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कोविड-19 : क्या यूपी गहराते संकट के लिए तैयार है?

लगभग 20 करोड़ आबादी वाले राज्य में 750 वेंटिलेटर बेड हैं, जबकि आइसोलेशन बेड की संख्या मात्र 11,639 है।
Yogi

लखनऊ: दुनिया भर में क़हर बरपाने वाले कोरोनो वायरस के प्रकोप को भारत की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में रोकने की ज़िम्मेदारी राज्य द्वारा संचालित अस्पतालों की है।

हालांकि सरकार का दावा है कि राज्य में स्थिति अभी नियंत्रण में है, इस नियंत्रण के माहौल में  सुभाषिनी अली, जो माकपा नेता हैं और पूर्व सांसद भी हैं, को ट्विटर पर अधिकारियों से अनुरोध करना पड़ा कि उनके क़रीबी पारिवारिक मित्र की कोविड-19 की जांच की जाए क्योंकि उनमें कुछ कोविड़ संबंधित लक्षण पाए गए हैं।

सुभाषिनी अली ने कहा, “मैं जानती थी कि परिवार नई दिल्ली में एक शादी समारोह में शामिल हुआ था जहाँ अमेरिका से आए मेहमान भी मौजूद थे। उनमें कुछ लक्षण दिखे जो कोरोनोवायरस के सामान्य लक्षण बताए जाते हैं और उन्होंने उनकी जांच करवाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। इसके बाद जब मैंने अपने सोशल मीडिया पर इसके बारे में लिखा तो फिर उसकी जांच की गई और सौभाग्य से जांच में परिणाम नेगटिव आया। अली आगे कहती हैं कि, "यहां मुद्दा यह है कि सरकार उन लोगों की जांच नहीं कर रही है जिनकी इन्हे जांच करनी चाहिए थी।"

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी 2019 की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा पर कई सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार न तो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों का पालन करती है और न ही वह अपने खुद के मापदंडों/मानकों को निर्धारित करती है।

डॉक्टरों की कमी

राज्य में डॉक्टरों की कमी राज्य को दुखी करने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक है। राज्य सभा में दिए गए एक उत्तर के अनुसार, 2019 में राज्य में पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या 81,348 थी, जबकि राज्य की जनसंख्या 19,98,12,341 है। 2016-17 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर 19,287 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए थे।

रायबरेली ज़िले के एक वरिष्ठ निजी चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी डॉ॰ एसके शुक्ला ने  टेलीफ़ोन पर बातचीत के दौरान इस संवाददाता को बताया कि सरकार द्वारा किए गए प्रयास अच्छे हैं, लेकिन इसके लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि स्वास्थ्य प्रणाली में उनके विचार में बहुत सारी कमियां हैं।

उन्होंने कहा, "सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पूरे राज्य में केवल 750 वेंटिलेटर बेड हैं, जिसका स्पष्ट मतलब है कि प्रत्येक जिले में केवल 10 बेड है। मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर स्थिति बिगड़ जाती है तो सरकार कोविड़-19 मरीजों का इलाज कैसे करेगी। आगरा, मेरठ और नोएडा जैसे जिलों में लगातार केसों में वृद्धि देखी जा रही है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो ज्यादा प्रयोगशालाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। सरकार कहती है कि इससे निपटने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है, लेकिन डॉक्टरों की भारी कमी है और हमें नहीं पता कि अगर स्थिति हाथ से निकल गई तो सरकार कैसे संभालेगी।"

शुक्ला ने कहा, “राज्य में ऐसे कई निजी डॉक्टर हैं जो संभवत: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ पंजीकृत नहीं हैं और उन्हें ‘क्वैक्स’ या झोलाछाप कहा जाता है। ग्रामीण भारत में आम लोगों का पहला संपर्क बिन्दु क्वैक डॉक्टर ही है और मुझे लगता है कि उन्हें एक संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उनसे रोग से ग्रस्त लोगों की पहचान करने में भी उनकी मदद ली जा सकती है। मुझे पता है कि वे इलाज़ नहीं कर सकते हैं, लेकिन वे लोगों को पहचानने, जागरूकता बढ़ाने और क्वारंटाईन के तहत लोगों को लाने में मदद कर सकते हैं।"

नीति आयोग ने जून 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें राज्यों को उनकी स्वास्थ्य सुविधाओं के आधार पर स्थान दिया गया था। राज्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था और इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को सबसे बड़े राज्य की श्रेणी में रखा गया था। स्वास्थ्य में राज्य का प्रदर्शन 28.61 सूचकांक था और रैंक 21 था जो कतार में सबसे अंतिम था जबकि 74.01 अंक लेकर केरल अपने प्रदर्शन के सूचकांक से पहले स्थान पर था।

