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दिल्ली: बीजेपी और वीएचपी नेताओं ने फिर दिए भड़काऊ भाषण, पुलिस फिर उचित कार्रवाई से बची  

पुलिस ने कारवाई करते हुए धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज किया जो अपने आप में हास्यास्पद है क्योंकि इस धारा के तहत अधिकतम एक महीने की कैद या केवल 2000 तक जुर्माना या दोनों हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि बिना अनुमति के इतना भव्य मंच लगाकर कई घंटों तक कार्यक्रम कैसे चला? दूसरा, हेट स्पीच के कई पुराने आरोपी यहाँ आए और एकबार फिर यहां धार्मिक उन्माद की बात कर के कैसे आसानी से चले गए? घटना के एक दिन बीत जाने के बाद भी केवल FIR हुई है, किसी आरोपी की अबतक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? इस तरह के कई सवाल पुलिस प्रशासन पर उठ रहे हैं।
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10 अक्टूबर 2022 को दिल्ली के जीटीबी नगर के रामलीला मैदान में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने आक्रोश रैली आयोजित की, जिसमें एकबार फिर दक्षिणपंथी नेताओं ने जमकर नफरती भाषण दिए। इसका आयोजन मुख्यतः वीएचपी द्वारा किया गया था। इसमें बीजेपी के कई बड़े नेता, विधायक, सांसद और हिन्दू धर्म से जुड़े संतों ने भाग लिया। इस सभा का आयोजन सुंदर नगरी में हुए मनीष हत्याकांड के खिलाफ किया गया था लेकिन इस सभा को कानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार लोगों और संस्थाओं पर हमले से ज़्यादा मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलने के लिए इस्तेमाल किया गया। हर बार की तरह इस बार भी राजधानी की पुलिस मूकदर्शक बन सब सुनती रही और एक दिन बाद कुछ औपचारिक कार्रवाई की और मामूली धाराओं मे मुकदमा दर्ज किया। इस घटना ने एकबार फिर पुलिस की भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं।

खुलकर दिए गए नफ़रती भाषण

सभा में मौजूद एक वक्ता योगेश्वर आचार्य जो खुद को जगतगुरु कहते हैं, वे खुलेआम लोगों के सर काटने के लिए उकसाते दिखे। योगेश्वर आचार्य ने कहा, "बड़े दुख का विषय है कि हमारी इतनी संख्या होने के बावजूद हमारे हिंदू भाइयों की निर्मम हत्या हो रही है। यदि हम जागेंगे नहीं तो हमारे साथ ऐसे ही होता रहेगा।"

वो आगे कहता है, "ये हमें गिन-गिनकर टारगेट करेंगे। आपसे अनुरोध है कि यदि ऐसे लोग कहीं भी ऊंगली दिखाएं तो उनकी ऊंगली मत काटो, उनका हाँथ काट दो और अगर ज़रूरत पड़े तो गला काटने से भी पीछे मत हटो।"

योगेश्वर आचार्य ने कहा, "गला काटने के बाद क्या होगा, ज़्यादा से ज़्यादा जेल जाओगे। अब इन तत्वों को सबक सिखाने का समय आ गया है। इन्हें चुन-चुन कर मारो।"

इसी तरह एक अन्य कथित धर्मगुरु महंत नवल किशोर खुलेआम लोगों से हथियार उठाने को कहते दिखे। उन्होनें कहा, "बंदूकें हासिल करें। लाइसेंस प्राप्त करें। अगर आपको लाइसेंस नहीं मिलता है, तो चिंता न करें। जो लोग तुम्हें मारने आते हैं, क्या उनके पास लाइसेंस है? तो आपको लाइसेंस की ज़रूरत क्यों है?"

