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'दिल्ली चलो' : अच्छी तरह से प्रबंधित सिंघु बॉर्डर प्रदर्शन की रचना

किसान पूरे तरीक़े से तैयार होकर आए हैं, वे यहां लंबे वक़्त तक रुकने की तैयारी भी कर रहे हैं। उनके रिश्तेदार घर पर चीज़ों का प्रबंधन कर रहे हैं और स्थानीय लोग यहां उनकी मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। केंद्र के सामने आगे कई तरह की चुनौतियां आने वाली हैं।
सिंघु बॉर्डर प्रदर्शन

नई दिल्ली: सिख परंपरा में बेहद अहमियत रखने वाली सामुदायिक सेवा की भावना मौजूदा किसान आंदोलन में भी महसूस की जा रही है।

दिल्ली के उत्तर में सिंघु बॉर्डर GT कर्नाल हाईवे पर अपना कैंप लगाए हुए, पंजाब और हरियाणा के किसानों ने 29 नवंबर को यह साफ़ कर दिया है कि अगर केंद्र को किसी तरह का शक हो, तो वह साफ़ कर ले कि वे लंबे वक़्त के लिेए दिल्ली पहुंचे हैं।

टिकरी बॉर्डर पर भी बड़ी संख्या में किसान प्रदर्शन करने पहुंचे हैं और वहां डेरा डाले हुए हैं। यह बॉर्डर मुंडका गांव के पास स्थित है। आंदोलनकारी किसानों ने घोषणा की है कि दिल्ली में प्रवेश के पांच बिंदुओं- सोनीपत, रोहतक, हापुड़, जयपुर और आगरा को बंद किया जाएगा।

अगर इस घोषणा से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को चिंता नहीं होती, जिसने किसानों के "दिल्ली चलो" की अपील को हल्के में लिया था, तो केंद्र सरकार को सिंघु बॉर्डर पर महीनों तक चलने वाले एक अनुशासित प्रदर्शन से चिंता में आना चाहिए। यह प्रदर्शन दूसरे प्रदर्शन स्थलों के लिए आदर्श बन सकता है।

सिख शिक्षाओं में शामिल और बताई गई 'सेवा' यहां पर खूब देखने को मिल रही है। सिंघु बॉर्डर पर कैंप करने के लिए किसानों को जिस चीज की भी जरूरत पड़ रही है, उसे यह लोग उपलब्ध करवा रहे हैं। इस जमघट के प्रबंधन के लिए एक महीने से भी ज़्यादा की योजना बनाई गई थी, वहीं अनदेखी चुनौतियों पर स्थानीय लोगों की मदद से पार पा लिया गया।

प्रदर्शन स्थल पर पहरा देने के लिए अपनी उम्र के तीसरे और चौथे दशक में चल रहे युवाओं के समूह को तैनात किया गया है। दिल्ली पुलिस और मार्च कर रहे किसानों के बीच 27 नवंबर को हिंसक झड़प हो गई थी, जिसमें टियर गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल देखा गया था। 

बैरिकेड्स और धातु के कंटीले तार भी तैनात कर दिए गए हैं। लेकिन इस बार इन्हें किसानों ने लगाया है। ताकि आगे किसी भी तरह की हिंसा से बचा जा सकते।

हरियाणा से आने वाले एक किसान ने न्यूज़क्लिक को बताया, "सरकार हमें उकसाना चाहती है, ताकि लोगों को दिखा सके कि जो लोग यहां आए हैं, वह हिंसा करने आए हैं। इस तरह वे हमारा प्रदर्शन खत्म करना चाहते हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे।" इस किसान के परिवार के पास तीन एकड़ ज़मीन है। वह अपनी पहचान जाहिर करना नहीं चाहता। यह किसान तय करता है कि प्रदर्शनकारी दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शन स्थल की पहचान के लिए लगाए गए बैरिकेड्स के पास ना पहुंच पाएं।

पंजाब के मोगा से आने वाले एक दूसरे किसान ने बता करते हुए कहा, "हम पुलिस को हमें निशाना बनाने के लिए अगला मौका नहीं देंगे। हम यहां अपनी आवाज सुनाने आए हैं, किसी तरह का नुकसान करने नहीं।" उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा कि पुलिस से दूरी बनाए रखने के लिए बैरिकेड्स और कंटीले तार लगाए गए हैं, इस बार इन्हें खुद किसानों ने लगाया है, ताकि किसी भी तरह के हिंसात्मक टकराव से बचा जा सके।

मोर्चे की पहली पंक्ति से 200 मीटर दूर लंगर की एक जगह बनाई गई है, जहां दिन में तीन वक़्त खाना दिया जा रहा है। यह प्रबंध सिर्फ़ किसानों के लिए नहीं है। पंजाब के मोहाली से आने वाले 65 साल के जगजीत सिंह कहते हैं, "किसान, कामग़ार, स्थानीय लोग, जो भी यहां आते हैं, उन्हें खाना दिया जाता है। हम उनके लिए चाय भी बनाते हैं।" सिंह ने बताया कि कई यह तो कई लंगरों में से सिर्फ एक ही लंगर है।

किसानों के प्रदर्शन की वजहों से आसपास के लोग भी अनजान नहीं हैं। बिहार के रहने वाले 22 साल के अमरेश कुमार को घर जाने के लिए ट्रेन पकड़नी है। लेकिन उनकी बस हाईवे पर ट्रैफिक में फंस गई। इसके बावजूद वे किसानों से सहानुभूति रखते हैं। अंबाला से आने वाले अमरेश कहते हैं, "मुझे दिक्कत तो हुई, लेकिन सरकार को यह तय करना चाहिए कि आम जनता को किसी तरह की परेशानी ना आए। इस पूरे घटनाक्रम के पहले सरकार को किसानों से बात करनी थी। 

