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महामारी की प्रतिक्रिया और भविष्य के लिए सबक

लैंसेट कोविड-19 आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट ऑनलाइन प्रकाशित की। रिपोर्ट पहले से ही वैश्विक स्वास्थ्य सेवा समुदाय के बीच हलचल पैदा कर रही है जैसा कि सोशल मीडिया से देखा जा सकता है। आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और सरकारों की नीतियों पर भी इसका असर पड़ेगा। यहां हम आयोग के मुख्य निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं और उसकी कमियों पर प्रकाश डालते हैं ।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : Scroll

लैंसेट एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल है। जुलाई 2020 में लैंसेट ने महामारी के लिए सरकारों, स्वास्थ्य प्रणालियों और समुदायों की प्रतिक्रिया की जांच करने के लिए 28 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हस्तियों को शामिल करते हुए लैंसेट कोविड -19 आयोग का गठन किया;  इनमें मुख्य रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे। लेकिन अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी थे जिनमें फाइनेंसर, अर्थशास्त्री, राजनयिक और संबंधित विषयों के विभिन्न वैज्ञानिक शामिल थे।

इस आयोग ने 12 कार्यबलों (taskforces) का गठन किया और इन कार्यबलों के काम में सहायता के लिए विभिन्न क्षेत्रों के 173 अन्य विशेषज्ञों को शामिल किया। पिछले एक साल में, ये कार्यबल अपनी व्यक्तिगत रिपोर्ट के साथ आए हैं।

इन सभी रिपोर्टों को समेकित करते हुए, लैंसेट कोविड -19 आयोग ने 14 सितंबर 2022 को अपनी अंतिम रिपोर्ट ऑनलाइन प्रकाशित की। रिपोर्ट पहले से ही वैश्विक स्वास्थ्य सेवा समुदाय के बीच हलचल पैदा कर रही है जैसा कि सोशल मीडिया से देखा जा सकता है। आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और सरकारों की नीतियों पर भी इसका असर पड़ेगा। यहां, हम आयोग के मुख्य निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं और उसकी कमियों पर प्रकाश डालते हैं ।

आयोग की रिपोर्ट इसके कार्यकारी सारांश के साथ शुरू होती है। कार्यकारी सारांश इस वाक्य के साथ शुरू होता है: “फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन की रिपोर्ट के अनुसार, 31 मई, 2022 तक, कोविड -19  से 69 लाख लोगों की मृत्यु और 1 करोड़ 72 लाख अनुमानित मौतें हुई थीं। यह चौंका देने वाला मौत का आंकड़ा एक गहरी त्रासदी और कई स्तरों पर एक बड़ी वैश्विक विफलता है। ”

पहली नज़र में, इस व्यापक सामान्यीकरण से कुछ हद तक परेशानी होती है कि कोविड -19 प्रतिक्रिया एक "व्यापक वैश्विक विफलता" थी। कोई यह सोचने लग सकता है कि क्या यह आयोग कोविड-19 महामारी के खिलाफ लाखों डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की वीरतापूर्ण लड़ाई को कमतर करके आंकता है? यह उन्हीं की लड़ाई है जिसने 2 साल और नौ महीने बाद अब महामारी को लगभग नियंत्रण में ला दिया है, ताकि डब्ल्यूएचओ (WHO) प्रमुख आत्मविश्वास से यह घोषणा कर पाए कि महामारी का अंत निकट प्रतीत होता।

अगर रिपोर्ट में 1 करोड़ 72 लाख का अनुमानित टोटल देते हुए, वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय द्वारा स्वयं के जीवन को जोखिम में डालते हुए बचाए गए लोगों की संख्या का अनुमान लगाया गया होता तो कोई सराहना भी करता। कम से कम, आयोग उन लोगों की संख्या संकलित कर सकता था जो कोरोना वायरस संक्रमण के साथ अस्पतालों में भर्ती हुए और इलाज करवाकर पूरी तरह से स्वस्थ होकर घर वापस चले गए। यहां तक कि एक अनुमानित संख्या- वैश्विक स्तर पर और कुछ प्रमुख देशों के लिए- पाठकों को वैश्विक कोविड -19 प्रतिक्रिया में सापेक्ष "विफलताओं" और "सफलताओं" के बारे में अधिक संतुलित दृष्टिकोण तक पहुंचने में मदद करती।

