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अतिक्रमण के ख़िलाफ़ कार्रवाई: मलबे पर बैठे लोग आख़िर जाएं तो जाएं कहां? 

दिल्ली में लगातार अतिक्रमण के ख़िलाफ़ कार्रवाई चल रही है। 1 जून को प्रगति मैदान के क़रीब भी बुलडोजर चला। बताया जा रहा है कि क़रीब सौ झुग्गियों को यहां से हटा दिया गया है। यहां एक NGO की मदद से चल रहे स्कूल को भी ध्वस्त कर दिया गया। 
bulldozer action

G20 के नाम पर दिल्ली को ख़ूबसूरत बनाने की एक स्याह तस्वीर भी है, दिल्ली के अलग-अलग कोनों में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद जो एक चीज़ हमें सब जगह दिखाई दी वे थी सभी की आंखों में बेबसी और लाचारी के आंसू।' मज़दूर आवास संघर्ष समिति' से जुड़े निर्मल अग्नि दावा करते हैं कि पिछले कुछ महीनों में दिल्ली में चले बुलडोज़र में क़रीब दो लाख लोग बेघर हो चुके हैं। लेकिन बेघर हुए लोगों में से कितनों का पुनर्वास हुआ है ये एक बड़ा सवाल है।  

जून के पहले दिन दिल्ली में एक बार फिर बुलडोज़र चला, सेंट्रल दिल्ली के प्रगति मैदान गेट नम्बर एक के सामने भैरों मार्ग के क़रीब सौ झुग्गियों को हटा दिया गया। अतिक्रमण हटाने के दो दिन बाद जब हम यहां पहुंचे तो एक तरफ जी 20 के मद्देनज़र ज़ोर-शोर से काम चल रहा था तो दूसरी तरफ कुछ बेघर लोग आज भी उसी जगह बैठे थे जहां उनके घर थे। झुलसा देने वाली तेज़ धूप में अब दरख़्तों की छाया ही इनका ठिकाना था। 

जिस जगह ये झुग्गियां थी उससे सटा एक नाला बह रहा था, तेज़ गंध वहां खड़ा रहना मुश्किल कर रही थी लेकिन यहां लोग रह रहे थे, इन बेघर लोगों का दावा है कि ये पिछले 30-40 सालों से यहां रह रहे हैं। कुछ लोग बीमार पड़ चुके थे तो कुछ धूप की वजह से बेहाल हुए जा रहे थे। 

''बिना सूचना के कार्रवाई की गई''

पेड़ के नीचे एक बुजुर्ग महिला मिलीं जो अपने बीमार पति के साथ पेड़ से छन कर आ रही धूप में पसीने से तर लेटी हुई थीं, हमें देखते ही फूट-फूटकर रोने लगी उन्हें लगा कि कोई सरकारी मदद उन तक पहुंची है, लेकिन सच्चाई पता चलने पर मायूस हो गईं, वे बताती हैं कि सुबह चार-साढ़े चार बजे वे वॉशरूम जाने के लिए उठी थीं लेकिन बाहर कुछ हलचल सुनाई दी तो उन्होंने बाहर देखा जहां भारी पुलिस बल और सुरक्षा बल तैनात थीं, उनका कहना है कि ''हम लोग जब तक कुछ समझ पाते बुलडोज़र ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी, न बिजली काटी न पहले से कोई सूचना दी, अगर किसी को कुछ हो जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता'' ? 

