Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बड़ा बदलाव : संगठित हो रहे हैं टेक वर्कर

मौलिक परिवर्तन अक्सर छोटी घटनाओं से शुरू होता है, पर ऐेसी घटनाएं ‘ट्रेंड सेटर’ बन गई हैं। हाल के घटनाक्रम इसके उदाहरण हैं।
बड़ा बदलाव : संगठित हो रहे हैं टेक वर्कर
फोटो साभार : गूगल

* टेक वर्कर अच्छा वेतन पाते हैं इसलिए यूनियन बनाने की जरूरत महसूस नहीं करते!

* जितना अधिक कुशल हैं, उतना ही कम आग्रह रहता है संगठित होने का!

* बढ़ते वेतन के साथ यूनियन बनाने की तत्परता घटती है!

* ट्रेड यूनियन बनाना पुरानी बात हो गई, जब ब्लू-कॉलर श्रमिकों का ज़माना था; सर्विस सेक्टर कर्मचारी और टेक वर्कर यूनियन बनाने के इच्छुक नहीं!

लेबर जगत संबंधी ऐसे तमाम विचार जो उदार अकादमिक समुदाय के बीच प्रचलित थे, और जो अस्थायी व अधूरी सच्चाइयों पर आधारित थे, हाल के विकासक्रम को देखते हुए गलत सामान्यिकरण साबित हुए हैं।

मौलिक परिवर्तन अक्सर छोटी घटनाओं से शुरू होता है, पर ऐेसी घटनाएं ‘ट्रेंड सेटर’ (trend-setter) बन गई हैं। हाल के ऐसे ही घटनाक्रम पर नज़र डालेंः

4 जनवरी 2021 को तकरीबन 700 गूगल कर्मियों ने यूएस में अल्फाबेट वर्कर्स यूनियन की स्थापना की, यह पहली तथा ऐतिहासिक घटना है, जहां तक सिलिकॉन वैली में टेक वर्करों के यूनियन बनाने की पहल का सवाल है। गूगल की पेरेंट कम्पनी है अल्फाबेट।

24 मार्च 2021 को अल्बामा, यूएस, के अमेज़न वर्करों ने इस बात पर मतदान की प्रक्रिया आरंभ की है कि यूनियन बनाई जाए या नहीं।

2020 से ही यूएस के अन्य जगहों और यूरोप में टेक वर्कर सीधे प्रतिरोध के कार्यक्रम करने लगे।

अमेज़न केवल एक ई-कॉमर्स फर्म नहीं है; वे क्लाउड कम्प्यूटिंग (cloud computing), डिजिटल स्ट्रीमिंग (digital streaming) और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (AI) में भी लगे हैं। अमेज़न विश्व के प्रमुख 5 टेक एकाधिकार कम्पनियों में शामिल है। तो अमेज़न के सारे वर्कर स्टोर कर्मी या डिलिवरी वर्कर जैसे अकुशल नहीं हैं। अमेज़न के पास विश्व भर में 10,00000 कर्मी हैं और वह अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा एम्लॉयर है; वहां 1,298,000 कर्मचारी हैं।

