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कोविड-19: आपराधिक लापरवाही का कोई बहाना नहीं, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को देना चाहिए इस्तीफ़ा

डॉ.हर्षवर्धन ने इस देश के लोगों की सुरक्षा में बहुत कम दिलचस्पी दिखायी है। वह सिर्फ़ चाकरी और ख़ुशामद की भाषा बोल रहे हैं।
डॉ.हर्षवर्धन
फ़ोटो: साभार द इंडियन एक्सप्रेस

भारत कोविड-19 के संक्रमण और इससे हुई मौत के लिहाज़ से दुनिया का शीर्ष देश है। हम हर दिन तक़रीबन चार लाख मामले और लगभग 4,000 मौत दर्ज कर रहे हैं। इस घातक महामारी के हर दो वैश्विक मामलों में से एक मामला हमारे देश से आ रहा है। हमारी दैनिक मृत्यु दर उस ब्राजील के मुक़ाबले 1.3 गुना है,जो पिछले साल लगभग सभी देशों के बीच दुनिया का सबसे ख़राब कोविड हॉटस्पॉट था।

दो करोड़ जनसंख्या वाली राष्ट्रीय राजधानी में शायद ही ऐसा कोई घर हो जो महामारी की ज़द में नहीं आया हो। हम ऐसे दृश्यों के बीच रहने के लिए अभिशप्त हैं,जहां अस्पतालों में बेड के लिए रोते-बिलखते,ऑक्सीजन के लिए गिड़गिड़ाते हुए लोगों को देखा जा सकता है और श्मशान स्थलों पर क़तारों में लगी लाशों की  बेशुमार संख्या देखी जा सकती है। इस अंतहीन त्रासदी के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने 27 अप्रैल को ऐलान किया, “इस साल 2020 के मुक़ाबले कोविड-19 महामारी को मात देने के लिहाज़ से भारत ज़्यादा तजुर्बे के साथ मानसिक और शारीरिक रूप से बेहतर तरीक़े से तैयार है।”

त्रासदी का इससे ज़्यादा हास्यास्पद मामला और भला क्या हो सकता है। ‘बेहतर तरीक़े से तैयार होने’ की यह बात कुछ-कुछ वैसी ही है,जैसे कि मैरी एंटोइनेट ने कभी अपने भूखे देशवासियों से कहा था,“अगर उनके पास रोटी नहीं है,तो उन्हें केक दे दो।’

डॉ. वर्धन को इस बात से अवगत होना चाहिए कि भारत के प्रमुख चिकित्सा संस्थान ऑक्सीज़न की कमी से जूझ रहे हैं, जबकि हजारों लोग मर चुके हैं, और उनकी मौत वायरस से नहीं,बल्कि ऑक्सीजन की कमी के चलते हुई है। 1 मई को मेडिकल ऑक्सीजन के नहीं होने से राजधानी के बत्रा अस्पताल में 12 कोविड रोगियों की मौत हो गयी थी। मरने वालों में डॉ. आरके हिमथानी भी थे,जो उसी अस्पताल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी यूनिट के प्रमुख थे।

यह उन छोटे-छोटे गली-नुक्कड़ों पर स्थित नर्सिंग होम और प्रसूति क्लीनिकों का संदर्भ नहीं है,जहां रोगियों को –एक-एक सांस से जूझने के लिए छोड़ दिया गया है,बल्कि इस फ़ेहरिस्त में सर गंगा राम अस्पताल,मैक्स अस्पताल,जयपुर गोल्डन अस्पताल और ईएसआई अस्पताल,जयपुर जैसे भारत के कुछ प्रमुख अस्पतालों के नाम भी हैं।

ऑक्सीजन की आपदा की यह कहानी पूरे देश में दोहरायी जा रही है। इससे भी बुरी बात यह है कि ऑक्सीजन की काला-बाज़ारी इस क़दर फल-फूल रही है कि 48 किलोग्राम का एक सिलेंडर 1 लाख रुपये में बिक रहा है। अस्पताल में बेड नहीं हैं। कोरोना से सम्बन्धित दवाओं और ऑक्सीजन सैचुरेशन मशीनों का एक भरा-पूरा काला बाज़ार है।

हालात इस सीमा तक बिगड़ गये हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष,डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस को कहना पड़ा है, "भारत में स्थिति हृदयविदारक है।"

