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बंगाल चुनाव : भाजपा ने ज़मीनी हक़ीक़त से दूर पाले हैं बड़े अरमान

देश का पूर्वी हिस्सा आजकल सुर्खियों में है, क्योंकि यहाँ मोदी सरकार अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षियों को किनारे लगाने और ध्रुवीकरण करने के लिए कर रही है।
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केवल प्रतिनिधि इस्तेमाल के लिए। छवि स्रोत: एनडीटीवी

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कुछ ऐसे विधानसभा चुनावों के चक्र का सामना कर रही है जहां उसे एक कोने में धकेल दिया गया है। हताशा इतनी है कि वह अब अपने डिफ़ॉल्ट/खराब विकल्पों का इस्तेमाल कर रही है: वे केंद्र सरकार की एजेंसियों का नाजायज इस्तेमाल कर उन विपक्षी पार्टियों को डराने और धमकाने के लिए कर रही है, जिनके खिलाफ यह चुनाव लड़ रही है; और, ज़ाहिर है, यह सब विपक्ष की आवाज़ को दबाने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल की तुलना में किसी अन्य राज्य में यह बात इतनी अधिक स्पष्ट नहीं है, क्योंकि यहां पार्टी पहली बार सत्ता में आने के प्रति बड़ी महत्वाकांक्षा पाले बैठी है और जनता के सामने बड़ा अहंकारी दृष्टिकोण लेकर चल रही है, लेकिन परिणामों में इसकी झलक पाने के लिए यह सब कम है। यह कुछ हद तक असम के मामले में भी बात सही है, हालांकि, जाहिरा तौर पर चुनाव की जो स्थिति है, इसकी सत्ता में वापसी नहीं भी हो सकती है और शायद इसे वहाँ भी धूल फांकनी पड़े। 

इसलिए, इन दोनों राज्यों में, सत्तारूढ़ पार्टी की गंदी-चाल वाले विभाग काफी सक्रिय हैं, इसलिए इन्होने विभिन्न संस्थाओं को खोखला कर दिया है और लोकतांत्रिक और संवैधानिक कन्वेन्शनों को नष्ट करने के बाद भी इसके भीतर कोई डर नहीं है।

तमिलनाडु में, पहले से ही भाजपा की भूमिका बाहरी की है। यहां भाजपा वास्तव में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के कोकटेल पर टिकी है। चूंकि भाजपा यहां परिणामों को प्रभावित करने में कुछ खास नहीं कर सकती है, हालांकि इसकी गठबंधन की जीत में एक हिस्सेदारी है, इसलिए वह यहां कम हांक रही है।

केरल में, यह सफलता के क्षण को अभी तक सूँघ नहीं पाई है। विधान सभा में एक सीट जितना ही इसका अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है। इस प्रकार, फिर से, यहां भी वह एक छोटा प्रोफ़ाइल बनाए हुए है। पुडुचेरी में, उसने कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाने के लिए अपने बड़े खजाने के दरवाजे खोल दिए हैं। ये शायद इस छोटे से केंद्र शासित प्रदेश को जीत सकती है, लेकिन पुदुचेरी शायद ही देशव्यापी चुनावी के लिए कोई महत्व की बात है।

इसलिए पूरी की पूरी स्पॉटलाइट देश के पूर्वी हिस्से में है। असम और बंगाल दोनों में 27 मार्च को पहले चरण का मतदान हो चुका है। बंगाल में दूसरे चरण का मतदान बुधवार और असम में गुरुवार को होना है। असम में, भाजपा ने रविवार को एक विज्ञापन प्रकाशित करके, आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया, समाचार के रूप में छापे इस विज्ञापन के जरिए कई अखबारों में यह दावा किया गया कि ऊपरी असम की सभी 47 सीटों में भाजपा जीत दर्ज़ करेगी। 

कांग्रेस ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और असम भाजपा प्रमुख रणजीत कुमार दास और ईसीआई के अधिकारियों जिन्होंने विज्ञापन को मंजूरी दी थी, के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की है। कांग्रेस ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 126 ए का उल्लंघन करने के लिए भाजपा के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज़ की है, जिसमें दो साल तक की जेल की सजा और जुर्माना है।

शिकायत का मुख्य तत्व यह है कि आदर्श आचार संहिता और कानून, चुनाव खत्म होने तक किसी भी तरह के चुनावी पूर्वानुमान पर रोक लगाते हैं। जीत के सामान्य दावे स्वीकार्य हैं, लेकिन किसी के द्वारा यह दावा नहीं किया जा सकता है कि एक खास प्रतियोगी पार्टी निश्चित संख्या में सीटें जीतने जा रही है। 

ईसीआई ने 26 मार्च को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था, "आयोग का विचार है कि ज्योतिष, टैरो कार्ड रीडर, राजनीतिक विश्लेषकों या किसी भी व्यक्ति द्वारा निषिद्ध अवधि के दौरान किसी भी रूप या तरीके से चुनाव के परिणामों की भविष्यवाणी करना धारा १२६ ए की भावना का उल्लंघन है जिसका उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक दलों की संभावनाओं के बारे में इस तरह की भविष्यवाणियों से मतदान को प्रभावित करने से रोकना है।"

2014 में मौजूदा शासन के सत्ता में आने के बाद से ईसीआई का ट्रैक रिकॉर्ड, वह भी दंडात्मक कार्रवाई के मामले में बहुत अधिक विश्वास पैदा नहीं करता है, हालांकि असम के मुख्य चुनाव अधिकारी नितिन खाडे ने कहा है कि मामले की जांच चल रही है।

