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कार्टून क्लिक: जीवन के हालात जर्जर मगर हर घर तिरंगा

सबके घर की अर्थव्यवस्था ठीक होती है तो देश की अर्थव्यवस्था ठीक होती है। सबके घर की अर्थव्यवस्था का हाल यह है कि देश के 90 फीसदी कामगार महीने में 25 हजार रूपये से कम कमाते हैं। रोजगार दर महज 40 प्रतिशत के आसपास है। इसमें से भी ज्यादातर काम करने वाले अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं।  
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सबके घर की अर्थव्यवस्था ठीक होती है तो देश की अर्थव्यवस्था ठीक होती है। सबके घर की अर्थव्यवस्था का हाल यह है कि देश के 90 फीसदी कामगार महीने में 25 हजार रूपये से कम कमाते हैं। रोजगार दर महज 40 प्रतिशत के आसपास है। इसमें से भी ज्यादातर काम करने वाले अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं।  

भारत सरकार का श्रम पोर्टल का आँकड़ा बताता है कि अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 94 प्रतिशत कामगार महीने भर में तकरीबन 10 हजार से कम कमाते हैं। साल 1990 के बाद की आर्थिक नीतियों की खूब वाहवाही की जाती है। कहा जाता है कि इन नीतियों की वजह से बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा से बाहर आई है। इसकी हकीकत के बारे में वर्ल्ड बैंक का डेटा बताता है कि साल 2005 से लेकर 2012 के बीच 40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से बाहर आएं हैं।  इनकी महीने की आमदनी इतनी कम है कि बचत कुछ भी नहीं होती।  अगर माहीने भर की सैलरी ना आये तो यह गरीबी रेखा के नीचे चले जायेंगे।  

इस तरह के तमाम आकड़ें हैं तो भारत की बदहाली बताते हैं।  यह बताते हैं कि भारत की बहुत बड़ी आबादी के लिए घर का बुनियादी खर्चा चलना कितमा मुश्किल होता होगा। इन्हीं जर्जर होते घरों पर तिरंगा फहराने के अभियान में भाजपा सरकार लगी हुई है। 

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