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बिहार: विपक्षी दल पहुंचे चुनाव आयोग, परंपरागत शैली से चुनाव की मांग की

बिहार के विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपकर विधानसभा चुनाव को वर्चुअल तरीके के बजाय परंपरागत शैली में करवाने और चुनाव में पारदर्शिता बनाए रखने की मांग की है।
विपक्षी दल पहुंचे चुनाव आयोग

दिल्ली: अभी पूरा देश कोरोना से जूझ रहा है और बिहार के चुनाव का समय भी नज़दीक आ रहा है। ऐसे में सवाल यही है कि इस संक्रमण के दौर में चुनाव करवाना चाहिए या नहीं और अगर चुनाव हो तो कैसे? इन सभी को लेकर चुनाव आयोग भी चिंतन कर रहा है। चुनाव आयोग ने अभी तक जो संकेत दिये है उसके मुताबिक वो चुनाव करवाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए उसने चुनाव अधिकारियों का प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया है। जबकि सत्तधारी गठबंधन ने भी अपना चुनाव प्रचार बड़ी आक्रामकता से वर्चुअल तरीके से शुरू कर दिया है। इस पूरे मामले को लेकर बिहार के पूरे विपक्ष ने संयुक्त रूप से चुनाव आयोग बिहार को ज्ञापन सौंपा और उनका एक प्रतिनिधिमंडल भी चुनाव आयोग से मिला।

ज्ञापन में विधानसभा चुनाव को वर्चुअल तरीके के बजाय परंपरागत तरीके से चुनाव करवाने, जनता की व्यापक भागीदारी और चुनाव में पारदर्शिता, चुनाव में निष्पक्षता बनाए रखने की मांग की गई। सीपीआई-माले के राज्य सचिव कुणाल, आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद प्रसाद सिंह, सीपीआई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह, सीपीएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रदेश अध्यक्ष बी़ एल़ वैश्यंत्री, आरएलएसपी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राजेश यादव सहित कई नेताओं के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन में कहा गया है कि चुनाव के प्रचार के लिए सभी दलों को समान अवसर मिले।

चुनाव आयोग से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में भाकपा-माले के धीरेन्द्र झा, सीपीआईएम के अरुण  कुमार मिश्रा, विजय नारायण मिश्र, सीपीआई के रालोसपा के राजेश यादव, हम के प्रदेश अध्यक्ष श्री बीएल वैश्यंत्री शामिल थे

विपक्ष ने संयुक्त रूप से चुनाव आयोग से यह मांग की और कहा कि इस बात की गारंटी करनी चाहिए कि चुनाव कोरोना संक्रमण का बड़ा कारण न बन जाए। इसके अलावा इस ज्ञापन में कई अन्य मुद्दों को भी रेखंकित किया गया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग यह बताए कि जिस राज्य में महज 37 प्रतिशत इंटरनेट सेवा की उपलब्धता है, वहां वर्चुअल तरीके से चुनाव कैसे हो सकता है? जाहिर है कि इसमें बड़ा भाग शहरों का ही है।

इसके साथ विपक्ष ने धनबल के दुरुपयोग पर भी रोक लगाने की बात कही और कहा कि भाजपा व जदयू अभी से वर्चुअल प्रचार में उतर चुके हैं। इसपर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

अभीतक बिहार में बीजेपी ने कई वर्चुअल रैलियां की हैं। अमित शाह की पहली रैली के लिए तो दावा किया गया था कि पूरे बिहार में लगभग 72 हज़ार एलईडी स्क्रीन लगाई गई थी।

विपक्ष ने पोस्टल बैलेट के दायरे को बढ़ाने पर भी सवाल किया और कहा कि चुनाव की पारदर्शिता-विश्वसनीयता की रक्षा होनी चाहिए। पोस्टल बैलेट का दायरा बढ़ाने से चुनाव की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। बुजुर्गों के लिए पोस्टल बैलेट की बजाए प्राथमिकता के आधार पर अलग से बूथ बनाए जाएं।

आपको बता दें बिहार में कोरोना से स्थिति लगातार बिगड़ रही है। बिगड़ती स्थिति को देखते हुए 16 जुलाई से पूरे बिहार में फिर से लॉकडाउन कर दिया गया। ऐसे में चुनाव कराने को लेकर कई लोगो सवाल खड़ा कर रहे है।