लेकिन ईसीआई का सबसे अहंकारी उदाहरण जो भाजपा को चुनाव लड़ने में मदद करने का मिलता वह बंगाल है। जहां सत्तारूढ़ दल भाजपा को मदद करने के का पहला काम 27 मार्च से 29 अप्रैल तक आठ चरणों का मतदान कराने का निर्णय है, लगभग पांच सप्ताह चलेगा जो अपने आप में असाधारण निर्णय है। 

बंगाल में 294 विधानसभा सीट और 7 करोड़ 20 लाख मतदाता हैं। इस प्रकार, औसतन, करीब 37 सीटों पर हर चरण में चुनाव होंगे। तमिलनाडु में 234 निर्वाचन क्षेत्र और 6 करोड़ 10 लाख मतदाता हैं। यहाँ केवल एक चरण यानि 6 अप्रैल को मतदान होगा, ऐसे ही केरल में भी होगा जहां 140 निर्वाचन क्षेत्र और 2 करोड़ 60 लाख मतदाता हैं। इसके विपरीत, असम, जिसमें 126 निर्वाचन क्षेत्र हैं और 2 करोड़ 20 लाख  मतदाता हैं, वहाँ तीन चरणों में मतदान होगा। 

यह निष्कर्ष निकालना कोई मुश्किल काम नहीं है कि चुनाव कार्यक्रम भाजपा के भारी-भरकम प्रचारकों खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रचार को  अपेक्षाकृत आसान बनाते हैं, इन्हे ऐसे राज्यों में कड़ी मेहनत की जरूरत है जहां भाजपा कमजोर  है, यानी बंगाल, और एक ऐसे राज्य में, जहां इसकी सत्ता को गंभीर चुनौती है, यानि, असम।

बंगाल में, अभूतपूर्व आठ चरणों के चुनावों के अलावा, 23 मार्च को चुनावी निगरानी रखने वाले निकाय ने इस नियम को भी बदल दिया कि बूथ पर पोलिंग एजेंट उसी क्षेत्र से होने चाहिए। अब नए नियम के अनुसार विधानसभा क्षेत्र से किसी को भी बूथ एजेंट बनाया जा सकता है। भाजपा द्वारा सभी किस्म की बड़ाइयाँ हाँकने के बाद भी चुनावी एजेंटों को जुटाने में उसे कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है, वैसे ही जैसे कि उसे 294 सीटों पर उम्मीदवारों को लड़ाने की मशक्कत करनी पड़ रही है और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। नया नियम भाजपा पर  दबाव को कम करने का काम करेगा। 

चुनाव आयोग का तर्क है कि बूथों की संख्या लगभग 79,000 से बढ़कर 1,00,000 से अधिक हो गई है। यदि यही कारण होता, तो इसमें बदलाव की घोषणा करने के लिए पहले चरण से ठीक चार दिन पहले तक का इंतजार नहीं किया जाता।

कुछ अन्य मुद्दे भी हैं। मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर राज्य के पुलिस कर्मियों की तैनाती की अनुमति नहीं है और वरिष्ठ अधिकारियों में बार-बार फेरबदल करना, बंगाल के प्रशासनिक ढांचे पर बड़े पैमाने का अनुचित संदेह पैदा करना है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों से सुरक्षाकर्मियों की तैनाती भाजपा के लिए खेल के मैदान को आसान बनाना है।

आखिर में, आइए मोदी की हरकतों पर आते हैं। 50 साल पहले मुक्ति हासिल करने वाले बांग्लादेश का दौरा करना निश्चित रूप से एक पड़ोसी मुल्क की ज़िम्मेदारी है। लेकिन विदेश में एक आधिकारिक यात्रा के दौरान भी देश में चल रहे चुनाव का प्रचार करना, जैसा कि उन्होंने बंगाल में मटुआ समुदाय के आध्यात्मिक निवास, ओरकांडी का दौरा किया, निश्चित रूप से एक ऐसा काम है जिसे नहीं किया जा चाहिए था। 

इसी तरह, चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री के 'मन की बात' के मोनोलॉग को प्रसारित करने से रोक नहीं लगाई क्योंकि ऐसे प्रसारण को अक्सर चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं, जैसा कि 28 मार्च को कार्यक्रम के 75 वें संस्करण के माध्यम से हुआ, इसके पीछे मक़सद चुनाव था। 

इस चुनावी समर में एक बार फिर से यह बात साबित हो गई है कि भाजपा बेखौफ नियमों की धज्जियां उड़ा सकती है और उन संस्थानों को झुका सकती है, जिन्हें अपने उद्देश्यों को हासिल करने के मामले में स्वतंत्र होना चाहिए था। जब खुद प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री इस तरह के हेरफेर में शामिल होते, तो आप कितनी भी छाती पीट लें उससे कोई मदद नहीं मिलती है। 

केवल एक ही चीज ऐसी है जो भाजपा में आत्मविश्वास पैदा कर सकती है वह है किसी दूसरे व्यक्ति के दुर्भाग्य से मिलने वाला सुख। हक़ीक़त यहा है कि राज्य में आठ चरणों में चुनाव कराने के निर्णय से भाजपा नेताओं को बंगाल में कारपेट बोम्बिंग करने में मदद करने के बजाय नुकसान पहुंचा रहा है क्योंकि इससे उसकी राज्य इकाई की दयनीय स्थिति जनता के सामने उजागर हो गई है। इन हरकतों से बार-बार दोहराया जाने वाला वह आरोप भी सच लगने लगा है कि भाजपा मूल रूप से "बाहरी लोगों" की पार्टी है और अगर यह जीत गई, तो राज्य की कमान दिल्ली से चलाई जाएगी, वह भी भाजपा के लाभ के लिए, न कि राज्य या उसकी जनता के लिए। 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Bengal Polls: BJP Big on Ambition, Short of What it Takes to Come to Power

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