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बेलारूस: यूरोप के दिल पर काबिज होने के लिए चलने वाला संघर्ष  

इस बात की पूरी संभावना है कि बेलारूस, रूस के लिए यूरोप के दिल के तौर पर चल रहे इस वृहद खेल में भालू को जाल में फाँसने के क्लासिक खेल के तौर पर तब्दील होता नजर आ रहा है- मास्को यदि अपने स्वार्थ की खातिर कदम बढ़ाता है तो उसपर लानतें उछाली जायेंगी, वहीँ यदि वह हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है तो यह अपने आप में किसी लानत से कम नहीं।
बेलारूस
30 जुलाई, 2020 को मिन्स्क में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन रैली

जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन में विदेश मंत्री रहीं कोंडेलेज़ा राइस ने एक बार बेलारूस को "यूरोप के दिल में बसा अंतिम सच्चे तानाशाही शासन" के तौर पर वर्णित किया था। उन्होंने तब आश्वस्त करते हुए कहा था कि “बेलारूस में बदलाव का वक्त आने वाला है।" यह बात उन्होंने अप्रैल 2005 में पड़ोस के लिथुआनिया की अपनी यात्रा के दौरान कही थी। इस बात को आज पंद्रह साल बीत चुके हैं। राइस का यह वायदा अभी तक अधूरा है। क्या ट्रम्प प्रशासन के एजेंडे में यह मुद्दा बना हुआ है?

सारे संकेत इस बात को लेकर हैं कि बेलारूस में परिवर्तन की बयार बह रही है। अच्छे के लिए या बुरे के लिए, इसके बारे में कोई नहीं बता सकता। लेकिन इतना तय है कि बेलारूस के शक्तिशाली राष्ट्रपति के तौर पर विख्यात अलेक्जेंडर लुकाशेंको के पैरों तले जमीन खिसक रही है, जिनका 1991 में पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद 1994 से 26 साल की लम्बी अवधि तक का निर्बाध शासन चला आ रहा है।

लुकाशेंको के नेतृत्व में बेलारूस में जोकि विलुप्त हो चुके साम्राज्य के तौर पर पश्चिमी छोर पर बसा देश है, में पूर्व सोवियत व्यवस्था को अभी तक बरकरार रखा गया था– जिसमें कोई कुलीन वर्ग, राज्य के स्वामित्व वाले उद्योग, रोजगार में स्थायित्व और सामाजिक सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं, बल्कि उसकी जगह आर्थिक ठहराव और दमनकारी राज्य सुरक्षा तंत्र का बोलबाला है।

ऐतिहासिक तौर पर देखें तो लुकाशेंका के लिए जनता के न्यूनतम 90 प्रतिशत समर्थन के साथ एक बार दोबारा चुने जाने की स्थिति महज एक औपचारिकता बनी हुई है। विश्व समुदाय भी आम तौर पर इस जनादेश से बखूबी परिचित है, जिसमें बेलारूस के नागरिकों को इसे विनम्रतापूर्वक स्वीकार करना होता है, और इसमें महत्वपूर्ण यह है कि रूस ने इसकी वैधता पर अपनी मुहर लगा रखी थी। लेकिन यह सब नाटकीय तौर पर बदलता नजर आ रहा है जब 9 अगस्त को लुकाशेंका राष्ट्रपति चुनाव में एक और बार चुने जाने की ओर देख रहे हैं।

यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि लुकाशेंका जनता के बीच अलोकप्रिय हो चुके हैं और जैसे-जैसे चुनावों की तारीख नजदीक आ रही है, उनकी ओर से अपने राजनैतिक विरोधियों से निपटने के लिए पहले से आजमाए हुए नुस्खे को एक बार फिर से आजमाने का सिलसिला शुरू हो चुका है, जिसमें अपने प्रतिद्वंद्वियों की गिरफ्तारी और नतीजों के साथ हेराफेरी शामिल है। हालांकि इस बार ऐसा लगता है कि चुनावी जंग अपेक्षाकृत साफ़-सुथरे ढंग से लड़ी जा रही है।

लुकाशेंका के प्रति घटते लोकप्रिय समर्थन जो खासतौर से मध्यम वर्ग के बीच में से भौंडे तरीके से निकलकर आ रहा है, क्योंकि लोग पिछले महीने की दमनात्मक कार्रवाई के बावजूद प्रताड़ित विपक्षी उम्मीदवारों के समर्थन में हजारों-हजार की संख्या में लोग बाहर आना शुरू हो चुके हैं। सबसे उत्सुकता की बात यह है कि मुख्य चुनौती जिन हल्कों से मिल रही है वह कोई स्थापित विपक्ष से नहीं मिल रही है, और इसके संरक्षक और वैचारिक समर्थकों के बारे में स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।