कार्रवाई के दो दिन बाद जो लोग यहां बचे थे वे किसी भी क़ीमत पर वहां से उठने को तैयार नहीं थे उन्हें अब भी आस थी कि सरकार उन्हें इसी इलाके में पांच से दस किलोमीटर के दायरे में कोई जगह मुहैया करवा देगी। सड़क किनारे बैठे बहुत से बच्चों से हमने बात की तो पता चला यहां एक स्कूल चल रहा था उस पर भी बुलडोज़र चला दिया गया।  

imageसबकी पाठशाला  बुलडोज़र चलने से पहले और अब 

स्कूल पर भी चला बुलडोज़र

एक बच्चे ने हमें उस स्कूल का रास्ता दिखाया, रास्ते में टीन शेड का एक मंदिर दिखा, टीन शेड की ही एक गौ शाला दिखी, फिर दो से तीन मंदिर दिखे।  और उन्हीं मंदिरों और गौशाला के बीच एक मलबा दिखा जिसमें बहुत से पोस्टर पड़े थे, जिस पर बच्चों की कविताएं लिखी थीं, किसी ईंट के नीच A दबा था तो किसी ने नीचे B, C, D, के अल्फाबेट दबे थे, कुछ दूरी पर नाले के क़रीब एक फटा हुआ बैनर पड़ा था जिसपर लिखा था। 'सबकी पाठशाला ट्रस्ट', एक NGO की तरफ से चलाए जा रहे इस स्कूल को चलाने वाली नीतू सिंह टूटे हुए स्कूल के मलबे को डबडबाई आंखों से निहार रही थीं। उन्होंने बताया कि वे पिछले नौ साल से इस स्कूल को चला रही थीं, इस स्कूल में 5 से 15 साल के बच्चे स्कूल के बाद तरह-तरह की चीजों को सीखने आते थे, यहां उन्हें आर्ट और स्किल निखारने की ट्रेनिंग दी जाती थीं, नीतू सिंह ने रोते-रोते पूछा ''एक स्कूल पर बुलडोज़र क्यों चला दिया? ये स्कूल तो जी 20 के मेहमानों को दिखाने की जगह होनी चाहिए थी, एक नाले के किनारे को देखिए बच्चों ने कितना हरा-भरा कर रखा था''। 

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'ड्रीम ट्री' पर लगे सपने अधूरे रह जाएंगे? 

पेड़ में तब्दील होने की प्रक्रिया से गुज़र रहे कुछ नन्हे-नन्हे पेड़ों को दिखाते हुए नीतू ने कहा कि '' ये पेड़ मैंने नहीं लगाए ये बच्चों ने लगाए हैं, देखिए ये 'ड्रीम ट्री' है। कुछ गौर से देखने पर पता चला कि उस पेड़ पर बहुत सी चिट बांधी हुई थीं पता चला इन चिट में बच्चों ने अपने ख्वाब अपनी ख्वाहिशों को लिखकर बांधा था, बच्चों का मानना था कि जितनी जल्दी पौधा ऊंचाई पर पहुंच कर पेड़ में तब्दील होगा उतनी ही जल्दी बच्चों के सपने भी पूरे होंगे'' 

नीतू एक फाइल लिए बैठी थीं, हमने उस फाइल के पन्ने पलटे तो उसमें सिकंदर मिर्ज़ा, रतन की मां, तनवीर बेगम (तन्नो ) के बीच के संवाद लिखे थे, समझते देर नहीं लगी ये असगर वजाहत साहब का लिखा नाटक था 'जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ' नीतू बताती हैं कि '' उर्दू, पंजाबी के इस नाटक को बच्चों ने बहुत ही मेहनत से याद किया था, लेकिन उस नाटक की तैयारी का क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा'' 

असग़र वजाहत के नाटक की तैयारी कर रहे थे बच्चे

''ग़रीब के बच्चे पढ़-लिख गए तो सवाल करेंगे''

