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कोविड-19 बनाम कोविड-21: बिन उत्सव सब सून!

मोदी जी ने ताबड़तोड़ चार दिन के टीका उत्सव का ऐलान कर दिया। टीका भी और उत्सव भी। कोरोना टीके से डरने को राज़ी नहीं है तो क्या हुआ, हम उसे उत्सव से पटा लेंगे।
कोविड-19 बनाम कोविड-21: बिन उत्सव सब सून!

हमें तो पहले ही शक था। आखिर, कोई तो बात थी। ऐसा यूं ही तो नहीं हो सकता था। जब टीका नहीं था, तो कोरोना घट रहा था। लेकिन, जब टीका आ गया, तो कोरोना दोबारा बढऩे लगा। और सिर्फ बढऩे ही नहीं लगा। बढ़ते-बढ़ते पट्ठा उस मुकाम पर पहुंच गया, जहां तक टीका आने से पहले कभी पहुंचा ही नहीं था। तो क्या इंडिया में टीका फेल है? इंडिया वैसे ही तीन लोक से न्यारी है। उस पर गोमूत्र और पवित्र गोबर की मार खा-खाकर कोरोना वाइरस भी ढीठ हो गया लगता है। ऐंठ रहा है कि जब गो-उत्पादों से लेकर रामदेव उत्पाद तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए, टीका ही क्या उखाड़ लेगा? फिर भी बात सिर्फ इतनी ही नहीं हो सकती थी। टीका फेल तो फेल, पर टीका आने से पहले जहां तक पहुंच गया था, कोरोना उससे भी ऊपर कैसे चढ़ गया? यह कोरोना के सिर्फ टीके को फेल करने का मामला नहीं हो सकता!

अब मोदी जी ने टीका उत्सव का ऐलान किया, तो समझ में आया कि माजरा क्या है! टीका तो आ गया, टीका लगने भी लगा, पर उत्सव नहीं आया। स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लग गया, तब तक कोरोना रुका रहा। फ्रंटलाइन वर्करों को टीका लग गया, तब भी कोरोना ने सोचा अब उत्सव का नंबर आएगा। बुजुर्गों को टीका लगा तब भी कोरोना बुजुर्गों का ख्याल कर के शांत रहा। पर जैसे ही पैंतालीस साल तक के अधेड़ों का नंबर आया, कोरोना का धैर्य छूट गया। फिर क्या था, टीका डाल-डाल, तो कोरोना पात-पात! हर रोज के केसों में इंडिया अख्खा दुनिया में नंबर वन। तब मोदी जी को ख्याल आया कि इस साल कोरोना के लिए उत्सव तो किया ही नहीं। चुनावों के लिए रोड शो किए, सभाएं कीं। अहमदाबाद स्टेडियम का नाम बदलने के लिए क्रिकेट मैच किए। आस्था के लिए कुंभ भी किया। पर कोरोना के लिए एक बार ताली-थाली तक नहीं बजायी। याद आने की देर थी कि मोदी जी ने ताबड़तोड़ चार दिन के टीका उत्सव का ऐलान कर दिया। टीका भी और उत्सव भी। कोरोना टीके से डरने को राजी नहीं है तो क्या हुआ, हम उसे उत्सव से पटा लेंगे।

जाहिर है कि कोरोना को उत्सव से पटाने का मोदी जी का भरोसा कोई चुनावी जुमले का मामला नहीं है। यह तो मोदी जी का आजमूदा नुस्खा है। पिछले साल की ही तो बात है। जब कोरोना हमारे देश में तो क्या दुनिया भर में नया-नया ही था और उसके रंग-ढंग का लोगों को ज्यादा पता भी नहीं चला था, तब भी अठावले के ‘‘गो कोरोना गो’’ में प्राचीन भारतीय संस्कृति का तडक़ा लगाते हुए, मोदी जी ने कोरोना के स्वागत में ताली-थाली पीटो उत्सव करा दिया था। पर अनजाने में पश्चिमी ‘‘गो कोरोना’’ यानी कोरोना जाओ से थाली बजाओ की तुक मिल गयी और कोरोना मिस-अडरस्टेंड कर गया। अब मोदी जी को बाकायदा ‘‘दीया-बाती’’ से स्वागत कराना पड़ा और उससे भी बात पूरी तरह नहीं बनी तो देवताओं के आशीर्वाद की शैली में, बाकायदा आकाश से पुष्प-वर्षा करानी पड़ी। कोरोना अब भी नहीं पिघलता तो क्या करता?

