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कार्टून क्लिक: डायरेक्ट कैश ट्रांसफर बनाम डायरेक्ट वोट ट्रांसफर!

जैसे रिश्वत का नाम सुविधा शुल्क हो गया है, वैसे ही कुछ मामलों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम का नाम बदलकर डायरेक्ट वोट ट्रांसफर स्कीम भी रख दिया जाए तो बुरा नहीं होगा।
कार्टून क्लिक: डायरेक्ट कैश ट्रांसफर बनाम डायरेक्ट वोट ट्रांसफर!

जैसे रिश्वत का नाम सुविधा शुल्क हो गया है, वैसे ही कुछ मामलों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम का नाम बदलकर डायरेक्ट वोट ट्रांसफर स्कीम भी रख दिया जाए तो बुरा नहीं होगा। जैसे 2019 में आम चुनाव से पहले किसानों के खाते में दो-दो हज़ार की दो-दो किस्ते फटाफट पहुंचना और चुनाव बाद उनकी सुध तक न लेना। आप देख ही रहे हैं कि किसान अब अपने हक़ के लिए दिल्ली के दरवाज़े पर 8 महीने से बैठे हैं लेकिन सरकार को फ़र्क़ नहीं पड़ता। इसी तरह अब यूपी में अब चुनावी साल में सरकारी प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूल के बच्चों को यूनिफार्म, जूते-मोजे, स्वेटर, स्कूल बैग बांटने की जगह सीधे अभिभावकों के खाते में रकम भेजने की तैयारी है।

एबीपी की ख़बर के अनुसार सूत्रों की मानें तो इस साल सरकार प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को जूते-मोजे, स्कूल बैग, यूनिफार्म और स्वेटर नही बांटेगी। बल्कि इस साल सरकार इन योजनाओं का पैसा सीधे अभिभावकों के खाते में भेजने की तैयारी में है। इस सबमें एक बच्चे पर करीब 1100 रुपये का बजट आता है। इस पर अभी मंथन जारी है कि प्रति बच्चा 1100 रुपये दिए जाएं या इसमें बदलाव हो। अगर ये मान लें कि प्रति छात्र 1100 रुपये देने पर मुहर लगती है तो जिसके 2 बच्चे पढ़ते होंगे सीधे 2200 रुपये खाते में भेज दिए जाएंगे।

तो यह है तो है ख़बर। लेकिन इसके पीछे की ख़बर या मंशा क्या है उसे कार्टूनिस्ट इरफ़ान ने पकड़ने और बताने की कोशिश की है।

आपको 2008 का नोट फॉर वोट कांड याद है। जब मनमोहन सरकार के विश्वास मत के दौरान संसद में नोटों की गड्डियां लहराईं गईं थीं। उस समय बीजेपी के सांसदों ने आरोप लगाया था कि उन्हें वोट के लिए खरीदने की कोशिश की गई। ख़ैर ग़रीब अभिभावक यह आरोप तो लगाएंगे नहीं, इसलिए सरकार को इसकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं। हां, लेकिन यह देख लेने की ज़रूरत है कि अभिभावकों के लाभ में बच्चों का नुकसान न हो जाए। मतलब पैसा तो अभिभावक के खाते में पहुंच जाए लेकिन बच्चे को न यूनिफार्म मिले, न किताबें।

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