रचार हुआ तो सरकार ने कोई सफाई क्यों नहीं दी? जाहिर है कि सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से ही यह फर्जी खबर मीडिया में चलवाई गई। 

दिल्ली में नाम बदलने का सिलसिला शुरू 

भाजपा को शहरों, रेलवे स्टेशनों, सड़कों आदि के नाम बदलने का बहुत शौक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर नगर पालिका के पार्षद तक कोई भी इस शौक से अछूता नहीं है। अभी पिछले दिनों दिल्ली में बनी भाजपा सरकार भी नाम बदलने का अभियान शुरू करने वाली है। इसी सिलसिले में तालकटोरा स्टेडियम का नाम भी बदलने की तैयारी हो रही है। नई दिल्ली के विधायक और राज्य सरकार के मंत्री प्रवेश वर्मा ने इसका नाम बदल कर महर्षि वाल्मिकी स्टेडियम करने की बात कही है। यह इस बात का भी प्रमाण है कि भाजपा के नेताओं ने नाम बदलने का शौक भले ही पाल लिया हो, लेकिन उनमें अभी यह तमीज विकसित नहीं हो पाई है कि ऋषि-मुनियों, नेताओं, साहित्यकारों, खिलाड़ियों, कलाकारों आदि के नाम पर किन जगहों का नामकरण होना चाहिए। बहरहाल एनडीएमसी से प्रस्ताव पारित हुए बगैर ही भाजपा के दो सांसदों- उत्तर प्रदेश के सांसद दिनेश शर्मा ने और हरियाणा के कृष्णपाल गूर्जर ने तुगलक लेन स्थित अपने बंगले के बाहर नामपट्टिका पर विवेकानंद मार्ग लिख दिया, लेकिन पता नहीं क्यों उसके नीचे कोष्ठक में तुगलक लेन भी लिख दिया। सवाल है कि अगर तुगलक के नाम से इतनी परेशानी है तो कोष्ठक में भी उसका नाम क्यों होना चाहिए? लेकिन वह भाजपा नेता ही कैसा जो पाखंड का प्रदर्शन न करें! राजधानी के लुटियन जोन में शाहजहां रोड, हुमायूं रोड, तुगलक रोड, अकबर रोड आदि के नाम बदलने का अभियान भी दबी जुबान में चल ही रहा है।

जनगणना कराने से क्यों बच रही सरकार? 

दस साल बाद होने वाली राष्ट्रीय जनगणना का मामला कहां अटका हुआ है, किसी को पता नही चल रहा है। जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन 2020 के मार्च में कोरोना महामारी की वजह से देश भर में लॉकडाउन के साथ ही इसे टाल दिया गया। उसके बाद से सारे कामकाज सुचारू रूप से हो रहे है लेकिन जनगणना नहीं हुई है। विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अब संसद की एक स्थायी समिति ने भी सरकार से जल्दी से जल्दी जनगणना कराने को कहा है। गौरतलब है कि जनगणना कराने का काम केंद्रीय गृह मंत्रालय का है, जिसके मंत्री अमित शाह है। गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने ही अपनी रिपोर्ट में जल्दी से जल्दी जनगणना कराने को कहा है। इस कमेटी के अध्यक्ष भाजपा के सांसद राधामोहन सिंह  हैं। उन्होंने जनगणना जल्दी कराने के साथ-साथ रोहिंग्या, बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों की पहचान करके उन्हें देश से निकालने को भी कहा। संसदीय समिति ने 10 मार्च को अपनी रिपोर्ट दी है।

सवाल है कि क्या भाजपा सांसद की अध्यक्षता और एनडीए के बहुमत वाली समिति ने ईमानदारी से जनगणना की जरुरत मानते हुए रिपोर्ट दी है या इसके पीछे भी कोई राजनीति है? जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार अभी तत्काल जनगणना कराने का इरादा नहीं है। अगले साल परिसीमन की तैयारी हो रही है। उससे पहले जनगणना जरूरी है। लेकिन संविधान का 84वां संशोधन इसके रास्ते में बाधा है। सरकार उस बाधा को दूर करने का रास्ता ढूंढ कर रही है।

तेलंगाना में कांग्रेस की हालत ठीक नहीं

पिछले कुछ वर्षों से लगातार देखने में आ रहा है कि कांग्रेस जहां भी सरकार में आती है वहां का मुख्यमंत्री या पार्टी का संगठन कोई ऐसा काम नहीं करता है, जिससे उसकी सत्ता स्थायी बने या वह एक के बाद लगातार दूसरा चुनाव जीत सके। यही कारण है कि पिछले 11 साल मे कांग्रेस किसी भी राज्य में जीत नहीं दोहरा सकी है। इसके उलट भाजपा ज्यादातर राज्यों में लगातार दूसरी या तीसरी बार सत्ता में आ रही है। कांग्रेस की यह कहानी तेलंगाना में भी दोहराई जा रही है। वहां उसकी सरकार बने डेढ़ साल हुए है और अभी से ऐसे लक्षण दिखने लगे हैं कि आगे आने वाले चुनावों में उसकी राह मुश्किल होने वाली है। यह स्थिति तब है, जब वहां कर्नाटक या हिमाचल प्रदेश की तरह बहुत मजबूत नेताओं की गुटबाजी नहीं है। 

बहरहाल, हाल में तेलंगाना में विधान परिषद की तीन सीटों के लिए चुनाव हुए। इनमे से दो सीटें शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की थी और एक सीट स्नात्तक निर्वाचन क्षेत्र की। कांग्रेस इन तीनों सीटों पर हार गई। कांग्रेस के लिए ज्यादा चिंता की बात यह है कि दो सीटों भाजपा समर्थित उम्मीदवार जीते। अभी सरकार बने सिर्फ डेढ़ साल हुआ है और यह स्थिति है। कहा जा रहा है कि इसी वजह से भारत राष्ट्र समिति छोड़ कर आए नौ विधायकों से इस्तीफा दिला कर उपचुनाव नहीं कराया जा रहा है। स्पीकर ने उनका मामला लटका रखा है। पिछले दिनों इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी भी है। 

मोदी ने क्यों नहीं लॉन्च की महिला योजना?

