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बोलीविया में तख़्तापलट के पांच सबक़

अर्जेंटीना के समाजशास्त्री अटिलीयो बोरॉन बोलिविया के तख़्तापलट के बारे में महत्वपूर्ण विचार पेश कर रहे हैं।
bolivia

बोलिवियाई त्रासदी हमें कई सबक़ सिखाती है कि हमारे लोगों और उनकी सामाजिक और राजनीतिक ताक़तों को कुछ सबक़ सीख लेने चाहिए और उन्हें अपने ज़ेहन में दर्ज कर लेना चाहिए। उनकी यहां एक संक्षिप्त सी सूची दी गई है जिसका इस्तेमाल भविष्य में व्यापक या विस्तृत विश्लेषण के लिए किया जा सकता है।

पहला: बावजूद ईवो सरकार के उदाहरणात्मक आर्थिक प्रशासन के, जिसने विकास, पुनर्वितरण, निवेश के प्रवाह में तरक़्क़ी की और मैक्रो और माइक्रोइकोनॉमिक संकेतक के रूप में बड़े सुधार की गारंटी देता था, ऐसी सरकार को दक्षिणपंथी और साम्राज्यवादी ताक़तें कभी भी बर्दाश्त नहीं करेंगी और ख़ासकर जो उनके हितों को नहीं साधती है। 

दूसरा: अमेरिका की विभिन्न एजेंसियों और और उनके वक्ताओं जो शिक्षाविदों और पत्रकारों के रूप में काम करते हैं, उनके द्वारा प्रकाशित किए गए मैनुअल का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है ताकि वक़्त रहते आक्रामक हमले की चेतावनी को समझा जा सके।

इन एजेंसियों द्वारा लिखी गई टेक्स्ट का मक़सद लोकप्रिय नेताओं की प्रतिष्ठा को नष्ट करना होता है, जिसे वे अपनी ख़ास बदज़बानी में "चरित्र हत्या" कहते हैं, जिसके ज़रीये नेताओं को चोर, भ्रष्ट, तानाशाह और अज्ञानी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

यह काम ऐसे सामाजिक प्रवक्ताओं को सौंपा जाता है, जो स्व-घोषित "स्वतंत्र पत्रकार" होते हैं और जो  एकाधिकारवादी मीडिया के नियंत्रण में काम कराते हैं, वे आम जनता के ज़ेहन में मानहानि की चोट कराते हैं साथ ही आज देशज और ग़रीब लोगों के खिलाफ नफरत के संदेश दे रहे होते हैं जैसा की बोलिविया में किया गया है।

तीसरा: एक बार जब पहला काम पूरा हो जाता है तो फिर राजनीतिक नेतृत्व और आर्थिक अभिजात वर्ग "इवो की तानाशाही" को समाप्त करने के लिए "बदलाव," की मांग करते हैं, जैसा की कि कुछ समय पहले वर्गास ललोसा ने लिखा था कि "एक दुर्जनों का नेता” जो अपनी शक्ति को अनंत करना चाहता है।"

मैं इस बात पर शर्त लगा सकता हूँ कि वह उस वक़्त मैड्रिड में उन फ़ोटो को देखते हुए शैंपेन पी रहे होंगे जिनमें फ़ासीवादी ताक़तें देश की संपत्ति को लूट रही थी, उन्हें जला रही थीं और पत्रकारों को चैन से बांध रही थी तथा एक महिला महापौर का सिर मुंडते हुए उसके चहरे पर लाल रंग पोता जा रहा था और पिछले चुनाव के मतपत्रों को नष्ट किया जा रहा था साथ ही डॉन मारियो के जनादेश को आगे बढ़ाने के लिए एक दुष्ट जननेता से बोलीविया को मुक्त करने का कसीदा पढ़ा जा रहा था।

मैं उनका (यानी वर्गास ललोसा का) एक उदाहरण के रूप में उल्लेख कर रहा हूं क्योंकि वह इस वीभत्स हमले के अनैतिक समर्थक/झंडाबरदार हैं, एक असीम गुंडागर्दी के झण्डाबरदार जो दुर्जनों के नेताओं को सूली पर चढ़ाना चाहता है, लोकतंत्र को नष्ट करना चाहता है, आतंकियों के शासनकाल को स्थापित करना चाहता है और देश के प्रतिष्ठित लोगों को दंड देने के लिए भाड़े के क़ातिलों को लेकर उन पर हमला करना चाहता है जो ग़ुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त होना चाहते हैं।

