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बजट 2020 : दलितों और आदिवासियों के आवंटन में बजट की बाजीगरी

अनुसूचित जनजाति बजट के तहत लक्षित योजनाओं के लिए सिर्फ 19.43% और अनुसूचित जनजाति के लिए 36.2% आवंटित किए गए हैं। बाकी सामान्य योजनाओं को अनुसचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का मुखौटा पहना दिया गया है। यानी नाम यह कि यह बजट अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आवंटित किया गया है पर लाभ मिलेगा सामान्य आबादी को!
Dalit and tribal
Image courtesy: Scroll.in

एक फरवरी 2020 को जब केन्द्रीय वित्त मंत्राी निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया तब देश उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था जैसे कि बेरोजगारी का उच्च स्तर, नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पर विरोध, सार्वजनिक क्षेत्रों में विनिमेश तथा घटती बढ़ोतरी आदि। भले ही इस बजट में वित्तमंत्राी ने सबसे लंबा भाषण दिया हो पर दलितों और आदिवासियों के परिप्रेक्ष्य से देखें तो यह बजट निराशाजनक रहा।

आमजन भी यह कहते सुने गए कि महंगाई और बढ़ती कीमतों पर कोई नियंत्राण नहीं तो बजट का कोई मतलब नहीं। नेशनल कंफेडेरशन आफ दलित एंड आदिवासी आर्गेनाईजेशंस (नैक्डोर) ने ‘जन-जन के बजट’ 2020 की समीक्षा की है। बजट में अनुसूचित जातियों की 16.6% आबादी के विकास के लिए केवल 2.74% आवंटन किया गया है। दरअसल बजट आंकड़ों की बाजीगरी का अखाड़ा बनता जा रहा है। यह बजट दलितों और आदिवासियों के लिए हाथी के दांत की तरह है। यह दिखता बड़ा है पर असल में दलितों और आदिवासियों को देता बहुत कम है। आइए इस हकीकत को समझें।

राष्ट्रीय  मानव अधिकार अभियान-दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन(NCDHR-DAAA) के अनुसार केन्द्र सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करती है। और आश्वस्त करती है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा बाकी आबादी के बीच जो विकास की खाई है उसको पाटने के लिए विकास के फासले को समाप्त किया जाएगा। लेकिन जब हम इनके दिए गए आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो इनकी कथनी और करनी का फर्क शीशे की तरह साफ हो जाता है। इनका विश्लेषण तीन प्रकार से किया जाता है। 1. आवंटन के आधर पर 2. उन लक्षित स्कीमों के औसत के आधर पर जो अनुसूचित और अनुसूचित को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाती हैं और 3. बजट की विश्वसनीयता जो कि इस खाई को पाटने के उपाय करती है। यानी स्कीमों के लिए कितना बजट आवंटित किया जाता है और कितना बजट उपयोग किया जाता है।

इस वर्ष अनुसूचित जाति कल्याण आवंटन के तहत 323 स्कीमों के लिए 83, 257 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के कल्याण आवंटन के तहत 331 स्कीमों के लिए 53,653 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यानी सरकार अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजाति की बाकी आबादी के बीच की खाई पाटने का दावा कर रही थी लेकिन बजट 2020-21 में वह परिलक्षित नहीं रहा। क्योंकि अनुसूचित जनजाति बजट के तहत लक्षित योजनाओं के लिए सिर्फ 19.43% और अनुसूचित जनजाति के लिए 36.2% आवंटित किए गए हैं। बाकी सामान्य योजनाओं को अनुसचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का मुखौटा पहना दिया गया है। यानी नाम यह कि यह बजट अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आवंटित किया गया है पर लाभ मिलेगा सामान्य आबादी को! -

यह है बजट की बाजीगरी!!

पिछले वर्ष की तुलना में पोस्ट मैट्रिक स्कोलरशिप में मामूली वृद्धि की गई है। अनुसूचित जाति  का बजट 2987 करोड़ रुपये है वहीं अनुसूचित जनजाति का बजट 1900 करोड़़ रुपये है। यह देखा जाए कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बड़ी संख्या में छात्र अपनी उच्च शिक्षा के लिए इस स्कीम पर निर्भर होते हैं। दुखद है कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजति की कुछ महत्वपूर्ण विकास योजनाओं को उनकी आवश्यकता के अनुसार बजट आवंटित नहीं किया गया है।

नीति आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार इन 41 मंत्रालयों/विभागों का कुल फंड निर्धारण अनुसूचित जाति समुदायों के लिए 1,39,172 करोड़ रुपये 323 स्कीमों के तहत होना चाहिए। पर अनुसूचित समुदायों के लिए वास्तविक आवंटन सिर्फ 83,257 करोड़ रुपये ही है। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के लिए कुल फंड आवंटन 77,034 करोड़ रुपये होना चाहिए पर वास्तविक आवंटन सिर्फ 53, 653 करोड़ रुपये है। अनुसूचित जाति की 323 कुल स्कीमों में से सिर्फ 52 लक्षित स्कीमें हैं और 271 गैर-लक्षित स्कीमे हैं। जिनके अंतर्गत आवंटित धनराशि क्रमशः 16,174 करोड़ और 67,083 करोड़ रुपये है। इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति की 331 स्कीमों  में से सिर्फ 42 लक्षित स्कीमें हैं और 289 गैर-लक्षित स्कीमें हैं। और इनके लिए आवंटित धनरशि क्रमश  19, 428 करोड़ रुपये और 34, 225 करोड़ रुपये है।