बिहार में हर हाल में समय पर चुनाव कराने की ज़िद ने पहली बलि भी ले ली है! खगड़िया में ईवीएम की ट्रेनिंग के दौरान संक्रमित हुए प्रधानाचार्य कैलाश झा किंकर की सोमवार 13 जुलाई को इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी। वे खगड़िया जिले में चल रही ईवीएम ट्रेनिंग के मास्टर ट्रेनर थे और हैदराबाद से आये उन प्रशिक्षकों के संपर्क में आकर कोरोना संक्रमित हो गये थे, जो बाद में कोरोना पॉजिटिव पाये गये।

मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के नेता और विधनसभा में विपक्ष के नेता तेजश्वी यादव ने भी चुनाव को आगे बढ़ाने की बात कही और कहा कि अगर जरूरत पड़े तो बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। जबकि वाम दालों ने भी चुनाव को आगे बढ़ाने की बात कही है।

विपक्ष द्वारा सौंपे गए ज्ञापन की मुख्य बातें

1. सभी दलों को समान अवसर मिले: आज देश का लोकतंत्र, जो दुनिया का सबसे बड़ा और गौरवशाली लोकतंत्र माना जाता है, खतरे में है। बिहार में सतरहवीं विधानसभा का चुनाव शुरू होने वाला है। मुख्य चुनाव पदाधिकारी, बिहार द्वारा आयोजित विगत सर्वदलीय बैठक में सत्ताधारी दलों द्वारा प्रचार करने संबंधी जो प्रस्ताव दिए गए, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वर्चुअल रैली एवं प्राइवेट तथा सरकारी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार का भारी खर्चवाला कारपोरेट तरीका अपनाकर तथा वास्तविक और पारंपरिक चुनावी सभा पर प्रतिबंध लगाकर अन्य दलों को वे प्रचार से दूर रखना चाहते हैं। यह भारतीय प्रजातंत्र को समाप्त करने की दिशा में एक खतरनाक कदम होगा।

प्रचार का वर्चुअल तरीका स्मार्टफोन और इंटरनेट की उपलब्धता पर आधारित होगा। बिहार में इंटरनेट का विस्तार (स्मार्ट फोन, ब्रॉड बैंड, केबल सहित) महज 37 प्रतिशत है। इसमें से 80 प्रतिशत वे लोग हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं। महज 20 प्रतिशत आम लोगों के पास ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। यानि, पूरी आबादी का लगभग 75 प्रतिशत, जो अपने नेताओं और पार्टी का विचार नहीं देख-सुन पाएंगे, अमूमन विपक्षी दलों के वोटर होंगे। यदि चुनाव प्रचार का वर्चुअल तरीका अपनाया गया, तो धनबल की बदौलत एकतरफा रूप से सिर्फ सत्ताधारी पार्टी की बात ही जनता तक पहुंच पाएगी।

भारतीय प्रजातंत्र का तकाजा है कि समाज के हर सामाजिक एवं आर्थिक वर्ग के नागरिकों तक सभी दलों का प्रचार बराबर रूप से पहुंचे ताकि वोट के मामले में उन्हें सही निर्णय लेने में सहूलियत हो। इसे सुनिश्चित करना चुनाव आयोग की जिम्मेवारी है।

अतः सभी विपक्षी दलों की मांग है कि आयोग द्वारा पारंपरिक तरीके से चुनावी सभाओं के माध्यम से प्रचार की व्यवस्था की जाए जिसमें प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि सभी लोग मास्क या गमछा लगाकर और आपस में पर्याप्त दूरी बनाकर सभाओं में हिस्सा लें।

2. धनबल के दुरुपयोग पर रोक लगे: विपक्षी दलों की चिंता है कि समृद्ध पार्टियां धनबल के जरिए तीन माह पहले से ही वर्चुअल प्रचार में जुटी हुई हैं और जिसका खर्च पार्टी वहन कर रही है। ऐसे खर्च की कोई सीमा आयोग की तरफ से निर्धारित नहीं है। अतः धनबल को प्रभावहीन करने एवं चुनावी खर्च कम करने की दिशा में यह बड़ा कदम होगा यदि आयोग द्वारा उम्मीदवार की खर्च सीमा के साथ-साथ आचार संहिता से पहले और बाद में पार्टी द्वारा किए जाने वाले प्रचार-खर्च की सीमा भी निर्धरित कर दी जाए।