तानाशाह का डर लगातार गायब होता जा रहा है, जोकि हमेशा की तरह एक संक्रामकता के बिंदु का परिचय देता है। अशुभ लक्षणों के साथ अमेरिकी सरकार का मीडिया तन्त्र और सोशल मीडिया नेटवर्क एक नए आख्यान के ढाँचे को प्रस्तुत करने में मशगूल है।

इस सब के बीच में 29 जुलाई को, बेलारूस प्रशासन ने तैंतीस रूसी नागरिकों को देश में सामूहिक अशांति की साजिश के संदेह में हिरासत में ले लिया था। बेलारूस के विदेश मंत्रालय ने रूसी दूत और यूक्रेनी प्रभारी को तलब किया "और इस बारे में पुख्ता जानकारी मुहैया कराई है कि हिरासत में लिए गए लोगों में से कुछ का यूक्रेन के डोनेटस्क और लुगांस्क क्षेत्रों के संघर्षों में शामिल होने के प्रमाण मिले थे।"

1 अगस्त को लुकाशेंको ने इस बात का खुलासा किया कि हिरासत में लिए गए लोग "180 से 200 लोगों के पहले वाले ग्रुप में से थे जिनको बेलारूस (रूस से) में घुसपैठ कराना था...। वे सभी सैनिक हैं। उन्हें आदेश प्राप्त हुए थे और वे यहाँ चले आये थे। हमें उन लोगों से निपटना होगा जिन्होंने ये आदेश दिए थे और जो उन्हें यहां भेज रहे हैं... हमें उनके लक्ष्यों के प्रति गंभीर शंका है जो इस ग्रुप ने अपने लिए निर्धारित कर रखे हैं। "

मिन्स्क ने आरोप लगाया है कि हिरासत में लिए गए रूसी वैगनर समूह से संबंधित भाड़े के हत्यारे थे, जोकि एक छद्म रूसी निजी सैन्य कंपनी है जिसका क्रेमलिन नेतृत्व का वरदहस्त प्राप्त है। यह समूह  सीरिया, लीबिया, सूडान, यूक्रेन (क्रीमिया और डोनबास) इत्यादि में तथाकथित हाइब्रिड युद्धों में सक्रिय रहा है। मिन्स्क के अनुसार इनके बारे में व्यापक पैमाने पर अशांति फैलाने के मास्टरमाइंड के तौर पर काम करने का शक है।

मास्को की ओर से मिन्स्क के आरोपों को लो-प्रोफाइल प्रतिक्रिया के साथ खारिज कर दिया गया था। उसकी ओर से यह दावा किया गया है कि रूसी पुरुषों का यह समूह इस्तांबुल की यात्रा पर था, जोकि मिन्स्क में ट्रांजिट पड़ाव के तौर पर रुके हुए थे। उनके पास अपने अंतिम गंतव्य के लिए हवाई टिकट सहित सभी जरूरी वैध कागजात मौजूद थे। वहीँ बेलारूस की जांच समिति ने इस दावे का खंडन किया है।

लुकाशेंको के इरादे भी स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं। शायद इन हिरासत में लिए गए वैगनर लड़ाकों को वे आगे की कार्रवाई के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करने की फ़िराक में है। लेकिन इतना तो तय हो चुका है कि बेलारूस-रूस संबंध तनाव के दायरे में आ चुके हैं। फॉल्ट लाइनें उभरकर सामने नजर आने लगी हैं।

2014 के बाद से ही देखने में आ रहा था कि लुकाशेंको ने रूस से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। मॉस्को की ओर से उन्हें घनिष्ठ विदेश और सुरक्षा नीति के 1999 के एकता समझौते की तर्ज पर दोनों देशों को एकीकृत करने के लिए भारी दबाव को परे हटाने में लग गये थे। राष्ट्रपति पुतिन की ओर से व्यक्तिगत तौर पर पिछले दिसंबर सोची में उठाये गए ठोस प्रयास भी लुकाशेंका को मना पाने में विफल रहे, जोकि क्रेमलिन के लिए बेहद शर्मिंदगी और खीझ का सबब बन कर रह गया था।

इसमें हैरान होने की बात नहीं कि बेलारूस-रूस के सम्बन्धों में आ रही खटास को भांपते हुए जल्द ही वाशिंगटन ने लुकाशेंको को पटाने की अपनी कोशिशें शुरू कर दी थीं। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने 1 फरवरी को मिन्स्क का दौरा किया, जिसमें लुकाशेंको के साथ सहयोग को बढाने के रोडमैप पर चर्चा की गई, ताकि बेलारूस को अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और रूस से स्वतंत्रता को मजबूती से आगे बढ़ाने के काम को प्रोत्साहित किया जा सके।