2018-19 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, "उत्तर प्रदेश में कम से कम 70 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के पास केवल एक डॉक्टर है जबकि लगभग 5 प्रतिशत में कोई डॉक्टर ही नहीं है।"

अमित मोहन, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, "राज्य में एक 24×7 हेल्पलाइन केंद्र है; उसका संपर्क नंबर 18001805145 है, यहाँ आप एक टीम से संपर्क कर सकते हैं जो आपसे लक्षणों के बारे में बात करेगी यदि आप उनके बताए किसी लक्षण का अनुभव कर रहे हैं, तो वे आपको इस बारे में सलाह देंगे कि आपको अस्पताल जाने की जरूरत है या नहीं।"

आईसीयू में सुविधाओं की कमी

प्रमुख स्वास्थ्य सचिव के कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य के प्रत्येक ज़िले में 10 वेंटिलेटर बेड लगाए गए हैं। 100 बेड वाला एक आइसोलेशन वार्ड भी तैयार किया गया है। लखनऊ में, एपेक्स मेडिकल कॉलेज, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) की एक शाखा को कोविड़-19 अस्पताल में बदल दिया गया है और यह गंभीर रोगियों के इलाज के लिए आवश्यक सभी सुविधाओं से सुसज्जित है।

सरकार में मौजूद एक सूत्र ने बताया कि वेंटिलेटर और अन्य मेडिकल मशीनरी को निजी अस्पतालों से आउटसोर्स किया जा सकता है और अगर मामलों की संख्या में वृद्धि होती है तो सरकार उन्हें अस्थायी रूप से अधिग्रहित कर सकती है।

आईसीयू को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन गाइडबुक के अनुसार आवश्यक उपकरणों, अर्थात, हाई-एंड मॉनिटर, वेंटीलेटर, डिफाइब्रिलेटर, इनवेसिव प्रक्रियाओं के लिए अल्ट्रासाउंड आदि से लैस करना जरूरी है। ऑडिट में पाया गया कि लखनऊ जिले के सभी असपालों में आवश्यकता 14 की है जबकि केवल छह हाई-एंड मॉनिटर उपलब्ध कराए गए हैं, यहाँ भी 14 की आवश्यकता के मुक़ाबले सात इन्फ्यूजन पंप उपलब्ध हैं, जबकि वेंटिलेटर, इनवेसिव प्रक्रियाओं के लिए अल्ट्रासाउंड और आर्टेरियल ब्लड गैस (एबीजी) विश्लेषण मशीन कहीं भी उपलब्ध नहीं पाए गए थे। इसी तरह सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, ज़िला अस्पताल गोरखपुर में वेंटिलेटर, इन्फ्यूजन पंप, इनवेसिव प्रक्रियाओं और एबीजी विश्लेषण मशीन के साथ अल्ट्रासाउंड मशीन भी नहीं है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में संक्रमण के नियंत्रण पर सीएजी रिपोर्ट के एक अंश में लिखा है, "बड़ी संख्या में अस्पतालों और सभी सीएचसी के कामकाज में संक्रमण को नियंत्रण करने की व्यवस्था को पर्याप्त रूप से प्रणाली में आत्मसात नहीं किया गया क्योंकि उनकी  मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी), स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण की सूची,  अस्पतालों और सीएचसी में चिकित्सा औजारों, मशीनों और उपकरणों का स्ट्रलाइजेशन नहीं था, सीएचसी ज्यादातर औजारों को उबालने और आटोक्लेविंग करने तक सीमित हैं, जबकि बड़ी संख्या में अस्पतालों और सीएचसी में रासायनिक स्ट्रलाइजेशन और उच्च स्तर कीटाणुशोधन सुविधा का अभाव है।"

20 करोड़ की आबादी के लिए केवल 8 जांच प्रयोगशालाएं

अब तक, उत्तर प्रदेश में कोविड-19 मामलों की जांच के लिए केवल आठ प्रयोगशालाएं हैं, जिनमें से पांच मध्य उत्तर प्रदेश में स्थित हैं, जहां पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तुलना में काफ़ी कम आबादी है। वर्तमान में कोविड-19 नमूनों की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया संस्थान, मेहरोत्रा लैब्स (निजी), गोरखपुर में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज लैब और अलीगढ़ में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज है।

पीपीई और एन 95 मास्क की अनुपलब्धता

इस रिपोर्टर से टेलीफोन पर बातचीत करते हुए आगरा मेडिकल कॉलेज में काम कर रहे एक वरिष्ठ निवासी ने पुष्टि की कि अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें एन 95 मास्क और पीपीई उपलब्ध नहीं कराया है।

