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चिंता: इंटरनेट पर नियंत्रण की अंधी वैश्विक होड़

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में न सिर्फ़ इस बात का खुलासा किया गया है कि इंटरनेट पर अब कितना फ्री स्पेस बचा है बल्कि दुनियाभर में इसके नियंत्रण के लिए सरकारों द्वारा की जा रही कोशिशों को भी उजागर किया गया है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : BS

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि इंटरनेट एक फ्री स्पेस है। ये आपको आज़ादी देता है कि आप अपने ख्यालात यहां खुलकर ज़ाहिर कर सकते हैं। यहां कोई प्रतिबंध और नियंत्रण नहीं है। अगर आप भी ऐसा मानते हैं तो आप ग़लत हैं।

हाल ही में फ्रीडम हाउस संस्था ने विश्व स्तर पर इंटरनेट के इस्तेमाल, आज़ादी और नियंत्रण विषय पर एक अध्ययन किया है। अध्ययन में जो नतीजे सामने आए हैं वो चौंका देने वाले हैं।

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में न सिर्फ इस बात का खुलासा किया गया है कि इंटरनेट पर अब कितना फ्री स्पेस बचा है बल्कि दुनियाभर में इसके नियंत्रण के लिए सरकारों द्वारा की जा रही कोशिशों को भी उजागर किया गया है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्चस्ववादी सत्ताएं इंटरनेट के फ्री स्पेस का कायापलट करने को आतुर हैं। डिजिटल स्पेस को कंट्रेल करने की इस होड़ में मानवाधिकारों की भारी अवहेलना हो रही है और उन्हें कुचला जा रहा है।

इंटरनेट यूजर्स और फ्रीडम

रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 450 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से 76% लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां इंटरनेट पर राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक कंटेट इंटरनेट पर डालने की वजह से उन्हें अरेस्ट किया गया है या जेल की गई है।

69% लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां पर अथॉरिटी ने ऐसे प्रोगवर्नमेंट कमेंटेटर्स तैनात कर रखे हैं जो आनलाइन डिस्कशन को मेनुपलेट करते हैं।

64% यूजर्स ऐसे देशों में रहते हैं जहां पर राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कंटेट को ब्लॉक किया या है।

51% यूजर्स ऐसे देशों में रहते हैं जहां पर सोशल मीडिया या तो आंशिक तौर पर या पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

44% यूजर्स ऐसे देशों में रहते हैं जहां पर सरकारें राजनीतिक कारणों से इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क प्रायः बाधित कर देती हैं।

विश्व की 47 ऐसी सरकारें हैं जिनके नागरिक विदेशी स्रोतों द्वारा इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री को नहीं देख सकते हैं। इन आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है जैसे सरकारों में इंटरनेट को नियंत्रित करने की कोई होड़ चल रही है।

अपने विचार व्यक्त करने पर क़ानूनी कार्रवाई या वेबसाइट ब्लॉक

फ्रीडम हाउस ने अपने अध्ययन में विश्व के 89% इंटरनेट यूजर्स क्षेत्र पर अध्ययन किया है।

रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 37% देशों में इंटरनेट पूरी तरह से कंट्रोल में है और यूजर्स को आज़ादी नहीं है।

34% देशों में इंटरनेट यूजर्स को आंशिक तौर पर आज़ादी है। भारत इसी श्रेणी में आता है।

मात्र 18% देशों में ही इंटरनेट वास्तव में एक फ्री स्पेस है।

अगर हम भारत के ही संदर्भ में देखें तो पाएंगे कि भारत में ऑनलाइन स्पेस को नियंत्रित करने सरकारी कोशिशें जारी हैं। सरकार द्वारा डिजिटल स्पेस को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई हैं। डिजिटल मीडिया संस्थानों और संगठनों ने इन गाइडलाइन का विरोध किया और कोर्ट तक में गये। सोशल मीडिया पर कंटेट को और प्रोफाइल को ब्लॉक करने और विभिन्न मौकों पर इंटरनेट शट डाउन करने के अनेक उदाहरण भारत में भरे पड़े हैं।

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 12 सालों से लगातार इंटरनेट पर नियंत्रण की कोशिशों में भारी वृद्धि हुई है और फ्री स्पेस को कुचला गया है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल कम से कम 40 देशों की सरकारों ने अहिंसक राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक सामग्री प्रकाशित करने वाली वेबसाइटों को ब्लॉक किया है।

मात्र इतना ही नहीं बल्कि ऑनलाइन अपने विचारों ज़ाहिर करने की वजह से 53 देशों में इंटरनेट यूजर्स को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा है, जिसमें कठोर जेल की शर्तें भी शामिल है।

इंटरनेट फ्रीडम मानवाधिकारों से कैसे जुड़ी है?

हम डिजटल युग में रह रहे हैं। फिलहाल हम इस डिजिटल स्पेस को लोकतंत्र और मानवाधिकारों से अलग करके नहीं देख सकते हैं। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि इंटरनेट पर नियंत्रण और प्रतिबंध अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलता है। ज़रूरी जानकारियों के भरोसेमंद स्रोतों तक आपकी पहुंच को सीमित कर देता है। सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्मों या विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने के लिए समूह बनाना, ऑनलाइन वैश्विक आंदोलनों के साथ सॉलिडेरिटी ज़ाहिर करने और आंदोलन को नियोजित करने के लिए आनलाइन तरीकों को आपसे छीन लेता है।

मानवाधिकारों के हनन के मसलों को डॉक्यूमेंट करने के अवसर और तरीकों को बाधित कर देता है, आप ना तो वैश्विक स्तर पर सॉलिडेरिटी हासिल कर पाते हैं और ना ही सरकारों पर जवाबदेही के लिए दबाव बना पाते हैं। इंटरनेट पर प्रतिबंध आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर देता है और ना सिर्फ व्यापरी वर्ग बल्कि इंटरनेट के जरिये अन्य तरीकों से आजीविका कमा रहे लोगों पर संकट आ जाता है। पर्सनल डेटा को असुरक्षित बना देता है और नागरिकों पर सरकार की निगरानी को सुगम बना देता है। ऑनलाइन कम्युनिटी बनाने के अवसर आपसे छिन जाते हैं। ऐसे अनेक तरीके हैं जिनके जरिये सरकारें ना सिर्फ मानवाधिकारों का हनन करती हैं बल्कि नागरिकों पर निगरानी भी करती है। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के आंकड़े काफी चिंताजनक है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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