अमेज़न कर्मियों द्वारा यूनियन बनाने की हाल की पहल रातों-रात घटित हाने वाली बात नहीं थी। यूएसए में 21-24 अप्रैल 2020 को अमेज़न कर्मी राष्ट्रीय स्तर की अनधिकृत हड़ताल पर गए। इससे पहले छोटे-छोटे स्थानीय प्रतिरोधों की एक श्रृंखला चली। 18 मार्च 2020 को न्यू यार्क के क्वीन्स अमेज़ान वेयरहाउस (warehouse) कर्मियों ने इस मांग पर हड़ताल की कि कोविड-19 के खतरे से बचाव के लिए वेयरहाउस को अच्छी तरह सैनिटाइज़ किया जाए। क्रिस स्मॉल्स नामक एक कर्मचारी को इस हड़ताल के दौरान निकाल दिया गया था, और कर्मचारियों ने उसकी मदद के लिए क्राउडफंडिंग की। मार्च 2020 में ही शिकागो में अमेज़न कर्मियों के एक हिस्से ने पीटीओ (PTO) यानी पेड टाइम ऑफ की मांग की जो भारत में वैतनिक अवकाश की भांति है। पीटीओ कुल काम किये हुए दिनों के अनुपात में दिया गया वैतनिक अवकाश होता है। आधे कर्मी तो काम पर एक बिल्ला या बैज लगाकर आते जिसपर लिखा होता ‘अमेज़ानियन्स यूनाइटेड फॉर पीटीओ (Amazonians United for PTO)। यह उनके संघर्ष का ही नतीजा है कि केवल शिकागो ही नहीं, अमेरिका के सभी अमेज़न कर्मियों को पीटीओ सुविधा मिली। विश्व के सबसे धनी व्यक्ति, अमेज़न के मालिक जेफ बेज़ोज़ को उन्होंने मात दी! 30 मार्च 2020 को स्टेटेन आइलैंड, न्यू यॉर्क के अमेज़न कर्मियों ने तब वॉकाउट कर दिया जब एक कर्मी करोना पॉजिटिव पाया गया। 1 अप्रैल 2020 को मिशिगन के डेट्रॉयट अमेज़न कर्मियों ने हड़ताल की। उनकी मांग थी कि कम्पनी वायरस-संबंधी मामलों में और वेयरहाएस के सैनिटाइज़ेशन के मामले में पारदर्शिता रखे।

केवल अमेरिका में नहीं, बल्कि अन्य देशों के अमेज़न कर्मियों ने भी आंदोलन किया- 18 मार्च 2020 को फ्रांस के अमेज़न वर्कर राष्ट्रीय हड़ताल पर गए; उनकी मांग थी कि महामारी के मद्देनज़र कामकाज बंद किया जाए। इटली के कैलेनैनो में भी इन कर्मियों ने इस बात पर हड़ताल की कि कम्पनी राष्ट्रीय सुरक्षा मानदंडों का पालन करे। 22 मार्च 2021 में इन्होंने पुनः हड़ताल की।

प्रारंभिक दौर में अमेज़न कर्मियों का यूनियन बनाने का कोई इरादा नहीं था; वे अपने प्रतिरोध को केवल हड़तालों और प्रदर्शनों जैसी सीधी कार्रवाइयों तक सीमित किये हुए थे, पर यह प्रक्रिया अब यूनियन निर्माण के प्रशन पर वोटिंग तक पहुंच गई। लोकतांत्रिक तरीके से यूनियन बनाने की इस पहल को तब जबरदस्त प्रोत्साहन मिला जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अमेज़न यूनियनीकरण unionization) के पक्ष में राष्ट्रीय मूड का जायज़ा लेते हुए स्वयं उसके समर्थन में आए। सिनेटर बर्नी सैंडर्स और कुछ अन्य रिपब्लिकन सिनेटर्स ने भी समर्थन किया। कुछ प्रमुख ट्रेड यूनियन और हाल के ब्लैक लाइव्स मैटर अभियान संचालित करने वाले संगठन ने भी समर्थन किया।

पर अमेज़न कर्मियों के लिये यूनियन बनाना कोई खेल नहीं है। यूनियन अभी बना भी नहीं था, कि कंपनी ने यूनियन तोड़ने की उग्र कार्यनति अपना ली। अमेरिकी कानून के अनुसार यूनियन तभी बन सकता है जब उसके पक्ष में 50 प्रतिशत वोटर मतदान करें। पर ऐसा होना आवश्यक नहीं है। तो कंपनी पूरी कोशिश कर रही है कि कर्मचारियों को यूनियन के पक्ष में वोट न करने के लिए समझाए। वह कर्मियों को यूनियन-विरोधी मैसेज भेजने में लगी है। वह कुत्सा प्रचार कर रही है कि यूनियन हर कर्मी से 500 डॉलर वसूलेगा और कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने के लिए बाध्य करेगा, पर हड़ताल के परिणम कर्मचारियों को ही भुगतने पड़ेंगे। अमेज़न के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ संगठनकर्ता कर्मचारियों के लिए जो कुछ मांग रहे हैं, वह अमेज़न पहले से ही ऑफर कर रहा हैः वह वेतन जो उस उद्योग में सबसे श्रेष्ठ कम्पनी को देना चाहिये, नौकरी के प्रथम दिन से व्यापक लाभ, कैरियर बढ़ाने के अवसर, यह सब एक सुरक्षित व आधुनिक काम के वातावरण में दिया जाएगा, ताकि वर्करों को हड़ताल से रोका जा सके।