शिक्षाा के क्षेत्र में देखें तो सामाजिक-आर्थिक समस्याएं और भेदभाव के अनुभव मौजूद होने के बावजूद दलित और आदिवासी छात्र उच्च शिक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर आगे बढ़ रहे हैं। उच्च शिक्षा के ऑल इंडिया सर्वे बताते हैं कि पिछले पांच सालों में छात्रों के अनुक्रमांक और प्रतिशत बढ़ा है। शैक्षिक वर्ष 2014-15  अनुसूचित जाति के छात्रों की उच्च शिक्षा में प्रतिशत कुल छात्रों की तुलना में 13.47% था। अकादमिक वर्ष 2018-19 में यह बढ़करर 14.89% हो गया यानी उनकी संख्या 55,67,078 हो गई। इसी प्रकार आदिवासी छात्रों का प्रतिशत 4.80% था, वह बढ़कर 5.53%  हो गया यानी उनकी संख्या 20,67,748 हो गई।

इसी प्रकार अनुसूचित जाति  व अनुसूचित जनजाति की कुछ प्रमुख स्कीमें जो उच्च शिक्षा प्रदान करती हैं जैसे पोस्ट मैट्रिक स्कोलरशिप कम आवंटन की चुनोतियों का सामना कर रही हैं। इसके अलावा सरकार के सुस्त सिस्टम के कारण पेास्ट मेट्रिक की ध्नराशि तब मिलती है जब सत्रा खत्म होने को होता है। इससे अजा एवं अजजा के छात्रों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस स्कोलरशिप को प्राप्त करने के लिए सरकार की जटिल प्रक्रिया के कारण भी छात्रा-छात्राओं को बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं - यह अलग की कहानी है।

इस बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए राईट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय कहते हैं कि-‘‘बच्चों के संविधन प्रदत्त मौलिक अध्किार, शिक्षा का अध्किार कानून-2009 को लगभग 10 साल पूरे हो गए और पिछले पांच सालों से बन रही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में पेश मौजूदा बजट फिर से घोर निराशाजनक साबित हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत बजट आवंटन पर शिक्षा पर खर्च करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। पर सरकार इसमें विफल रही है।...दुर्भाग्यपूर्ण कि कुल बजट में शिक्षा का बजट 2018-19; संशोधित में 3.5 प्रतिशत से घटकर बजट 2020-21 में 3.3 प्रतिशत रह गया है।’’

इसी प्रकार सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं -‘‘सफाई कर्मचारियों के लिए यह बेहद निराशाजनक बजट है। सेप्टिक टैंक-सीवर में मौतों को रोकने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया। सरकार को शौचालयों की चिंता है, सफाई कर्मचारियों की नहीं। शर्मनाक उपेक्षा है यह! पिछले दो वर्षों में ही 116 लोग सेप्टिक टैंक-सीवर में सफाई के दौरान दम घुटने से अपनी जान गंवा चुके हैं पर सरकार केा इनकी कोई चिंता नहीं है।’’

उनका कहना है कि सरकार के पास शौचालय बनाने के लिए धन है पर उन्हे साफ करने वाले सफाई कर्मचारियों के लिए नहीं। इसके साथ ही वे कहते हैं कि स्वच्छता के लिए जो बजट आवंटन किया गय है उसे मैनुअल स्केवेंजरों के लिए नहीं माना जा सकता। मैनुअल स्केवंजरों के लिए जो स्वरोजगार योजना है जिसे SRMS स्कीम कहा जाता है इसमें पिछले वर्ष की तुलना में बजट आवंटन में सरकार ने कुछ भी बढ़ोत्तरी नहीं की। यह वर्ष 2019-20 में भी 110 करोड़ था और 2020-21 में भी 110 करोड़ ही है।

हाल ही में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने 3 खंडों में अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिनमे बढ़ते हुए अपराधों का उल्लेख किया गया है। खासकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के बारें मे  रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-18 में अनुसूचित जाति से समबन्धित कुल 43, 203 आपराधिक मामले दर्ज किए गए और 2018 में 42793 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। अनुसूचित जनजाति से संबंधित वर्ष 2017 में 7125 और वर्ष 2018 में 6528 आपराधिक मामले दर्ज किए गए।

न्याय तंत्र की मजबूती के लिए समुचित बजट का आवंटन जरूरी है। हालांकि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 में 550 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। ये आवंटन नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम  1995 और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति; अत्याचार निषेध अधिनियम  1989 को प्रभावशील करने के लिए रखी है। ये आवंटन न्यायतंत्र को मजबूत करने और पीड़ितों के सहयोग के लिए पर्याप्त नहीं है।

इस तरह हम देखते हैं कि बजट जो आंकड़े हमें दिखाता है और वास्तविकता जो होती है उसमें काफी अंतर होता है। इसलिए सरकार की नीयत को उसकी कथनी और करनी को और इसी संदर्भ में बजट की बाजीगरी को समझना जरूरी है। 

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