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जॉर्डन में तख़्तापलट की कोशिशों ने छोड़े सबूत

जॉर्डन भूराजनीतिक पहेली है। किसी को भी यह देखकर आश्चर्य होगा कि इतने विरोधाभासों के बावजूद, जॉर्डन अपने अस्तित्व को बचाए रखने में कामयाब कैसे रहा?
जॉर्डन

सत्तापलट की कोशिश जब तक कामयाब नहीं होती, तब तक अनाथ होती हैं। तो हम कह सकते हैं कि जॉर्डन में सत्ता पलट की प्रक्रिया जारी है। रविवार को जॉर्डन की राजधानी अम्मान में टीवी पर प्रसारित की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उप प्रधानमंत्री अयमान अल-सफादी ने कहा "ऐसी कोशिशें की गईं हैं जिनसे जॉर्डन की रक्षा और स्थिरता को ख़तरा पैदा हुआ, इन कोशिशों को नाकाम कर दिया गया है।"

उन्होंने कहा, "जॉर्डन के सुरक्षाबलों की गहन जांच" से पता चला है कि बादशाह अब्दुल्लाह II के सौतेले भाई हमजेह, राजपरिवार के सदस्य शरीफ़ हसन, दरबार के पूर्व अधिकारी और सऊदी सरकार में जॉर्डन के प्रतिनिधि बासेम अबदुल्लाह ऐसी गतिविधियों में शामिल रहे हैं, जिन्हें "राजद्रोह को प्रोत्साहन" देने वाला माना जा सकता है।

सफादी ने आगे कहा, "जांच के तहत जॉर्डन को अस्थिर करने के उद्देश्य से विदेशी पक्षों के साथ हो रहीं बातचीत और हस्तक्षेप की निगरानी बिल्कुल सही वक़्त पर की गई।" सफादी ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि जॉ़र्डन के विदेशी विरोधियों के साथ संबंधों को बढ़ाने की कोशिशें हो रही थीं। इस चीज सबूत भी मिले हैं कि विदेशी संबंधों वाले एक नागरिक ने हमजेह की पत्नी को कुछ सेवाएं उपलब्ध कराई हैं, जिनमें जॉर्डन छोड़ने के लिए तुरंत एक निजी जेट की व्यवस्था भी शामिल है। (संबंधित शख़्स को इज़रायली नागरिक के तौर पर पहचाना गया है।)

इस घटना पर क्षेत्रीय प्रतिक्रिया आंखे खोल देने वाली है। कतर, तुर्की और ईरान ने तेजी से जॉर्डन की स्थिरता का समर्थन किया। सऊदी अरब के प्रमुख सलमान और राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान ने अब्दुल्ला से बात की। सऊदी सरकार के दैनिक अख़बार अशरक अल-अवसात ने लिखा, "अरब दुनिया अपना पूरा समर्थन बादशाह अब्दुल्ला II के लिए झोंक देगी और जॉर्डन की स्थिरता-रक्षा को सुरक्षित करने के लिए जरूरी कदम उठा लिए गए हैं।"

अख़बार में अरब दुनिया के देशों (इजिप्ट, ओमान, बहरीन, लेबनान, कुवैत, कतर, यमन, फिलिस्तीन, मोरक्को) और अरब लीग के साथ-साथ GCC के सचिवों की प्रतिक्रियाएं छापी गईं। लेकिन इनमें एक देश- यूएई को छोड़ दिया गया। उस दुनिया में इशारों का खूब मतलब होता है। सऊदी अरब ने जिस तेजी से पूरे घटनाक्रम से खुद को दूर दिखाने की कोशिश की और कतर, तुर्की, ईरान द्वाा जॉर्डन की स्थिरता के लिए जो चिंता जताई गईं, साथ में यूएई को अलग रखा गया, उससे बहुत कुछ पता चलता है।

तुर्की ने एक बार खुलकर कहा था कि 2016 में रेसेप एर्दोगन की सरकार के तख़्ता पलट के पीछे यूएई का हाथा था। तुर्की ने पूर्व गुप्तचर प्रमुख, CIA और मोसाद के लिए प्रमुख वार्ताकार रहे मोहम्मद दाहलान का खुलकर नाम लिया था। दाहलान अब राज्य की सुरक्षा में यूएई में रहते हैं। जॉर्डन के घटनाक्रम में भी कहीं ना कहीं दाहलान का सामने आने की संभावना है। बात यह है कि जॉ़र्डन की 70 फ़ीसदी आबादी फिलिस्तीनी मूल की है, यह आबादी जॉर्डन के समाज में अच्छे तरीके से घुलमिल चुकी है। कई प्रमुख फिलिस्तीनी उद्यमी जॉर्डन की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं।