वैसे भी, आगे पढ़ने पर यह आहिस्ता-आहिस्ता समझ में आता है कि आयोग द्वारा किया गया ‘विफलता’ विश्लेषण अधिक ठोस और सूक्ष्म था। रिपोर्ट विफलताओं के 10 प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करती है: 1) COVID-19 के प्रकोप की समय पर सूचना का अभाव; (2) SARS-CoV-2, वायरस जो COVID-19 महामारी का कारण बनता है, के संचरण के तरीके को स्वीकार करने और वायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर उचित उपायों को लागू करने में देरी, जो महंगी पड़ी; (3) वायरस को दबाने की रणनीतियों के संबंध में देशों के बीच समन्वय की कमी; (4) महामारी को नियंत्रित करने के लिए सबूतों की जांच करने और सर्वोत्तम प्रथाओं (practices) को अपनाने में सरकारों की विफलता; (5) कम आय वाले और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के लिए वैश्विक वित्त पोषण की कमी; (6) व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और दवाओं जैसी प्रमुख वस्तुओं की पर्याप्त वैश्विक आपूर्ति और समान वितरण सुनिश्चित करने में विफलता; (7) संक्रमणों, मौतों, वायरल रूपों, स्वास्थ्य प्रणाली प्रतिक्रियाओं, और अप्रत्यक्ष स्वास्थ्य परिणामों पर समय पर, सटीक और व्यवस्थित डेटा की कमी; (8) महामारी की अगुवाई में जैव सुरक्षा नियमों (biosafety regulations) के उपयुक्त स्तरों का खराब प्रवर्तन , प्रयोगशाला से संबंधित प्रकोप की संभावना को बढ़ाता है; (9) व्यवस्थित तरीके से दुष्प्रचार का मुकाबला करने में विफलता; और (10) भेद्यता (vulnerability) का अनुभव करने वाली आबादी की रक्षा के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय सुरक्षा जाल की कमी।

कमियों और यहां तक कि असफलताओं की ऐसी समीक्षा में कोई भी दोष नहीं ढूंढ सकता। भारत और चीन जैसी कुछ सरकारें अत्यधिक प्रतिक्रियाओं के साथ आईं और उन्होंने महामारी के खिलाफ लड़ाई को जटिल बना दिया। उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने 4 घंटे की बेहद कम नोटिस पर पूर्ण तालाबंदी (lockdown) लागू कर दी, जिससे समाज को इसकी तैयारी के लिए बहुत कम समय मिला। इससे हुई तबाही सर्वविदित है। इसी तरह, चीन ने महामारी को नियंत्रित करने के लिए राज्य एजेंसियों द्वारा अत्यधिक सर्वसत्तावादी तरीकों का सहारा लिया बजाय समुदायों की पहल को खोलने और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए उन्हीं पर भरोसा करती । दूसरी ओर, कुछ सरकारें, जैसे अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन और ब्राजील में बोल्सोनारो सरकार, लंबे समय से इनकार मोड में थीं और वायरस के संचरण को रोकने के लिए शुरुआती उपाय करने में विफल रहीं। इसलिए, दोनों देशों में मरने वालों की संख्या सैकड़ों-हजार तक पहुंच गई। हालांकि आयोग की रिपोर्ट परोक्ष रूप से इस विफलता को उजागर करती है, लेकिन इन सरकारों का नाम लेने से कतराती है। इससे रिपोर्ट का प्रहार मंद पड़ जाता है।