ताजा घटनाक्रम को देखते हुए अमेरिकी-रुसी प्रतिद्वंद्विता के बीच बेलारूस एक अग्रिम पंक्ति का राज्य बनकर सामने आ रहा है। यह स्पष्ट है कि 9 अगस्त को होने वाले चुनावों का असर न केवल बेलारूस की घरेलू राजनीति पर पड़ने जा रहा है, बल्कि अमेरिका-रूस की प्रतिद्वंद्विता के चलते इसके दूरगामी प्रभाव यूरोपीय सुरक्षा पर भी असरकारक होने जा रहे हैं। वाशिंगटन की ओर से लुकाशेंका को बाल्टिक क्षेत्र में नाटो-रूस सुरक्षा की गतिकी में एक स्वतंत्र किरदार के तौर पर बेलारूस को पहल लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसे समझने की जरूरत है।

बेलारूस की भौगोलिक स्थिति तथाकथित सुवालकी गैप की सुरक्षा के लिए बेहद अहम है। एक संकीर्ण गलियारा है, जोकि बाल्टिक राज्यों को पोलैंड और बाकी के नाटो देशों से जोड़ता है। यही नहीं यह गलियारा रूस तक भी परोक्ष पहुँच बनाता है (बेलारूस के जरिये) जोकि इसके कलिनिनग्राद के सीमावर्ती इलाके में बाल्टिक पर किसी बेहद अहम रणनीतिक चौकी के तौर पर मौजूद है। इस तथ्य के प्रति कोई शक नहीं कि सुवालकी गैप को नाटो और रूस के बीच की सबसे खतरनाक "संपर्क लाइनों" के तौर पर गिना जाता रहा है।

सुवालकी गैप मात्र 100 किलोमीटर लम्बी एक संकीर्ण पट्टी है जोकि पोलैंड-लिथुआनिया सीमा का गठन करती है, वहीँ दूसरी तरफ यह कैलिनिनग्राद और बेलारूस के बीच का एकमात्र भूमि गलियारा भी है। जाहिर सी बात है कि सुवालकी गैप पर कब्जा जमाने के लिए रुसी हमले की सूरत में नाटो की बाल्टिक राज्यों तक पहुंच खत्म हो जाती है, वहीँ दूसरी तरफ यदि नाटो का कब्जा सुवालकी गैप पर हो जाता है तो या रूस की कैलिनिनग्राद तक पहुंच को दुरूह बनाने के साथ-साथ नाटो गठबंधन के इस क्षेत्र में प्रभुत्व को स्थापित करने में अहम बन जाता है। इसलिए मास्को और उसी अनुपात में नाटो के लिए, कैलिनिनग्राद की भेद्यता रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उसकी सबसे कमजोर कड़ी है। (2017 में रूस की ओर से अब तक के सबसे बड़े सैन्य अभ्यास जिसे ज़ापड नामक सांकेतिक नाम दिया गया था, ने सुवालकी गैप पर नियंत्रण के लिए एक संघर्ष खड़ा कर दिया था, जोकि रूस को दिए गए पिछले आश्वासनों के विपरीत 2016 में पोलैंड और बाल्टिक क्षेत्र में ऐतिहासिक तैनाती के बाद की गई थी।)

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2014 में यूक्रेन में अमेरिका समर्थित शासन के आ जाने के बाद से यूरेशिया में सुरक्षा के गणित को उल्लेखनीय तौर पर बदल कर रख दिया था और पश्चिमी देशों के साथ रूस के संबंध डुबकी खाने लगे थे, वहीँ दूसरी ओर यूरोप में बेलारूस, रूस के "स्लीपिंग पार्टनर" के तौर पर बना हुआ था। कुल मिलाकर यह कहना पर्याप्त होगा कि वर्तमान में बेलारूस की भू-राजनीति, तेजी से टकराहट वाले नाटो-रूस और अमेरिकी-रुसी संबंधों और इस क्षेत्र में सैन्य तैनाती के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हो चुकी है।

इस बात का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि निकट भविष्य में बेलारूस में एक राजनीतिक संकट की सूरत में यह नाटो-रूस टकराव के संभावित टकराव के तौर पर भड़क सकता है।