चौथा: इस परिद्रश्य में "सुरक्षा बल" प्रवेश करते हैं। इस मामले में हम उन संस्थानों की बात कर रहे हैं जिन्हे कई एजेंसियों द्वारा सैन्य और नागरिक द्वारा नियंत्रण किया जाता है और जो सीधे अमरिकी सरकार की सरपरस्ती में होती हैं।

वे एजेंसियां उन्हें प्रशिक्षित करती हैं, हथियार मुहैया कराती हैं, संयुक्त अभ्यास करती हैं और उन्हें राजनीतिक रूप से शिक्षित भी करती हैं। मुझे यह देखने का अवसर उस वक़्त मिला था जब मैंने ईवो के निमंत्रण पर "साम्राज्यवाद-विरोधी" कोर्स का उदघाटन तीन सशस्त्र बलों के अधिकारियों के लिए किया था।

इस मौक़े पर मुझे शीत युद्ध के समय से विरासत में मिले सबसे प्रतिक्रियावादी विचार की अभिव्यक्ति देखने को मिली जिसमें उतरी अमेरिकी के नारों की पैठ के मुताबिक एक देशज व्यक्ति का देश का राष्ट्रपति होना एक नागवार बात थी।

इन "सुरक्षा बलों" ने क्या किया? इन्होंने ख़ुद को घटनास्थल से वैसे ही हटा लिया जैसे यूक्रेन, लीबिया, ईराक़, सीरिया में सेना ने अपने आप को हटा लिया था ताकि ईवो की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए फासीवादी ताक़तों को अनियंत्रित छूट मिल जाए ताकि वे सभी ऐसे नेताओं से निजात पा सके जो उनके  साम्राज्य को परेशान करते थे आबादी को उकसाते थे, क्रांतिकारी तबके या फिर सरकारी हस्तियाँ जो इसमें शामिल थीं।

तो यह एक नई सामाजिक-राजनीतिक अवधारणा है: “चूक” से सैन्य तख़्तापलट, ताकि प्रतिक्रियावादी समूहों, जिन्हे दक्षिणपंथी ताक़तों ने पाला और उनका वित्तपोषण किया को अपना क़ानून थोपने दिया जाए। एक बार जब आतंक शासन करने लगता है और सरकार रक्षाहीन हो जाती है तो परिणाम अपरिहार्य होता है।

पांचवां: बोलिविया जैसे देश में पुलिस और सेना जैसे संस्थानों को कभी भी सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था नहीं सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि वे हमेशा से साम्राज्यवाद और उसके स्थानीय सेवकों यानी दक्षिणपंथियों के पिछलग्गू रहे है।

जब ईवो के ख़िलाफ़ आक्रामक हमले की शुरुआत की गई थी तो उसने तुष्टिकरण की नीति अपनाई, उसने फ़ासीवादी उकसावों का जवाब देने के विकल्प को नहीं चुना था।

इसने उनका साहस बढ़ाया उन्हें अपना दांव खेलने की जगह दे दी: और उन्होने सबसे पहले तो दूसरे दौर के चुनाव की माँग की; फिर, धोखाधड़ी का आरोप लगाया और नए चुनाव की मांग की; इसके तुरंत बाद, चुनाव की मांग लेकिन बिना ईवो के जैसा कि ब्राजील में हुआ था, एक चुनाव बिना लूला के।

फिर, उन्होंने ईवो के इस्तीफ़े की मांग की; आख़िरकार जब वे ब्लैकमेल नहीं हुए तो पुलिस और सेना की मिलीभगत ने आतंक पैदा किया और ईवो को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया। यह सबकुछ साम्राजी मैनुअल से लिया गया है। क्या हम इस सब से कुछ सीखेंगे?

Courtesy: Peoples Dispatch

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

The Coup in Bolivia: Five Lessons

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