इस बात पर विवाद बना हुआ है कि क्या SARS-CoV-2 वायरस चीन के वुहान में एक गीले बाजार (wet market) से उभरा या चीन की एक प्रयोगशाला से निकला है, जहां इस वायरस पर प्रयोग चल रहे थे। एक जांच समिति की घोषणा कि वायरस किसी प्रयोगशाला से नहीं निकला है, ने सभी संदेहों को दूर नहीं किया  क्योंकि पश्चिम में शक्तिशाली निहित स्वार्थ इस मुद्दे पर चीन को राजनीतिक रूप से लक्षित करने के इच्छुक थे। इस मुद्दे पर आयोग के सदस्यों के विचार कथित तौर पर विभाजित थे और इसलिए उसने इस मुद्दे पर एक निश्चित रुख अपनाने से परहेज किया और इस मुद्दे को आगे के शोध के लिए आराम से स्थगित कर दिया!

मुख्य निष्कर्ष

प्रमुख खोज थी कि: " डब्ल्यूएचओ (WHO) ने कई महत्वपूर्ण मामलों पर बहुत सावधानी से और बहुत मंद गति से काम किया, जैसे: वायरस के मानव संचरण के बारे में चेतावनी देने में, अंतर्राष्ट्रीय चिंता के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने में, वायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए डिज़ाइन किए गए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा प्रोटोकॉल का समर्थन करने में, सुरक्षात्मक गियर के रूप में फेस मास्क का सार्वजनिक उपयोग का समर्थन करने में, और वायरस के हवाई संचरण को पहचानने में ।”

इस बाबत WHO की आलोचना लाज़मी है। हालांकि, कई सरकारें अन्य स्वास्थ्य मुद्दों पर डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के लिए लेशमात्र भी परवाह नहीं करती हैं। लेकिन रिपोर्ट इन सरकारों को केवल एक सामान्य अवलोकन के साथ बख्श देती है, "जैसा कि जनवरी, 2020 की शुरुआत में विश्व स्तर पर प्रकोप का पता चला था, दुनिया भर की अधिकांश सरकारें इसके महत्व को स्वीकार करने और प्रतिक्रिया में तत्काल कार्य करने के मामले में बहुत धीमी थीं।" सच कहने में यह हिचकिचाहट क्यों?

रिपोर्ट में यह भी हल्के ढंग से उल्लेख किया गया है कि, "महामारी से निपटने में सरकारों के बीच समन्वय अपर्याप्त था।" लेकिन अगले ही बिंदु पर, रिपोर्ट में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी प्रतिबंधात्मक उपायों का विरोध करने के लिए सरकारों के साथ-साथ आम जनता पर समान रूप से दोषारोपण किया गया है। यह दृष्टिकोण मूल रूप से त्रुटिपूर्ण है। सरकारों की विफलताओं की तुलना में जनता का प्रतिरोध मामूली था।

आगे रिपोर्ट कहती है, "सार्वजनिक नीतियों ने महामारी के गहन असमान प्रभावों को ठीक से संबोधित नहीं किया।" यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि कोई भी महामारी गरीबों को अधिक प्रभावित करेगी। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारी रणनीति में पूर्वाग्रह है,  जिसने मजदूरों, आदिवासियों, उत्पीड़ित जातियों (races), जातियों और लिंग जैसे गरीब वर्गों को अपने हाल पर छोड़ दिया।

रिपोर्ट कई टीकों (vaccines) के तेजी से विकास की सराहना करती है। लेकिन यह कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में टीके की कमी और वैक्सीन असमानता के बारे में चुप है जो आज तक जारी है। ऐसे देशों के लिए वैक्सीन फाइनेंसिंग हेतु ग्लोबल फंड बहुत कम है। संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ जैसी इसकी एजेंसियां दुनिया भर में बूस्टर खुराक सहित संपूर्ण टीकाकरण करने के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाने में विफल रही हैं। यह प्रस्तावित जलवायु निधि पर विफलता जैसा ही लगता है। जो भी टीकाकरण किया गया है वह मुख्य रूप से आर्थिक सुधार को सुगम बनाने के उद्देश्य से किया गया है, न कि सभी कमजोर लोगों को बचाने के उद्देश्य से। यह विकृत प्राथमिकताओं को पैदा करने के लिए बाध्य है।

