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बिहार: नीतीश के नेतृत्व में बनेगी महागठबंधन की सरकार; तेजस्वी को मिल सकता है डिप्टी सीएम का पद

भाजपा और जेडीयू के बीच फिलहाल सारे संबंध खत्म हो गए हैं। अब आरजेडी और जेडीयू मिलकर नई सरकार बनाएंगे।
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फ़ोटो साभार : ट्विटर

बिहार के राजनीतिक समीकरणों को बाकी राज्यों से क्यों अलग रखा जाता है, ये फिलहाल देखने को मिल गया है। न ही यहां भाजपा का ऑपरेशन लोटस काम आया और न ही सरकारी तंत्रों द्वारा गैर कानूनी ढंग से लोगों को परेशान करना। आख़िरकार नीतीश कुमार ने ख़ुद को और अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया और महागठबंधन के साथ जाने का फैसला कर लिया।

लेकिन ये कहना ग़लत नहीं होगा कि भाजपा से गठबंधन तोड़ने से पहले नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में फिट बैठने वाले सारे पत्ते अपने पक्ष में बिछा लिए थे, यही कारण है कि सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी होने के बावजूद मुख्यमंत्री वो ही हैं। ख़ैर... नीतीश कुमार ने राज्यपाल फागू चौहान को इस्तीफा सौंप दिया है और आरजेडी, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है।

पहली बार नीतीश ने राज्यपाल को 160 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी थी। इसके बाद वे राबड़ी देवी के आवास पर पहुंचे, जहां उन्हें महागठबंधन का नेता चुना गया। यहां जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी नीतीश के साथ आ गई। उसके पास चार विधायक हैं। इसके बाद नीतीश एक बार फिर राजभवन गए और 164 विधायकों का समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपा। उनके साथ तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेता भी राजभवन से निकले।

अब बिहार के इस सियासी गठबंधन में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस, हम और लेफ्ट पार्टी शामिल हैं।

नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ने के बाद भाजपा-जेडीयू का 21 महीने पुराना रिश्ता टूट गया। इसके बाद सबसे पहले नीतीश कुमार ने यही बात कही कि पार्टी के विधायकों और सांसदों ने एक स्वर में एनडीए से गठबंधन तोड़ने की बात कही थी। इसके बाद नीतीश सीधे राबड़ी देवी के घर पहुंचे, जहां तेजस्वी यादव से उनकी मीटिंग हुई।

आरजेडी के पास 79, जेडीयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, लेफ्ट के पास 16, 1 निर्दलीय विधायक हैं, वहीं ‘हम’ के समर्थन के बाद कुल विधायकों की संख्या 164 हो गई है। यानी अब महागठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए 164 विधायकों का समर्थन है।

कहने को तो बिहार में ये राजनीतिक दंगल दो दिनों तक चला लेकिन नीतीश कुमार के गठबंधन में शामिल होने की स्क्रिप्ट पहले से तैयार हो चुकी थी। जिसमें नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री का पद दिया जाना था।

इसके अलावा कांग्रेस भी मंत्रीमंडल में कुछ मंत्रीपद और विधानसभा में स्पीकर या डिप्टी स्पीकर का पद मांग सकती है।

हालांकि ये ज़रूर कहा जा सकता है कि मौका देखते हुए आरजेडी ने अपने हाथ ज़रूर लंबे किए हैं, और गृह विभाग आरजेडी के खाते में डालने की बड़ी डिमांड कर दी है। ये डिमांड बड़ी इस लिए हैं क्योंकि नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में मुख्यमंत्री रहते हुए गृह विभाग हमेशा अपने पास रखा है। ऐसे में ये पहली बार होगा कि जब गृह विभाग नीतीश के अलावा किसी के पास जाएगा। ऐसा करना इस बार नीतीश कुमार के लिए मजबूरी भी है और ज़रूरी भी। क्योंकि आरजेडी इस वक्त सबसे बड़ी पार्टी है, फिर तेजस्वी यादव की लगातार बढ़ती लोकप्रियता भी नीतीश के लिए ख़तरा बन सकती है। दूसरी ओर भाजपा द्वारा क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीति में सेंधमारी भी नीतीश को डरा रही है। ऐसे में बिहार में आरजेडी जैसी मज़बूत पार्टी का साथ नीतीश कुमार को किसी भी कीमत पर लेना ही होगा।