2014 के बाद से यूक्रेन में रूसी कार्यवाही के बाद से लुकाशेंका ने दूरी बनानी शुरू कर दी थी। इसके पीछे बेलारूस को पूर्वी यूरोप में अपनी तटस्थ उपस्थिति के तौर पर नए सिरे से प्रतिष्ठापित करना था। और इस प्रकार बेलारूस ने नाटो के साथ घनिष्ठ संबंधों की पड़ताल पर काम शुरू कर दिया था। यहाँ तक कि फरवरी में बेलारूस और ब्रिटिश रॉयल समुद्री बेड़े ने रूसी सीमा से 50 किलोमीटर से भी कम दूरी पर द्विपक्षीय प्रशिक्षण अभ्यास तक कर डाला था। मास्को का इसके बाद ध्यान देना लाजिमी था। बेलारूस के इस संशोधित सैन्य सिद्धांत के पीछे की मुख्य वजह देश में रूसी हस्तक्षेप के प्रतिरोध को प्राथमिकता देना है। लुकाशेंका पिछले कुछ वर्षों से बेलारूस के भीतर मास्को द्वारा एयर बेस स्थापित करने के प्रस्ताव का विरोध कर रहे थे (यह अलग बात है कि बेलारूस वास्तव में मॉस्को के पश्चिम में सैकड़ों किलोमीटर की हवाई क्षेत्र की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार है।)

लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद बेलारूस की रूस पर भारी निर्भरता ने लुकाशेंका के लिए पैंतरेबाज़ी की गुंजाइश को काफी सीमित करके रख दिया है। बेलारूस तेल और गैस पर रूस से मिलने वाली भारी रियायती दर की आपूर्ति का लाभार्थी बना हुआ है। बेलारूस में बाहर से आने वाले वित्तपोषण में से 70% हिस्सा रूस से प्राप्त होता है, और बेलारूस का लगभग आधा विदेश व्यापार रूस के साथ है।

अपने हितों को सुनिश्चित करने के लिए हाल ही में मास्को ने बेलारूस को आर्थिक सहयोग के एवज में फायदा उठाना शुरू कर दिया था ताकि बेलारूस को केंद्रीय राज्यों के प्रति एकीकरण की ओर बढ़ने के लिए मजबूर किया जा सके, जैसा कि 1999 के समझौते के तहत परिकल्पित किया गया था। इसे ट्रीटी ऑन द क्रिएशन ऑफ़ अ यूनियन स्टेट ऑफ़ रूस एंड बेलारूस के तौर पर जाना जाता है, जिसे तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और लुकाशेंको द्वारा 9 दिसंबर के दिन हस्ताक्षरित किया गया था।

रूसी दबाव के प्रति लुकाशेन्का के प्रतिरोध के पीछे भी बेलारूस में मौजूदा लोकप्रिय राय के पुट नजर आते हैं, जो कि रूस के साथ देश के एकीकरण के खिलाफ हैं (जिसमें देश की राष्ट्रीय संप्रभुता को काफी धक्का लगता है।) लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी दुविधा इस बात को लेकर है कि बेलारूस उद्योग का एक बड़ा हिस्सा अभी भी विरासत में मिली एकीकृत सोवियत अर्थव्यवस्था की वैल्यू चैन के हिस्से के तौर पर मौजूद है। बेलारूस के उद्योग भी रूस से आयातित ऊर्जा और निर्यात के लिए रुसी बाजारों पर पूरी तरह से निर्भर है।

इसलिए लुकाशेंका मजबूर हैं व्यावहारिक आधार पर अपने आगे के क़दमों को उठाने के लिए, क्योंकि पश्चिम की ओर से भी कोई भरोसे के लायक जीवनरेखा नजर नहीं आ रही है, जिन्होंने अभी तक लुकाशेंका से एक हद तक दूरी बना रखी है। अभी हाल ही में लुकाशेंका की ओर से सितंबर या अक्टूबर में रूस के साथ एकीकरण वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए सहमति बन चुकी है। लेकिन कितनी दूर तक मास्को एकीकरण को लेकर दबाव बनाएगा और कितनी दूर तक लुकाशेंका रूसी दबाव का विरोध करने में सक्षम रह सकते हैं, यह सब काफी हद तक 9 अगस्त के चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। और इन सबसे ऊपर, बेलारूस की राजनीति में छाई नई अस्थिरता के बीच में अब इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि लुकाशेंका एक गुस्साए राष्ट्र के तौर पर रूस के साथ एकीकरण के फैसले को थोप सकें।

