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सीईएल बिक्री: केंद्र द्वारा सौदा रद्द करने के बाद भी कर्मचारी विनिवेश के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखेंगे

कर्मचारी यूनियन द्वारा अनियमितताओं की बात उजागर करने के बाद सीईएल का निजीकरण रोक दिया गया था। सीईएल कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष टीके थॉमस ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यूनियन "काफी सतर्क" है क्योंकि जो फ़ैसला हुआ है वह सीईएल के विनिवेश के निर्णय को वापस लेने का नहीं है।
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फ़ोटो साभार : फेसबुक

नई दिल्ली: सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) के कर्मचारी यूनियन ने साहिबाबाद स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के विनिवेश के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कही है। हालांकि हाल में आई मीडिया रिपोर्टों की बात करें तो केंद्र सरकार ने फिलहाल इसके बेचने के फ़ैसले को रद्द कर दिया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक सरकारी अधिकारी के हवाले से बताया कि केंद्र ने नंदल फाइनेंस एंड लीजिंग प्राइवेट लिमिटेड को सीईएल की बिक्री के फ़ैसले को रद्द कर दिया है क्योंकि बोली लगाने वाली ये कंपनी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में चल रहे मुक़दमे का ख़ुलासा करने में विफल रही है।

इस रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी ने कहा कि एनसीएलटी में बोली लगाने वाली इस कंपनी के ख़िलाफ़ दिवालियापन का एक मामला लंबित है जिसका खुलासा नंदल फाइनेंस ने सीईएल के लिए बोली लगाने के समय नहीं किया था और यह विनिवेश दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।

सीईएल कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष टीके थॉमस ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया कि यूनियन "काफी सतर्क" है क्योंकि जो फ़ैसला हुआ है वह सीईएल के विनिवेश के निर्णय को वापस लेने का नहीं है। उन्होंने आगे कहा, “यूनियन सीईएल के विनिवेश के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखेगा। यह मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी है जिसे जनता के हाथ में रहना चाहिए।"

केंद्र ने पिछले साल नवंबर महीने में उस समय 210 करोड़ रुपये के रणनीतिक विनिवेश को मंज़ूरी दी थी जब नंदल फाइनेंस ने सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई में 100% इक्विटी हिस्सेदारी की बिक्री के लिए बोली जीत ली थी।

हालांकि, जनवरी में जब कर्मचारी यूनियन ने इस बिक्री प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था तो सरकार ने सीईएल के निजीकरण को वापस लेने का फ़ैसला किया था। दाख़िल किए गए दो अलग-अलग याचिकाओं में यूनियन ने आरोप लगाया था कि एक्सप्रेशन ऑफ इंटेरेस्ट क्राइटेरिया कमज़ोर कर दिया गया और नंदल फाइनेंस का साख ख़राब है।

थॉमस ने कहा कि बिक्री को रद्द करने का निर्णय इस बात को उजागर करता है कि यूनियन के आरोप सच हैं। उन्होंने आगे कहा, "इसके अलावा, अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए डीआईपीएएम (निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग) ने अब पूरे सौदे को रद्द करने का फ़ैसला किया होगा।" थॉमस ने कहा, "हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सीईएल के निजीकरण का निर्णय वापस ले ले लिया गया है। हम यह जानने के लिए काफी सतर्क हैं।"

साल 2016 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा विनिवेश के लिए सैद्धांतिक मंज़ूरी दी गई थी। पहले की प्रकिया में सीईएल की रणनीतिक बिक्री के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था और योग्य संस्थागत ख़रीदारों के साथ प्रस्ताव के लिए अनुरोध के दस्तावेज़ को मई 2019 में साझा किया गया था। हालांकि, किसी तरह की बोली नहीं हुई थी और इस प्रक्रिया को बाद में फरवरी 2020 में फिर से शुरू किया गया।

थॉमस ने आगाह किया कि इस प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "कर्मचारी यूनियन [दिल्ली उच्च] अदालत से अनुरोध करेगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर हमें एक बार फिर सीईएल के विनिवेश के ख़िलाफ़ याचिका दायर करने की अनुमति दी जाए।"

सुनवाई की अगली तारीख़ 6 अक्टूबर को निर्धारित की गई है जिसमें यूनियन को केंद्र से जवाब मिलने की उम्मीद है। यूनियन ने अदालत को बिक्री सौदे को रद्द करने के बारे में कहा है। यूनियन उस समय अपना अनुरोध देने की योजना बना रहा है।

डिपार्टमेंट ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के अधीन कार्यरत सीईएल की स्थापना 1974 में राष्ट्रीय प्रयोगशाला और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों द्वारा विकसित स्वदेशी प्रौद्योगिकी का व्यावसायिक रूप से निर्यात करने के लिए की गई थी। कंपनी ने अपने अनुसंधान एवं विकास प्रयासों के माध्यम से देश में पहली बार कई उत्पाद विकसित किए हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

CEL Union to Continue Fighting Disinvestment After Centre Scraps Sale Deal

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