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बिहारः खेग्रामस व मनरेगा मज़दूर सभा का मांगों को लेकर पटना में प्रदर्शन

"बिहार में मनरेगा मजदूरी मार्केट दर से काफी कम है। मनरेगा में सौ दिनों के काम की बात है और सम्मानजनक पैसा भी नहीं मिलता है।"
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अखिल भारतीय खेत और ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) व मनरेगा मजदूर सभा के संयुक्त तत्वाधान में सोमवार 14 मार्च को मनरेगा में काम की मजदूरी और काम के दिनों को बढ़ाने समेत अन्य मांगों को लेकर बिहार की राजधानी पटना में प्रदर्शन किया गया। इसमें भारी संख्या में राज्य भर से आए इन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। उधर बिहार विधानसभा परिसर में भी लेफ्ट पार्टी भाकपा-माले के विधायकों संदीप सौरभ तथा मनोज मंजिल समेत अन्य विधायकों ने खेग्रामस व मनरेगा मजदूर सभा की मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किया। वाम पार्टियों के नेता सदन में इन मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं। ज्ञात हो कि विधानमंडल में बजट सत्र चल रहा है।

प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं ने दैनिक भास्कर को बताया कि बिहार में मनरेगा मजदूरी मार्केट दर से काफी कम है जो कि गैर कानूनी है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में सौ दिनों के काम की बात है और सम्मानजनक पैसा भी नहीं मिलता है। साथ ही यह कहा कि कार्य स्थल पर ही हमलोगों को पैसा दिया जाए जिससे फर्जी जॉब कार्डधारक पैसा न उठा सकें। उन्होंने कहा कि फर्जी जॉब कार्डधारक पैसा उठा लेते हैं और जो लोग मनरेगा में काम करते हैं उनको पैसा नहीं मिल पाता है। उन्होंने सरकार को मजदूरी 600 रुपये करने के साथ-साथ 200 दिन काम देने और कार्यस्थल पर भुगतान की गारंटी करने की मांग की है।

कार्यकर्ताओं ने कहा कि नीतीश सरकार जिस तरह से जल-जीवन हरियाली के नाम पर तालाब के किनारे, नदी के किनारे और अन्य सरकारी जमीनों पर बसे दलितों-गरीबों को उजाड़ने का काम कर रही है उनके आवास के लिए 5डिस्मिल जमीन की मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि इन गरीबों को उजाड़ने के लिए सरकार बड़े पैमाने पर बुलडोजर खरीदने का आदेश जिलों को जारी कर रही है। ऐसे में सरकार के गरीब उजाड़ो अभियान के खिलाफ डटकर जनप्रतिरोध होगा। इन लोगों का कहना है कि जो लोग जहां बसे हैं उन्हें सरकार बासगीत पर्चा दे। भूमिहीनों-गृहविहीनों का समग्र सर्वे के आधार पर नया वास-आवास कानून बने और किसी भी स्थिति में बिना वैकल्पिक आवास के गरीबों को उजाड़ने पर रोक लगे।'

साथ ही कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि दलित-गरीबों को 200 यूनिट फ्री बिजली देने को लेकर अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जनवितरण की दुकानों में चावल-गेहूं के अतिरिक्त दाल, तेल और मसाले अन्य राज्यों की तरह देने की मांग उठायी जाएगी। इन मांगों में 60 साल और उससे ऊपर के सभी महिला-पुरुषों को 3000 रुपए पेंशन देने का मुद्दा भी शामिल है। कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस आशय का मांग पत्र संगठन की ओर से मुख्यमंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री को भेजा गया है।

संदीप सौरभ, मनोज मंजिल और सत्यदेव राम समेत भाकपा माले के अन्य विधायकों ने विधानसभा परिसर में पोस्टर के साथ खेग्रामस और मनरेगा मजूदर सभा की मांगों को उठाया। इन पोस्टरों में नया बटाईदार कानून लाने, भूमिहीनों-आवासहीनों का समग्र सर्वे करने, मनरेगा में 600 रुपये दैनिक मजदूरी करने, मनरेगा में 200 दिनों का काम देने, दलित-गरीबों पर बुलडोजर चलाना बंद करने, वृद्ध-विकलांगजनों का मासिक पेंशन 3000 रुपये करने समेत अन्य मांगें लिखी हुई थीं। बता दें कि खेग्रामस व मनरेगा मजूदर सभा की मांगों को बार बार वाम दलों के नेताओं ने सड़क से सदन तक उठाया है।

इन सबके अलावा इन संगठनों द्वारा विभिन्न मांगों को अक्सर उठाया गया है। उनकी मांगों में सभी प्रखंडों में स्वयं सहायता समूह-जीविका समूह को माइक्रोफाइनेंस कम्पनी एवं बंधन बैंक द्वारा महिलाओं को दी गई लोन को जबरन वसूली करने पर रोक लगाने, स्वयं सहायता समूह-जीविका समूह केसीसी सहित सभी छोटे लोन माफ करने, बिना ब्याज, बिना गारंटर का लोन देने समेत अन्य मांगें शामिल रही हैं।

बीते साल दिसंबर महीने में पटना के आईएमए हाल में खेत व ग्रामीण मजदूरों के संयुक्त राज्यस्तरीय कन्वेंशन के दौरान केरल से राज्य सभा सदस्य बी. शिवदासन ने कहा था कि, "केरल की तरक्की का बड़ा कारण खेत मज़दूरों की जीवन स्थिति में सुधार है।" उन्होंने कहा था कि, "केरल मजदूरी, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, पेंशन आदि मोर्चे पर देश में अग्रणी पंक्ति में है और आज जरूरत है कि बिहार में भी केरल की तर्ज पर एक व्यापक कानून बनाया जाए, तभी बिहार में खेत व ग्रामीण मजदूरों की जीवन दशा में सुधार संभव है।"

बिहार में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की बात करें तो अभी 200 रुपये को पार नहीं कर पाया है जबकि केरल में इन मजदूरों की मजदूरी करीब 300 रुपये हैं।

पिछले साल की सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के तहत बिहार सरकार का रोजगार देने का वादा खोखला साबित हुआ है। राज्य में भूमिहीन मजदूरों की संख्या करीब 88.61 लाख है, लेकिन रोजगार मांगने के इच्छुक 90 हजार लोगों में 3.34% के पास ही जॉब कार्ड है। इनमें भी केवल 1% लोगों को ही 100 दिनों तक काम मिला। मनरेगा के तहत 100 दिन काम देने की गारंटी है लेकिन इनमें अधिकतर लोगों को 34 से 45 दिनों का ही रोजगार दिया गया।

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