Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

छत्तीसगढ़ : क्या भाजपा धर्मांतरण की राजनीति के सहारे कांग्रेस को देगी चुनावी चोट?

"छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वाले यह मानते हैं कि यदि भाजपा पूरे प्रदेश में धर्मांतरण का मुद्दा उठाने में सफल होती है तो कांग्रेस के सामने मुश्किल खड़ी कर सकती है लेकिन भाजपा के लिए भी यह राह आसान नहीं होगी।"
Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अभी लगभग नौ महीने शेष हैं लेकिन प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो चुकी हैं। कांग्रेस जहां एसटी, एससी, ओबीसी आरक्षण के सवाल को लेकर मैदान में है वहीं भाजपा धर्मांतरण की राजनीति को प्रदेश स्तर पर आक्रामक ढंग से उठाते हुए कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पिछले तीन महीने से भिन्न-भिन्न जगहों पर 'धर्मांतरण' का मुद्दा उठ रहा है। कई जगहों पर आदिवासी और आदिवासी से ईसाई धर्म अपना चुके लोगों के बीच छिटपुट हिंसक झड़पें भी हुईं। लेकिन धर्मांतरण के मुद्दे ने तब ज़्यादा व्यापक रूप धारण कर लिया जब हज़ारों की संख्या में हथियारबंद संगठित भीड़ नारायणपुर जिला मुख्यालय तक पहुंच गई। नारायणपुर शहर के कई ईसाई स्थलों चर्च, स्कूल और प्रेयर हॉल पर भीड़ ने हमला कर दिया। 

विश्व दीप्ती स्कूल के भीतर बने कैथोलिक चर्च पर भीड़ ने 2 जनवरी की दोपहर लगभग दो बजे धावा बोल दिया, चर्च में लगी माता मरियम और ईसा मसीह की मूर्ति को तोड़ डाला। चर्च के दरवाज़े, खिड़कियों, भीतर रखी कुर्सियों व अन्य सामानों को लाठी डंडों से बुरी तरह क्षति पहुंचाई। चर्च में तोड़-फोड़ रोकने पहुंचे एसपी सदानंद कुमार के सिर में भी गम्भीर चोटें आईं। नारायणपुर घटना में शामिल भाजपा जिलाध्यक्ष समेत अभी तक 29 लोगों को जेल भेजा जा चुका है।

छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वाले यह मानते हैं कि यदि भाजपा पूरे प्रदेश में धर्मांतरण का मुद्दा उठाने में सफल होती है तो कांग्रेस के सामने मुश्किल खड़ी कर सकती है लेकिन भाजपा के लिए भी यह राह आसान नहीं होगी। 

भाजपा के वरिष्ठ नेता व मंत्री रहे दिलीप सिंह जूदेव दशकों पहले से 'घरवापसी' अभियान चलाकर उन आदिवासियों को 'हिन्दू धर्म' में शामिल करवाने का काम कर रहे थे जो ईसाई धर्म अपना चुके थे। लेकिन घरवापसी का यह अभियान उत्तर छत्तीसगढ़ के बलरामपुर, जशपुर, सरगुजा, कोरिया जिले तक ही सीमित रहा। हालांकि भाजपा धर्मांतरण का मुद्दा बस्तर संभाग में इतनी तत्परता से उठाती पहली बार दिख रही है।

क्या है पूरा मामला?

बस्तर संभाग के नारायणपुर, कोंडागांव में कई जगहों से आदिवासी और आदिवासी से ईसाई बने लोगों के बीच धार्मिक रीति रिवाजों को मानने और न मानने को लेकर विवाद की कई घटनाएं सामने आती रही हैं। कई गांवों में ईसाई धर्म मानने वाले लोगों को मृत्यु के बाद गांव में दफनाने से रोक दिया गया। कई जगहों पर दफनाए गये शवों को कब्र से बाहर निकाल दिया गया।

31 दिसंबर 2022 की रात सर्व आदिवासी समाज के नाम पर एक गुट की ओर से गोर्रा गांव में गैर-कानूनी धर्मांतरण के खिलाफ बैठक बुलाई गई। भाजपा नेताओं का आरोप है कि दो सौ की संख्या में ईसाई लोगों ने बैठक कर रहे लोगों पर हमला बोल दिया और लोगों की पिटाई कर दी। आरोप यह भी है कि पुलिस ने किसी पर कोई कार्यवाही नहीं की।

