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राहुल के समर्थन में मेधा पाटकर, लेकिन भाजपा क्यों बौखलाई?

गुजरात में इन दिनों राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं हैं। इसी कड़ी में भाजपा ने कांग्रेस पर तब हमला किया जब मेधा पाटकर राहुल गांधी के साथ दिखाई दीं।
Rahul and Medha Patkar

जिस गुजरात के तथाकथित मॉडल का शिगूफा उड़ा-उड़ाकर भारतीय जनता पार्टी अबतक राज्य की सत्ता में बनी हुई है, उसी सत्ता को पाने के लिए एक बार फिर पार्टी ने अपना सर्वोच्च न्योछावर कर रखा है, जहां देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भारत सरकार में अपने दायित्वों से अवकाश लेकर अपनी पार्टी के लिए प्रचार करने को मजबूर हैं, तो असम के मुख्यमंत्री को विशेष निमंत्रण पर बुलाया गया है, कि आइए और हिंदू-मुस्लिम समझाइए, लव जिहाद के बारे में बताइए... लेकिन कृपया कर आमजन के मुद्दों से दूर रहिए।

समझने वाली बात ये है कि जिस गुजरात में भारतीय जनता पार्टी पिछले कई दशकों से राज कर रही है, वहां मुद्दाविहीन राजनीति की नौबत क्यों आन पड़ी है? आखिर इन्हें क्या डर है?  अब इसका जवाब ढूंढेंगे तो न जाने कितनी किताबें भर जाएंगी, क्योंकि महंगाई से लेकर बेरोज़गारी और किसानों, आदिवासियों की दुर्दशा को सुधारने में नाकामी तक बहुत कुछ है, लेकिन बात सबसे ताज़ा मुद्दे की।

राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही ‘भारत जोड़ो यात्रा’ महाराष्ट्र पहुंची थी, उसमें शामिल हो गईं समाज सेविका मेधा पाटकर। बस यही बात हमारे प्रधानमंत्री को चुभ गई और उन्होंने राजकोट में चल रही अपनी रैली के दौरान दोनों ही नेताओं पर हमले शुरु कर दिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि-

'’कांग्रेस के नेता एक ऐसी महिला के साथ पदयात्रा निकालते देखे गए जिन्होंने तीन दशक तक नर्मदा डैम प्रोजेक्ट को रोक रखा था, आप सोचिए कि नर्मदा डैम नहीं बना होता तो आज क्या होता।‘’

प्रधानमंत्री को मुद्दा मिल चुका था, तो वो सुरेंद्र नगर की रैली में भी बरस पड़े... यहां उन्होंने कहा कि ''लोकतंत्र में वे पद के लिए यात्रा कर सकते हैं, लेकिन जिन्होंने मां नर्मदा को गुजरात में प्रवेश करने से रोका और 40 सालों तक इस परियोजना को अदालतों में मुक़दमे कर रोके रखा, ऐसे लोगों के हाथ पकड़ कर और कंधे पर हाथ रखकर पदयात्रा करने वाले को गुजरात के लोग सज़ा देंगे।''

जब न्यूज़क्लिक ने समाज सेविका मेधा पाटकर से प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य पर सवाल किए तब उन्होंने कहा कि ‘’राहुल गांधी के साथ शामिल होते ही इनकी नींद उड़ गई, क्योंकि ये लोग डर रहे हैं, ये जानते हैं कि गुजरात में नर्मदा एक अहम मुद्दा है, और इससे प्रभावित लोग इन्हें वोट नहीं करेंगे। बस यही वजह है कि हमें भला-बुरा कह रहे हैं।

मेधा पाटकर ने बताया कि ‘’ नर्मदा पर जितने आश्वासन इस सरकार के ज़रिए दिए गए हैं, उसमें एक भी पूरा नहीं हुआ है। कच्छ का किसान आज भी पानी के लिए तरस रहा है, हां पानी पहुंचा ज़रूर है, लेकिन सिर्फ अडानी के पोर्ट्स को, जिंदल इंडस्ट्रीज को, और कुछ कॉर्पोरेट घरानों को। जब हम इसपर सवाल करते हैं, धरने देते हैं, तो हम अर्बन नक्सल घोषित कर दिए जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र और भाजपा जिस तरह की राजनीति करते आए हैं और कर रहे हैं वो बेहद हास्यास्पद है।‘’

