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ऑक्सीजन संकट: आग लगने पर कुआं खोद रही हैं हमारी सरकारें

ऑक्सीजन सप्लाई से लेकर ऑक्सीजन प्लांट लगाने तक को लेकर अब बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। यह कुछ ऐसा है कि जैसे आग लगने पर कुआं खोदा जाए।  
ऑक्सीजन संकट
Image courtesy : The Indian Express

"अगर कोई, केंद्र सरकार, राज्य सरकार या फिर स्थानीय प्रशासन के किसी अधिकारी ने ऑक्सीजन सप्लाई में रुकावट डाली तो उसे फांसी पर चढ़ा देंगे।" नाराजगी भरे यह शब्द किसी व्यक्ति नेता और अफसर के नहीं है। बल्कि इंसाफ का फैसला सुनाने वाले अदालतों में से एक दिल्ली उच्च न्यायालय के हैं। जिनसे अपेक्षा की जाती है कि वह अगर कोई कड़वी बात भी कहेंगे तो थोड़ा उसे सलीके से कहेंगे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली हाईकोर्ट को इस तरह से अपनी राय रखनी पड़ी।

कोरोना के समानांतर ऑक्सीजन संकट भी चल रहा है। अस्पताल में जाकर भी कई लोग ऑक्सीजन की कमी से मर जा रहे हैं। देश के बड़े-बड़े शहरों के बड़े-बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की खबर आ रही है। लोग अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन सिलेंडर लगवाए बैठे दिख रहे हैं। डॉक्टरों की सलाह पर बिस्तर और जरूरी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी की वजह से लोग घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कर रहे हैं। जबकि बड़े बड़े सरकारी अस्पतालों के पास ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था पहले से होनी चाहिए थी। लेकिन यह नहीं है। डॉक्टर खुद कहते हैं कि कैसे किसी कमरे को आईसीयू कहा जाए जब कमरे में ना तो वेंटिलेटर की व्यवस्था है और ना ही कोई ऐसी पाइप है जिसकी मदद से ऑक्सीजन पहुंचती हो।

यही हाल बड़े बड़े नामी-गिरामी प्राइवेट अस्पतालों का भी है। जो लोगों से बहुत बड़ी कीमत वसूल करते हैं। लेकिन सुविधा के नाम पर उन्होंने भी अपने अस्पताल के लिए किसी तरह ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था नहीं की है। केवल मुनाफे के सिवाय कुछ नहीं सोचा है।

जो ऑक्सीजन की सप्लाई करते हैं उनका फोन दिन रात बज रहा है। दिल्ली के कई ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले लोगों का कहना है कि कई दिन से वह ठीक से सो नहीं पाए। इन सबके बीच चूंकि सुविधाएं कम हैं, इसलिए इस आपदा में कालाबाजारी भी खूब बड़ी है। इस कालाबाजारी में कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं। तकरीबन 4500 से लेकर 5000 के बीच मिलने वाला ऑक्सीजन का सिलेंडर 8000 से 10000 रुपये तक मिल रहा है। एक बार रिफिल करवाने में जिस ऑक्सीजन गैस सिलेंडर के लिए 150 से लेकर 200 रुपये तक लगता था अब उसकी कीमत 800 से लेकर 1000 तक पहुंच गई है।

ऐसी खबर पढ़ने के बाद मन में सवाल भी पैदा होता होगा कि स्कूल के दिनों से तो यही पढ़ते आए हैं कि हवा में ऑक्सीजन है और सांस लेने की प्रक्रिया में हम उसे अपने अंदर ले जाते हैं। तो लोग ऑक्सीजन की कमी से क्यों मर रहे हैं? जब तक पृथ्वी पर हवा है, तब तक भला ऑक्सीजन की कमी कैसे हो सकती हैं?

