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सीजेआई ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर न्यायमूर्ति ललित के नाम की सिफ़ारिश की, उनके फ़ैसलों और मुकदमों में पैरवी पर एक नज़र

प्रधान न्यायाधीश ने व्यक्तिगत रूप से अनुशंसा पत्र की प्रति न्यायमूर्ति ललित को सौंपी।
CJI

नयी दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमण ने बृहस्पतिवार को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित के नाम की सिफारिश की।
     
प्रधान न्यायाधीश ने व्यक्तिगत रूप से अनुशंसा पत्र की प्रति न्यायमूर्ति ललित को सौंपी।
     
न्यायमूर्ति रमण ने 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना पदभार संभाला था। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े की जगह ली थी। सीजेआई 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

न्यायमूर्ति ललित के अगला सीजेआई नियुक्त होने पर उनका कार्यकाल तीन महीने से भी कम का होगा, क्योंकि वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति ललित आठ नवंबर, 2022 को सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति ललित ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए

भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बनने की कतार में शामिल उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू. यू. ललित मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को अवैध ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं।
    
अगर वह अगले प्रधान न्यायाधीश नियुक्त होते हैं तो वह ऐसे दूसरे प्रधान न्यायाधीश होंगे, जिन्हें बार से सीधे शीर्ष अदालत की पीठ में पदोन्नत किया गया।
     
उनसे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में शीर्ष अदालत की पीठ में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे। वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे।
     
न्यायमूर्ति ललित मौजूदा प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण के सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद 27 अगस्त को भारत के 49वें सीजेआई बनने के लिए कतार में हैं। 
     
न्यायमूर्ति ललित को 13 अगस्त 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। तब वह जाने-माने वकील थे । 
     
न्यायमूर्ति ललित तब से शीर्ष अदालत के कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में 3-2 के बहुमत से ‘तीन तलाक’ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे। 
     
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।
     
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में न्यायमूर्ति ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार के पास केरल में ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार है।
    
नौ नवंबर, 1957 को जन्मे न्यायमूर्ति ललित ने जून 1983 में एक वकील के रूप में पंजीकरण कराया था और दिसंबर 1985 तक बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत की थी।
    
वह जनवरी 1986 में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में उन्हें शीर्ष अदालत द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
     
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए उन्हें केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था।

आपको बता दें कि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए बनाई गई पांच सदस्यों की संविधान पीठ से जस्टिस यूयू ललित ने खुद को अलग कर लिया था। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने पांच जजों की बेंच में जस्टिस यूयू ललित के सदस्य होने पर आपत्ति जताई थी। धवन ने कहा था कि 1994 में बाबरी केस से जुड़े अवमानना के मामले में ललित पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील रहे थे। 

क्रिमिनल लॉयर के तौर पर यूयू ललित का नाम एक समय पर पूरे देश में मशहूर था और उन्होंने देश के कई बड़े केसेज में पैरवी की।

जिन नामी शख्सियत के लिए ललित ने पैरवी की, उनमें सबसे ऊपर नाम बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का आता है, जिनपर सोहराबुद्दीन मामले में फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे थे।

ललित ने ब्लैकबक और चिंकारा मामले में मशहूर अभिनेता सलमान खान का भी बचाव किया था।

दूसरे मामलों में छत्तीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता बिनायक सेन को देशद्रोह के मुकदमे में ललित ने सेन की जमानत का विरोध किया था।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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