राजधानी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में हजारों लोगों की मौजूदगी में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली सरकार की महिला समृद्धि योजना को लॉन्च कर दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें इस योजना को मंजूरी दी गई। इस योजना के तहत दिल्ली सरकार करीब 20 लाख महिलाओं को ढाई हजार रुपए हर महीने देगी। चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि भाजपा की सरकार बनाइए और आठ मार्च को महिला दिवस के मौके पर महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपए आ जाएंगे। लेकिन आठ मार्च को महिलाओं के खाते में पैसे नहीं आए हैं, बल्कि उनके लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ और एक पोर्टल लॉन्च किया गया है। क्या इसी वजह से यह योजना प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं लॉन्च की? यह भी कहा जा रहा है कि दूसरे भाजपा शासित राज्यों में भी यह योजना लॉन्च हुई थी तब भी प्रधानमंत्री ने उसे लॉन्च नहीं किया था। लेकिन यह गले उतरने वाला तर्क नहीं है। दरअसल दिल्ली में जो योजना घोषित हुई है उसका लाभार्थी बनने के लिए इतनी ज्यादा और इतनी सख्त शर्तें रखी गई हैं कि कुछ लाख महिलाएं ही बडी मुश्किल से इस योजना के दायरे में आ सकेंगी। ऐसा होने पर इस योजना को लेकर नकारात्मक प्रतिक्रिया होगी और विपक्ष भी इसे मुद्दा बनाएगा। यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने की इस योजना की लॉन्चिंग से अपने का दूर रखा। 

तृणमूल के मुक़ाबले कहां है भाजपा?

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। चुनाव में एक साल बचा है। इसीलिए ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। परंतु उसके मुकाबले भाजपा की तैयारियां जमीन पर कहीं नहीं दिख रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत जरूर पिछले दिनों पश्चिम बंगाल पहुंचे थे और कई दिन तक प्रवास किया था, जिसके बाद संघ और भाजपा के कार्यकर्ता सक्रिय हुए हैं लेकिन उनकी सक्रियता जमीन पर बहुत असरदार नहीं दिख रही है। कुछ शहरी इलाकों में भाजपा की तैयारी दिख रही है लेकिन जहां तृणमूल कांग्रेस की असली ताकत है वहां भाजपा नहीं दिख रही है। 

ममता बनर्जी ने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों से सबक लिया है, जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगा था, लेकिन उसने लोकसभा की हार को पीछे छोड़ कर विधानसभा की तैयारी की और चुनाव जीती। वैसे ही पश्चिम बंगाल में भी भाजपा को झटका लगा है लेकिन इससे ममता बनर्जी लापरवाह नहीं हुई हैं। उन्होंने इन राज्यों के चुनाव नतीजों से सबक लेकर अपनी तैयारी शुरू की है। उनके कार्यकर्ता मतदाता सूची लेकर घर-घर जाकर चेक कर रहे हैं कि कहीं उनके समर्थकों के नाम तो नहीं कटे हैं। वे नए मतदाता बनवा रहे हैं। खुद ममता बनर्जी इस अभियान को मॉनिटर कर रही हैं। उन्होंने फिर से यह माहौल बना दिया है कि किसी तरह से भाजपा को रोकना है। उनके नैरेटिव और उनकी जमीनी मेहनत की कोई काट भाजपा के पास नहीं दिख रही है।

केजरीवाल आम नहीं दिखना चाहते!

इस बात पर चर्चा हो रही है कि आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की पुरानी आम आदमी वाली छवि कैसे स्थापित होगी। इस सिलसिले में बताया जाता है कि आतिशी, गोपाल राय आदि नेताओं ने सुझाव दिया था कि केजरीवाल फिर पहले की तरह आम आदमी जैसे रहने लगे, यानी वे सुरक्षा हटवा दे और सरकारी मकान छोड़ कर वापस कौशांबी के अपने फ्लैट में रहे या दिल्ली में डीडीए का कोई फ्लैट लेकर उसमें रहे। लेकिन आम आदमी पार्टी के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि किसी एक या दो नेता ने इस तरह की सलाह नहीं दी, बल्कि पार्टी में इस पर चर्चा हुई है। परंतु केजरीवाल इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसीलिए इस तरह की चर्चा होने के बाद केजरीवाल विपश्यना के लिए पंजाब गए तो जेड प्लस की सुरक्षा और 30 से ज्यादा गाड़ियों का काफिला उनके साथ था। उन्हें लग रहा है कि अगर यह तामझाम छोड़ा तो पार्टी के भीतर और आम जनता के बीच भी उनकी धमक कम होगी। 

उन्हें यह भी पता है कि आम आदमी वाली उनकी छवि की हकीकत अब लोगों के सामने आ गई है और अब पुरानी छवि वापस नहीं मिलने वाली है। इसलिए वे सरकारी मकान, सुरक्षा और गाड़ियों का काफिला नहीं छोड़ेंगे। अगर पंजाब में संजीव अरोड़ा विधानसभा का चुनाव जीत जाते हैं तो उनकी राज्यसभा सीट खाली होगी, जिस पर केजरीवाल उच्च सदन में जाएंगे। तब पूर्व मुख्यमंत्री के नाते उनको टाइप आठ का बड़ा बंगला अलॉट होगा, जहां से वे राजनीति करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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