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...बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई

यूं तो इस कोरोना काल में कुछ कहने लायक बचा नहीं और जो बचा था उसे भी महंगाई मार गई। दाल, साग-सब्ज़ी, फ़ल, अंडा, मांस, मछली, खाद्य तेल, डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस आदि सभी चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।
...बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

कोरोना की दूसरी लहर के चलते देश बहुत ही गंभीर परिस्थिति से गुजर रहा है और हालात अभी भी सामान्य नहीं हो पाए हैं। सभी राज्य सरकारों ने कोरोना की रोकथाम के लिए लॉकडाउन जैसे कड़े कदम उठाए है और कई राज्यों में अभी लॉकडाउन लगा हुआ है। कोरोना के संक्रमण ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की तो पोल खोली ही सरकार की आर्थिक नीतियों की सच्चाई भी सबके सामने उजागर कर दी। आज हाल ये है कि लोगों की आमदनी के सभी साधन चौपट हैं और उनके सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

केवल दिहाड़ी मज़दूर ही नहीं बल्कि छोटे और मध्यम व्यापारी भी मुश्किल में हैं। ठेला, रेहड़ी, खोखा, रिक्शा वाले, धोबी, मोची और हलवाई आदि सभी प्रकार के रोजगार से जुड़े लोग बुरे दौर से गुजर रहे हैं। आमदनी के सभी साधन बंद हो जाने से आम आदमी को परिवार चलने में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । ऐसी विपरीत परिस्थितियों के बीच महंगाई की मार ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। दालें, साग-सब्ज़ी, फ़ल, अंडा, मांस, मछली, खाद्य तेल, डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस आदि सभी जरूरतमंद चीजों पर महंगाई इतनी तेजी से बढ़ी है की आम आदमी को रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा कर पाना भी मुश्किल हो गया है ।

सभी वस्तुओं में वार्षिक महंगाई दर दिसंबर 2020 में 1.95 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 12.94 फ़ीसदी हो गयी है। सभी वस्तुओं में प्राथमिक सामग्री, ईंधन और ऊर्जा और विनिर्मित उत्पादकों को शामिल किया जाता है । जिनमे सबसे ज़्यादा महंगाई दर ईंधन और ऊर्जा में बढ़ी है। ईंधन और ऊर्जा में महंगाई दर दिसंबर 2020 में -6.1 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 37.61 फ़ीसदी हो गयी है। प्राथमिक सामग्री में महंगाई दर दिसंबर 2020 में -0.6 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 9.61 फ़ीसदी हो गयी है। और विनिर्मित उत्पादकों में महंगाई दर दिसंबर 2020 में 4.49 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 10.83 फ़ीसदी हो गयी है । जैसा की नीचे ग्राफ में दिखाया गया है ।

प्राथमिक सामग्री में महंगाई दर

प्राथमिक सामग्री में महंगाई दर बहुत तेजी से बढ़ी है। फल, साग-सब्ज़ी, अण्डा, मांस, मछली और खाद्य तेल आदि सभी इतने महंगे हो गए है की इनको खरीदने में आम आदमी के पसीने छूट रहे हैं। प्राथमिक सामग्री में महंगाई दर बढ़कर 9.61 फ़ीसदी हो गयी है जोकि दिसंबर 2020 में -0.6  फीसदी थी । प्राथमिक सामग्री की वस्तुओं में महंगाई की वृद्धि दर को नीचे दिया गया है ।

  • अंडा, मांस और मछली में महंगाई दर बढ़कर 10.73 फ़ीसदी हुई ।
  • दालों में महंगाई दर बढ़कर 12.09 फीसदी हुई ।
  • फलों में महंगाई दर बढ़कर 20.17 फीसदी हुई ।
  • खनिज पदार्थ में महंगाई दर बढ़कर 22.13 फीसदी हुई ।
  • प्याज़ में महंगाई दर बढ़कर 23.24 फीसदी हुई ।
  • खाद्य तेल के दानों में महंगाई दर बढ़कर 35.94 फीसदी हुई ।
  • कच्चे पेट्रोलियम में महंगाई दर बढ़कर 102.51 फीसदी हुई ।

ईंधन और ऊर्जा में महंगाई दर

सबसे ज़्यादा महंगाई दर ईंधन और ऊर्जा में बढ़ी है । दिसंबर 2020 में ईंधन और ऊर्जा में महंगाई दर -6.1 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 37.61 फ़ीसदी हो गयी है। ईंधन और ऊर्जा के उत्पादकों में महंगाई की वृद्धि दर इस प्रकार है-

  • एलपीजी में महंगाई दर बढ़कर 60.95 फीसदी हुई ।
  • पेट्रोल में महंगाई दर बढ़कर 62.28 फीसदी हुई ।
  • डीजल में महंगाई दर बढ़कर 66.3 फीसदी हुई ।

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विनिर्मित वस्तुओं में महंगाई दर

विनिर्मित उत्पादकों में कंपनियों द्वारा तैयार किये गए उत्पादकों को शामिल किया जाता है । विनिर्मित उत्पादकों में दिसंबर 2020 में महंगाई दर 4.49 फीसदी थी जो की मई 2021 में बढ़कर 10.83 फ़ीसदी हो गयी है । विनिर्मित उत्पादकों में महंगाई की वृद्धि दर कुछ इस तरह है-

  • मशीनरी और उपकरण को छोड़कर, गड़े धातु उत्पाद में महंगाई दर बढ़कर 10.55 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित रसायन और रसायन उत्पाद में महंगाई दर बढ़कर 10.65 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित पेपर और पेपर उत्पाद में महंगाई दर बढ़कर 10.68 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित कपड़े में महंगाई दर बढ़कर 11.37 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित रबर और प्लास्टिक उत्पाद में महंगाई दर बढ़कर 13.04 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित खाद्य उत्पाद में महंगाई दर बढ़कर 15.21 फीसदी हुई ।
  • माइल्ड स्टील - सेमी फिनिश्ड स्टील में महंगाई दर बढ़कर 24.02 फीसदी हुई ।
  • विनिर्मित मूल धातु में महंगाई दर बढ़कर 27.59 फीसदी हुई ।
  • वनस्पति और पशु तेल और वसा में महंगाई दर बढ़कर 51.71 फीसदी हुई ।

क्या है महंगाई ? महंगाई के कारण को समझिये

महंगाई (मुद्रास्फीति) को साधारण से शब्दो में समझने के लिए हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु की कीमतों में होने वाले उतार-चढाव को महंगाई कहते है। अगर किसी वस्तु का दाम मई 2020 में 10 रुपये था और वही वस्तु मई 2021 में बढ़कर 20 रुपये की हो जाए तो हम कह सकते है की महंगाई 100 फीसदी बढ़ गयी है।

अर्थशास्त्र की भाषा में आमतौर पर महंगाई का कारण यह होता है की अगर लोगों के पास ज़्यादा पैसे आ जाए तो लोग ज़्यादा वस्तुओं की माँग करने लगेंगे। जिसको एक सीमित समय में पूरा कर पाना मुश्किल होता है। क्योंकि देश में संसाधन सीमित मात्रा में है। जिसके कारण वस्तुओं के दाम बढ़ने शुरू हो जाएंगे और महंगाई जैसे हालात उत्पन्न होने लगेंगे।

लेकिन हमारे देश में महंगाई का कारण अलग है। अभी जिस स्तर पर महंगाई बढ़ी है हो सकता है कोरोना के चलते आपूर्ति बाधित हुई हो जैसा की अप्रैल माह के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आकड़े बताते हैं कि अप्रैल माह में उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में कम हुआ है । दूसरा कारण यह भी हो सकता है की कोरोना के चलते ट्रांसपोर्ट की सुविधा बाधित हुई हो । जिसके कारण इतनी तेजी से महंगाई बढ़ी है । लेकिन जब हम महंगाई के आंकड़ों को देखते हैं तो पता चलता है की महंगाई दिसंबर माह से बढ़ रही है । उस समय न तो उत्पादन बाधित हुआ था और न ही ट्रांसपोर्ट बाधित हुआ था। असल में यह महंगाई सरकार की गलत नीतियों के कारण उत्पन्न हुई है।

इसे पढ़ें : महंगाई की मार सरकारी नीतियों के कोड़े से निकलती है

देश के जाने माने अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक न्यूज़क्लिक में प्रकाशित अपने एक लेख में बताते हैं कि किसी मांग-बाधित अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का उछाल सिर्फ लागतों के बढ़ने से आ सकता है। और ठीक यही इस मामले में हुआ है। इस सिरे से उस सिरे तक, लागतों में जो बढ़ोतरी देखने में आ रही है, यह मूलतः केंद्र सरकार के कुछ प्रशासनिक कदमों का ही नतीजा है।

इस मुद्रास्फीति के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारक है, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ाने का केंद्र सरकार का फैसला। शुरुआत में केंद्र सरकार इस नीति पर चल रही थी कि विश्व बाजार में तेल के दाम जब गिरावट पर थे, उनके हिसाब से देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें नहीं घटायी जाए जबकि विश्व बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने लगे तो इस बढ़ोतरी को उपभोक्ताओं पर डाल दिया जाए। यह अपने आप में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को ऊपर धकेल रहा था।

दूसरा काम उसने यह किया कि सब्सिडियों में कटौती कर दी। पहले, जब घरेलू पेट्रोलियम उत्पादों, जैसे उर्वरकों की उत्पादन लागत बढ़ा करती थी, केंद्र सरकार उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी कर के यह सुनिश्चित किया करती थी कि किसानों को इन उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी का बोझ नहीं उठाना पड़े। लेकिन, अब जब भी इन उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ती है और विश्व बाजार में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से ही नहीं, खुद सरकार के इनकी उत्पादन लागत बढ़ाने के फैसलों की वजह से भी यह कीमत बढ़ती है।

लेखक-पत्रकार और किसान नेता बादल सरोज का कहना है की हाल ही में सब्जियों और फलों की कीमतों में जो बढ़ोतरी हो रही है वह अस्थायी महंगाई है । जैसे जैसे लॉकडाउन में थोड़ी छूट मिलती जाएगी वैसे वैसे सब्जियों और फलों की कीमत भी कम होने लगेगी। हालांकि इन पेट्रोल और डीजल की कीमतों का असर जरूर रहेगा। लेकिन सबसे ज्यादा महंगाई तैयार उत्पादकों में हुई है। जैसे खाद्य तेल, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, दवाइयां आदि पर जो महंगाई हुई है, उसका कोई तर्क सांगत कारण नहीं है। सरकार ने पूंजीपतियो को मुनाफाखोरी के लिए खुली छूट दी हुई है।

साथ ही बादल सरोज कहते हैं कि जब ट्रेड यूनियन महंगाई भत्ते और वेतन बढ़ाने की मांग करती थी तब सरकार इस बात का हवाला दे कर उन्हें टाल देती थी कि महंगाई भत्ता और वेतन बढ़ाने से महंगाई बढ़ जाएगी। लेकिन अब जब लोगों का वेतन नहीं बढ़ रहा और करीब 15 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए हैं तब महंगाई बढ़ने का क्या कारण है। साथ ही कोरोना काल में लोग 4 साल से भी पहले के वेतन से नीचे काम कर रहे हैं तब महंगाई क्यों लगातार बढ़ती जा रही है। इसका मतलब साफ है कि महंगाई का लोगों की आय के साथ कोई लेना देना नहीं है। यह सीधे-सीधे पूंजीपतियों की कमाई का एक जरिया है।

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