इनके हौंसले कितने बुलंद हैं और कानून का कितना भय है वो आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि नवल किशोर कहते हैं, "यदि हम सब एक साथ आते हैं, तो दिल्ली पुलिस आयुक्त भी हमें चाय की पेशकश करेंगे और हमें वो करने देंगे जो हम चाहते हैं।"

बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा जो पहले भी अपने नफरती भाषण के लिए चर्चा में रह चुके हैं, उन्होंने इस रविवार को एकबार फिर विवादित और नफरती भाषण दिया। वर्मा ने कहा कि जिस मानसिकता को हम जिहाद के रूप में जानते हैं, मदरसे में कैसे इनकी शिक्षा होती है, हम सभी जानते हैं। उन्होंने बच्चों के मन में घृणा पैदा करने का भी ज़िक्र किया। उन्होंने दिल्ली में युवक मनीष की हत्या का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह साधारण घटना नहीं है।

उत्तर प्रदेश लोनी से बीजेपी विधायक नन्द किशोर गुर्जर जो अपने मुस्लिम विरोधी भाषणों के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने एकबार फिर ज़हर उगला और इशारों मे यह भी माना कि वो दिल्ली दंगे के दौरान ये और हिंसा में शामिल थे। इसके साथ ही गुर्जर ने दिल्ली की पुलिस और कानून व्यवस्था को चुनौती देते हुए कहा कि इस तरह की घटना दोबारा हुईं तो वो अपने 50 हज़ार लोगों के साथ दिल्ली आएंगे। विधायक ने सैकड़ों की तादाद में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वह किसी को छेड़ते नहीं हैं, लेकिन यदि कोई उनकी बहन-बेटियों को छेड़े तो छोड़ते भी नहीं हैं। 

इसके अलावा उन्होंने कहा, "दिल्ली में सीएए पर दंगा हुआ तो इन जेहादियों ने हिन्दुओं को मारना शुरू कर दिया। उस समय आप दिल्ली के लोगों ने उन्हें अपने घर में जगह दी और इसके बाद हमारे ऊपर आरोप लगा दिया कि हम ढाई लाख लोग लेकर कर दिल्ली में घुसे, अरे हम तो समझाने आए थे लेकिन पुलिस ने हमपर ही मुकदमा कर दिया कि हम जेहादियों को मारने आए थे।

इससे आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा कि हम जिहादियों को मारेंगे, और मारेंगे। गुर्जर की बदज़ुबानी यहीं नहीं रुकी वो अपने भाषण के दौरान कहते हैं कि सुंदर नगरी अब सुअर नगरी बन गई है।

खैर ये नेता जिस घटना के लिए आक्रोश जताने पहुँचे थे वो एक कानून व्यवस्था का सवाल था लेकिन यह भूल गए कि इसकी पूर्ण ज़िम्मेदारी देश के गृह मंत्री अमित शाह की है। लेकिन किसी भी वक्ता की मजाल न हुई कि उनके खिलाफ बोले, बल्कि बीजेपी नेता उनकी प्रशंसा करते दिखे। इस घटना के बाद कई सवाल खड़े हुए कि कैसे देश के कथित सबसे मजबूत गृह मंत्री के अधीन आने वाली दिल्ली पुलिस की जेल में बंद कैदी हत्या की साजिश रचते हैं और खुलेआम नौजवान की हत्या कर देते हैं, लेकिन पुलिस कुछ कर नहीं पाती। लेकिन यहाँ उलटे उनकी पार्टी और समर्थक हत्या के विरोध में आक्रोश रैली करते हैं। इस घटना की जवाबदेही पर बोलने से ज़्यादा नफरती भाषण को जगह देते हैं जो साफ दिखाता है कि इस सभा का मकसद मनीष के लिए न्याय तो कतई नहीं था। बल्कि इस घटना के बहाने समाज में ज़हर घोलना था।

क्या था मनीष का पूरा मामला?

