जेएनयू के छात्रों के समर्थन में दिल्ली की सड़कों पर उतरा नागरिक समाज
दिल्ली: 'लड़ जेएनयू जिंदाबाद... पढ़ जेएनयू जिंदाबाद' इन नारों के साथ शनिवार को दिल्ली के मंडी हाउस से नागरिक मार्च संसद मार्ग तक पहुंचा और वहां जाकर एक जनसभा में बदल गया। यह विरोध मार्च जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में फीस वृद्धि के विरोध में था। जेएनयू के छात्र-छात्राएँ अपने पढ़ने के अधिकार की लड़ाईं सड़कों पर लड़ ही रहे हैं। अब इन छात्रों के समर्थन में आगे आया नागरिक-बौद्धिक समाज, सभी ने जेएनयू पर हमले का विरोध करते हुए शिक्षा पर सरकारी खर्च की वकालत की है। छात्रों के समर्थन में बड़ी संख्या में आम लोग शनिवार को दिल्ली की सड़कों पर उतर आए।
प्रदर्शनकारियों में शिक्षक, छात्र, जेएनयू के पूर्व छात्र और नागरिक समाज के सदस्य शामिल रहे। उन्होंने मंडी हाउस से मार्च शुरू किया और विश्वविद्यालय प्रशासन से शुल्क वृद्धि वापस लेने तथा सरकार से ‘‘सभी के लिए शिक्षा किफायती बनाने’’ की मांग करते हुए नारे लगाए।
यह पहला मौका था जब कई दिनों से चल रहे छात्रों के विरोध प्रदर्शन में नागरिक समाज के सदस्यों ने भाग लिया है।
प्रदर्शनकारी मंडी हाउस क्षेत्र में एकत्र हुए और उन्होंने पुलिस तैनाती के बीच मार्च करते हुए संसद की ओर बढ़ने की कोशिश की।
एसएफआई, आइसा केवाईएस, एआईएसएफ और एनएसयूआई सहित कई छात्र संगठनों के सदस्यों ने बड़ी संख्या में इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। इसके आलावा मज़दूर, किसान, महिला और दलित संगठन के लोग भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
इस मार्च में ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह जिनकी उम्र 8 साल थी, जी हाँ 8 साल वो भी शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ इस मार्च में शामिल हुए थे।
जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि वे इस मार्च में अपने भविष्य के लिए शिक्षा बचाओ मार्च में शामिल हुए हैं। वे 'मेरा भविष्य बचाओ, शिक्षा बचाओ, जेएनयू बचाओ' के नारे को अंग्रेजी में लिखकर अपनी तख्ती लेकर आये थे। उन्होंने मंच से भी इन्हीं बातों को दोहराया।
जेएनयू शिक्षक संघ के महासचिव सुरजीत मजमुदार ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन सभी लोगों का धन्यवाद दिया जिन्होंने जेएनयू की इस लड़ाई में उनका साथ दिया है। मंच से उन्होंने कहा यह लड़ाई अब सिर्फ जेएनयू की नहीं बल्कि देश में सबको सस्ती और अच्छी शिक्षा मिले इसकी बन गई है।
इसके आलावा जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में सीपीएम के महसचिव सीताराम येचुरी, जेएनयू के पूर्व छात्र और वर्तमान में दलित नेता उदित राज,राजद के राज्यसभा सदस्य और डीयू के प्रोफेसर मनोज झा ने भी सभा को संबोधित किया। सभी ने जेएनयू में हुई फीस वृद्धि की निंदा की और जेएनयू के छात्रों को उनके संघर्ष के लिए सराहा।
सीताराम येचुरी ने कहा कि जेएनयू पर सरकार इसलिए हमला कर रही है कि वो नहीं चाहती कि लोग पढ़ें और सवाल करें। इसलिए नई शिक्षा नीति भी लाई जिसमें तर्क को खत्म करने की कोशिश की गई है। सरकर चाहती है कि समाज अब कुतर्कों के आधार पर चले।
उदित राज ने कहा कि पूरे देश में जेएनयू है,जहाँ कोई भेदभाव नहीं है। इसलिए उसकी फीस बढ़ाई जा रही है कि गरीब के बच्चे जेएनयू में न आ सकें।
मनोज झा ने कहा कि जेएनयू के संघर्ष में साथ देने के आलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं हैं। साथ ही पुलिस की बर्बरता पर कहा कि जब पुलिस पर हमला हुआ तो हम आपके साथ रहे लेकिन आप ने क्या किया? मनोज झा कहते हैं कि जेएनयू सार्वजनिक शिक्षा के लिए लड़ा है। तीन दिन बाद हम संविधान दिवस मनाएंगे लेकिन कल रात को हमने देखा कि कैसे केंद्र सरकार ने संविधान की हत्या की है। ये सरकार रात के अँधेरे में काम करती है लेकिन जेएनयू दिन के उजाले में उनका पर्दाफाश करेगा।
आगे उन्होंने देश के विपक्ष को लेकर कहा कि राजनीतिक दल जो विपक्ष में सिर्फ चुनाव के समय 20-22 दिन सड़क पर लड़ते है लेकिन जेएनयू सबके लिए लड़ रहा है, 365 दिन लड़ा है। इस सरकार का पहला और सबसे मज़बूत विपक्ष जेएनयू है।
इसके अलावा इस आंदोलन को मेडिकल छात्रों ने भी समर्थन दिया और कहा हम तो पिछले कई सालों से लड़ रहे हैं फीस वापसी दो जगह से ही होगी, संसद से और सड़क से। संसद में हम जा नहीं सकते, सड़क से ही ले सकते है और लड़ेंगे।
अखिल भरतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि आज वो इस मार्च में इसलिए आये है कि किसानों के बच्चों को भी अच्छी और सस्ती शिक्षा मिल सके।
इसके आलावा मज़दूर संगठन ऐक्टू के महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि ये लड़ाई सिर्फ जेएनयू की नहीं बल्कि समाज के सभी तबकों की हैं, जहाँ वो मज़दूर हो या किसान सभी अपने बच्चों को तभी पढ़ा सकते हैं,जब सार्वजानिक शिक्षा बचे इसलिए यह लड़ाई देश में शिक्षा को बचाने की लड़ाई है।
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष अइशी घोष ने कहा कि जिस तरह पूरे देश में जेएनयू के संघर्ष को समर्थन मिला है उसके लिए धन्यवाद। उन्होंने कहा कि हमें देश के कोने कोने से समर्थन मिला, अगर वो न मिलता तो जेएनयू अकेले इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ पता। यह लड़ाई जेएनयू की दीवारों तक सीमित नहीं है और न ही यह लड़ाई सिर्फ जेनएयू के लिए है। आज देश में यह लड़ाई उत्तराखंड के आयुर्वेदिक विज्ञान और गुजरात में भी लड़ी जा रही है। इसलिए हम 27 नवंबर को पूरे देश में नई शिक्षा नीति के खिलाफ आंदोलन करेंगे।
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