2 जनवरी को सर्व आदिवासी समाज के नाम से नारायणपुर बंद का आह्वान किया गया, दोपहर तक हज़ारों की संख्या में लोग लाठी, डंडा, पत्थर लेकर स्कूल में बने चर्च की ओर बढ़ गए। चर्च में लगी ईसा मसीह और माता मरियम की मूर्ति को तोड़ दिया और चर्च में रखे सामान को भी तोड़ डाला। चर्च के भीतर घुसे लोगों को जब एसपी सदानन्द कुमार ने निकालने की कोशिश की तो उनपर भी भीड़ ने हमला कर दिया, कुमार का सिर फट गया।

फादर जोमोन नारायणपुर स्कूल में प्रिंसिपल हैं, जब स्कूल के भीतर बने चर्च में भीड़ ने हमला किया तब वे स्कूल में मौजूद थे। फादर जोमोन बताते हैं, "2 जनवरी को सोमवार था, स्कूल में कक्षाएं चल रही थी। लगभग दो बजे गैती, डंडा, पत्थर लेकर 400 से 500 लोग चर्च के बाहर आए और लगभग सौ लोग अंदर गुस आए। जैसे ही पीछे वाले गेट से तोड़-फोड़ शुरू हुई, हमने आगे से बच्चों को सुरक्षित निकालने की कोशिश की। हमें आशंका थी कि कुछ हो सकता है इसलिए हमने दोपहर में ही सभी अभिभावकों को सूचित कर दिया था।

जहां एक तरफ ईसाई मिशनरी के लोग गैर-कानूनी धर्मांतरण से इनकार कर रहे हैं और धर्म परिवर्तन को संवैधानिक अधिकार बता रहे हैं वहीं भाजपा व उसके आनुसंगिक संगठन चर्च पर प्रलोभन देकर आदिवासियों को धर्मांतरित कर ईसाई बनाने का आरोप लगा रहे हैं।

सुदीप झा भाजपा युवा मोर्चा के स्थानीय नेता हैं। वे कहते हैं, "यहां धर्मांतरण पंद्रह साल पहले से हो रहा है। जैसे-जैसे इनकी (ईसाई) संख्या बढ़ने लगी आदिवासी अपना धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाने लगे। कामवाली बाइयाँ अब रविवार को छुट्टी करने लगीं क्योंकि वो रविवार को चर्च जाती हैं। हम उन्हें प्रसाद देते हैं तो उसे खाती नहीं हैं। हमारे धर्म-त्योहार में शामिल नहीं होती हैं। इसलिए हमने उन्हें काम से हटा दिया।

31 दिसंबर की रात गोर्रा परगना में गोंड आदिवासियों की एक बैठक हुई थी उसमें लगभग दो सौ की संख्या में ईसाई लोगों ने पहुंचकर मार-पीट की लेकिन उनपर कोई कार्यवाही नहीं हुई। 2 जनवरी को हुई घटना उसकी प्रतिक्रिया थी।"

क्या धर्मांतरण के मुद्दे से आगामी दिनों में भाजपा को लाभ होगा? इसपर सुदीप कहते हैं कि ईसाई कभी  भाजपा के साथ नही रहे और लगातार ईसाइयों की संख्या बढ़ रही है और आदिवासियों की संख्या घट रही है। यह हमारे लिए बहुत बड़ा नुकसान है। इस आंदोलन से लाभ यह है कि गोंड आदिवासी हमारे (भाजपा) साथ आएंगे।"

नारायणपुर निवासी आनंद एलकाना ईसाई हैं। वे धर्मांतरण के सवाल पर कहते हैं, यह आदिवासी और ईसाई की लड़ाई नहीं है यह वोट की लड़ाई है। कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं। गांव से लेकर शहर के लोग चर्च में आते हैं। जाति-धर्म का झूठा ज़हर लोगों में भर दिया गया है। जबरदस्ती लोगों को बैठक में लाया जा रहा है। जो बैठक में नहीं आ रहे हैं उनपर जुर्माना लगाया जा रहा है। शुरुआत से पुलिस ने कुछ नहीं किया, कई महीने से ये सब हो रहा है लेकिन कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई।

बेनूर निवासी सुगनाथ सोढ़ी (आदिवासी) अपने आस-पास के लोगों के ईसाई बनने पर नाराज़ हैं। सुगनाथ सोढ़ी का एक भाई और उसकी पत्नी पिछले कुछ दिनों से चर्च जा रहे हैं इससे सुगनाथ को ऐतराज़ है।

