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छत्तीसगढ़ के ज़िला अस्पताल में बेड, स्टाफ और पीने के पानी तक की किल्लत

कांकेर अस्पताल का ओपीडी भारी तादाद में आने वाले मरीजों को संभालने में असमर्थ है, उनमें से अनेक तो बरामदे-गलियारों में ही लेट कर इलाज कराने पर मजबूर होना पड़ता है।
Komal Dev District Hospital
कोमल देव, ज़िला अस्पताल कांकेर जिला, छत्तीसगढ़

कोमल देव जिला अस्पताल छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ित जिले कांकेर में स्थित है। यह जिला राज्य के दक्षिणी हिस्से  का ग्रामीण आबादी वाला जिला है। यहां डॉक्टर नर्स बेड मरीजों के लिए भोजन और पीने का साफ पानी का घोर अभाव है। ओपीडी में  स्टाफ की कमी है।

ऊपर से कड़ी धूप और गरमी के बीच मरीजों की काफी भीड़ भाड़ है। इनमें से कुछ मरीजों का उपचार तो अस्पताल के गलियारे में अस्थाई रूप से बनाए गए बेड पर ही किया जाता है। हरी मांडवी एक 28 वर्षीया एक महिला हैं, जो अपने भाई का इलाज कराने आई हैं। वे कहती हैं, “अपने भाई को दर्द से छटपटाते हुए नहीं देख सकती। पर यहां बेड की बड़ी किल्लत है, इसको देखते हुए मैंने नर्स से अपने भाई का तुरंत इलाज करने की गुजारिश की, जिन्होंने किसी तरह से बरामदे में कामचलाऊ बेड का इंतजाम करा दिया है, और उसकी बगल में सलाइन की बोतल लटका दी है।”

हरि मांडवी के छोटे भाई का गलियारे में इलाज

हरि मांडवी किरगोली गांव की रहने वाली हैं, जो अपने भाई के पेट में बहुत दर्द होने के बाद यहां इलाज कराने आई हैं। अस्पताल के बरामदे में इलाज कराता हरी मांडवी का छोटा भाई यहां आए अनेक मरीज इसी तरह की या इससे भी बड़ी बीमारी से पीड़ित होकर यहां आए हैं, और व्यवस्था की समस्या से जूझ रहे हैं। श्याम मांडवी एक ऐसी ही 60 वर्षीय महिला हैं, जिनके पैर की सर्जरी एक हफ्ते से इसलिए टल रही है कि यहां डॉक्टर ही नहीं हैं। 

अपने माता पिता के साथ 7 वर्षीया फुली

फुली सात वर्षीया एक बच्ची है, जो कथित रूप से लंबे समय से बुखार से पीड़िता रहने के कारण अचानक अचेत हो गई है। ओपीडी के डॉक्टर से दिखाने के बाद फुली को उसकी मां स्ट्रेचर न होने से गोद में ही उठाए आ रही हैं और पिता हीरा लाल सलाइन की बोतल को हाथ में उठाए हुए हैं। वहां स्ट्रेचर नहीं हैं। हीरा लाल कांकेर से 50 किलोमीटर दूर के गांव अम्बोरा से आए हैं और उन्हें अस्पताल में बिस्तर के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा है। 

रायपुर और जगदलपुर शहरों के बीच बसे कांकेर में अधिक आबादी जनजातीय की है और यह क्षेत्र सघन वनों से घिरा है। यहां की आबादी लगभग 6 लाख है, जिसके लिए 230 बेड का एक अस्पताल है, जो 300 से 350 मरीजों से ठसाठस भरा हुआ है, जिनमें अधिकतर बुखार, हैजा और दस्त से पीड़ित हो कर यहां आए हैं। 

चिपरेल गांव के एक पूर्व जन प्रतिनिधि अहीम सोरी यहां 11 मई से अपने पैर की चोट के लिए इलाज करा रहे हैं। वे रोगियों को बिना भोजन और पानी के यों ही छोड़ देने के लिए अस्पताल प्रबंधन पर बरस रहे थे। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “यहां लगातार दो दिनों तक मरीजों के लिए भोजन और पानी नहीं था। इस पर अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों से मरीजों एवं उनके तीमारदारों के विरोध जताने के बाद वे सुविधाएं बहाल की गईं। यह तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा इलाज के नाम पर आम आदमी से सरासर मजाक है।"

