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दिल्ली हिंसा : झड़प में मारे गये शाहिद के परिवार ने कहा कि नेता दंगा भड़का कर चले गये

दिल्ली के पूर्वोत्तर ज़िले के इलाक़ों में हुए दंगों में अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है।
Delhi Violence

नई दिल्ली : इरफ़ान और दूसरे लोगो के लिए 20 साल की शाज़िया को समझाना-बुझाना और गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल से सुरक्षित घर वापस लाना सचमुच आसान नहीं था, जहां उसके पति शाहिद  का शरीर मृत पड़ा हुआ था। 22 साल के ऑटोरिक्शा चालक को 24 फ़रवरी को दोपहर बाद लगभग 3:30 बजे भजनपुरा दरगाह के पास उनके पेट में एक गोली मार दी गयी थी।

उत्तरपूर्व दिल्ली में भड़की "लक्ष्य साधकर की गयी हिंसा" का वह पहला दिन था,और जो हिंसा सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) समर्थक और विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों के बाद पूर्वोत्तर दिल्ली में बेतरह फूट पड़ी थी। शाहिद और शाज़िया, दोनों की शादी चार महीने पहले ही हुई थी। चूंकि शाज़िया के पेट में बच्चा पल रहा है, इसलिए उन्हें अपने पति के शरीर को देखने की इजाज़त नहीं थी।

शाज़िया के जेठ, इरफ़ान ने अपने दुःख पर क़ाबू पाने के साथ-साथ पूरे परिवार को सीमापुरी के उस उन्मादी माहौल में अपने रिश्तेदार के यहां सुरक्षित रूप से ले जाने की ज़िम्मेदारी भी निभायी थी।

उसने शाज़िया को अपना घूंघट हटा लेने के लिए कहा था, ताकि दंगाई उन्हें मुसलमानों के रूप में न पहचान पाएँ। उन्होंने एक संक्षिप्त बातचीत के दौरान कहा, “हमारे परिवार की औरतें पर्दे (महिला के अलग रहने की परंपरा) का पालन करती हैं। लेकिन, हम इसकी क़ीमत भला कैसे चुका सकते थे,जब मुसलमानों को उनकी धार्मिक पहचान के कारण इस शहर में निशाना बनाया जा रहा हो। हम मुसलमानों के रूप में नहीं दिखना चाहते थे।”

उनका परिवार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के अपने पैतृक शहर में शव को घर वापस ले जाने का इंतज़ाम कर रहा था।

शाहिद, सांप्रदायिक दंगों में मारे गये उन 34 लोगों में से एक हैं, जो पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी, भजनपुरा, गोकुलपुरी, कर्दमपुरी, नूर-ए-इलाही, चांद बाग़, मौजपुर, जाफ़राबाद और सीलमपुर में फैले हुए हैं।

इरफ़ान ने बताया कि शाहिद हमेशा दोपहर के खाने के लिए घर आता था और इत्मिनान कर लेता था कि शाज़िया ने खाना खाया या नहीं, मगर वह उस तबाही के दिन नहीं लौट सका। इरफ़ान ने बताया, “उसके लौटने के बजाय, एक बदक़िस्मत ख़बर आयी कि उसे गोली मार दी गयी है और इस कारण से उसे जीटीबी अस्पताल ले जाया गया है। जब मैं अस्पताल पहुंचा, तो वह मृत घोषित किया जा  चुका था।"

पूरा परिवार ग़मज़दा शाज़िया को कुछ न कुछ खाने के लिए राज़ी कर रहा था, क्योंकि उसे जब से यह जानकारी मिली थी कि उसका पति नहीं रहा, तबसे उसने कुछ खाया-पिया नहीं था। घर पर रोते हुए वह बार-बार यही कहे जा रही थी, “मुझे कम से कम उसका चेहरा तो देख लेने दो। मैं उसके बिना क्या करूंगी ? कौन उसके बच्चे की देखभाल करेगा ? तुम सब मुझे आख़िरी बार उसे देखने क्यों नहीं दे रहे हो?”

25 फ़रवरी की शाम को कर्फ़्यू लगाये जाने के बावजूद बड़ी संख्या में जो लोग कल रात तक बिना रुके जारी हिंसा में मारे गये हैं, उनमें से सबके सब दिहाड़ी मज़दूर थे और रोज़ी-रोटी कमाने के लिए घर से बाहर निकले हुए थे।

एक मृतक के परिवार से बात करते हुए न्यूज़क्लिक को पता चला कि किसी व्यक्ति को बाबरपुर के विजय पार्क कॉलोनी में गोली मार दी गयी है।

कुछ ही घंटों के भीतर एक खून से सना हुआ शरीर उस जगह पर पड़ा था। मृतक की पहचान 28 वर्षीय मुबारक हुसैन के रूप में हुई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वह दंगाइयों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी में पकड़ा लिया गया था और उसे गोली मार दी गयी। उसके सीने में गोली लगी थी। घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि यह घटना 25 फ़रवरी को दोपहर 1:30 बजे के आसपास हुई थी। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि हुसैन उस गोली से मारा गया था,जिसे सड़क के उस पार से काले जैकेट पहने किसी शख़्स ने चलायी थी।

मौक़े पर मौजूद उसके छोटे भाई,सदाकत (18) का आरोप है कि उसने पुलिस को लगभग 100 कॉल किये थे, लेकिन कोई भी मौके पर नहीं पहुंचा। उसका आरोप है,“यहां तक कि सरकार की एम्बुलेंस सेवा की तरफ़ से भी कोई जवाब नहीं आ रहा है।"

क़रीब 3:10 बजे तक शव को अस्पताल ले जाने के लिए न तो पुलिस और न ही एंबुलेंस मौक़े पर पहुंची।

