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ईपीएफओ ब्याज दर 4-दशक के सबसे निचले स्तर पर, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने आम हड़ताल से पहले खोला मोर्चा 

ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड ने शनिवार को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अपनी मौजूदा ब्याज दर को 8.5% से घटाकर 8.1% करने की सिफारिश की है। 
 EPFO
चित्र साभार: द इंडियन एक्सप्रेस 

नई दिल्ली: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उसकी ओर से आगामी राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को सफल बनाने का आहवान किया गया है क्योंकि केंद्र की ओर से देश के सबसे बड़े सेवानिवृत्त कोष के लिए नई ब्याज दर की सिफारिश की गई, जो कि लगभग चार दशकों में सबसे कम है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के केन्द्रीय न्यासी बोर्ड ने शनिवार को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अपनी ब्याज दर को मौजूदा 8.5% से घटाकर 8.1% करने की सिफारिश की है। मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1977-78 के बाद से यह सबसे कम दर है, उस दौरान यह 8% थी।

इस नवीनतम फैसले को ईपीएफओ के केन्द्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) की गुवाहाटी में हुई बैठक के दौरान लिया गया। यह एक संवैधानिक निकाय है जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, नियोक्ताओं और कर्मचारियों के सदस्यों को शामिल किया जाता है। 

केंद्रीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता में, सीबीटी के द्वरा ब्याज दर की संस्तुति की जाती है, जिसे बाद में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के द्वारा अनुमोदित किया जाता है। इसके बाद, अधिसूचित हो जाने के बाद ईपीएफओ के द्वारा इसे ग्राहकों के खातों में रिटर्न जमा कर दिया जाता है। वर्तमान में, ईपीएफओ के पांच करोड़ से अधिक की संख्या में ग्राहक (अभिदाता) हैं। 

शनिवार को सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) की ओर से बताया गया कि उक्त ईपीएफओ की सीबीटी बैठक में कर्मचारियों के सभी प्रतिनिधियों ने ब्याज दरों में कटौती के फैसले का “विरोध” किया था। इस कदम की निंदा करते हुए, सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा कि केंद्र के द्वारा जिस तर्क को आगे बढ़ाया जा रहा है वह यह है कि ईपीएफओ के रिटर्न को बैंक में किसी भी अन्य जमा पर मिलने वाली ब्याज दरों के बराबर किया जाना चाहिए।

सेन का तर्क था, “यह कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता, क्योंकि ईपीएफ कर्मचारियों की जीवन भर की आवर्ती बचत है जो सामाजिक सुरक्षा के हिस्से के तौर पर उनके भविष्य की सुरक्षा के लिए है।”

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, निश्चित रूप से, पिछले कुछ वर्षों से वित्त मंत्रालय द्वारा सेवानिवृत्त निधि निकाय के द्वारा लिए उच्च दर को बरकरार रखे जाने पर सवाल खड़े किये जाते रहे हैं, और इसकी ओर समग्र ब्याज दर परिदृश्य के अनुरूप इसे कम करने के लिए दबाव बनाया जाता रहा है। भारत में, छोटी बचत दरें 4% से 7.6% के बीच बनी हुई हैं।

हालाँकि, जब बात ईपीएफओ की आती है, जो आम तौर पर वरिष्ठ नागिरकों को भविष्य निधि के संचयन के जरिये उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के समान होता है, ऐसे में ब्याज दरों में कटौती की बात निश्चित रूप से ट्रेड यूनियनों को रास नहीं आने वाली है।

आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की महासचिव, अमरजीत कौर ने कहा है कि केंद्र औद्योगिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने की अपनी “जिम्मेदारी से पीछे हट” रहा है और “उन्हें वित्तीय बाजार की सनक के भरोसे छोड़ रहा है।”

शनिवार को अपने एक बयान में उन्होंने कहा है, “समय आ गया है कि सरकार को किसानों से लेकर संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों की देखभाल के लिए सामाजिक सुरक्षा कोष निधि में अपना योगदान करने की जरूरत है। वित्तीय बाजार के साथ खिलवाड़ करने से कहीं से भी करोड़ों मेहनतकश वर्ग के लोगों को मदद नहीं मिलने जा रही है, जो राष्ट्रीय संपत्ति में अपने हिस्से की मांग कर रहे हैं, जिसे वे अपने खुद के बल पर पैदा करते हैं।” 

दोनों केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने देश के श्रमिकों से इस नवीनतम फैसले के खिलाफ 28 और 29 मार्च को आगामी राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल में अपनी आवाज बुलंद करने का आह्वान किया है। देश में दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा संयुक्त रूप आहूत की गई, हड़ताल की कार्यवाही केंद्र पर अन्य मुद्दों के अलावा चार श्रम संहिताओं को वापस लेने के लिए दबाव बनाने का काम करेगी।

दरों में कटौती के फैसले ने कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को भी केंद्र की आलोचना करने के लिए प्रेरित किया है।

इस बीच, केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेन्द्र यादव ने शनिवार को यह तर्क रखते हुए इस फैसले को सही ठहराने की कोशिश की कि सामाजिक सुरक्षा को वैश्विक स्थिति और बाजार की अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए विचार किये जाने की जरूरत है। 

पिछले दिनों, कोविड-19 महामारी के चलते सेवानिवृत्त कोष में भारी निकासी और पहले से कम अंशदान को देखा गया था। इस अवधि के दौरान 2020-21 में, ईपीएफओ ने पीएफ जमा राशि पर ब्याज दरों को पिछले वर्ष के समान ही बरकरार रखा था। 

शनिवार को, यादव ने कहा कि वित्त वर्ष22 के लिए ईपीएफओ का कोष 9.4 लाख करोड़ रूपये के स्तर पर रहा, जो पिछले वित्त वर्ष के दौरान 8.29 लाख करोड़ रूपये था। 2021-22 में निवेशों से इसकी आय 2020-21 के 70,457 करोड़ रूपये से बढ़कर 76,768 करोड़ रूपये पहुँच गई थी। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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