गूगल, जो अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी टेक कम्पनी है, के टेक वर्कर अपना यूनियन बनाने के मामले में कुछ आगे हैं- जनवरी 2021 की शुरुआत से ही! 30 नवम्बर 2020 को गूगल कर्मी निलंबित कर्मी डॉ. टिमनिट गेब्रू, अध्यक्ष, गूगल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिसर्च विंग के निष्कासन के विरुद्ध उनके समर्थन में वाकऑउट कर गए। उनपर कार्रवाई इसलिए हुई थी कि उन्होंने कुछ ऐसे शोध प्रबंध लिखे थे जो गूगल की कुछ कार्यवाहियों के प्रति आलोचनात्मक थे। यह एक पहलू था जिसके कारण अल्फाबेट वर्कर्स यूनियन बना।

गूगल और अमेज़न दोनों के प्रबंधन दावा करते हैं कि वे पहले से ही अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन देते हैं और बहुत आकर्षक कैरियर प्रमोशन के रास्ते बताते हैं। लेकिन सच यह है कि कर्मचारी अपनी मर्यादा को बचाने और कार्यस्थल पर माहौल को बेहतर बनाने के लिए यूनियन बना रहे हैं। अमेज़न अपने कर्मियों की निगरानी यानी सर्विलियंस के लिए बदनाम है। यदि कर्मचारी कुछ समय के लिए आराम कक्ष में या शौचालय चले गए और अनुमतिप्राप्त सीमित समय से जरा देर हुई तो सज़ा दी जाती है।

जैसा अधिकतर लोग सोचते हैं, उससे विपरीत महामारी ने श्रमिकों के संगठित होने को नहीं बंद किया है। बल्कि टेक वर्करों के यूनियन बनाने के इरादे को और भी अधिक मजबूत किया है। वर्क-फ्रॉम-होम और रिमोट वर्किंग के कारण नए किस्म के कार्यस्थल शोषण देखे जा रहे हैं, भले ही कार्यस्थल अपना घर ही हो। नई डिजिटल तकनीकी का यह कुपरिणाम है। काम और पारिवारिक जिम्मेदारियां, काम और आराम के बीच विभाजन रेखा क्षीण होती गई है। हम कह सकते हैं कि केवल महामारी नहीं, डिजिटल युग में काम का स्वरूप जिस प्रकार बदल रहा है, वह कर्मचारी विरोधी प्रवृत्तियों को बढ़ा रहा है।

पूंजी की जो प्रवृत्ति होती है कि अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाए, वह एक श्रेष्ठतम सीईओ (CEO) को भी एक निकृष्ट कोटि के बदमाश में बदल देती है, जो अमानवीय व्यवहार करता है और कर्मचारियों का शोषण करता है। टेक उद्योग काम पदानुक्रम या वर्क हाइरारकी को ही अमानवीय बनाता है और सुपरवाइज़रों को जल्लाद बनाता है क्योंकि उन्हें बाध्य किया जाता है कि वे श्रमिकों को गुलामों जैसे खटवाएं। उनकी नीति होती है काम बढ़ाने के लिए वेतन-वृद्धि या अन्य लाभों का लालच दिखाते रहना, जो मृग-मरीचिका समान होते हैं। हाई-टेक के मायने हैं कार्यस्थल लोकतंत्र का खात्मा। केवल पूंजी द्वारा श्रम पर काबू रखने का ढंग अधिक दक्ष और क्रूर बन गया है।

श्रमिक संगठन-निर्माण के बदलते तेवर का कुछ अकादमिक लोगों ने जल्दबाजी में गलत वर्णन किया कि 1980 और 1990 के दशक ‘पोस्ट-यूनियन ईरा (post-Union era) है, सिर्फ इसलिए कि यूएस में संगठित श्रमिकों का हिस्सा 10 प्रतिशत तक गिर गया। यूरोप में भी यूनियन कम हुए, हालांकि विभिन्न देशों में संगठित श्रमिकों की संख्या यूएस से कुछ अधिक रही। यूएस में यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स जैसे रचे-बसे भारी-भरकम यूनियन यूएस ऑटो संकट के विनाशकारी झटके से ऑटो वर्करों को बचा नहीं पाया। पर यह प्रवृत्ति अब यूएस में भी बदल रही है।

यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (Bureau of Labour Statistics) द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यूनियन निर्माण की दर-यानी उन मजदूरी और वेतन पाने वाले वर्करों का प्रतिशत, जो किसी यूनियन के सदस्य बने 2019 की तुलना में महामारी वर्ष 2020 में 0.5 प्रतिशत से बढ़ा। पर नजदीकी से देखने पर पता चलता है कि स्थिति जटिल है। यूनियन से जुड़े मजदूरी व वेतन पाने वाले वर्करों की कुल संख्या 2020 में 1 करोड़ 43 लाख थी, जो 2019 की तुलना में 321,000 या 2.2 प्रतिशत कम थी।

परंतु मजदूरी व वैतनिक रोजगार (wage and salaried employment) में लॉकडाउन और महामारी के कारण आई मंदी की वजह से जो कमी आई वह 96 लाख थी, यानी 6.7 प्रतिशत, और यह अधिकतर गैर-यूनियन कर्मियों में थी। इससे हम देखें कि कुल मजदूरी व वैतनिक रोजगार में अनुपातहीन रूप से कमी आई है, यदि इसकी तुलना यूनियन सदस्यों की संख्या में कमी से करें। इससे यूनियन में संगठित होने की दर में वृद्धि आई है। इसका विश्लेषण महामारी के प्रभाव के संदर्भ में विपरीत तरीकों से किया जा सकता है। पर तथ्य तो है कि महामारी और उसके बाद आई मंदी ने अधिक कर्मचारियों को बेरोजगार बनाया बनिस्पत कि उन्हें यूनियन से बाहर किया।

हालांकि, कुछ उद्योगों में संघीकरण या यूनियनाइज़ेशन बढ़ रहा है। यूएस में सार्वजनिक क्षेत्र कर्मियों में यूनियन सदस्यता दर 33.6 प्रतिशत है और यह निजी क्षेत्र के कर्मियों से कहीं अधिक है, जो केवल 6.2 प्रतिशत है। इसके मायने हैं कि निजी क्षेत्र में सख़्त औद्योगिक संबंध शासन की संघीकरण में अधिक बड़ी भूमिका है बजाए उद्योग या कार्यशक्ति में, या लेबर मार्केट प्रवृत्तियों में संरचनात्मक परिवर्तन में। संघीकरण की दर परिवहन और भंडारण में संघीकरण बढ़ी जबकि ऑनलाइन शॉपिंग व ई-कामर्स  (online shopping and e-commerce) लॉकडाउन के दौर में व्यापक हो रहा था। महामारी के दौरान संघीकरण स्वास्थ्यकर्मियों में भी बढ़ा क्योंकि उन्हें अधिक काम के बोझ से बचना था और कोविड-19 रोगियों की बढ़ती तादाद को देखते समय सही पीपीई (PPE) की जरूरत थी।

पश्चिम में ट्रेड यूनियनों के नौकरशाहीकरण की वजह से सदस्यता घटी। यूएस में बिज़नेस यूनियनवाद का उदय हुआ, जिसमें आम सदस्यों की कोई भूमिका नहीं रही। ट्रेड यूनियन कॉरपोरेट लॉ फर्म की भांति हो गये, और वहां औद्योगिक संबंधों के बहुत ही नुक्ताचीन वैद्यीकरण के चलते ट्रेड यूनियन नेता महज अटार्नी बनकर रह गए थे। क्योंकि यूनियन की भूमिका समाप्तप्राय थी, कर्मचारियों की रुचि भी घटती गई। पर पिछले पांच वर्षों में कई यूएस राज्यों में जब अध्यापकों के आन्दोलनों का सिलसिला चल पड़ा, स्थिति बदलने लगी।