सुगनाथ सोढ़ी कहते हैं, "ईसाई लोग हमारी देवी-देवताओं और गांव की व्यवस्था को नहीं मानते हैं। माटी-धरती को नहीं मानते हैं। वो लोग अलग समूह बनाते हैं। जो लोग लालच में आकर ईसाई धर्म अपना लेते हैं वो देवी-देवताओं को नहीं मानते हैं। बीमारी के नाम से भाई लोग वहां (चर्च) गए लेकिन बाद में ईसाई बन गए। जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है हम चाहते हैं कि वो साथ आकर रहें। हम एक पेट के ही बच्चे हैं।"

क्या है ईसाइयों के धर्मांतरण का सच

छत्तीसगढ़ में ईसाई सन 1880 के आस-पास विश्रामपुर में आए। साल 2001 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2.08 करोड़ थी और ईसाइयों की संख्या 4.01 लाख थी। 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2.55 करोड़ है और ईसाइयों की संख्या 4.90 लाख है। ईसाई कुल आबादी का 1.92 फीसदी हैं। यानी 2001 से 2011 के बीच ईसाई धर्म मानने वालों में 22.31 फीसदी वृद्धि हुई।

छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष के अनुसार भाजपा के पंद्रह साल के शासनकाल में कुल आठ लोगों को कलेक्टर ने ईसाई बनाया था जबकि पिछले तीन सालों में कलेक्टर ने एक भी व्यक्ति को ईसाई नहीं बनाया है।

भाजपा नेता केदार नाथ कश्यप ईसाई मिशनरी पर आदिवासियों और गरीबों को लुभा कर धर्मांतरित करने का आरोप लगाते हैं। कश्यप कहते हैं, “चालीस-पचास सालों में ही ईसाई मिशनरी के लोग यहां पर लगातार हमारे आदिवासी बंधु को या जो गरीब तबके के हैं, जहां पर शिक्षा, स्वास्थ या अन्य सुविधाएं नहीं पहुंची हैं, उन लोगों को ये (ईसाई) किसी न किसी माध्यम से लुभाने की कोशिश करते हैं और उनका धर्मांतरण करते हैं। संविधान में धर्मांतरण निषेध नहीं है लेकिन प्रक्रिया के तहत हो। जिला प्रशासन को सूचना देना चाहिए लेकिन मिशनरी के लोग प्रशासन को सूचना नहीं देते हैं।”

कश्यप आगे कहते हैं, “यदि संवैधानिक प्रक्रिया के तहत लोग ईसाई नहीं बनाये गये हैं आप तो गांव-गांव चर्च क्यों बना रहे हैं? इसका जवाब देना चाहिए। इतना ही नहीं चर्च के उद्घाटन में यहां के कांग्रेस के विधायक और सांसद जा रहे हैं। दो साल पहले यहां के एसपी ने बढ़ते धर्मांतरण को लेकर सरकार को पत्र लिखा लेकिन सरकार नहीं जागी।”

ईसाई मिशनरी द्वारा गैर-कानूनी ढंग से धर्मांतरण किये जाने के आरोप को छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फ़ोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल सिरे से नकारते हैं। वे कहते हैं, “1950 में जब हमारा संविधान बना भारतीय कानून के हिसाब से सबको वापस उनके देश भेज दिया गया। अब यहां कौन से मिशनरी बचे हैं? दूसरा जो हमपर गैर-कानूनी धर्मांतरण का आरोप लगाते हैं क्या उनके पास कोई पुख्ता सबूत हैं? यदि कोई ऐसा करता है तो उसकी शिकायत पुलिस थाने में करनी चाहिए।”

सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग  के अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर धर्मांतरण को लेकर नारायणपुर में फैली हिंसा के लिए भाजपा, आरएसएस और बजरंग दल को ज़िम्मेदार ठहराते हैं।

प्रकाश ठाकुर कहते हैं, “धर्मांतरण का मामला सामाजिक समस्या है। यह समाज द्वारा बैठक बुला कर सुलझाया जा सकता है। उसमें किसी प्रकार की राजनीति न हो तो बेहतर होगा। आरएसएस, भाजपा और बजरंग दल वाले माहौल खराब कर रहे हैं। यह ठीक नहीं है। इसी कारण अशांति का माहौल बना हुआ है।"

वे आगे कहते हैं, "जो लोग गोर्रा परगना में 31 दिसंबर की मीटिंग को सर्व आदिवासी समाज द्वारा बुलाई मीटिंग बता रहे हैं वह पूरी तरह गलत हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष द्वारा आदिवासी समाज के नाम पर मीटिंग बुलाई गई थी। यदि वह किसी पार्टी का पदाधिकारी है और आदिवासी समाज की बैठक बुला रहा है तो यह गलत है। सबसे पहले वह पार्टी से त्यागपत्र दे तब आदिवासी समाज की बात करे।”

धर्मांतरण बनेगा कांग्रेस के गले की फांस?