रिपोर्ट मुख्य निष्कर्षों पर खंड को इस विलाप के साथ समाप्त करती है कि," सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और पेरिस जलवायु समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक निवेश के गहरे ‘अंडरफाइनेंसिंग’ के साथ, सतत विकास प्रक्रिया को कई वर्षों से पीछे कर दिया गया है ।"

इससे यह आभास होता है कि संयुक्त राष्ट्र एसडीजी और पेरिस जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक अभियान की अंडरफंडिंग महामारी के कारण थी। बल्कि, सच्चाई यह है कि महामारी की शुरुआत से पहले भी ये दो लक्ष्य अंडरफंडेड ही थे। इससे भी बदतर, महामारी की रोकथाम के प्रयासों को स्वयं इतना अंडरफंडेड कर दिया गया था कि उचित धन के जरिये सैकड़ों और हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। भारत में कोविड -19 से निपटने पर हाल ही में संसदीय समिति की रिपोर्ट, , जो कि लैंसेट आयोग की रिपोर्ट से कुछ ही दिनों पहले थी, के अनुसार, अकेले ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति से भारत में हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी। लैंसेट रिपोर्ट इस महत्वपूर्ण मुद्दे से बचती है कि लापरवाही के कारण कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए ऐसे अंडरफंडिंग के लिए जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाए।

प्रमुख सिफारिशें

कुछ देशों को छोड़कर, जो कोविद -19 मामलों में स्पाइक देख रहे हैं और जो लंबे समय से कोविड की बीमारियों की रिपोर्ट कर रहे हैं, वैश्विक समुदाय ने नए मामलों को सीमांत स्तर (marginal level) पर रखने में सफलतापूर्वक कामयाबी हासिल की है और यहां तक कि भारत भी प्रति दिन केवल लगभग 5000 मामलों की रिपोर्ट कर रहा है। इस स्तर पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग को बढ़ाकर आगे संचरण को रोकने के लिए और अधिक गहन प्रयास किए जा सकते हैं। इस प्रकार निकट भविष्य में मामलों की संख्या को कुछ सौ तक कम करना संभव है। गहन लास्ट माइल नियंत्रण प्रयासों की सिफारिश करने के बजाय, अपनी पहली सिफारिश में रिपोर्ट " पूरक सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक उपायों (कुछ संदर्भों में फेस मास्क पहनने सहित), सुरक्षित कार्यस्थलों को बढ़ावा देने और आत्म-अलगाव (self-isolation) के लिए आर्थिक और सामाजिक समर्थन " पर आधारित है। ।"

दूसरी सिफारिश है "WHO, सरकारों और वैज्ञानिक समुदाय को SARS-CoV-2 की उत्पत्ति की खोज को तेज करना चाहिए, एक संभावित जूनोटिक (zoonotic) मूल और एक संभावित शोध-संबंधित मूल दोनों की जांच करना चाहिए।" इस तरह की जांच में समय लगना तय है और सफल परिणाम की गारण्टी नहीं हो सकता है। इसलिए इस तरह की जांच के निष्कर्ष से पहले ही, आनुवंशिक और वायरल अनुसंधान में संलग्न सभी प्रयोगशालाओं के लिए परमाणु रिएक्टरों के लिए, IAEA के समान एक अंतरराष्ट्रीय निकाय द्वारा कड़े नियंत्रण और निरीक्षण किए जाने चाहिए।

अगली सिफारिश स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के वैज्ञानिक प्रमाणों की पहचान करने के लिए डब्ल्यूएचओ विज्ञान परिषद की स्थापना पर जोर देती है। यह एक अच्छा प्रस्ताव है क्योंकि कोरोनवायरस से संबंधित कई अनसुलझे माइक्रोबियल रहस्य हैं जो वैज्ञानिक उत्तरों की मांग करते हैं। लेकिन यहां इस मुद्दे की जड़ अनुसंधान के लिए उच्च वित्त पोषण है जो जलवायु निधि के समान $ 100 बिलियन हो; महामारी विज्ञान अनुसंधान के लिए मिलती-जुलती निधि क्यों नहीं है? आयोग ऐसा कोई ठोस प्रस्ताव लेकर नहीं आया है।