क्रांतिकारी किसान यूनियन के सदस्य जगजीत सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हर यूनियन लंगर सेवा के लिए राशन लेकर आई है। पंजाब की 31 यूनियनों और हरियाणा की एक अहम यूनियन सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रही हैं।

जब हमने उनसे पूछा कि राशन कितने दिन चलेगा, तो सिंह ने कहा, "फिलहाल हमारे पास दो महीने का राशन है। लेकिन अगर स्थिति आगे भी बनी रही, तो उसके लिए हमने अभी से राशन इकट्ठा करना शुरू कर दिया है।" उन्होंने बताया कि फिलहाल मौजूद राशन के अलावा, सिंघु बॉर्डर पर सोमवार को 13 ट्रॉली भरकर राशन आ रहा है।

सिंह ने बताया कि सिखों के अहम प्रार्थनास्थल गुरुद्वारा बंगला साहिब द्वारा भी खाना परोसा जा रहा है। एक स्थानीय पंप सर्विस प्रोवाइडर प्रदर्शनकारी किसानों को नहाने के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए आगे आया है।

मुख्यधारा की मीडिया ने "किसानों के पीछे कौन" जैसे आरोप भी लगाए हैं। सिंह ने बताया कि प्रदर्शन उस योगदान से चल रहे हैं, जिसे एक महीने पहले ही इकट्ठा करना शुरू कर दिया गया था। यह सितंबर में "दिल्ली चलो" के ऐलान के ठीक बाद का वक़्त था। वह कहते हैं, "गांव में लोग जो भी कुछ दे सकते थे, चाहे 100 रुपये या 500 रुपये, सबने योगदान दिया। दूसरे लोगों ने हमें गेहूं, चावल और सब्जियां उपलब्ध कराईं।"

पूरा कार्यक्रम लंबे वक़्त तक टिके रहने के लिए कुशलता से चलाया जा रहा है। कुछ किसानों ने कहा कि वह लोग तो दिल्ली आ गए हैं, लेकिन उनके घरवाले गांवों में रहकर उनके घरेलू मोर्चे को संभाल रहे हैं। टिकरी बॉर्डर पर एक किसान ने कहा, "चूंकि हमारे घर वाले घरों में हैं, इसलिए हम यहां पर टिक पा रहे हैं।" कुछ किसानों ने बताया कि उन्होंने अपने आप को समूहों में बांट लिया है। ताकि एक निश्चित अवधि पर बारी-बारी से लोग घर घूमकर आ सकें।

दिल्ली में पारा जमना शुरू हो चुका है। किसान ठंडी रातों से निपटने का प्रबंध भी साथ लेकर आए हैं। प्रदर्शन स्थल में एक किलोमीटर भीतर, अमृतसर में किसानी करने वाले, रिटायर्ड इंजीनियर जेब सिंह "खुराक" के मिश्रण की देखरेख कर रहे हैं, जिसके बारे में उनका दावा है कि खुराक से शरीर को गर्मी और "जोश" मिलता है।

सिंघु बॉर्डर पर यूनाईटेड सिख द्वारा लंगर सेवा का आयोजन किया गया (बाएं), संगठन ने स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक कैंप भी लगाया है ( दाएँ)

सिंह कहते हैं, "हम इसे "रगड़ा" कहते हैं, यह ठंड में शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है।" इस पेय में खस-खस, काली मिर्च, बादाम, इलायची और काजू के साथ-साथ दूसरी चीजों को पहले आपस में मिलाया जाता है, फिर उसे दूध में घोला जाता है।

सिंह ने बताया, "हम यह पेयर हर दिन इसके इच्छुक लोगों के लिए बना रहे हैं। यह सेवा करने जैसा ही है। किसान यहां कॉरपोरेट के चंगुल से अपनी ज़मीन बचाने आए हैं।" यह तीन कृषि विधेयकों का संभावित नतीज़ा हो सकता है, जिनके बारे में सिंघु बॉर्जर पर मौजूद कई लोग डर जता रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि कैसे हरियाणा के स्थानीय लोग अनाज, कपड़े और रजाईयों की मदद के साथ आगे आ रहे हैं। सिंघु बॉर्डर पर वैश्विक सेवा संगठन यूनाईटेड सिख और अंतरराष्ट्रीय NGO खालसा ऐड द्वारा मदद और किसान आंदोलन का समर्थन करने के लिए एक बूथ लगाया गया है।

अब जब प्रदर्शन स्थल पर तनाव के कुछ दिन गुजर चुके हैं, तो वहां भाषण देने और सार्वजनिक बैठक करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बना दिया गया है। इस बीच पंजाब-हरियाणा के छात्र समूहों द्वारा एक या दूसरी जगह पर दिन भर प्रतिरोधी गाने चलते रहते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के संगठन सचिव हरपाल सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि चीजों को आसानी से चलाने के लिए हर कोई आगे आ रहा है।

रविवार को गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को एक प्रस्ताव देते हुए कहा कि वे अपना प्रदर्शन स्थल बुराड़ी स्थानांतरित कर लें, जहां उनके प्रदर्शन को आगे जारी रखने के लिए हर तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं। इससे केंद्र के साथ किसानों की बातचीत "जल्द" शुरू भी हो जाती, पर किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

किसान खुद को हर तरह के हालातों से बचाने के लिए तैयार हैं, केंद्र सरकार ने जो "व्यवस्थित प्रबंधों" का लालच किसानों को दिया था, फिलहाल तो वह हाईवे पर ब्लॉकेड खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

सोनाली लोचन से इनपुट के साथ

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 

‘Delhi Chalo’: The Anatomy of a Well-Organised Protest at Singhu Border

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