3. चुनाव की पारदर्शिता - विश्वसनीयता की रक्षा हो: आयोग ने 65 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों के लिए पोस्टल बैलेट का प्रावधान किया है जिससे चुनाव की गोपनीयता प्रभावित होगी और वोटिंग पर कोई भी निगरानी नहीं रह जाएगी। सत्ताधारी दल के लोग धनबल - बाहुबल - सत्ताबल के जरिए इन मतों पर कब्जा कर सकते हैं। 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है. हरेक विधान सभा में इस तरह के वोटर औसतन 20 - 25 हजार होंगे। बिना आयोग की निगरानी के इतनी बड़ी आबादी की पोस्टल बैलेट से वोटिंग कराना पूरे चुनाव को न सिर्फ व्यापक रूप से प्रभावित करना होगा, बल्कि चुनाव की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर ही बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। इस विधि से वोटिंग का मूल स्वरूप ही बदल जाएगा।

अतः हमारी राय है कि 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए हर बूथ पर अलग लाइन की व्यवस्था की जाए और भौतिक दूरी सुनिश्चित करते हुए प्राथमिकता के आधार पर उनकी वोटिंग कराई जाए।

4. मतदान में व्यापक जनता की भागीदारी की गारंटी करें: पूरा बिहार कोरोना महामारी की चपेट में है। दिन-प्रतिदन शहरों के साथ-साथ गांवों में भी कोरोना विस्फोट होने लगा है। डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी, कोर्ट, जेल, राजनेता, डीएम-एसपी-पुलिसकर्मी सभी इसकी चपेट में आ रहे हैं। बिहार के अनेक जिलों में लॉकडाउन पुनः लागू कर दिया गया है। कोरोना का आतंक चहुंओर पसरा हुआ है। दूसरी ओर, लाखों-लाख परिवार रोजगार खोकर जिंदा रहने की जद्दोजहद झेल रहे हैं।

सामान्य समय में बिहार का मतदान प्रतिशत 60-65 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहता। कोरोना आतंक व जिन्दा रहने की जद्दोजहद की वर्तमान घड़ी में यह और भी बहुत नीचे आने को बाध्य है। महज मुट्ठी भर मतदाताओं की भागीदारी से क्या चुनाव मजाक नहीं बन जाएगा?

5. चुनाव महामारी फैलाने का जरिया न बने: बिहार की जनता काफी चिंतित है कि चुनाव कहीं महामारी को खतरनाक रूप से फैलाने का जरिया न बन जाए! तूफानी गति से कोरोना फैल रहा है और विशेषज्ञों के अनुसार अगस्त-सितंबर तक देश में रोजाना 2 लाख संक्रमण का अनुमान है।

सरकार ने अभी तक किसी सामूहिक आयोजन में भागीदारी की अधिकतम संख्या 50 तय कर रखी है। आयोग ने बूथ पर वोटरों की संख्या घटाकर अधिकतम 1000 करने का फैसला किया है लेकिन क्या यह भी एक बड़ा जमावड़ा नहीं होगा और क्या इसके जरिए कोरोना संक्रमण फैलाव की प्रबल संभावना नहीं बनती है?

लक्षण रहित संक्रमित मतदाताओं से अन्य मतदाता में संक्रमण नहीं फैलने के क्या उपाय किए जाएंगे? सरकारी आंकड़ा कहता है कि देश में कुल संक्रमित मरीजों का 80 प्रतिशत लक्षण रहित संक्रमितों का है। मतदान करने आए लक्षण रहित मतदाताओं की क्या संक्रमण बढ़ाने में बड़ी भूमिका नहीं होगी? लक्षण रहित संक्रमित मतदाताओं की पहचान कैसे होगी? वर्तमान स्थिति में मतदाताओं की व्यापक भागीदारी और संक्रमण से उनकी सुरक्षा की गारंटी के लिए आयोग ने कौन से ठोस व गारंटीशुदा उपाय किए हैं?

आपसे हमारी अपील है कि ऊपर उठाए गए बिन्दुओं पर गंभीरता से गौर करेंगे और हमारी मांग है कि संविधान में प्रावधानित राज्य की इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया को गंभीरता के साथ अंजाम दिया जाए ताकि लोकतंत्र की मूल भावना आहत न हो - सभी दलों को समान अवसर मिले, जनता की व्यापक भागीदारी हो, धनबल के दुरुपयोग पर रोक लगे, चुनाव की पारदर्शिता - निष्पक्षता - विश्वसनीयता बरकरार रहे, चुनाव महामारी फैलाने का जरिया न बने और कुल मिलाकर चुनाव मजाक न बने।

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