अगली सिफारिश सरकारों के बीच समन्वय पर भी जोर देती है लेकिन सरकारों को अपने देशों में क्या करना चाहिए यह अस्पष्ट है। अगली सिफारिश भी डब्ल्यूएचओ को मजबूत करने पर अस्पष्ट है। इसे कैसे किया जाए, इस सवाल को खुला छोड़ दिया गया है।

इसके बाद, रिपोर्ट दो-ट्रैक रणनीति का प्रस्ताव करती है, वैश्विक और स्थानीय: एक, कम आय वाले देशों की मदद करने के लिए टीके सहित आर एंड डी (R&D) और कमोडिटी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 10 साल की वैश्विक रणनीति; और दूसरा, मानव अधिकारों और लैंगिक समानता पर आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की नींव पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना।

वास्तव में, कई देश वैक्सीन निर्माण सुविधा (facility) स्थापित कर सकते हैं और भविष्य की वैक्सीन आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं और इसे विशुद्ध रूप से वैश्विक प्रयास नहीं रहना चाहिए। वर्तमान वैश्विक वितरण मॉडल में बाधाएं केवल दो फर्मों पर आधारित भारत द्वारा स्थापित सफल राष्ट्रीय मॉडल के बिल्कुल विपरीत हैं। भारत कई प्रमुख देशों के लिए एक अच्छे मॉडल के रूप में काम कर सकता है, जो वैश्विक पहलों पर उम्मीदें लगाने के बजाय अपनी खुद की वैक्सीन निर्माण सुविधाएं स्थापित कर सकता है। भारत-दक्षिण अफ्रीका के टीकों को पेटेंट प्रतिबंधों से मुक्त करने के प्रस्ताव को यहां रेखांकित करने की आवश्यकता है और इस रिपोर्ट को इस कदम का समर्थन करना चाहिए था।

कॉरपोरेट अस्पतालों पर अंकुश और स्वास्थ्य सेवा के बेलगाम व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध बिना राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने की सिफारिश संभव नहीं है। दुर्भाग्य से, रिपोर्ट इस मुद्दे पर चिंतित नहीं है।

प्रत्येक देश की अपनी महामारी की तैयारी योजना होने की अगली सिफारिश अच्छी है। इस पर मजबूत वैश्विक राय बनाने की जरूरत है।

WHO के साथ मिलकर एक वैश्विक स्वास्थ्य कोष स्थापित करने की अंतिम सिफारिश भी एक उपयुक्त प्रस्ताव है। इसके बारे में महत्वपूर्ण सवाल है: कितने अरबों का वैश्विक कोष? यदि केवल भारत ने पर्याप्त ऑक्सीजन आपूर्ति, वेंटिलेटर और आईसीयू बेड सहित महामारी की तैयारियों पर अतिरिक्त 5 अरब डॉलर खर्च किए होते, तो मानव जीवन के नुकसान को 5 लाख प्लस से आधा किया जा सकता था। G20 में विकासशील और कम से कम विकसित देशों और गरीब वर्गों की मदद के लिए 200 अरब डॉलर के फंड से शुरुआत क्यों नहीं की गई? यह देशों के कुल वार्षिक रक्षा बजट का एक अंश ही होगा। अफसोस की बात है कि हथियार मानव जीवन को तब भी बर्बाद कर देते हैं, जब उनका उपयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इनका उत्पादन केवल संसाधनों को महामारी की तैयारी जैसी महत्वपूर्ण जरूरतों  की कीमत पर किया जाता है। लैंसेट कमीशन थोड़ा और बोल्ड हो सकता था।

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