आपको बता दें कि कच्छ का किसान कपास, अरंडी, बाजरा और गेहूं जैसी फसलों की उगाही करता है। अब पानी की समस्या के कारण खेतों में पानी लगाने के लिए करीब 600 फीट गहरे पंप का इस्तेमाल तो करना ही पड़ता है, साथ ही इसमें टीडीएस का उच्च स्तर भी फसल पर ख़राब असर डालता है।

अब क्योंकि असल मुद्दों से हटकर बात करने के लिए भाजपा को बढ़िया चीज़ हाथ लग चुकी थी, तो प्रधानमंत्री के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से रहा नहीं गया, उन्होंने भी ''मेधा पाटकर को अपनी यात्रा में प्रमुख जगह देकर राहुल गांधी ने एक बार फिर गुजरात और गुजरातियों के प्रति अपनी दुश्मनी दिखाई है। वो उन तत्वों के साथ खड़े हैं जिन्होंने दशकों तक गुजरातियों को पानी से वंचित रखा, गुजरात इसे बर्दाश्त नहीं करेगा''

मुख्यमंत्री के हमले को ध्यान से परखें तो दरअसल दाएं-बाएं घुमाकर ही सही लेकिन निशाना राहुल गांधी पर है। क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को जिस तरह से लोगों का सपोर्ट मिल रहा है, हर समाज का कार्यकर्ता, नेता, और कलाकार उसमें शामिल हो रहा है, और फिर गुजरात के भीतर तथाकथित गुजरात मॉडल की उजागर होती सच्चाई ये बयां कर रही है, दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी ज़बरदस्त उत्साह से भरी हुई है, और चुनाव जीतने की ज़ोर आज़माइश कर रही है। हालांकि भाजपा की असर टक्कर कांग्रेस के साथ ही देखी जा रही है, और पिछले चुनाव के नतीजे तो सत्ताधारी दल के दिमाग में होंगे ही, यही कारण है कि विपक्षियों पर हमला करने के लिए भाजपा कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहती।

अब क्योंकि भाजपा के पास कांग्रेस को सीधे तौर पर घेरने के लिए कोई हथियार है नहीं, तो वो मेधा पाटकर के ज़रिए राहुल पर हमला कर रहे हैं, आख़िर में वोट मुद्दों पर ही पड़ेंगे।

इस विषय में जब न्यूज़क्लिक ने मेधा पाटकर से बातचीत की, तब उन्होंने बताया कि ‘’सरदार सरोवर के कारण करीब 50 हज़ार से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए थे, जिनमें आदिवासी और किसान शामिल थे। उन्होंने बताया कि इस सरोवर को बनाने का जो मकसद था, उससे इतर इसने सिर्फ लोगों के घर उजाड़े हैं, जिन ग्रामीण इलाकों में पानी जाना था, वहां न जाकर सिर्फ अहमदाबाद, गांधीनगर और वडोदरा जैसे शहरों में पानी पहुंचाया गया है, यहां तक कोका कोला कंपनी को भी अलग से पानी मुहैया कराया गया, लेकिन ग्रामीण इलाकों के किसान आज भी पानी को तरस रहे हैं। मेधा ने बताया कि भरूच ज़िले की नर्मदा में पानी समुद्री हो गया है, यानी खारा हो गया है, सरकार से शिकायत के बाद भी कोई हल नहीं निकला, धीरे-धीरे यहां का किसान बर्बाद होता जा रहा है। मछली पालन कर जीवन-यापन करने वाले नष्ट होते जा रहे है।‘’

मेधा का मुद्दे पर क्यों बरस पड़ी भाजपा

प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के नेताओं के लिए राहुल पर हमला करना इसलिए भी आसान बन गया है, क्योंकि नर्मदा घाटी परियोजना के तहत बनने वाले सरदार सरोवर बांध के निर्माण के खिलाफ मेधा पाटकर ने लगभग साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा वक्त तक आंदोलन चलाया था।