इस बात की प्रबल संभावना है कि 9 अगस्त को एक बार फिर से लुकाशेंका चुनावों में जीत हासिल कर लें। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इसके बाद क्या होगा? इस बात की संभावना सबसे प्रबल है कि इसको लेकर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हो। वहीँ लुकाशेंका की इच्छा होगी कि विरोध प्रदर्शनों को वे कुचल डालें। क्या मास्को ऐसे मौके पर हस्तक्षेप करना चाहेगा? वाशिंगटन की इस सब पर बारीकी से निगाह बनी रहने वाली है। बेलारूस में किसी भी प्रकार के एकतरफा रूसी हस्तक्षेप की स्थिति वाशिंगटन सत्ता-प्रतिष्ठान के लिए एक अवसर के तौर “झगड़े को उतारू रूस” के तौर विद्रूपित करने के साथ पुतिन को कलंकित करने और यूरोप और रूस के बीच में एक और कील ठोंकने से नहीं रोका जा सकता।

वर्तमान संकेतों से लगता है कि मास्को की प्राथमिकता व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ चलने में रहने वाली है। इस बीच जब यह सब घटित हो रहा है, तो रूस के भीतर भी राजनीति पिछले कुछ समय से सजीव हो चली है। चीनी सीमा पर स्थित खाबरोवस्क शहर, जिसे रूस के सुदूर-पूर्व का आभूषण कहा जाता है, में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन चल रहे हैं जोकि कई हफ्तों से "पुतिन विरोधी" झुकाव लिए हुए हैं, और अब इनका विस्तार मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग तक भी फैल चुका है।

इसलिए जहाँ तक बेलारूस का सवाल है तो मास्को के लिए चुनौती इस बात को लेकर है कि लुकाशेंका की घरेलू स्थिति को जोखिम में डाले बिना संघीय राज्य के एकीकरण के प्रयासों को सावधानीपूर्वक गति प्रदान की जाए। ऐसा न हो कि बेलारूसी जनता इस एकीकरण को उनकी ओर से रूस के समक्ष पूर्ण आत्मसमर्पण के तौर पर देखे। इस मोड़ पर मॉस्को की प्राथमिकता मुख्य तौर पर इस क्षेत्र में सुरक्षा क्षेत्र को लेकर केंद्रित रह सकती है – और वह है बेलारूस में एक स्थायी सैन्य उपस्थिति को स्थापित करना। मुख्य रूप से एक मजबूत आधार प्रदान करने के लिए, ताकि दिसंबर 2013 से लेकर फरवरी 2014 के बीच में कीव में मैदान विरोध प्रदर्शनों की पुनरावृत्ति को रोका जा सके, जिसे सीआईए ने यूक्रेन में रूस विरोधी सरकार को सत्ता में स्थापित करने के मकसद से भुनाया था।

इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि वर्तमान में जारी विरोध प्रदर्शन किस करवट बैठने वाले हैं। लेकिन इतना तो तय है कि पश्चिमी ख़ुफ़िया बेहद नजदीकी से निगाह बनाए हुए है ताकि मौका लगते ही शंकालु प्रवत्ति के साथ मामले में कूद सके। यदि ये प्रदर्शन रफ्तार पकड़ते हैं और एक ऐसा फ्लैशपॉइंट आ जाता है जोकि "कलर रेवोल्यूशन" का स्वरुप अख्तियार कर लेता है, तो संभव है कि हालात लुकाशेंका को रूसी समर्थन लेने के लिए प्रेरित करे। यदि वे ऐसा नहीं करते तो भी हमेशा इस बात की संभावना बनी रहेगी कि मॉस्को अपने हितों की रक्षा के लिए गुप्त हस्तक्षेप के जरिये एकतरफा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया जाए।

मिन्स्क में किसी भी प्रकार की उथल-पुथल को मास्को इसे रूस के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा संकट के तौर पर देखता है। 2014 के बाद से रूस-यूक्रेन संबंधों में जो कुछ घटा है, उसे देखते हुए मास्को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर पूर्व के सोवियत गणराज्यों में अमेरिका समर्थित एक और अमित्र सरकार को मिन्स्क में उभरते देख हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं देख सकता है।

बाल्टिक और यूक्रेन पहले से ही पश्चिमी क्षेत्र के प्रभाव में हैं और ऐसे में यदि अमेरिका बेलारूस को भी हथिया लेता है, तो रूस की रक्षा पंक्तियाँ पश्चिम के नाटो देशों के सामने ढह सकती है। इस बात की पूरी संभावना है कि बेलारूस, रूस के लिए यूरोप के दिल के तौर पर चल रहे इस वृहद खेल में भालू को जाल में फाँसने के क्लासिक खेल के तौर पर तब्दील होता जा रहा है - मास्को यदि अपने स्वार्थ की खातिर कदम बढ़ाता है तो उसपर लानतें उछाली जायेंगी, वहीं यदि हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है तो यह अपने आप में किसी लानत से कम नहीं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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