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औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में लगातार गिरावट से यह साफ़ है कि मंदी लंबे समय तक कायम रहेगी!

देश का औद्योगिक उत्पादन इस बार जून में सालाना आधार पर 16.6 प्रतिशत घट गया। वहीं, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में बीते वर्ष इसी अवधि की तुलना में 35.9 प्रतिशत का संकुचन हुआ।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक
प्रतीकात्मक तस्वीर

देश का औद्योगिक उत्पादन इस बार जून में सालाना आधार पर 16.6 प्रतिशत घट गया। सरकारी आंकड़े के अनुसार मुख्य रूप से विनिर्माण, खनन और बिजली उत्पादन कम रहने से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आयी।

मंगलवार को जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआई) आंकड़े के अनुसार जून महीने में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 17.1 प्रतिशत जबकि खनन और बिजली उत्पादन में क्रमश: 19.8 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की गिरावट आयी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि अप्रैल-जून तिमाही में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में बीते वर्ष इसी अवधि की तुलना में 35.9 प्रतिशत का संकुचन हुआ, जबकि वर्ष 2019 की अप्रैल-जून तिमाही में इसमें 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। आँकड़े बताते हैं कि इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (67.6 प्रतिशत), पूंजीगत वस्तुओं (64.3 प्रतिशत) और विनिर्माण (40.7 प्रतिशत) में सबसे अधिक संकुचन देखने को मिला।

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, ‘कोविड-19 महामारी के बाद के महीनों के आईआईपी को कोरोना वायरस संक्रमण के पूर्व महीनों से तुलना करना उपयुक्त नहीं है।’ हालांकि मासिक आधार पर आईआईपी में सुधार हुआ है।

अप्रैल में सूचकांक 53.6 था जो मई में सुधरकर 89.5 और जून में 107.8 रहा। एहतियाती उपाय और कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिये सरकार के ‘लॉकडाउन’ लगाये जाने से बड़े पैमाने पर औद्योगिक गतिविधियां मार्च, 2020 के बाद से ठप रही। बाद में औद्योगिक गतिविधियों में छूट दी गयी, जिससे चीजें धीरे-धीरे सामान्य हो रही हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है आईआईपी?

आसान भाषा में कहें तो देश के कल-कारखानों में उत्पादन का क्या हाल है। एक महीने में उत्पादन घटा, बढ़ा या स्थिर रहा। यह जानने का सबसे प्रचलित तरीका आईआईपी है। भारत में प्रत्येक माह इस सूचकांक के आंकड़े जारी किए जाते हैं। दरअसल ये सूचकांक इंडस्‍ट्री के क्षेत्र में हो रही बढ़ोतरी या कमी को बताने का सबसे सरल तरीका है।

सरकार, रिजर्व बैंक व उद्योग जगत आईआईपी के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर अपनी नीति-रणनीति तय करते हैं। वहीं, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय जीडीपी के तिमाही अनुमान लगाते वक्त मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडीशन) निकालने को आईआईपी का इस्तेमाल करता है।

सांख्यिकी कार्यालय हर महीने 12 तारीख को आईआईपी के आंकड़े जारी करता है। अगर किसी महीने 12 तारीख को सरकारी अवकाश है, तो आईआईपी के आंकड़े उसके अगले कार्यदिवस पर आते हैं। हालांकि सरकार कई बार अपनी नाक बचाने के लिए आंकड़े जारी करने में देरी भी करती है।

उदाहरण के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने गत अप्रैल महीने के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) से जुड़े आंकड़े जारी नहीं करने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा था। उन्होंने ट्वीट किया, ‘वित्त मंत्री कहती हैं कि अर्थव्यवस्था सुरक्षित हाथों में है। यह इतनी सुरक्षित हाथों में है कि सरकार ने अप्रैल, 2020 के लिए आईआईपी ही जारी नहीं किया। क्या सरकार आईआईपी के आंकड़े को ऐसे सुरक्षित कमरे में बंद कर देगी जिसे 20 साल बाद ही खोला जाएगा।'

फिलहाल आईआईपी के लिए एक आधार वर्ष तय कर दिया जाता है ताकि एक महीने की दूसरे महीने से तुलना करने में आसानी रहे। वर्तमान में आईआईपी का आधार वर्ष 2011-12 है।

क्यों हुई ऐसी हालत?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र मार्च 2020 के अंत से ही औद्योगिक क्षेत्र के कई संस्थान अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इसका स्पष्ट प्रभाव औद्योगिक संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले उत्पादन पर पड़ा है। यानी कोरोना संक्रमण इसका तात्कालिक कारण है।

इसे लेकर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अपने आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि कोरोना वायरस और उसके बाद के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक संबंधी आँकड़ों की तुलना कोरोना वायरस से पूर्व के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक संबंधी आंकड़ों से करना न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि वर्तमान परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। आने वाले समय में जैसे-जैसे स्थितियाँ सामान्य होती जाएंगी, वैसे-वैसे ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और अन्य आर्थिक सूचकांकों में सुधार होता रहेगा।

हालांकि यह सिर्फ आधा सच है। अगर हम पिछले एक साल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़ों को देखे तो उसमें ज्यादातर समय गिरावट ही दर्ज की गई है। पिछले साल में अगस्त महीने में विनिर्माण, बिजली और खनन क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन की वजह से औद्योगिक उत्पादन 1.1 प्रतिशत घट गया। यह औद्योगिक उत्पादन के मोर्चे पर पिछले सात साल का सबसे खराब प्रदर्शन था।

उस समय दो साल में यह पहला मौका था जब औद्योगिक उत्पादन नकारात्मक दायरे में आया था। आपको याद दिला दें कि उस दौरान किसी भी तरह का लॉकडाउन भी लागू नहीं था। हालांकि बाद के महीनों में इसमें थोड़ी बेहतरी हुई लेकिन फिर मार्च महीने के बाद से कोरोना वायरस के चलते फिर से गिरावट की राह पर है। यानी सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद औद्योगिक उत्पादन में सुधार नहीं हो रहा है। इसका साफ मतलब है कि अर्थव्यवस्था में जारी मंदी अभी लंबे समय तक जारी रहने वाली है।

फिलहाल कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से आर्थिक गतिविधियों में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली है, लेकिन यह कितनी स्थाई है यह कहना अभी मुश्किल है।

समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ

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