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कार्टून क्लिक: कोई ख़ुशी से बिका, कोई...

अजब दौर है। कोई ख़ुशी से बिक रहा है, किसी को ज़बरन बेचा जा रहा है। यानी आज बिकना सबकी नियति हो गई है। शायद यही पूंजीवाद है। बस ख़्याल ये रहे कि वतन न बिक जाए...
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अजब दौर है। कोई ख़ुशी से बिक रहा है, किसी को ज़बरन बेचा जा रहा है। यानी आज बिकना सबकी नियति हो गई है। शायद यही पूंजीवाद है। बस ख़्याल ये रहे कि वतन न बिक जाए...हालांकि दावा तो यही किया गया था कि “मैं देश नहीं बिकने दूंगा”, लेकिन आज उन्हीं के राज में किसान अपनी खेती, अपनी ज़मीन बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। क़रीब तीन महीने से दिल्ली की सीमाओं पर बैठा है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। मगर ये भी है कि लड़ाई कमज़ोर होने की बजाय बढ़ती जा रही है। किसान-मज़दूर सब साथ आ गए हैं। कर्मचारी भी जुड़ रहे हैं और अब ये लड़ाई देश बचाने की लड़ाई बनती जा रही है।

वो किसी ने कहा है-

धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगे

वतन के सिपाही अगर सो गए तो

वतन के सौदागर वतन बेच देंगे

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