यहां यह समझने की जरूरत है कि इज़रायल के दक्षिणपंथी हमेशा फिलिस्तीन राज्य और जॉर्डन के मध्य एक "परिसंघीय राज्य समाधान" की कोशिश करते हैं। ताकि दो राष्ट्र समाधान, जिसमें फिलिस्तीन अलग देश है, उसे समाधान के तौर पर लागू करने से बचा जा सके। लेकिन वास्तविकता यह है कि समुद्र और एक नदी के बीच में 70 लाख यहूदी और 55 लाख अरब रहते हैं; यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसमें फिलिस्तीनी लोग लगातार अपने राष्ट्रीय अधिकारों की मांग उठाकर इज़रायली कब्ज़े का विरोध करते हैं और इन फिलिस्तीनी अधिकारों को पूरी दुनिया मान्यता देती है; यह ऐसी वास्तविकता है जिसमें आकार और अर्थव्यवस्था को देखते हुए, इजरायल हमेशा बाहरी दुनिया, खासकर अमेरिका पर निर्भर रहेगा। ऐसा तब तक होगा, जब तक जॉर्डन में कोई समाधान ना खोज लिया जाए। 

ऊपर से अब नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन फिलिस्तीनी समस्या पर फिर से विचार करेंगे, तब दो राष्ट्रों के समाधान वाले समीकरण को पूरी तरह ख़त्म करने की आपात जरूरत पैदा हो गई है।

जॉर्डन एक भूराजनीतिक पहेली है। किसी को भी यह देखकर आश्चर्य होगा कि कैसे इतने विरोधभासों के बावजूद यह देश अपने अस्तित्व को बचाए रखने में कामयाब रहा है। जॉर्डन अतीत से खुद को इज़रायल और अरब दुनिया के बीच "पुल" के तौर पर पेश करता रहा है, इस दौरान अमेरिका में अलग-अलग सरकारों से जॉर्डन मजबूत संबंध बनाने में भी कामयाब रहा है। दुर्भाग्य से इज़रायल और अरब दुनिया के देशों के बीच हुए अब्राहम समझौते से यह पुल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंचने को मजबूर हो गया है। 

इसमें कोई शक नहीं है कि अगर अम्मान में सत्ता पलट हो जाता तो संयुक्त अरब अमीरात फायदे में रहता। "वेस्ट बैंक" को हथियाने और अरब दुनिया के साथ संबंधों को सामान्य करने के क्रम में फिलिस्तीन को नज़रंदाज करने की प्रस्तावित इज़रायली योजना पर बादशाह अब्दुल्ला खुलकर राष्ट्रपति ट्रंप और इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्नयाहू के साथ टकराते रहे हैं।

अगर तख़्ता पलट कामयाब हो जाता तो जॉर्डन, यूएई के साथ मिलकर इज़रायल के साथ संबंध सामान्य कर लेता और फिलिस्तीन समस्या का "परिसंघीय समाधान" एक वास्तविक संभावना बन सकता था। यहां दाहलान की भूमिका बेहद अहम हो जाती, क्योंकि उनके जॉर्डन में रह रहे फिलिस्तीनी कुलीनों से काफ़ी अच्छे संबंध हैं। (तुर्की के सबाह अख़बार में दाहलान पर लिखा लेख "क्या मोहम्मद दाहलान अमेरिका के अलगे फिलिस्तानी राष्ट्रपति प्रत्याशी हैं?" पढ़िए, जिसमें उनके बारे में विस्तार से बताया गया है।)

भूराजनीतिक तौर पर, अमीरात और इज़रायल के प्रभावक्षेत्र में रहने वाला जॉर्डन सीरिया और इराक (इससे परे तुर्की और ईरान में भी) में शक्ति बढ़ाने का माध्यम बन सकता था। यूएई पहले ही दमिश्क में अपना दूतावास खोल चुका है और कुर्दिश समूहों का समर्थन कर रहा है (जो निश्चित तौर पर इज़रायली गुप्तचर संस्थानों के लिए अनजान नहीं हैं)। जब अबूधाबी के राजकुमार मोहम्मद बिन जायेद, इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-काधिमी और उनके साथियों को लेने रविवार को हवाईअड्डे पर पहुंचे, तो इसे एक बड़ा प्रतीकात्मक संकेत माना गया। 