फिर भी पानी की कमी तो इसके बाद भी कई दिनों तक जारी रही क्योंकि बोरवेल की खुदाई की वजह से उसकी आपूर्ति बीच में रोक दी गई थी जबकि बैक-अप का कोई इंतजाम नहीं किया गया था। पानी की कमी हुई तो मरीजों के लिए खाना बनना भी बंद हो गया। इस बारे में जब जिला के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जेएल उएके से बात की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि "बोरवेल की खुदाई की वजह से पानी की आपूर्ति बाधित हो गई थी,जिसके चलते मरीजों को खाना नहीं दिया जा सका था, लेकिन चीजें एक दिन के भीतर ही व्यवस्थित कर दी गई थीं"।

अस्पताल में एक और बड़ी समस्या स्टाफ की कमी की है, जो मरीजों को बहुत परेशान करती है। यहां कामकाजी कर्मचारियों की कुल संख्या 36 है, जिनमें 12 डॉक्टर और 24 नर्सें शामिल हैं, लेकिन उनकी गैरहाजिरी ने रोगियों की परेशानियां बढ़ा दी हैं। अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर गंभीर रोगियों के इलाज की जरूरतों के हिसाब से साधन-सम्पन्न नहीं है। इसके चलते मरीजों को रायपुर रेफर कर दिया जाता है। इसके अलावा, सीटी-स्कैन, इकोकार्डियोग्राफी और एमआरआई की मशीनें भी खराब हैं। यहां केवल खून की जांच के उपकरण उपलब्ध हैं और मौसमी बीमारियों के लिए दवाएं मिल जाती हैं।

कांकेर स्थित जन सहयोग संस्थान के प्रमुख अजय मोटवानी के अनुसार, दूर-दराज के गांवों के रोगियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण परेशानी हो रही है और यह अस्पताल काफी हद तक एक रेफरल केंद्र बन गया है, जहां से मरीजों को इलाज के लिए बाहर भेजने का काम होता है।

हालांकि, अस्पताल की प्रमुख सुनीता मेश्राम ने दावा किया कि चरम मौसम के कारण ही रोगियों की तादाद बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे में बेड की कमी हो जाना स्वाभाविक है,लेकिन “बिना देरी किए उसकी व्यवस्था कर दी गई थी।”

कांकेर में सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की स्थापना मार्च 2020 में जिला अस्पताल के सहयोग से की गई थी। इसका मकसद बस्तर संभाग और पड़ोसी जिलों के लोगों को चिकित्सा शिक्षा और सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना है।

अस्पताल के साथ मेडिकल कॉलेज के सहयोग को लेकर उएके ने कहा, "जीएमसी के साथ सहयोग से जिला अस्पताल के प्रदर्शन में मदद मिलेगी। कुछ महीनों की अवधि में, अस्पताल में एक एमआरआई मशीन आ जाएगी, 30 बिस्तरों वाला आईसीयू और 40 बिस्तरों वाली नवजात देखभाल इकाई की स्थापना की जाएगी।”

जबकि यहां के मरीजों को लगातार परेशानी झेलनी पड़ रही है, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस देव सिंह ने 6 मई को उत्तरी बस्तर के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ एक बैठक में उन्हें कोविड-19 का टेस्ट बढ़ाने, 'हाट बाजार' क्लिनिक योजना (विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के लिए) की समीक्षा करने और कांकेर को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का निर्देश दिया है।

एक स्थानीय समाचार रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल अस्पताल के लिए अपरिहार्य कर्मचारियों की अनुपस्थिति से ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र पंगु हो गए थे। कांकेर जिले में 8 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 34 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिनमें से 12 केंद्रों में कोई प्रयोगशाला तकनीशियन उपलब्ध नहीं था। इसकी वजह से मलेरिया, टाइफाइड, सिकल सेल, एनीमिया, मधुमेह, एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी, आदि जैसी बीमारियों की जांच नहीं हो सकी और उनका इलाज नहीं किया जा सका।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Shortage of Beds, Staff, Drinking Water Paralyses Chhattisgarh District Hospital

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