ऑक्सीजन की कमी बिल्कुल हो सकती है। कोरोना का वायरस यही कर रहा है। वायरस शरीर के फेफड़े पर हमला करता है। फेफड़ा संक्रमित हो जाता है, सांस लेने में दिक्कत आती है। यहां से स्थिति गंभीर बन जाती है और संक्रमित व्यक्ति मौत के मुहाने तक पहुंच जाता है। 

अब जब सांस लेने में दिक्कत है तो इसका मतलब यह है कि कोई ऐसा तरीका मिले ताकि शरीर के अंदर ऑक्सीजन पहुंचाई जाए। हवा में केवल ऑक्सीजन तो नहीं होती है।  ऑक्सीजन के अलावा दूसरी गैस भी होती है। यानी जरूरी बात यह है कि हवा से किसी भी तरह से ऑक्सीजन निकाल लिया जाए और शरीर के अंदर पहुंचा दिया जाए। 

बड़े स्तर पर यह काम ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले किसी प्लांट और उद्योग में ही संभव है। अगर प्लांट और उद्योग में जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन नहीं मिल रही है तो इसका मतलब है की ऑक्सीजन की कमी हो रही है।

ऑक्सीजन उत्पादन से जुड़े काम में लगे हुए लोगों का कहना है कि हवा से ऑक्सीजन निकालने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल प्रक्रिया होती है। हम जानते हैं कि हवा में तकरीबन 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1%  नियॉन आर्गन जैसे गैस होती है। 

खास तरह का तरीका अपनाकर वायुमंडलीय हवा से प्लांट में ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। सिंपल शब्दों में केवल इतना समझिए कि वायुमंडलीय हवा में ऑक्सीजन सहित दूसरी गैसें गैसीय अवस्था में होती हैं। सब अलग-अलग तापमान पर तरल अवस्था में बदल जाती हैं। इसी अलगाव के बिंदु को पकड़कर ऑक्सीजन को तरल अवस्था में बदलकर सिलेंडर में पैक कर लिया जाता है। तकरीबन -183 डिग्री सेंटीग्रेड पर हवा में मौजूद ऑक्सीजन लिक्विड अवस्था में बदल जाता है। इसी बिंदु पर ऑक्सीजन को सिलेंडर में पैक कर लिया जाता है।

इस ऑक्सीजन का इस्तेमाल वेल्डिंग, हवाई जहाज में सांस लेने, रिसर्च और मेडिकल जैसे कई क्षेत्र में किया जाता है। इस समय ऑक्सीजन का मेडिकल इस्तेमाल बहुत अधिक बढ़ गया है।

कोरोना महामारी के इस दौर में लोगों को मौत के मुंह से बचाने के लिए ऑक्सीजन का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। डॉक्टर और जानकारों की मानें तो क्रिटिकल हालत में पहुंच चुके कोविड के मरीज को एक दिन में तकरीबन 86000 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है।

कोविड के मरीजों का इलाज कर रही डॉक्टर कामना कक्कर कहती हैं कि 86 हजार  लीटर ऑक्सीजन निश्चित तौर पर बहुत अधिक ऑक्सीजन होती है लेकिन इससे जान बचती है। कोविड के 100 मरीजों में से 10 की हालत बहुत गंभीर होती है। इसमें से 2-3 मरीज ऐसे होते हैं जिनके लिए ऑक्सीजन की इतनी बड़ी मात्रा की जरूरत पड़ती है।

इस आधार पर देखा जाए तो जिस तरह से हर दिन लाखों केस आ रहे हैं और इनमें हर दिन इजाफा हो रहा है तो इसका मतलब है कि भारत को ऑक्सीजन की बहुत अधिक जरूरत पड़ेगी।