उन्होंने कहा, “हमें एक दिन में एक पीपीई की ज़रूरत होती है क्योंकि इसका दूसरी बार इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, लेकिन अस्पताल कह रहा है कि उनके पास अतिरिक्त पीपीई उपलब्ध नहीं हैं। जबकि हमारे पास जानकारी है कि अस्पताल के पास स्टॉक उपलब्ध है, लेकिन हमें दिया नहीं जा रहा है। हम अब पीपीई, मास्क और अन्य सुरक्षा की चीजों को अपने खुद के पैसे से खरीदने के बारे में सोच रहे हैं क्योंकि बाजार में एक निजी निर्माता इसे ‘नो प्रॉफिट नो लॉस’ के आधार पर हमें बेचने को तैयार है।"

पुलिस द्वारा निगरानी

अमित मोहन के अनुसार, सरकार एक लक्ष्य के आधार पर काम कर रही है, जिसका अर्थ है कि पहले लोगों के लक्षण, उनकी यात्रा के इतिहास या उनके संपर्क का इतिहास का पता लगाया जा रहा है और फिर उन्हें क्वारंटाईन किया जा रहा है।

लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) नरेंद्र अग्रवाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई ऐसे लोगों को ढूंढने में लगी है, जिनका विदेश यात्रा या उसके बाद लोगों से संपर्क का इतिहास है या वे कोई लक्षण दिखा रहे हैं। उन्होंने समझाया, "यदि आप पूरे राज्य के केसों को देखते हैं, तो आप पाएंगे कि केवल विदेश यात्रा से लौटे और उनके संपर्क में आने वाले लोग केवल नोवेल कोरोना वायरस के शिकार हुए हैं। हमारे पास कोई बिना लक्षण वाला केस नहीं है। इसलिए, हमें किसी भी तरह की निगरानी व्यवस्था की ज़रूरत नहीं है। हाँ अगर केसों में बढ़ोतरी होती है तो हमें इन लोगों को ट्रैक करने के लिए एक व्यवस्था की जरूरत होगी।"

अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी का कहना है कि कोई निगरानी व्यवस्था नहीं है और इस मामले में काम करने वाली एकमात्र व्यवस्था व्यापक जांच करना है। वह कहते हैं, "पुलिस बहुत अच्छा काम कर रही है और हम ऐसे सभी लोगों का पता लगाने में सक्षम हैं, जिनमें रोग के लक्षण हैं। मुख्यमंत्री ने सभी धर्मगुरुओं के साथ एक वीडियो कॉन्फ़्रेंस भी की है [और कहा] कि उन्हें इसमें सहयोग करना चाहिए। हम इस बीमारी से लड़ रहे हैं और हमें वास्तव में उन सभी से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।” उन्होंने आगे कहा कि इस बात से कोई इनकार नहीं है कि राज्य में आधे मामले तब्लीगी जमात के कारण हुए हैं। अवस्थी ने कहा, "लेकिन पुलिस के शानदार प्रयासों से, हमने उन सभी का पता लगा लिया और सरकार की पूरी कोशिश जय कि इस बिंदु पर ही वायरस को रोक दिया जाए।"

अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने सोमवार को कहा, "एक हज़ार चार सौ निन्यानवे लोगों की पहचान की गई है जिन्होंने तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लिया था, इनमें से 1,205 को अलग कर लिया गया है। तीन सौ पांच विदेशियों की भी पहचान की गई है, जिनमें से 249 लोगों के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए हैं।"

इसके अलावा, विदेश यात्रा के इतिहास वाले लोग जो उत्तर प्रदेश में रह रहे है की कुल संख्या 57,395 है, जबकि उनमें से 17,879 लोग ओबजरवेशन में है, इस तरह लक्षण वाले लोगों की कुल संख्या 2,468 है और उनमें से भी अस्पताल में 268 भर्ती है।

आंकड़े

4 अप्रैल, 2020 तक, उत्तर प्रदेश में कोविड-19 पॉज़िटिव केसों की संख्या गौतमबुद्धनगर (नोएडा), आगरा और मेरठ से मिलाकर अधिकतर 234 है। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य भर में कुल क्वारंटाईन लोगों की संख्या 3,029 है, आईसोलेशन में 368 लोग हैं, डॉक्टरों और अधिकारियों की निगरानी में लगभग 57,963 लोग हैं, जबकि जो लोग 28 दिनों की निगरानी पूरी कर चुके हैं उनकी संख्या 41,506 है। जिन रोगियों को ठीक किया गया है, उनकी संख्या 21 है, कोरोना वायरस के कारण मरने वालों की संख्या दो है, राज्य में उपलब्ध वेंटिलेटर बेड की संख्या 750 और आइसोलेशन बेड की संख्या 11,639 है। इस बीच, उत्तर प्रदेश में स्तर-एक कोविड़-19 की 75 अस्पतालों में कुल 4,006 नमूनों की जांच की गई है।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19: Is UP Ready for the Crisis Around the Corner?

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