एक युवक मनीष की 1 अक्टूबर को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सुंदर नगरी इलाके में चाकू घोंपकर हत्या कर दी गयी थी। पुलिस ने मामले में सभी आरोपियों आलम, बिलाल और फैजान को गिरफ्तार कर लिया है।

गौरतलब है कि मनीष की हत्या की घटना सीसीटीवी में कैद हो गयी थी। कैमरे की फुटेज में तीन युवकों को मनीष को चाकू से गोदते हुए देखा गया।

पुलिसिया जांच में सामने आया कि मंडोली जेल मे बंद दो कैदी मोहसिन और शाकिर ने ये साज़िश रची थी। ये मनीष पर ही जानलेवा हमला करने के आरोप मे जेल मे बंद थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मनीष और ये दोनों दोस्त थे और पिछले 24 जून को आपसी लेन-देन को लेकर इनके बीच बहस हुई थी जिसके बाद उन्होंने मनीष पर हमला किया था। आरोपी इसी मामले को वापसी लेने का दबाव डाल रहे थे लेकिन जब मनीष ने मना किया तो आरोपियों ने मनीष पर चाकुओं से हमला किया और मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि इस घटना से पहले सोई दिल्ली पुलिस ने घटना के बाद सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। अभी इस मामले की जांच चल रही है।

पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल

इस सभा में जिस तरह से नफरती भाषण दिए गए और मौजूद लोगों को नरसंहार के लिए उकसाया गया, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही। जब इस पर सवाल उठे तो पुलिस का जवाब है कि  इसका आयोजन बिना पुलिस की अनुमति के हुआ था। इस सभा में खुलकर मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला गया। हालांकि तमाम वक्ता मुसलमान की जगह उनके लिए जिहादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे, थे लेकिन किसी भी व्यक्ति के लिए ये समझना मुश्किल नहीं कि ये भाषण किस समुदाय को टारगेट करके दिए जा रहे थे।

सोशल मीडिया पर जब पुलिस पर सवाल खड़े हुए तो पुलिस ने औपचारिक कार्रवाई करते हुए धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज किया जो अपने आप में हास्यास्पद है क्योंकि इस धारा के तहत अधिकतम एक महीने की कैद या 2000 तक जुर्माना या दोनों हो सकता है।

हालाँकि इस पूरे प्रकरण में दिल्ली पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध रही।  सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि बिना अनुमति के इतना भव्य मंच लगाकर कई घंटों तक कार्यक्रम कैसे चला? दूसरा, हेट स्पीच के कई पुराने आरोपी यहाँ आए और एकबार फिर यहां धार्मिक उन्माद की बात करके कैसे आसानी से चले गए? घटना के एक दिन बीत जाने के बाद भी केवल FIR हुई है, किसी आरोपी की अबतक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? इस तरह के कई सवाल पुलिस प्रशासन पर उठ रहे हैं।

इस पूरे मसले पर पूर्व आईपीएस अधिकारी और यूपी के डीजीपी विभूति नारायण राय ने न्यूजक्लिक से बात की और उन्होंने कहा कि, "दिल्ली पुलिस का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस के इस रवैये से वे हैरान नहीं हैं। बीते सालों मे एक चिरपरिचित ढर्रा बन गया है, हिंदुत्ववादी ऐसे बयान देते हैं और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। उन्होंने इसे काफी दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि पुलिस नफ़रती भाषण देने वालों पर कार्रवाई नहीं कर रही है। ये बिल्कुल भी प्रोफेशनल तरीका नहीं है।"

राजधानी में पुलिसया संरक्षण में लगातार हो रहे नफ़रती भाषण!

यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी राजधानी में इस तरह के नफरती भाषण दिए गए हैं। 19 दिसंबर, 2021 की धर्म संसद के बाद जनवरी, 2022 में जंतर-मंतर पर ऐसा ही एक आयोजन देखा गया था जहाँ खुले तौर पर मुसलमानों के नरसंहार की बात कही जा रही थी। पुलिस अभी तक किसी भी आरोपी को सज़ा नहीं दिला पाई है। जबकि हाल ही में दिल्ली के बुराड़ी में 4 अप्रैल 2022 को एक हिन्दू महापंचायत हुई जहाँ एकबार फिर वही लोग एकत्रित हुए जिनपर अलग-अलग समय पर धार्मिक उन्माद और समाज में वैमनस्य फैलाने का आरोप लगा है। फिर से उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला और वो यही नहीं रुके, उन्होंने इस कार्यक्रम को कवर करने गए पत्रकारों पर भी हमला किया। कल रविवार को एकबार फिर ये नफरती जमात एकत्रित हुई और समाज में विभाजन का बीज बोने का प्रयास किया।

