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बिहार: मुख्यमंत्री नीतीश के पास ही रहेगा गृह विभाग, तेजस्वी को मिला स्वास्थ्य

जातीय समीकरणों के सधे हुए गणित को लेकर अब नीतीश-तेजस्वी सरकार बिहार में काम करेगी। बिहार के 33 मंत्रियों को मंत्रालय सौंप दिया गया है।
nitish and tejashwi

बिहार के नए राजनीतिक समीकरण में पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग, मुसलमान, और कुछ सामान्य वर्ग के मंत्रियों को बहुत सधी तरीके से बिठाया गया है। कहने को तो आरजेडी के ज्यादा विधायकों के कारण उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव वाली पार्टी का पलड़ा ज्यादा भारी था, लेकिन नीतीश कुमार ने मंत्रालयों के बंटवारे से इसे बराबर कर दिया।

यानी जो रहस्य शुरुआती दौर में गृह मंत्रालय को लेकर बना था, कि नीतीश के पास होगा या तेजस्वी के पास? उसे मुख्यमंत्री नीतीश ने अपने पास ही रखा है। इस तरह मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश की गृह मंत्रालय अपने पास रखने वाली परंपरा भी बरकरार रही।

अगर नज़र डालेंगे नीतीश-तेजस्वी सरकार के मंत्रियों पर तो साफ दिखेगा कि ये क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर ख़ुद के अस्तित्व पर होने वाले प्रहार को रोकने का बड़ा कदम है। साथ ही ओबीसी-ईबीसी की संख्या बढ़ाकर आने वाले 2024 में लोकसभा चुनावों को भी साधने का पूरा प्रयास किया गया है।

कुल मिलाकर जातियों के आंकड़ों को बिहार की राजनीति के हिसाब बहुत बेहतर सेट किया गया है।

चार राजनीतिक दलों के 31 मंत्रियों ने शपथ ली है, जिसमें पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी और आर्थिक पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी के सबसे ज्यादा 17 मंत्रियों ने शपथ ली। जबकी अति पिछड़ा वर्ग के पांच और पांच ही मुसलमान मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। वहीं सामान्य वर्ग के मंत्रियों की संख्या घटा दी गई है, यानी इस बार बिहार में महज़ 6 सामान्य वर्ग के मंत्री ही शामिल किए गए हैं।

वहीं भाषणों में दलितों के रहनुमा बने बैठे भाजपा और नीतीश की जब सरकार थी, तब ओबीसी-ईसीबी मंत्रियों की संख्या महज़ 13 थी, जिसमें सिर्फ दो मंत्री यादव समाज से आते थे। जबकि सामान्य वर्ग के 11 मंत्रियों को मंत्रालय सौंपा गया था, और दो मुस्लिम जबकि पांच दलित समाज के मंत्री बने थे। यानी यहां भाजपा का मुस्लिम विरोधी और दलित विरोधी चरित्र साफ दिखाई पड़ रहा था।

ख़ैर... अब नीतीश-तेजस्वी सरकार के 31 मंत्रियों की बात की जाए तो आरजेडी के सबसे ज्यादा 16 मत्रियों को राज्यपाल फागू चौहान ने शपथ दिलाई है। जबकि जेडीयू के 11, कांग्रेस के 2, हम से एक और एक ही निर्दलीय मंत्री बनाया गया है। इन सभी को राज्यपाल फागू चौहान ने शपथ दिलाई।

क्योंकि शपथ लेने वाले मंत्रियों की संख्या ज्यादा थी, इसलिए फागू चौहान ने पांच-पांच के समूह में मंत्रियों को शपथ दिलाई। जिसमें सबसे पहले जेडीयू के विजय कुमार चौधरी और बिजेंद्र यादव, आरजेडी के तेज प्रताप यादव और आलोक मेहता साथ में कांग्रेस अफाक आलम को शपथ दिलाई गई।

जेडीयू से श्रवण कुमार, अशोक चौधरी, लेशी सिंह और आरजेडी से सुरेंद्र प्रसाद यादव, रामानंद यादव को दूसरे बैच में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।

तीसरे बैच में जेडीयू के संजय झा, मदन सहनी के साथ आरजेडी के कुमार सर्वजीत और ललित यादव के अलावा हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के संतोष कुमार सुमन ने भी मंत्री पद की शपथ ली। संतोष कुमार सुमन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे हैं।

चौथे बैच में जेडीयू के शीला कुमारी और सुनील कुमार के साथ आरजेडी के समीर कुमार महासेठ और चंद्रशेखर के अलावा निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह ने मंत्री पद की शपथ ली।

पांचवें बैच में जेडीयू के मोहम्मज ज़मा ख़ान और जयंत राज के साथ आरजेडी के जितेंद्र कुमार राय, अनिता देवी और सुधाकर सिंह ने मंत्री पद की शपथ ली. सुधाकर सिंह बिहार आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं।