यूरोप में भी परिवर्तन आया जब एक-के-बाद-दूसरे देश में हिंसक प्रतरोध उमड़े।

बेरोजगार कर्मी 2006 में फ्रांस में व्यापक हिंसक प्रतिरोध में तब गए थे जब बेरोजगारी की दर 23 प्रतिशत हो गई थी। फिर, अक्टूबर 2013 में मितव्ययिता-विरोधी या ऐन्टी-ऑस्टेरिटी प्रतिरोध इटली में हिंसक रूप धारण करने लगे और 6 माह तक खिंच गए। इसी किस्म के प्रतिरोध पॉर्टुगल में हुए। 2007 में धनी देश डेनमार्क में भी मितव्ययिता व बेरोजगारी-विरोधी प्रतिरोध हिंसक हुए थे। 2013 में स्वीडेन के स्टॉकहोम में टीनएज बच्चे हिंसक उपद्रव करने लगे और 2020 में भी फिर ऐसा हुआ। 2011 में हमने देखा था कैसे लंदन के बेरोजगार युवा हिंसक प्रतिरोध कर रहे थे। ऐसी परिघटना ने ही कार्यस्थल पर संगठन निमार्ण की प्रक्रिया में एक ‘मूड चेंज’ ला दिया।

वस्तुगत परिस्थिति में बदलाव ने भी कार्यस्थल पर संगठित करने के काम को बढ़ावा दिया। जब आईटी और टेक उद्योग अर्थव्यवस्था के प्रमुख हिस्से बन जाते हैं, प्रारंभ में अधिक कुशल श्रमिकों के अभाव के कारण संघर्षण दर या (attrition rate) अधिक था-कर्मचारियों को एक मालिक से दूसरे की ओर खींचना। अधिक श्रमिक गतिशलता भी थी-एक काम से दूसरे की ओर भागना-जो वेतन में अधिक गिरावट के बिना संभव था। जब ट्रेड यूनियनों के रूप में कर्मचारियों का सामूहिक प्रतिनिधित्व कमजोर हुआ, उनके कार्यस्थल के मसलों को हल करना कर्मियों का व्यक्तिगत सिरदर्द बन गया, जिनके पास कानूनी निदान खोजने के अलावा कोई रास्ता न था। ऐसी स्थिति में लड़ना नौकरी बदलने से भी महंगा पड़ा। पर महामारी के कारण व्यापक पैमाने पर नौकरियों का जाना धीरे-धीरे श्रमिकों की चेतना में उत्तरोतर परिवर्तन ला रहा है और ट्रेड यूनियनों में संगठित होने की जरूरत पर बल डाल रहा है।

इंटरनेट और ऑनलाइन संवाद ने आज एकजुटता जताने की प्रक्रिया को न ही व्यापक बनाया, बल्कि इसे एक वर्ग चेतना विकसित करने का प्रमुख साधन बनाया। अब ट्रेड यूनियन ऑनलाइन संगठित करने के कौशल के बिना विस्तार करने की सोच भी नहीं सकते। लेबर संगठनकर्ता अब वेबिनार का प्रयोग कर रहे हैं ताकि कर्मचारियों को शिक्षित किया जा सके और उनकी ग्रासरूट भागीदारी बढ़ाई जा सके। आईटी उद्योग में और अन्य हाई-टेक उद्योगों में ढीले-ढाले ऑनलाइन नेटवर्किंग और ऑनलाइन मैसेजिंग के माध्यम से समन्वय और राय-मश्विरा अब साधारण नियम बन गए हैं। विश्व भर में फैले तमाम उद्योगों में स्थानीय कामकाजी समूह और क्षेत्रीय चैप्टर उभर रहे हैं, जो भविष्य में एक नए किस्म के ट्रेड यूनियनवाद को जन्म दे सकते हैं। मस्लन ऐसे ऑनलाइन समन्वय और संगठित करने के प्रयासों के जरिये अप्रैल 2019 में विश्व के 50 शहरों में गूगल कर्मियों ने एक साथ वॉकाउट (walkout) किया। यह प्रतिरोध गूगल प्रबंधन द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपी सीईओ के साथ नरमी बरतने के प्रश्न पर था। यह प्रयास एक प्रयोग था जो डॉ. टिमनिट गेब्रू के निष्कास,न के विरुद्ध प्रतिरोध में काम आएगा और आगे यूनियन निर्माण में भी।