बिहार में जो राजनीतिक समीकरण बनकर तैयार हुए हैं ये भले ही देखने में बड़े आसान लग रहे हों, लेकिन इसमें कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। आरसीपी सिंह ने जैसे ही जेडीयू से इस्तीफा दिया था, बिहार की राजनीति में हलचल शुरु हो गई थी, फिर नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से बात की। इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है, कि बिहार के सबसे बड़े सेक्युलर माने जाने वाले नेता लालू प्रसाद यादव को मनाना सिर्फ सोनिया गांधी के बस की बात ही है, इस लिए उनका बीच में पड़ना बेहद ज़रूरी था। फिर किसी भी हालत में समझौता नहीं करने के मूड वाले तेजस्वी यादव का इतनी आसानी से मान जाना भी आगामी सालों में होने वाले विधानसभा चुनाव के हिसाब से ही तय किया गया है।

इसके अलावा ये बात समझना भी बहुत ज़रूरी है कि भाजपा से गठबंधन तोड़ना कहीं न कहीं नीतीश कुमार की खीज भी थीं। कहने का अर्थ ये है कि चर्चा करने के बाद भी पहले नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया, फिर उन्हें काम करने के लिए फ्री हैंड नहीं दिया गया। फिर उनकी पार्टी के खिलाफ साज़िश की गई और ख़ुद नीतीश की छवि पर काफी डेंट मारा गया। ये कसक कहीं न कहीं नीतीश के भीतर थी। अब नीतीश कुमार के मन में ये बात ज़रूर होगी कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए, या फिर गठबंधन की सरकार बनने पर केंद्र में किसी बड़े पद पर बिठाया जाए। ऐस हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि शपथ लेने से पहले नीतीश कुमार दिल्ली जाकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात करने वाले हैं।

आपको बता दें कि कांग्रेस ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनेगी और महागठबंधन के पक्ष में समीकरण सेट हो जाने के बाद कांग्रेस ने ये कहा कि नीतीश कुमार सिर्फ बिहार के नहीं महागठबंधन के भी मुख्यमंत्री होंगे। यानी कांग्रेस की ओर से इशारा साफ है कि साल 2024 के चुनावों के लिए महागठबंधन को इकट्ठा करने के लिए नीतीश के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है।

वहीं बात भाजपा की करें तो मंत्रिमंडल से सभी 19 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है। साथ ही भाजपा ने प्रेस कॉफ्रेंस कर एक बयान जारी कर कहा कि है कि जनता जेडीयू को सबक सिखाएगी। हालांकि भाजपा इससे ज्यादा इसलिए नहीं बोल सकती, क्योंकि इससे पहले ये काम महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश में भाजपा द्वारा किया जा चुका है। और रिपोर्ट्स बताती हैं कि बिहार में भी भाजपा ने खरीद फरोख्त की शुरुआत कर दी थी।

मुख्यमंत्री पद और उप मुख्यमंत्री पद तो लगभग तय हो चुका है, लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन के मंत्रिमंडल में जेडीयू और आरजेडी के कितने-कितने विधायकों को मौका मिलता है। और कांग्रेस के कितने नेता मंत्रिमंडल में शामिल किए जाते हैं। इसके अलावा मांझी भी अपने लिए किसी न किसी पद की डिमांड ज़रूर कर सकते हैं। यहां हम सीपीआई(माले) की बात इस लिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उसने सरकार में न शामिल होकर बाहर से समर्थन देने की बात कही है।

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