अल काधिमी पहले गुप्तचर प्रमुख रह चुके हैं, उनके दाहलान के साथ भी अच्छे संबंध हैं। वे फिलहाल इराक में ईरान के प्रभाव को कम करने के अमेरिकी एजेंडे पर काम कर रहे हैं। अगर यूएई के शेख के लिए काधिमी मुख्य वार्ताकार होते हैं, तो यह इज़रायल को फायदा पहुंचाएगा। पिछले हफ़्ते सऊदी अरब की यात्रा के बाद काधिमी ने यूएई की यह यात्रा की है। सऊदी अरब की उस यात्रा के दौरान रियाध ने इराक में अपने निवेश को पांच गुना बढ़ाकर 2.67 बिलियन डॉलर करने का वायदा किया है। साफ़ है कि इस नाजुक मोड़ पर जॉर्डन में "सत्ता परिवर्तन" यूएई और इज़रायल की उस बड़ी योजना में सही बैठता है, जिसके तहत मुस्लिम मध्य-पूर्व का दोबारा गठन किया जाना है। 

ऐतिहासिक तौर पर जॉर्डन का राष्ट्रवाद नागरिकों और सीमाओं में कैद एक राज्य से संबंधों के बजाए, वृहद अरब पहचान और अरब-हाशमी शासक संबंधों के आधार पर विकसित हुआ है। पिछले कुछ दशकों में फिलिस्तीनी संबंध, आधुनिक जॉर्डन के अपने राष्ट्रवाद को परिभाषित करने और आधिकारिक राष्ट्र की अवधारणा में खुद को ढालने में बाधा रहे हैं। आंतरिक स्थिति कुछ ऐसी है कि बिना राजनीतिक जोड़ के राष्ट्रीयता का विकास नहीं होगा। 

इसलिए जॉर्डन में राष्ट्रवाद की जड़ें स्थिरता और शक्ति पर बहुत संवेदनशील ढंग से निर्भर हैं। अब्दुल्ला ने व्यक्तिगत संपर्कों का जाल बनाया है, जिसमें सुरक्षा और दूसरे संस्थानों के ज़रिए दूर-दराज की जनजातियों को राजशाही से जोड़ा गया है। जॉर्डन की पटरानी रानिया अल अब्दुल्ला फिलिस्तीनी दंपत्ति की बेटी हैं, उनके पिता वेस्ट बैंक के तुल्कार्म के रहने वाले थे। 

जैसा मिडिल ईस्ट आई (MEE) ने हाल में लिखा, "अब्दुल्ला और नेतन्याहू के बीच तनावपूर्ण संबंध, मध्यपूर्व में दो अलग-अलग रक्षा और राजनीतिक नज़रियों और तरीकों को दर्शाता है।" राष्ट्रपति बाइडेन की मंशा से नेतन्याहू को असुरक्षित महसूस होता है। दूसरी तरफ, खुद नेतन्याहू के राजनीतिक भविष्य के लिए उनके अति-दक्षिणपंथी मित्रों की वृहद इज़रायल की संकल्पना फायदेमंद है, जिसके तहत जॉर्डन घाटी के पूर्वी पहाड़ों पर इज़रायल का पूर्ण नियंत्रण (अतिदक्षिणपंथियों का मानना है कि वहां जूडा और समारिया के बाइबल में उल्लेखित राज्य थे), पूर्वी जेरूसलम में अल-अक्सा मस्जिद को नष्ट करना (अति दक्षिणपंथियों का मानना है कि यह यह मस्जिद वहां मौजूद है, जहां कभी दूसरा यहूदी मंदिर हुआ करता था, अब यह लोग इस जगह पर तीसरा यहूदी मंदिर बनाना चाहते हैं) और ऐसी ही दूसरी चीजें कल्पित हैं। यहां आप MEE द्वारा लिखा गया "नेतन्याहू बनाम् अब्दुल्ला: इज़रायल और जॉर्डन के संबंध निम्नतम स्तर पर" लेख पढ़ सकते हैं।

बुनियादी तौर पर अब्दुल्ला ने फिलिस्तीनी समस्या पर, इज़रायल की शर्तों वाला, ट्रंप का तथाकथित "शताब्दी का सबसे बड़ा समझौता" रोक दिया। जवाब में नेतन्याहू ने अब्राहम समझौते पर प्रहार किया और दिखाया कि इज़रायल, फिलिस्तीन और जॉर्डन के परे जाकर सीधे अरब देशों के साथ शांति स्थापित कर सकता है। नेतन्याहू की वेस्ट बैंक के दो तिहाई हिस्से को हड़पने की योजना है, जिसमें जॉर्डन घाटी भी शामिल है। यह इलाका पानी और खनिजों से भरपूर है। लेकिन उन्हें अपनी मंशा को जल्द पूरा करना होगा क्योंकि बाइडेन की कुछ दूसरी योजनाएं भी हो सकती हैं।

साभार : इंडियन पंचलाइन

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Coup Attempt in Jordan Leaves a Trail

 

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