अकादमिक लोग संगठित लेबर आंदोलन के कमज़ोर होने का दोष श्रमिक वर्ग के विखंडन पर मढ़ते हैं। संगठित श्रमिकों के बड़े ट्रेड यूनियनों पर आरोप लगाया गया कि वे आत्म-केंद्रित हैं और अनौपचारिक श्रमिकों की स्थिति को बेहतर बनाने के प्रति लापरवाह हैं। पर यह स्थिति बदल रही है। यूनाइटेड इलेक्ट्रिकल, रेडियो ऐण्ड मशीन वर्कर्स ऑफ अमेरिका या (UE) ने एक कॉल सेन्टर खड़ा किया है जिसमें एक्सपर्ट यूनियन संगठकों की एक टीम काम करती है और वे डेमोक्रैटिक सोशलिस्ट्स ऑफ अमेरिका (Democratic Socialists of America) के साथ मिलकर किसी भी उद्योग में प्रभावित श्रमिक को ऑनलाइन राय-मश्विरा और काउंसलिंग (councelling) मुहय्या कराते हैं।

कुछ लोगों को लगा कि व्यापक होते प्लैटफार्म वर्क और गिग अर्थव्यवस्था व गिग वर्क ट्रेड यूनियनवाद को कमजोर करेंगे। पर डिलिवरू (Deliveroo) के प्लैटफार्म वर्करों ने यूके में यूनियन बना ली है, हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि एक न्यायिक फैसला उनके खिलाफ गया है। परन्तु दूसरी तरफ यूएस के प्लैटफार्म वर्करों और गिग वर्करों के पक्ष में कोर्ट का फैसला आया है; इसमें कहा गया है कि ये श्रमिक संबंधित प्रधान मालिक के ही कर्मचारी हैं। ऐप-आधारित परिवहन कर्मचारियों के ताकतवर यूनियन अब उभरे हैं और भारत में भी ऑल-इंडिया गिग वर्कर्स यूनियन बना है, जिसकी पहल स्विग्गी (Swiggy) फूड डिलिवरी कर्मियों की ओर से हुई। इसके मायने हैं कि गिग वर्कर और प्लैटफार्म वर्कर अपनी प्रतिक्रिया केवल तात्कालिक कार्यवाही और गैर-कानूनी हड़तालों तक सीमित नहीं कर रहे हैं। वे समझ गए हैं कि ऐसे कार्य नियमित ट्रेड यूनियन का विकल्प नहीं हो सकते जो नियतकालिक सामूहिक सौदेबाज़ी (collective bargaining) से हटकर व्यापक मुद्दों पर कर्मचारियों के हितों की रक्षा करता है।

ट्रेड यूनियन ऐतिहासिक रूप से अप्रचलित नहीं हुए हैं

केवल श्रमिक नहीं, किसी भी समूह को प्रतिनिधित्व की दरकार होती है। ट्रेड यूनियन ऐतिहासिक तौर पर विकसित हुए कर्मचारी प्रतिनिधित्व के स्वरूप हैं।-खासकर सामूहिक सौदेबाज़ी और संघर्ष के लिए, पर यही बात नहीं है। आज तक ट्रेड यूनियन के अलावा प्रतिनिधित्व का कोई बेहतर विकल्प नहीं निकला।

केवल इसलिए कि टेक वर्कर उन्नत कौशल के धनी होते हैं और उनका वेतन अच्छा होता है, इसके मायने यह नहीं कि उनको बड़े लोगों की दादागिरी (bullying), अत्यधिक काम, औद्योगिक सुरक्षा का अभाव और अनुचित काम का दायित्व जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता। जब किसी कर्मी को अपना काम तय करने में कोई भूमिका नहीं होती, वह अपने कार्य से अलगाव महसूस करता है। तब उसे अपने बचाव के लिए सामूहिक शक्ति और सम्पूर्ण कार्यशक्ति के समर्थन की जरूरत होती है। जब हाई-टेक इतना अलगाव पैदा करे कि तकनीक ही मानव का संचालन करने लगे, टेक वर्कर अवश्य ट्रेड यूनियन संगठित करने की अगुआई करेंगे।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest