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बिहार: उचित मुआवज़ा मांग रहे किसानों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई, किसानों ने किया प्रदर्शन

गुंडों की तरह देर रात किसानों के घर में घुसकर उन्हें पीटना बिहार पुलिस पर सवाल खड़े कर रहा है। इन सबके बावजूद अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई संतोषजनक बयान नहीं आया है।
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बिहार के बक्सर में आधी रात को सिपाही जब किसानों के घरों में घुसे होंगे तो उन्हें अंदाज़ा नहीं हुआ होगा कि आने वाली सुबह कितनी भारी पड़ने वाली है।

ज़मीन का उचित मुआवज़ा न मिलने से प्रदर्शन कर रहे नाराज़ किसानों को पुलिस की लाठियों ने उकसाने का काम किया, जिसका नतीजा ये रहा कि ग्रामीण बुधवार यानी 11 जनवरी की सुबह पुलिस और पावर प्लांट को घेर लिया। इसे क़ाबू करने के लिए पुलिस की ओर से हवाई फायरिंग की गई और किसानों को खदेड़ने की कोशिश हुई। इस दौरान एंबुलेंस और फायरब्रिगेड समेत करीब 13 गाड़ियां जलकर ख़ाक हो गईं।

कैसे शुरु हुआ विवाद?

इस पूरे विवाद की जड़ थर्मल पावर प्लांट है। यहां किसान पिछले क़रीब 85 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और उचित मुआवज़े की मांग कर रहे हैं। जब उनकी बात नहीं सुनी गई तब उन्होंने मंगलवार यानी 10 जनवरी को पावर प्लांट के गेट पर ताला लगा दिया और धरने पर बैठ गए। उस वक़्त तो पुलिस ने कुछ नहीं किया, लेकिन रात को किसान जब घर वापस चले गए तो देर रात पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के घर में घुस गए और उन पर लाठियां भांजी। साथ ही चार लोगों को गिरफ़्तार भी कर लिया।

कुछ किसानों ने तो अपना दरवाज़ा ही नहीं खोला, लेकिन जिन किसानों ने अपना दरवाज़ा खोला, उन पर पुलिस टूट पड़ी। ग्रामीणों का आरोप है कि इस दौरान महिलाओं और बच्चों को भी पुलिस ने नहीं छोड़ा।

ये पूरी घटना चौसा इलाक़े के बरानपुर गांव में घटी, जहां एक शख़्स ने पूरी घटना का वीडियो बनाकर पुलिस की गुंडागर्दी उजागर कर दी। इस वीडियो को बिहार भाजपा ने अपने ट्वीटर हैंडल से शेयर किया है।

पुलिस की इस बर्बरता ने किसानों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। पुलिस की बर्बर कार्रवाई के बाद अगले दिन किसान भी उग्र हो गए और शहर में प्रदर्शन किया। मामला बढ़ता देख मौक़े पर डीएम, एसडीएम और डीएसपी समेत ज़िले के कई थानों की पुलिस पहुंच गई, हालांकि इस मामले में अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे थे।

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हैरान करने वाली तो ये है कि जिस राज्य में इतना बड़ा बवाल हो गया, वहां के शासन को कोई ख़बर नहीं है। राज्य के उप मुख्य़मंत्री तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि 'हमारे संज्ञान में ये मामला नहीं है। हमको दिखवाना पड़ेगा कि क्या है।'

तेजस्वी के इस बयान से तो यही मालूम होता है कि उनकी सरकार पर जिस जंगलराज का आरोप लगता है, उसमें कुछ न कुछ सच्चाई तो ज़रूर है। जबकि दूसरी तरफ इस पूरे बवाल को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक भी शब्द नहीं कहा है।

हालांकि इस सरकार को बाहर से समर्थन कर रही वामपंथी पार्टियों में से एक पार्टी सीपीआईएमएल ने इस पूरे मामले में किसानों का समर्थन किया है और पुलिस की बर्बरता की निंदा की है।

सीपीआईएमएल राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि प्रशासन को मामला समझदारी से हल करना चाहिए था, लेकिन उसके अड़ियल रवैये की वजह से स्थिति गंभीर हुई। उन्होंने कहा कि पार्टी के डुमरांव विधायक अजीत कुशवाहा के नेतृत्व में एक जांच टीम घटना की पूरी जानकारी इकट्ठा कर रही है।

अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने इस मामले के संबंध में पूरी जानकारी देते हुए बताया कि चौसा में निर्मित हो रहे थर्मल पावर प्लांट के लिए किसानों की ज़मीन अधिग्रहित हो रही है। किसानों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 का उल्लंघन करते हुए बिना उचित मुआवज़े के ज़मीन के अधिग्रहण का काम शुरू हो चुका है। उचित मुआवज़े के साथ-साथ अन्य कुछ और मांगों पर विगत तीन महीनों से वे शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, फिर भी उनकी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई। पुलिस की बर्बर छापेमारी के बाद हुई हिंसा के लिए पूरी तरह से प्रशासन ज़िम्मेदार है।

पूरा मामला क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मार्च 2019 को 1320 मेगावाट के इस प्लांट की आधारशिला रखी थी। ग्रीन फ़ील्ड सुपर क्रिटिकल टेक्नोलॉजी वाले इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 11,000 करोड़ बताई जाती है, इसे केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार की संयुक्त स्वामित्व वाली सतलुज जल विद्युत निगम बना रही है। दावा है कि इस प्लांट से 9828 मिलियन यूनिट विद्युत उत्पादन होगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार ज़िला भू-अर्जन कार्यालय का कहना है कि चौसा क्षेत्र के 14 गांवों के 137.0077 एकड़ ज़मीन पर रेल कॉरिडोर बनना है। इसके लिए 55.445 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण की जाएगी। इसके तहत कई गांव के 309 किसानों की भूमि अधिग्रहित करने की अधिसूचना निकाली गई है।

इसमें जो गांव शामिल हैं उनमें बनारपुर, सलारपुर, महुवारी, हुसैनपुर, कठघरवा, खेमराजपुर, चौसा, न्यायीपुर, धर्मागतपुर, महादेवा, माधोपुर, अखौरीपुर गोला, बघेलवा, बेचनपुरवा और मोहनपुरवा हैं।

अब किसानों का कहना है कि उन्हें बग़ैर उचित मुआवज़ा दिए ही काम शुरु कर दिया गया है। जो फिलहाल जांच का विषय बना हुआ है। हां ये बेहद चौंकाने वाली घटना है कि इतनी भीषण ठंड में पिछले 86 दिनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों की बात सरकार के कानों तक नहीं पहुंच रही है।

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