सवाल है कि ऐसी स्थिति में भी डॉ वर्धन या उनके मंत्रालय में किसी ने भी इन गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास किया है ?  स्थिति किस क़दर बदतर होती जा रही है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि अब एक से दो किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए एंबुलेंस का भाड़ा एक लाख रुपये तक वसूला जा रहा है। ऐसे में हैरानी नहीं कि हज़ारों कोरोना रोगी अपने-अपने घरों की चार दीवारी के भीतर मृत पाये जा रहे हैं। जो लोग किसी अस्पताल तक पहुंचने में कामयाब हो भी जाते हैं, वे उस अस्पताल के दरवाज़े पर उन हताश रिश्तेदारों के साथ दम तोड़ रहे हैं,जो अस्पताल के अधिकारियों से एक बिस्तर के लिए मिन्नते कर रहे हैं।

कोविड-19 की दूसरी लहर ने देश के स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की भारी कमी को उजागर कर दिया है, साथ ही यह बात भी सामने आ गयी है कि सरकार इस संकट से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी। इस महामारी के सिलसिले में इलाज के हर चरण में ज़रूरी सेवा मुहैया कराने की ग़ैरमौजूदगी हर जगह साफ़-साफ़ दिखती है।

लेकिन,कुछ दिनों पहले तक डॉ.वर्धन ख़बरिया चैनलों पर यह दावा करते फिर रहे थे कि सब कुछ दुरुस्त है। अब हम उनसे यह जानना चाहते हैं कि वह और उनके अधिकारी यह देखते हुए प्रेशर स्विंग सोर्सेशन मेडिकल ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट्स की स्थापना को लेकर क्यों टाल-मटोल करते रहे कि दिल्ली में 8,उत्तरप्रदेश में 14, चंडीगढ़ में 3, हरियाणा में 6 सहित पूरे भारत में 162 ऑक्सीजन प्लांट शुरू करने की मंज़ूरी मिल चुकी थी और पीएम केयर से पिछले साल ही इसके लिए फ़ंड भी जारी कर दिया गया था।

डॉ. वर्धन की आपराधिक लापरवाही की यह एक ऐसी एकलौती मिसाल है, जो कि इस सचाई से और बदतर हो जाती है कि वह एक योग्य ईएनटी सर्जन है और यही वजह है कि वह इस तरह का कोई बहाना भी नहीं बना सकते कि वह इस महामारी की बारीकियों को नहीं समझते। शायद उनकी यही चिकित्सा से जुड़ी पृष्ठभूमि थी, जिसके चलते उन्हें यह मंत्रालय दिया गया था।

सवाल पैदा होता है कि क्या एमबीबीएस योग्यता प्राप्त डॉक्टर के रूप में उन्हें सरकार को कुंभ मेले जैसे सुपर स्प्रेडर इवेंट में उन नौ लाख से ज़्यादा भारतीयों के शामिल होने के नतीजों को लेकर चेतावनी देनी चाहिए थी कि नहीं, जिन्होंने मास्क पहनने की जहमत तक नहीं उठायी थी। उनमें प्रधानमंत्री को यह बताने का माद्दा भी नहीं था कि जब चुनावी रैलियां हो रही थीं, तो उस दरम्यान यह वायरस लाखों लोगों के जीवन को ख़तरे में डाल सकता था।

अब इसके नतीजे सबके सामने हैं। जो राज्य इससे पहले कोरोनावायरस के फ़ैलने को नियंत्रित करने में कामयाब रहे थे, अब वहां इस वायरस से संक्रमित होने की संख्या में उछाल आ रही है,ऐसे राज्यों में उत्तराखंड जैसा सूबा भी शामिल है, जिसने कुंभ मेले की मेज़बानी की है और जो इस  समय उन उच्चतम पोज़िटिव होने की दर वाले राज्यों में से एक है, जहां न तो चिकित्सा का बुनियादी ढांचा है और न ही चिकित्सा कर्मचारी इस आपदा से निपटने में सक्षम हैं।

वर्धन के पास बोलने के ऐसे कई मौक़े थे, जहां वह अपनी बात नहीं रख पाये, लेकिन वह इस समय लगातार बोल रहे हैं। उन्होंने फ़रवरी महीने में खुशी के साथ ऐलान किया था, "हम भारत में कोविड-19 महामारी के आख़िरी चरण में हैं।"

यह कहना सही नहीं है कि स्वास्थ्य मंत्री (अन्य नौकरशाहों की तरह) को इस दूसरी लहर के बारे में चेतावनी नहीं दी गयी थी। इंडियन SARS-CoV-2 जेनेटिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) ने कोरोनावायरस के जीनोमिक वेरिएंट का पता लगाने के लिए दस प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के शोध को एक साथ रखा है और इन वैज्ञानिकों ने मार्च के शुरू में इन वेरिएंट के ख़तरनाक प्रभावों के बारे में सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी को चेतावनी दी थी, यही बात उन्होंने डॉ वर्धन से भी बतायी थी।

इन निष्कर्षों को यह चेतावनी देते हुए 10 मार्च से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के साथ साझा किया गया था कि संक्रमण देश के हर हिस्से में फैल सकता है, लेकिन इसे लेकर किसी तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया। आईएनएसएसीओजी के शोधकर्ताओं ने सबसे पहले B.1.617 का पता लगाया, जिसे फ़रवरी के शुरू से ही कोरोना वायरस के भारतीय संस्करण के रूप में जाना जाता है। ज़रा सोचिए,अगर राज्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए केंद्र सरकार ने समय पर कार्रवाई की होती, तो क्या होता ? वे आंखों के सामने रोज़-रोज़ के बदहाल होते मंज़र के आने से पहले इस तबाही को नियंत्रित करने के लिए क़दम उठा सकते थे।

पिछले महीने राजधानी में हुए 62 वें वार्षिक दिल्ली राज्य चिकित्सा सम्मेलन को संबोधित करते हुए वर्धन की अपने महान नेता के प्रति अंध श्रद्धा उस समय अपने चरम पर थी, जब उन्होंने सरकार की वैक्सीन नीति का स्तुति गान किया था। एक मर्मस्पर्शी बधाई संदेश में उन्होंने कहा कि अब तक 2 करोड़ से ज़्यादा कोविड-19 वैक्सीन शॉट्स दिये जा चुके हैं और टीकाकरण की दर प्रति दिन 15 लाख हो गयी है।

उन्होंने कहा था,“ज़्यादातर दूसरे देशों के उलट हमारे पास कोविड-19 टीकों की एक नियमित आपूर्ति है, जो इम्युनिटी और प्रभाव के लिहाज़ से सुरक्षित हैं। शुरुआती नतीजों के आधार पर भारत में बने इन टीकों से दुनिया में कहीं भी हुए टीकाकरण के बाद सबसे कम प्रतिकूल नतीजे सामने आये हैं।"

वर्धन ने आगे कहा,“अगर बाक़ी दुनिया असुरक्षित रहती है, तो भारत को कोरोवायरस और कोविड-19 से सुरक्षित नहीं रखा जा सकता, यही वजह है कि कोविड-19 वैक्सीन के राष्ट्रवाद पर अंकुश लगाना ज़रूरी है।”

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत दुनिया के दवाखाने के तौर पर उभरा है, और इसने 62 विभिन्न देशों को 5.51 करोड़ कोविड-19 टीके की आपूर्ति की है।

उन्होंने कहा, "इस वैश्विक संकट के समय मोदी जी की अगुवाई में भारत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में दुनिया के लिए एक मिसाल बनकर सामने आया है। मोदी जी का ही इस बात पर ज़ोर था कि कोविड-19 टीकों को बिना किसी शर्त के मुहैया कराया जाना चाहिए और जिन देशों के पास वैक्सीन नहीं है, उन्हें इसकी आपूर्ति नहीं करके इन देशों से इस विश्वव्यापी मानवीय संकट के समय फ़ायदा नहीं उठाना चाहिए।"

वर्धन के ये शब्द हज़ारों बार उन्हें याद दिलाये जा चुके हैं। कई ट्वीट्स में एक मशहूर महामारीविज्ञानी डॉ.एरिक फ़िग्ल-डिंग ने भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन के घोर कुप्रबंधन के चलते उनसे इस्तीफ़े की मांग की। डॉ.फिग्ल-डिंग वाशिंगटन डीसी स्थित फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स में सीनियर फ़ेलो और माइक्रोक्लिनिक इंटरनेशनल में प्रमुख स्वास्थ्य अर्थशास्त्री भी हैं, जो पिछले साल कोरोनावायरस की गंभीरता के ख़िलाफ़ चेतावनी देने वाले पहले डॉक्टरों में से एक थे।

डॉ फिग्ल-डिंग ने वर्धन को बतौर भारत के स्वास्थ्य मंत्री "अयोग्य" बताया और उन्होंने जॉर्डन के स्वास्थ्य मंत्री की तरफ़ से अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से सिर्फ़ सात लोगों की मौत के बाद दिये जाने वाले इस्तीफ़े का हवाला देते हुए उनके इस्तीफ़े की मांग की।

उन्होंने आगे ट्वीट करते हुए कहा, "इसके अलावे,भारत का # कोविड-19 मानवीय संकट का मामला कोई "आंतरिक मामला नहीं है"- यह भारत के नियंत्रण से बाहर हो गया है और इसे भारत में नहीं रोक पाने की वजह से धरती के ग्लोब पर स्थित एशिया-ऑस्ट्रेलिया में यह वायरस फैल सकता है, जिससे यह महामारी पूरी दुनिया को ख़तरे में डाल रही है, इससे कई और म्यूटेंट का वैरिएंट पैदा होगा ! इसी वजह से मैं बोलता रहा हूं !"