भारत में ऑक्सीजन उत्पादन की 10 से 12 बड़ी कंपनियां हैं और 500 के करीब छोटे-मोटे उद्यम हैं। ऑक्सीजन उत्पादन की सबसे बड़ी कंपनी गुजरात में है। पिछले साल कोरोना के आने के पहले भारत में प्रतिदिन 750 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता था। लेकिन हालिया स्थिति बहुत अधिक खतरनाक हो चुकी है। बीते 15 अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा, "हम प्रतिदिन 7,500 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं, जिसमें से 6,600 मीट्रिक टन राज्यों को चिकित्सा उद्देश्यों के लिए आवंटित किया जा रहा है।" इसके अलावा उद्योगों को दी जाने वाली ऑक्सीजन को प्रतिबंधित किया गया है ताकि अधिक से अधिक ऑक्सीजन चिकित्सकीय उपयोग के लिए उपलब्ध हो सके।" इसके बाद  भी जितना ऑक्सीजन चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा है। 

ऑक्सीजन उत्पादन से जुड़े कंपनियों के मालिक का कहना है कि अब भी हमारे पास ऑक्सीजन उत्पादन करने की क्षमता पर्याप्त है। जितनी ऑक्सीजन चाहिए उससे 40 फीसदी अधिक उत्पादित हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ी परेशानी ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन की है। ऑक्सीजन को उत्पादित करके  ऐसे खास किस्म के कंटेनर में रखा जाता है, जिसके अंदर दबाव बहुत अधिक हो और तापमान बहुत कम। इस क्रायोजेनिक टैंकर कहा जाता है। इस कंटेनर की संख्या हमारे पास कम है। अगर इसकी व्यवस्था होती तो भारत के पूर्वी इलाके से भारत के पश्चिमी और उत्तरी इलाके के लिए जरूरी ऑक्सीजन पहुंचा दी जाती। इन टैंकरों और ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था करनी बहुत जरूरी है। 

यानी ऑक्सीजन चाहिए लेकिन संरचनात्मक तौर पर इतनी अधिक कमियां है कि ऑक्सीजन नहीं पहुंच रही है और लोग मर जा रहे हैं। ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए सरकार का रोडमैप क्या है? सरकार के रोडमैप के मुताबिक 127000 ऑक्सीजन सिलेंडर का ऑर्डर दे दिया गया है, जिस की सप्लाई 30 अप्रैल के बाद शुरू होगी। मौजूदा समय में भारत के पास तकरीबन 1172 ऑक्सीजन टैंकर हैं। नाइट्रोजन और ऑर्गन से जुड़े टैंकर को भी बदलकर ऑक्सीजन के लिए इस्तेमाल करने का आदेश दे दिया गया है। इस तरह से भारत के पास तकरीबन 2000 क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंकर हो जाएंगे। इसके अलावा 162 ऑक्सीजन टैंकर दूसरे देश से आयात किया जाएगा। और अगले चार-पांच महीने के अंदर भारत में तकरीबन 100 से अधिक ऑक्सीजन टैंकर बनाने का आदेश दिया जा चुका है। मंत्रालय की तरफ से जिला अस्पतालों तक डायरेक्ट ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए तकरीबन 500 पीएसए प्लांट बनाने की योजना है।

इस पूरे रोड मैप में गुस्सा करने वाली बात यह है कि हम पहले क्यों नहीं तैयार हुआ? यह बिल्कुल ठीक बात है कि पिछले कुछ महीनों में सब लोगों को लगने लगा था कि कोरोना से हमें निजात मिल जाएगा। लेकिन सब लोग और सरकार में अंतर होता है। सरकार के पास वैज्ञानिकों जानकारों का एक दल होता है। वह सरकार को जिस तरह का इनपुट देते होंगे उस तरह का इनपुट आम लोगों को नहीं मिलता। कहने का मतलब यह है कि सरकार को पक्का पता होगा कि स्थिति गंभीर होने वाली हैं फिर भी सरकार ने गंभीरता से काम नहीं किया? यहां पर नरेंद्र मोदी को केंद्र में रखकर बना हुआ सिस्टम जिम्मेदार है।

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