पर इधर कोरोना ढीला पड़ा और उधर अरबपतियों का कुनबा सख्त हो गया। एक ही रट, गिरती इकॉनमी में, मुनाफे ऊपर उठाओ। अब मोदी जी को लॉकडाउन का सीरियल छोडक़र, ओपन का सीरियल शुरू करना पड़ा। उससे भी काम नहीं चला तो आत्मनिर्भर भारत करना पड़ा। अंबानी-अडानी की एक मुस्कान के लिए मजदूरों से लेकर किसानों तक को खुड्डे लाइन लगाना पड़ा। संसद से लेकर सोशल मीडिया तक को संभालो, विपक्षी सरकारों की नाक में दम करो और यह सब करते-करते बराबर चुनाव प्रचार के मोड में रहो। रोज-रोज तेल के दाम बढ़ाओ, सो ऊपर से। एक मोदी जी की जान, कितने सारे काम। इसी सब आपाधापी में कोरोना को खुश रखने की बात दिमाग से निकल गयी। बस पट्ठा सनक गया। पिछले साल जब डरा रहा था तो दो महीने में तीन-तीन उत्सव और अब जरा सी नरमी दिखाई तो, नौ महीने में एक मामूली सा उत्सव तक नहीं। साल भर में तुलसी को उद्धृत करना सीख गया था। बोला--भय बिनु प्रीति होइ नहीं देवा...और लगा दिखाने अपना रौद्र रूप। मोदी जी अब भी चार दिन के टीका उत्सव का ऐलान नहीं करते तो क्या करते!

कुछ लोग अब भी टीका उत्सव का विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मोदी जी का उत्सवों में तो स्पेशलाइजेशन है, पर टीका कहां है? इधर उत्सव की तैयारी है, उधर जहां भी देखो टीके की मारा-मारी है। वहां टीके की कमी से टीकाकरण केंद्र बंद हो रहे हैं और मोदी जी चार दिन के उत्सव की तैयारी कर रहे हैं। पर ये लोग जान-बूझकर, कोविड को संभालने की देश की कोशिशों में पलीता लगा रहे हैं। वर्ना चार दिन के उत्सव पर इतना हाय-हल्ला करने की क्या जरूरत है। टीके का क्या है, पहले भी लग रहे थे, आगे भी लगते रहेंगे। दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम में, कभी सुस्ती तो कभी तेजी लगी ही रहती है। पर टीकाकरण का फायदा तभी न होगा, जब कोरोना वाइरस उसे टीका मानकर देगा। अगर वाइरस ही टीके को टीका नहीं मानेगा तो फिर टीका किस काम का? और पहली लहर गवाह है कि कोरोना न गोबर-गोमूत्र से मानता है, न रामदेव की दवाओं और काढ़े से और न एलोपैथी की दवाओं से। हमारे चौतीस करोड़ देवी-देवताओं की तरह कोरोना खुश होता है, पूजा-आरती से, उत्सव से। सो पूजा-आरती के टीके से कोरोना को मनाने दो यारो। नाच-गाकर कर कोरोना को रिझाने दो यारो! कब तक करोना-करोना करते रहोगे, उत्सव भी तो मनाने दो यारो। कोई कवि कह गया है--बिन उत्सव सब सून!

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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