उन्होंने अपने एक दूसरे ट्वीट में कहा,"इसलिए, इस बात की मांग की गयी है कि या तो डॉक्टर हर्षवर्धन भारत और दुनिया को बचायें या फिर इस्तीफ़ा दे दें। ऐसा करना आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं है।" भारत इस वैश्विक संकट का हॉटस्पॉट और लंबे समय तक महामारी के बने रहने की एक संभावित जगह बन गया है। यह महामारी से पैदा हुई एक लानत भरी स्थिति है! आपकी सीधी ज़िम्मेदारी है। लोगों को बचायें।”

डॉ वर्धन ने इस देश के लोगों की सुरक्षा में बहुत कम दिलचस्पी दिखायी है। वह सिर्फ़ चाकरी और ख़ुशामद की भाषा बोलते हैं। हाल ही में रक्तदान शिविर का उद्घाटन करते हुए डॉ वर्धन प्रधानमंत्री के लिए बचाकर रखे गये बेहद प्रशंसनीय शब्दावलियों का इस्तेमाल करते हुए उनके स्तुतिगान से ख़ुद को रोक नहीं पाये, जैसा कि उन्होंने इस मौक़े पर कहा था कि किस तरह नरेंद्र मोदी ने जनवरी में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया था, जिसे अब 1 मई से सभी नौजवान को टीका लगाने के लिए और तेज़ किया जा रहा है।

इस पूरे टीकाकरण अभियान के सिलसिले में सवाल पूछे जा रहे हैं। पूर्व स्वास्थ्य सचिव के.सुजाता राव ने सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की है कि आख़िर वैक्सीन कंपनियों को वैक्सीन की लागत निर्धारित करने की अनुमति कैसे दी जा रही है। इसके अलावा, उन्होंने यह पूछा कि राज्य सरकारों के कंधों पर दवाओं की ख़रीद की ज़िम्मेदारी क्यों डाल दी गयी है, क्योंकि यह देखते हुए कि इनमें से कई राज्य इतने कम समय के नोटिस पर इतने बड़े टीकाकरण अभियान को लेकर इसलिए ठीक से तैयार भी नहीं थे कि उनके पास टीके ही नहीं थे।

ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा सवाल पूछा है कि जब पिछले दिनों भारत में केंद्र सरकार के संरक्षण में दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई थी, तो उन्हें फिर इस मूल योजना पर अमल करने में बाधा क्या है।

बहरहाल, ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब डॉ वर्धन को देना होगा। हमें यह भी जानने की ज़रूरत है कि उन्होंने आगे बढ़कर पतंजलि के कोरोनिल को एक ऐसी अद्भुत दवा क्यों बताया और उसका समर्थन क्यों किया,जो कोविड-19 का इलाज करेगी। इसके अलावा, आयुष मंत्रालय ने इस दवा को अनुमति सिर्फ़ इसलिए दे दी, क्योंकि इसका निर्माता बीजेपी से सहानुभूति रखने वाला शख़्स है, जबकि इनके दावों को डब्ल्यूएचओ ने ख़ारिज कर दिया था।

लेकिन, डॉ वर्धन को खोखले दावा करते हुए देखा जाता रहा है। पिछले साल अगस्त में उन्होंने ऐलान किया था, "मैं हर किसी को इस बात के लिए आश्वस्त करता हूं कि घबराने की ज़रूरत नहीं है, हम किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए काफ़ी हद तक तैयार हैं।"

उनके दावे उसी तरह चिथरे-चिथरे हो गये हैं, जिस तरह हमारी ज़िंदगी हुई है। हमारे गांव के साथ-साथ हमारे देश के हर कोने में वायरस के फ़ैल जाने के साथ स्वास्थ्य के चरमराये बुनियादी ढांचे बेपर्दा हो गये हैं, और ऐसे में हर किसी को उसके ख़ुद के हवाले छोड़ दिया गया है। मुमकिन है कि इस वायरस के प्रसार ने हमारे वैज्ञानिकों और वायरस के जानकारों सहित सभी को हैरान कर दिया हो, लेकिन आज तक वर्धन देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति, बेड, ख़ाली पदों को भरने और अस्पतालों और केमिस्टों तक पहुंचती दवाओं की निगरानी को लेकर एक प्रतिबद्ध टीम तक बनाने के लिए आगे नहीं बढ़ पाये हैं। कहीं भी समुचित बुनियादी ढांचा तक नहीं है! साफ़ है कि जिस काम के लिए वह अपने शीर्ष नेता के निर्देशों का इंतज़ार कर रहे है, उसे कर पाने में वह ख़ुद असमर्थ हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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