प्रवासी मज़दूर, मुबारक मूल रूप से बिहार के दरभंगा ज़िले का था और पिछले 10 वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी में रह रहा था।

विजय पार्क में रहने वाला मोहम्मद जुबैर ने बताया, "इलाक़े में केवल 4-5 गलियां ही ऐसी हैं, जहां सिर्फ़ मुसलमान रहते हैं। यह क्षेत्र चारों तरफ से हिंदुओं से घिरा हुआ है। उन्होंने सचमुच हमें बंधक बना लिया है। मंगलवार सुबह क़रीब 10 बजे के आसपास जैसे ही लोग जगे, यह बलवा शुरू हो गया। मौजपुर और गोकलपुरी, जो यहां से लगभग 1.5 किमी दूर है, वहां के लोग यहां आकर कहर बरपा रहे हैं। हालांकि हम यहां किसी भी संदिग्ध हरक़तों की अनुमति नहीं दे रहे हैं, लेकिन हम डरे हुए हैं, क्योंकि पुलिस की यहां कोई मौजूदगी नहीं है। जो लोग इज्तेमा (एक इस्लामी सभा) के लिए निकले थे, लौटते समय उन पर हमला कर दिया गया। दंगाइयों ने पहले उनके गुप्तांगों को देखकर उनकी पहचान का पता लगाया। यह सब बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के मौजपुर चौक में भड़काऊ भाषण देने के बाद शुरू हुआ।”

जीटीबी अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर एक अफ़रातफ़री थी, जहां मृतक के परिवार के सदस्य अपने-अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए उन्हें सौंपने का इंतजार कर रहे थे। उनमें से बहुतों ने बताया, “डॉक्टर नहीं बता पा रहे हैं कि शव परीक्षण कब किया जायेगा। हम सिर्फ़ यही सुन रहे हैं कि पोस्टमॉर्टम जल्द होगा। पुलिसकर्मी बेदिल हैं।”

एक जवान को किसी घायल हिंदू व्यक्ति को लाते हुए देखा जा सकता था ,जिसकी कमर में गोली लगी थी। ग़ुस्से से भरा एक शख़्स ने कहा, “नेता भाषण देकर और दंगा भड़काकर चले गये,अब हिन्दू-मुसलमान दोनों मर रहे हैं।” 

दंगाइयों ने तो यहां तक कि अस्पताल को भी घेर लिया था और कथित तौर पर आने जाने वालों पर नज़र रख रहे थे। उनमें से कुछ सुरक्षा कर्मचारी होने का दावा कर रहे थे और पहचान पत्र की जांच कर रहे थे, व्योरे मांग रहे थे। वे किसी को भी फोटो खींचने और वीडियो क्लिप बनाने की अनुमति नहीं दे रहे थे।

दंगे को कवर करते हुए मौजपुर और खुरेजी में कई पत्रकारों की पिटाई की गयी। द इंडियन एक्सप्रेस के एक पत्रकार,शिवनारायण राजपुरोहित ने फ़ेसबुक पर अपनी मुश्किल घड़ी का वर्णन करते हुए बताया, “रिपोर्टिंग करते समय, मुझे दोपहर 1 बजे के आसपास पश्चिम करावल नगर में पीटा गया। मुझसे मेरा फ़ोन और एक नोटबुक छीन लिये गये। उन्होंने मुझे थप्पड़ मारने से पहले मेरा चश्मा तोड़ दिया।

मेरा अपराध सिर्फ़ इतना ही था कि मैं एक हिंदू इलाक़े से रिपोर्टिंग कर रहा था। 300 मीटर की दूरी के भीतर मुझे तीन तरफ़ से भीड़ ने घेर लिया,जिसमें प्रत्येक भीड़ में पचास-पचास लोग थे। सबका एक ही सवाल था: आप रिपोर्टिंग के लिए मुस्लिम इलाक़ों में क्यों नहीं जाते ? क्या आप हिंदू हैं ? क्या आप जेएनयू से हैं ? क्या आपने कोई फ़ोटो खींची है या कोई वीडियो बनाया है ? वे चाहते थे कि मैं जय श्री राम का नारा लगाऊं। जहां तक मुझे याद है,पहली बार मैं ख़ुद को बेबस महसूस कर रहा था। किसी तरह भीड़ से पीछा छुड़ाकर मैं अपनी बाइक पर भागने में कामयाब रहा। यहां कोई पुलिस मौजूद नहीं थी।” 

दिल्ली के पूर्वोत्तर ज़िले के इलाकों में रविवार को हुए दंगों अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है। लगभग 300 घायल और गाड़ियों, घरों, दुकानों और एक पेट्रोल पंप जैसी संपत्ति को भारी पत्थरबाजी और उस हिंसा के बीच आग लगा दी गयी,जो हिंसा भारत की राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर फैली हुई थी।

संसद से विवादास्पद नागरिकता क़ानून पारित होने के बाद पिछले ढाई महीने से दिल्ली में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं, जिनमें से कई हिंसक हो गये हैं। घटनाओं के मोड़ से संकेत मिलता है कि क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों ने दिल्ली में कोई एहतियाती उपाय नहीं किये थे। गुप्त सूचना इकट्ठा करने की व्यवस्था चरमरा गयी है।

यह घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है: क्या इंटेलिजेंस ब्यूरो और स्थानीय ख़ुफ़िया इकाइयों ने दिल्ली में इस तरह की व्यापक हिंसा की आशंका को लेकर दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय को सचेत किया था? अगर उन्होंने ख़ुफ़िया जानकारी दी थी, तो गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की?

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

CAA Violence: Neta Danga Bharka Kar Chale Gaye, Says Family of Shahid Who Was Killed in Clashes

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