कोविड-19 : पढ़िए उन कोशिकाओं के बारे में जहाँ से वायरस शरीर में प्रवेश करता है
कोरोना महामारी आने के बाद बहुत सी ऐसी शब्दावलियां जिनका उपयोग वैज्ञानिकों तक सीमित था, अब उनसे आम लोग भी सहज हो गए हैं। ऐसा ही एक शब्द कोरोना वायरस का 'स्पाइक प्रोटीन (S प्रोटीन)' है।
यह S प्रोटीन, वायरस की सतह पर नुकीली कीलों जैसा होता है। मानव शरीर में वायरस की पहुंच बनाने के लिए यह सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। अपनी रणनीति के तहत वायरस पहले मानव कोशिका की सतह पर किसी 'रिसेप्टर' से चिपकता है। वायरस ऐसा S प्रोटीन की मदद से करता है। मानव कोशिका में यह रिसेप्टर 'ACE-2' होता है।
इससे एक स्वाभाविक सवाल खड़ा होता है। क्या कोई ऐसी मानवीय कोशिका है, जिसमें बड़ी संख्या में ACE-2 रिसेप्टर हैं, जो वायरस की शरीर में पहुंच को बहुत आसान बना देते हैं? कोई भी पहली प्रतिक्रिया में श्वांस नली का नाम लेगा। क्योंकि कोरोना वायरस प्राथमिक तौर पर शरीर के इसी हिस्से में ही घर करता है। निश्चित कोई कह सकता है कि वायरस नथुनों के सहारे दूसरे अंगों तक पहुंचता होगा। इसलिए एक सवाल खड़ा होता है कि क्या नथुनों में बड़ी संख्या में ACE-2 रिसेप्टर का निर्माण होता है?
23 अप्रैल को 'नेचर मेडिसिन' में प्रकाशित एक पेपर में इन सवालों के जवाब दिए गए और कुछ ख़ास तरह की श्वांस कोशिकाओं के बारे में बताया गया, जिनमें कोरोना वायरस के संवाहक के तौर पर काम करने वाला ACE 2 बड़ी मात्रा में मौजूद होता है। इन श्वास कोशिकाओं के नाम- 'गोब्लेट सेल' और 'सिलिएटेड सेल' हैं। ध्यान देने वाली बात है कि कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की श्वांस नलिका के 'स्वैब' में गले की तुलना में ज़्यादा वायरल पदार्थ पाया जाता है। ऐसा श्वास नलिका में बड़ी संख्या में प्रोटीन (रिसेप्टर) के होने की वजह से है।
इस अध्ययन में अलग-अलग अंगों की भिन्न कोशिकाओं के 'RNA की अभिव्यक्ति के आंकड़ों (RNA एक्सप्रेशन डाटा)' का विश्लेषण किया गया। इसके तहत फेफड़ों, श्वास नली, आंखों, किडनी, लीवर और आंतों की कोशिकाओं को शामिल किया गया। शोधार्थियों ने उस खास कोशिका प्रकार को खोजने की कोशिश की, जिसमें वायरल के प्रवेश के लिए बड़ी मात्रा में प्रोटीन की उपलब्धता होती है। इस अध्ययन के मुख्य लेखक वाराडॉन सुंगनाक के मुताबिक़, ''हमने पाया कि नाक की भीतरी सतह के साथ-साथ कई दूसरे अंगों की कोशिकाओं में भी कोरोना वायरस का रिसेप्टर प्रोटीन- ACE 2 और TMPRSS2 पाया गया। नाक में बलगम बनाने वाली गोब्लेट सेल और सिलिएटेड सेल में इन प्रोटीन का स्तर सबसे ज़्यादा होता है। इसके चलते यह कोशिकायें वायरस के प्रवेश का शुरूआती रास्ता बनाती हैं।''
हमारे शरीर में मौजूद ACE 2 के अलावा TMPRSS 2 नाम का एक दूसरा प्रोटीन भी मानव कोशिका में वायरस की शुरूआती पहुंच के लिए जवाबदेह़ है। यह प्रोटीन एक प्रोटीज़ है। प्रोटीज़, प्रोटीन में उपलब्ध पेपटाइड बॉन्ड्स के जलीय अपघटन को अंजाम देने की काबिलियत रखते हैं।
कोरोना वायरस की सतह पर मौजूद S प्रोटीन में ''S1 और S2'' नाम के दो हिस्से या ''डोमेन'' होते हैं। इन दोनों का विशेष काम है, जो संबंधित कोशिका में वायरस की पहुंच के लिए जरूरी हैं। S1 रिसेप्टर से चिपकने का काम करता है, जबकि S2 कोशिका के साथ वायरस के मजबूती से संलयन (फ्यूज़न) में किरदार निभाता है। मतलब S1 डोमेन के ज़रिए वायरस माकूल रिसेप्टर की खोज करता है, वहीं S2 डोमेन से यह कोशिका भित्ति के साथ मजबूती से मिश्रित होता है। कोरोना वायरस को प्रभावी बनने के लिए S1 और S2 डोमेन को शरीर में पहुंचने के बाद अलग करना होता है। यहीं मानव कोशिका में मौजूद TMPRSS2 दोनों डोमेन को तोड़ने में काम आता है। इसलिए TMPRSS2 प्रोटीन कोरोना वायरस की ग्राह्य कोशिका में पहुंच के लिए जरूरी प्रोटीन है।
अध्ययन में शोधार्थियों ने उन कोशिकाओं का अध्ययन भी किया, जिनमें बड़ी मात्रा में TMPRSS2 की मौजूदगी थी। ACE2 रिसेप्टर और TMPRSS2 प्रोटीन का संयोजन वायरस की मानवीय कोशिका में पहुंच को आसान बनाते हैं। अध्ययन में पता चला कि श्वास नली में मौजूद ACE2 और TMPRSS2 प्रोटीन इन दोनों प्रोटीन का उत्पादन करता है। बल्कि नाक की कोशिकाओं में इन प्रोटीन का स्तर पूरे शरीर में सबसे ज़्यादा होता है।
यह दोनों प्रोटीन आंख के कॉर्निया और आंतों की कोशिकाओं में भी पाए गए। इसी से पता चलता है कि कैसे कुछ लोगों में संक्रमण प्रवेश का 'नेत्र प्रकार (फीनोटाइप)' मिला है। हालांकि इनकी संख्या बहुत कम है। इन लोगों में 'अश्रु और श्वास नलिका (नेसोलैक्रिमल डक्ट)' के ज़रिए वायरस के फैलाव की गुंजाइश है।
अध्ययन में 'ह्यूमन सेल एटलस (HCA)' के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। 2016 में स्थापित किया गया HCA एक वैश्विक संघ है, जहां मानव कोशिका के कई प्रकारों का पूरा एटलस बनाया जा रहा है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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