छत्तीसगढ़ में जबसे आदिवासियों के धर्मांतरण का मुद्दा गरमाया है, शुरुआत से ही कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है। सरकार की ओर से किसी तरह का आधिकारिक बयान अभी तक सामने नहीं आया है। एक तरफ जहां सरकार पर भाजपा हमलावर है वहीं दूसरी ओर ईसाई संगठन के पदाधिकारी सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाते नज़र आए। सवाल यह है कि क्या भुपेश बघेल के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस सरकार धर्मांतरण के मुद्दे पर चुप रहकर बिगड़ती स्थिति को संभाल पाएगी?

आगामी विधानसभा चुनाव में धर्मांतरण का मुद्दा अहम माना जा रहा है। 90 विधानसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास कुल 71 विधायक हैं, भाजपा के पास 14, बसपा के पास 2 और जनता कांग्रेस के पास 3 विधायक हैं। जिसमें एसटी आरक्षित 29, एससी आरक्षित 10 और सामान्य 51 सीटें हैं। जहां एक तरफ आदिवासी, कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हुए नाराज़ हैं कि ईसाइयों को सरकार का संरक्षण प्राप्त है वहीं ईसाई संगठन के नेता इस बात पर नाराज़ हैं कि कांग्रेस सरकार में ईसाई समाज का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और सरकार उनकी सुरक्षा का ख्याल नहीं रख रही है।

ईसाई समाज के प्रतिनिधित्व के सवाल पर अरुण पन्नालाल कहते हैं, "हम लोग सत्तर साल से कांग्रेस के साथ हैं लेकिन वर्तमान समय में हमारे पास कोई चैनल नहीं है जहां हम अपनी बात रख सकें। हमारा कोई मंत्री नहीं है। अल्पसंख्यक आयोग में हमें सदस्य तक नहीं बनाया गया है। यदि आदिवासी, सरकार से नाराज़ होते हैं तो कांग्रेस को सीधे 29 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है वहीं यदि ईसाई नाराज़ होते हैं तो कांग्रेस को लगभग 10 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।"

क्या आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा? इस सवाल पर अरुण पन्नालाल कहते हैं, “यह तो वक्त बताएगा। अभी से भविष्यवाणी कैसे कर सकते हैं। आज की स्थिति में स्वाभाविक है कि हम न बीजेपी को वोट देंगे, न ही कांग्रेस को। अभी स्थिति यह है कि भाजपा को हमारी ज़रूरत नहीं है और कांग्रेस को हमारी कदर नहीं है। हम इनमें में किसी के पीछे भागने वाले नहीं, सोच समझकर निर्णय लेंगे।

शायद बीजेपी को बारह लाख वोट की ज़रूरत नहीं होगी। कांग्रेस इस धोखे में है कि ये लोग जायेंगे कहां? तो इस बार हम जा के दिखा देंगे कि हम कहां जा सकते हैं और कहां नहीं। अभी स्थिति बिलकुल न्यूट्रल है नहीं कहा जा सकता कि समाज किस करवट बैठेगा। हमने प्रताड़ना भी बहुत सही है और बेज्जती भी।"

वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ‘घरवापसी’ का अभियान उत्तर छत्तीसगढ़ से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक ले जाने की बात कह रहे हैं। पूर्व में दीलीप सिंह जूदेव की अगुवाई में घरवापसी अभियान चलाकर भाजपा और जूदेव परिवार दोनों को उत्तर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक सफलता हासिल हुई थी। देखना दिलचस्प होगा कि प्रबल प्रताप जो घरवापसी अभियान बस्तर संभाग में चलाने की बात कह रहे हैं उसमें भाजपा को कितनी सफलता मिलती है।

प्रबल प्रताप सिंह कहते हैं, “बस्तर में धर्मांतरण बहुत पहले से हो रहा है। कोरोना काल में कई समाज कमज़ोर हुए हैं, उन्हें प्रलोभन देकर तेजी से धर्मांतरित किया गया। जो घटनाएं हो रही हैं वो धर्मांतरण की वजह से हो रही हैं। इन्हें (ईसाई) कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त है, कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। हम पूरे छत्तीसगढ़ में घरवापसी का अभियान चलाएंगे। घरवापसी राष्ट्र हित में है निश्चित तौर पर आगामी दिनों में इससे भाजपा को लाभ होगा।”

कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख सुशील कुमार शुक्ल धर्मांतरण का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी द्वारा खड़ा किया गया नैरेटिव मानते हैं। 

शुक्ल कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास जनसरोकारों के कोई मुद्दे बचे नहीं हैं। किसानों के मुद्दे नहीं उठा सकती। बस्तर आदिवासी बहुल इलाका है, बस्तर में आदिवासी समाज के बारे में उनके पास कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं है जो हमारी सरकार के खिलाफ उठा पाएं।

निश्चित तौर पर बस्तर के कुछ इलाकों में धर्मांतरण एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आया है लेकिन जब आप देखेंगे कि धर्मांतरण कब से चालू हुआ तब आपको पता चलेगा कि बस्तर के 98 फीसदी से अधिक चर्च 2004 से 2008 के बीच बने। धर्मांतरण के आने वाले जो तत्व हैं उसको भाजपा ने पोषित किया। भाजपा वहां अब धर्मांतरण के खिलाफ वर्ग संघर्ष कराने का काम कर रही है। बस्तर के नारायणपुर में जो कुछ हुआ बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हुआ उसके पीछे भाजपा का जिलाध्यक्ष था।”

ईसाई मिशनरी को संरक्षण देने और ईसाई संगठन द्वारा संरक्षण न मिलने के आरोप पर शुक्ल कहते हैं, "भाजपा बोलती है हम ईसाई मिशनरियों को संरक्षण दे रहे हैं और ईसाई मिशनरी का नुमाइंदा अरुण पन्नालाल बोलता है कांग्रेस सरकार हमें संरक्षण नहीं दे रही है। दरअसल यह भारतीय जनता पार्टी का खड़ा किया गया नरेटिव है। अरुण पन्नालाल पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के क्लासमेट रहे हैं। रमन सिंह जी से पन्नालाल की दोस्ती जगजाहिर है। पन्नालाल के कारण इस प्रदेश में आधा दर्जन बार दंगे हुए हैं। भाजपा की सहूलियत के हिसाब से अरुण पन्नाला दंगे करवाते हैं।"

अरुण पन्नालाल के द्बारा बैठक कर आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट न करने की बात पर शुक्ल कहते हैं, "लोकतंत्र में बैठकें कर अपना मत बनाने के लिए धर्म हर संप्रदाय के लोग स्वतंत्र हैं लेकिन जो वस्तुस्थिति है उसको छत्तीसगढ़ की जनता जानती है और अरुण पन्नालाल जैसे लोगों के बैठक करने से कोई फर्क नहीं पड़ता।” 

छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वाले बीके मनीष मानते हैं कि धर्मांतरण आगामी चुनाव में बड़ा मुद्दा नहीं साबित होगा।

मनीष कहते हैं, “जहां तक छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के ताज़ा उपजे विवाद का सवाल है, नारायणपुर की घटना के बाद यह बिल्कुल ब्लैक एंड व्हाइट के रंगों में नहीं देखा जा सकता है। जहां तक वर्तमान की बात है उसके लिए सिर्फ और सिर्फ नारायणपुर के लोग जाग उठे हों यह ठीक नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इसमें भाजपा के लोग शामिल हैं क्योंकि बिना संगठित प्रयास और बिना राजनीतिक दल के सहयोग के ऐसा नही हो सकता। और इस तरीके की घटना बलवा छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के इतिहास में कभी नहीं हुई। जितनी घृणा हो सकती है हमने सलवा जुडूम में देखी है लेकिन एसपी रैंक के अधिकारी की पिटाई करने का दुस्साहस आदिवासियों में कभी नहीं पाया जाता है। ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ।"

वे आगे कहते हैं, "जहां तक रही चुनाव की बात तो मैं ऐसा नहीं समझता कि धर्मांतरण छत्तीसगढ़ के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा होगा। 2018 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री द्वारा धर्मांतरण का मामला बड़े स्तर पर उछालने की कोशिश की गई लेकिन उसका कोई असर नहीं पड़ा। मुझे लगता है अगले चुनावों में मोटे तौर पर आरक्षण और स्थानीय मुद्दे ही मैटर करेंगे। मैं तो यह मानता हूँ कि नारायणपुर की घटना का असर न सुकमा पर पड़ेगा और न ही कांकेर पर पड़ेगा, जो कि उसी बस्तर संभाग के विधानसभा क्षेत्र हैं।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest