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कोविड-19: बिहार में जिन छात्रों के पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट नहीं, वे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित

राज्य के हजारों छात्र, खास कर दूर-दराज के गांवों में रहने वाले बच्चे इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र, जिनमें से अधिकतर गरीब परिवार के बच्चे हैं, उनके लिए इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के बिना इन ऑनलाइन कक्षाओं की उपयोगिता नहीं है। 
कोविड-19: बिहार में जिन छात्रों के पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट नहीं, वे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित

पटना: बिहार के ग्रामीण इलाकों के सरकारी हाई स्कूल में पढ़ने वाले छात्र, अर्जुन कुमार और उसकी बहन, कविता कुमारी स्मार्ट फोन और इंटरनेट सेवाओं के अभाव में कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़े मसलों का सामना कर रहे हैं। ये दोनों भाई-बहन आज तक एक भी ऑनलाइन कक्षा में शामिल नहीं हो सके हैं।

अर्जुन अरवल जिले के भूमिहीन खेतिहर मजदूर के बेटे हैं और नौंवी कक्षा के छात्र हैं। वे पिछले मार्च से ही स्कूल नहीं गए हैं,  जब कोविड-19 की पहली लहर में स्कूल बंद कर दिए गए थे। उन्होंने कहा, "मेरा स्कूल तो पिछले साल से ही बंद है और कोविड-19 की दूसरी लहर ने तो हमारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया है क्योंकि स्कूलों के फिर से खुलने की तो अब कोई संभावना ही नहीं है। हमारी पढ़ाई-लिखाई बुरी तरह बाधित हुई है। सरकार ने स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की है,  लेकिन वह हमारे लिए नहीं है। मैं बिना स्मार्ट फोन और हाई स्पीड वाले इंटरनेट के बिना ऑनलाइन कक्षाओं में कैसे शामिल हो सकता हूं। ऑनलाइन कक्षाएं निश्चित रूप से गरीब परिवारों से आने वाले छात्रों के लिए नहीं है।”

कविता,  निचली कक्षा में पढ़ती है वह भी अपने भाई की तरह अपनी बेबसी जताती है। उन्होंने कहा,  "मेरे परिवार के पास स्मार्ट फोन नहीं है। मेरे पिता के पास जो मोबाइल है, उसमें इंटरनेट कनेक्शन तो है, लेकिन हमारे गांव में उसकी रफ्तार काफी धीमी है। हम ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो सकें, यह हमारे लिए संभव इसलिए नहीं है क्योंकि मेरे पिता अभी इस हैसियत में ही नहीं हैं कि वह हमारे लिए एक महंगा फोन खरीद सकें। कोविड-19 महामारी के दौरान उनकी आमदनी में भारी गिरावट आई है और वे गुजारा करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।" 

ऐसा नहीं कि अर्जुन और कविता की कहानियां बाकियों से अलग हैं; पूरे राज्य और ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाकों में हजारों बच्चे इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। चूंकि सरकारी स्कूलों में अधिकतर छात्र ग़रीब परिवारों के होते हैं,  इसलिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना ये ऑनलाइन कक्षाएं किसी काम की नहीं हैं।

10वीं कक्षा की छात्रा, सुमन कुमारी इन ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने को लेकर इसलिए उत्सुक हैं क्योंकि उसका फ़ाइनल इम्तिहान अगले साल की शुरुआत में होगा। उनके पिता पहले एक दुकान में सेल्समैन का काम किया करते थे, लेकिन उनकी नौकरी चली गयी। वह इस समय निर्माण क्षेत्र में बतौर एक दिहाड़ी मज़दूर काम कर रहे हैं और उन्होंने अपनी बच्ची की ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए एक स्मार्टफोन खरीद पाने में असमर्थता जतायी है। पटना जिले के नौबतपुर प्रखंड के एक गांव की रहने वाली सुमन पूछती हैं, "मुझे तैयारी करने में मददगार ई-लाइब्रेरी और दूसरे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के बारे में पता तो है, लेकिन स्मार्टफ़ोन के बिना यह संभव नहीं है। अपनी ग़रीबी को कोसने के अलावा मैं कर भी क्या कर सकती हूं ? "

राज्य के शिक्षा विभाग ने एक ई-लाइब्रेरी की शुरुआत की है, जिसमें कक्षा एक से लेकर कक्षा 12 के तक के छात्रों के लिए किताबें हैं, लेकिन सवाल तो यही है कि गरीब पृष्ठभूमि के लगभग दो करोड़ छात्रों में से तकरीबन ऐसे 80% छात्र, जिनके परिवारों के पास न तो उच्च तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं और न ही इंटरनेट कनेक्शन है,  इस लाइब्रेरी की सेवाओं का फायदा कैसे उठा सकते हैं।

औरंगाबाद जिले के हसपुरा ब्लॉक के दर्जनों गांवों में छात्रों के बीच काम करने वाले शिक्षा कार्यकर्ता, गालिब खान ने बताया, "इन छात्रों के गरीब माता-पिता टैबलेट, लैपटॉप या डेस्कटॉप कंप्यूटर नहीं दे सकते हैं। यहां तक कि इनके लिए स्मार्ट मोबाइल फोन भी एक बड़ी बात है। ऊपर से इस काम को जो चीज और मुश्किल बना देती है, वह है-ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की धीमी रफ्तार और नियमित रूप से आती-जाती कनेक्टिविटी। डेटा डाउनलोड करना आसान नहीं है। ”

इन छात्रों की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह छात्रों को एंड्रॉइड मोबाइल फोन सहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मुहैया कराए ताकि वे ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो सकें या अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकें। इस यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष , मनोज कुमार का कहना है, "चूंकि 15-16 महीनों से छात्र स्कूलों की कक्षाओं में नहीं गये हैं,  कुछ दिनों को छोड़ दें, तो उनकी शिक्षा पर बुरा असर पड़ा है। छात्रों के पास बिना किसी शारीरिक गतिविधि के घर पर रहने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा के अभाव में हजारों छात्र ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित हैं। हमने मांग की है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मुहैया कराए।"

एक अन्य संगठन के नेता, नागेंद्र नाथ शर्मा ने कहा कि स्कूलों में नामांकित सभी छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मुहैया कराए जाने चाहिए। उनका कहना था, “स्कूलें लगातार बंद हैं,  वे फिर से कब खुलेंगे , इसे लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इस समय शिक्षकों के लिए यह सुनिश्चित कर पाना एक बड़ी चुनौती है कि अगर छात्रों के पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और हाई स्पीड इंटरनेट नहीं है, तो वे ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल कैसे हों।"

संविदा स्कूल (contractual school) शिक्षकों के एक संगठन के प्रवक्ता, प्रेमचंद का कहना था कि दर्जनों शिक्षक व्हाट्सएप और फेसबुक के मैसेंजर पर गूगल मीट,  जूम कॉल के जरिये छात्रों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करते हुए उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया, मगर, ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में गरीब परिवारों के छात्र बड़ी संख्या में बुनियादी संसाधनों की कमी की वजह से ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनमें से अधिकांश छात्रों के माता-पिता अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनकी आजीविका पर चोट पहुंची है।"

बिहार में 8, 500 सरकारी हाई स्कूल हैं, जिनमें से 42 लाख छात्र नामांकित हैं। 72, 000 सरकार संचालित प्राथमिक विद्यालय भी हैं, जिनमें 1.65 करोड़ छात्र नामांकित हैं।

राज्य शिक्षा विभाग के एक अधिकारी, संजय कुमार ने बताया कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध कराने की जरूरत है। उनका कहना है,  “राज्य सरकार, केंद्र से छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध कराने की मांग करेगी।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19: Online Classes Continue to Elude Those Without Smartphones and Internet in Bihar

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