दावा किया जाता है कि सरदार सरोवर के कारण करीब 50 हज़ार से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए थे, और करीब 37500 हैक्टर ज़मीन डूब क्षेत्र के हिस्से में आ गई थी। और जो लोग बेघर हुए थे, उनमें ज्यादातर आदिवासी और किसान शामिल थे।

मेधा पाटकर और उनके आंदोलन का ही असर था, कि वर्ल्ड बैंक ने 1993 में इस बांध के लिए फंडिंग रोक दी थी, वर्ल्ड बैंक ने इसके लिए 45 लाख डॉलर देने का एलान किया था। इसको लेकर मेधा पाटकर बताती हैं कि ‘’ वर्ल्ड बैंक ने फंडिंग इसलिए नहीं की क्योंकि इनके पास पूरा प्लान ही नहीं था।‘’

इसे बांध विरोधियों की एक बड़ी जीत माना गया था और मेधा पाटकर तभी से गुजरात में इस बांध की समर्थक सरकारों की आंख की किरकिरी बन गई थीं। जिसमें कभी कांग्रेस भी शामिल थी।

आपको बता दें कि नर्मदा बचाओ आंदोलन इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले गया, और 1996 में उसने बांध निर्माण पर स्टे हासिल कर लिया। 18 अक्टूबर 2000 को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आखिरी फैसला सुनाया और बांध के निर्माण की इजाजत दे दी। आखिरकार 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया।

भाजपा की आंखों में मेधा पाटकर का खटकने का कारण महज़ सरदार सरोवर ही नहीं है, बल्कि वो 2002 में गुजरात में हुए दंगों के खिलाफ आंदोलन की अगुआई कर चुकी हैं, गुजरात में उस समय नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। तब दंगों के खिलाफ एक शांति यात्रा के दौरान अहमदाबाद के गांधी आश्रम में उन पर हमले भी हुए थे।

साल 2006 में खुद मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के सामने 51 घंटे के धरने पर बैठे थे ताकि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई कम न की जाए, वहीं पाटकर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के खिलाफ धरने पर बैठी थीं, वो प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों के लिए सही मुआवजे की मांग कर रही थीं।

इसके अलावा एक और जानकारी जो अहम है वो ये, कि मेधा पाटकर आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं, 2014 लोकसभा चुनाव में मेधा पाटकर आम आदमी पार्टी के टिकट से मुंबई नॉर्थ ईस्ट सीट से चुनाव लड़ी थीं। हालांकि अब वो किसी भी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं है, ऐसे में अफवाहें फैलाई जा रही थीं, कि पाटकर एक बार फिर आम आदमी पार्टी टिकट दे सकती है और गुजरात में किसी सीट से चुनावी मैदान में उतार सकती है।

इन सभी तथ्यों के बाद अब सवाल ये है कि क्या मेधा पाटकर के ज़रिए राहुल गांधी पर निशाना साधना, भाजपा को फायदा पहुंचाएगा... तो बहुत हद तक जवाब होगा नहीं। क्योंकि ये मामला काफी पुराना हो चुका है, सरदार सरोवर भी बन चुका है।

हालांकि राजनीति में कब कौन सी बात बड़ी बन जाए इसका कोई अनुमान नहीं लगाया सकता, क्योंकि एक ओर प्रधानमंत्री ने ख़ुद मेधा पाटकर नाम लेकर उनपर निशाना साधा है, वो भी दो बार। तो दूसरी ओर मेधा पाटकर भी यही कह रही हैं, कि नर्मदा से प्रभावित लोग भाजपा को वोट नहीं करेंगे।

इसके अलावा कांग्रेस की अचानक बढ़ी सक्रियता और ग्रामीण क्षेत्रों में तटस्थ वोट बैंक भी भाजपा को डरा ज़रूर रहा है। हालांकि देखना दिलचस्प होगा कि इस बयानबाज़ी का किसे कितना फायदा होता है। 

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