माकपा ने नफ़रती भाषणों के लिए ज़िम्मेदार लोगों की गिरफ़्तारी की मांग की

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा ने कल 9 अक्टूबर को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित एक सभा में पश्चिमी दिल्ली के भाजपा सांसद परवेश वर्मा द्वारा मुसलमानों के 'पूर्ण बहिष्कार' की कड़ी शब्दों में निंदा की और कहा कि वर्मा ने खुले तौर पर सभा में उपस्थित लोगों से मुसलमानों से कुछ भी न खरीदने और उन्हें मजदूरी न देने की शपथ दिलवाई। विहिप के संयुक्त सचिव सुरेंद्र जैन ने आग में घी डालते हुए एक समुदाय विशेष (मुसलमान) पर दिल्ली को छोटा पाकिस्तान बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया। ये बयान सांप्रदायिक नफरत को भड़काने और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विद्वेष फैलाने का खुला खेल है।

अपने बयान में  माकपा ने कहा कि, "यह पहली बार नहीं है जब प्रवेश वर्मा ने दिल्ली में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के उद्देश्य से इस तरह के भड़काऊ भाषण दिए हैं। साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में कपिल मिश्रा के साथ उनके भाषणों के कारण उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें 54 निर्दोष लोगों की जान चली गई। केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की।"

माकपा दिल्ली राज्य कमेटी ने मांग की कि परवेश वर्मा, सुरेंद्र जैन और उपरोक्त भाषणों के लिए ज़िम्मेदार अन्य लोगों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जानबूझकर नफरत फैलाने और सांप्रदायिक शांति भंग करने की कोशिश करने के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाए।

दिल्ली पुलिस के अधिकारी जवाब देने से बच रहे हैं

इस पूरे मसले पर हमने दिल्ली पुलिस के जन सूचना अधिकारी (पीआरओ) से बात करनी चाही लेकिन उनके कार्यालय में काम करने वाले हेड कॉन्स्टेबल ने फोन पर बताया कि मैडम अभी नहीं हैं आप थोड़ी देर मे फोन करना। फिर बाद में जब हमने फोन किया तो उसी अधिकारी ने फोन उठाया और बोला, "रुकिए बात कराता हूँ, फिर अचानक किसी से बात करने के बाद उन्होंने बोला कि मैडम अभी बात नहीं कर सकती हैं, आप स्थानीय डीएसपी से बात कर लीजिए।"

इसके बाद हमने डीसीपी को कई बार फोन किया लेकिन उन्होंने नहीं उठाया। इसके बाद हमारी बात एडिशनल डीसीपी से फोन पर हुई लेकिन उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया और कहा कि वो अपने उच्च अधिकारी से जानकारी लेकर जवाब देंगे।

राजधानी की पुलिस पिछले कुछ सालों में सांप्रदायिक और खासकर दक्षिणपंथी हिंदुत्व के नाम पर आई उन्मादी भीड़ को कंट्रोल करने में असफल रही है या राजनीतिक कारणों के चलते कहें कंट्रोल करने का प्रयास ही नहीं किया है। इसी हिंदुवादी विचारधारा के लोगों का नाम रामजस हिंसा, फिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंसा, फिर दिल्ली दंगों में भी आया। और अभी पिछले साल अगस्त में हमने जंतर-मंतर पर कार्यक्रम भी देखा जिसमें इन्होंने सीधे तौर पर मुसलमानों के नरसंहार की बातें कहीं, लेकिन इन तत्वों पर कोई उचित कार्रवाई देखने को नहीं मिली। इसी तरह के कई हिन्दू महापंचायत भी देखे, लेकिन इन सभी में एक बात समान थी कि पुलिस ने इन्हें रोकने का प्रयास ही नहीं किया और घटना के बाद कुछ कार्रवाई करती नहीं दिखी। उपरोक्त जितनी भी घटनाएं हुई हैं, अभी किसी में भी ऐसी पुलिस कार्रवाई नहीं हुई जिसे एक आधुनिक समाज मंजूर कर सके।

फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया 

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