छठे बैच में आरजेडी के मोहम्मद इजरायल मंसूरी, सुरेंद्र राम, कार्तिकेय सिंह, शाहनवाज़ आलम, शमीम अहमद और कांग्रेस के मुरारी गौतम को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई।

नीतीश-तेजस्वी सरकार ने सारी तैयारियां पहले से ही कर रखी थीं, यही कारण है कि इधर मंत्रियों ने शपथ ली उधर विभागों को बांटकर सभी को काम पर लगा दिया।

इसमें मुख्य मंत्रालयों की बात करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पास गृह मंत्रालय, सामान्य प्रशासन समेत पांच विभाग रखे हैं। वहीं तेजस्वी यादव को स्वास्थ्य, पथ निर्माण, नगर विकास और ग्रामीण कार्य का जिम्मा मिला है। जबकि लालू के बड़े बेटे यानी तेज प्रताप यादव को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग मिला है।

वहीं बात कांग्रेस की करें तो इनके दो मंत्रियों में अफाक आलम को पशु एवं मतस्य संसाधन विभाग और मुरारी गौतम को पंचायती राज की ज़िम्मेदारी दी गई है। जबकि हम के विधायक संतोष कुमार सुमन को अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण विभाग सौंपा गया है।

हालांकि कांग्रेस पार्टी मंत्रीमंडल में सिर्फ दो मंत्रालय मिलने से खुश नहीं है, और यही कारण है कि कांग्रेस ने इसके लिए बिहार में विरोध प्रदर्शन भी किया है। बिहार कांग्रेस का कहना है कि हम पार्टी के पास सिर्फ चार विधायक हैं तो उन्हें एक मंत्रालय, जबकि हमारे पास 19 विधायक है तो सिर्फ दो ही मंत्रालय क्यों सौंपे गए।

इसके अलावा जेडीयू और आरजेडी खेमे से भी भारी नाराज़गी भी निकल कर आई है, बताया जा रहा है कि जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा तो आरजेडी के भाई वीरेंद्र नाराज हैं। क्योंकि दोनों के नाम मंत्री बनने की रेस में आगे थे, लेकिन आख़िरी वक्त पर दोनों का पत्ता कट गया। इसी कारण दोनों अपनी-अपनी पार्टियों से नाराज़ हैं।

वहीं नीतीश सरकार को बाहर से सपोर्ट कर रही भाकपा माले ने पहले ही सरकार में शामिल होने से इन्कार कर दिया था। आपको बता दें कि माले गठबंधन में तेजस्वी यादव के साथ 2020 में चुनाव लड़ी थी। हालांकि, भाकपा ने सरकार में उचित सम्मान मिलने पर शामिल होने की बात कही है।

इसके अलावा बिहार के भीतर 8, 9, और 10 अगस्त को हुए सियासी घटनाक्रम में नीतीश कुमार एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन के साथ आ गए। और उन्हें 164 विधायकों का समर्थन मिल गया।

नीतीश कुमार की सरकार को इतना समर्थन, फिर मंत्रिमंडल में इतना नपा-तुला जातीय समीकरण साल 2024 की तैयारियों के संकेत ज़रूर दे रहे हैं।

क्योंकि बात भाजपा की करें तो पशुपति कुमार पारस के धड़े वाले लोक जनशक्ति पार्टी को छोड़ दें तो बिहार में उनके साथ अब कोई पार्टी नहीं बची है। वहीं जेडीयू के सीनियर नेताओं का कहना है कि पशुपति कुमार पारस के धड़े वाले तीन लोकसभा सांसद कैसर अली, वीणा सिंह और चंदन सिंह भी जेडीयू में शामिल हो सकते हैं। चिराग पासवान के धड़े के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह पिछले साल ही जेडीयू में शामिल हो गए थे। इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय कर चुके हैं। और फिर आंकड़े बताते हैं कि बिहार में जिसकी सरकार रही है, लोकसभा में भी पलड़ा उसी का ज्यादा भारी रहा है।

फिर बिहार के सीमांचल इलाक़े में मुस्लिम आबादी अच्छी-ख़ासी है और यहां से हैदराबाद के लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के पांच विधायक जीते थे। इनमें से चार विधायक आरजेडी का दामन थाम चुके हैं।

यानी कुल मिलाकर बिहार में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का कुनबा बड़ा होता जा रहा है। जिसमें सबसे बड़ा फैक्टर ये है कि नीतीश लालू के साथ आने से ओबीसी जातियों में यादव और कुर्मी कहीं छिटकर कर जाने वाले नहीं है। साथ में ओवैसी और लालू के कारण मुस्लिमों के छिटकने की वजह भी लगभग खत्म सी हो गई है। हालांकि सवर्णों को भाजपा के खिलाफ वोट करने के लिए प्रोत्साहित करना विपक्ष के लिए चुनौती ज़रूर होगी।

फिलहाल देखने वाली बात ये होगी कि भाजपा के सामने विपक्ष के ये फैक्टर ज़मीन पर कितने ख़रे उतरते हैं।

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