अपने गिरेबान में भी कभी झांक लिया कीजिए
कांग्रेस के काम देखकर तो जनता उन्हें पहले ही किनारे बिठा चुकी है। लेकिन अगर साहबजी ने पहले अपने गिरेबान में झाँककर अपने काम गिनवाए होते तो ज्यादा अच्छा होता। क्योंकि मूल्यांकन उनका होता है जो कुछ करते हैं या करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन साहब के भी तो केवल ऐसे दो काम हैं, जिनका मूल्यांकन जनता कर नहीं सकती है। पहला, जब चुनाव के दौरान जमकर रैलियाँ और भाषणबाज़ी। दूसरा खाली समय में लंबी लंबी हांकना। दोनों ऐसे विचित्र काम है जिनका किसी भी मापदंड पर मूल्यांकन संभव नहीं है।
साहब जो एक इंटरव्यू के दो सवालों में ही पानी मांग बैठे, अगर जनता ने उनसे किसी दिन उनके कामों का हिसाब मांग लिया, तो ये तो ऐसे ही शर्म से पानी-पानी हो जाएंगे।
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