वे लगातार रोती हुए कहती हैं कि '' मैं नाउम्मीद हो चुकी हूं, नौ साल की मेहनत को सरकार ने एक झटके में गिरा दिया, सरकार ने ऊपर से ऑर्डर पास कर दिया कि जी 20 के लिए हमें पूरी दिल्ली चकाचक चाहिए, लेकिन ग्राउंड लेवल पर जिन अधिकारियों को पता था कि यहां एक मंदिर बना है,यहां चार गाय बंधी हैं, यहां पर एक स्कूल बना हुआ है जहां नौ साल के ग़रीब झुग्गी-झोपड़ी बच्चे बिना सरकार की मदद के पढ़ रहे हैं उनका क्या होगा, सरकार तो ऊपर बैठी है उसने तो देखा नहीं, लेकिन जिन अधिकारियों ने देखा था क्या उन्हें सरकार को बताना नहीं चाहिए था? क्या इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता था, क्या इस स्कूल का ब्यूटीफिकेशन नहीं हो सकता? क्या जी 20 के मेहमानों को ये नहीं दिखाया जा सकता था कि एक भारत ऐसा भी है।  लेकिन सरकार और प्रशासन को ये रास नहीं आ रहा था कि ग़रीबों के बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो सवाल करने लगेंगे, चार महीने से इनको ( झुग्गी वालों को ) हटाने की बात चल रही थी, हाई कोर्ट ने कहा था कि इन लोगों को हटाने के साथ-साथ इनके रहने-खाने की व्यवस्था करनी है, लेकिन जिस दिन ये पूरी बस्ती तोड़ी गई, स्कूल तोड़ा गया छोटे-छोटे बच्चे फुटपाथ पर बैठे थे उस दिन बारिश हो रही थी, एक गिलास पानी की व्यवस्था नहीं की गई''। 

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नीतू आशंका जताती हैं कि जिन बच्चों को उन्होंने बहुत मेहनत करके स्कूल की राह दिखाई थी कहीं वे असामाजिक कार्यों में न लग जाए, कहीं वे भीख मांगने या फिर ट्रैफिक लाइट पर यूं ही बेवजह बैठना शुरू न कर दें। 

थोड़ी-थोड़ी दूर पर पेड़ की छाया में बैठे लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस आकर उन्हें धमका रही है, मलबे पर बैठने तक की इजाजत नहीं दे रही है लेकिन वे दिहाड़ी मज़दूर हैं 4 से 5 हज़ार के किराए वाला घर कैसे ले सकते हैं? बेहद नाराज़ एक महिला ने कहा कि '' पहले हमें बेघर करते हैं और फिर वोट मांगने आते हैं ये कैसे लोग हैं? सरकार कहती है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लेकिन यहां बेटी कैसे बचेगी? जवान-जवान लड़कियों को लेकर हम फुटपाथ पर सो रहे हैं''। 

ग़रीब लोग बेसहारा हो चुके हैं इनका पुर्नवास सबसे बड़ा मुद्दा है।  लेकिन इससे पहले हम महरौली, तुगलकाबाद, धौला कुआं, निज़ामुद्दीन, कस्तूरबा नगर  समेत दिल्ली के कई इलाकों में अतिक्रमण के खिलाफ़ हुई कार्रवाई के बाद बेघर हुए लोगों को देख चुके हैं ज़्यादातर लोग परेशान होकर इधर-उधर भटकते ही दिखे। 

अदालत के निर्देश पर कार्रवाई हुई

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोक निर्माण विभाग ( PWD) के एक अधिकारी ने कहा कि '' यह अभियान विशेष कार्य बल द्वारा चलाया गया था और ये हमारे विभाग द्वारा नहीं चलाया गया था। हमारे अधिकारी मदद के लिए मौके पर मौजूद थे, यह कार्रवाई कोर्ट के निर्देश पर की गई'' साथ ही ये भी बताया जा रहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले महीने प्रगति मैदान के पास झुग्गियों को तोड़े जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, और एक महीने में जगह खाली करने का वक़्त दिया था। 

बताया जा रहा है कोर्ट ने आदेश दिया, DDA, PWD या फिर जिसका भी बुलडोज़र चला लेकिन लोग बेघर हो गए, दिल्ली के हर कोने से क़रीब-क़रीब हर सप्ताह इसी तरह से अतिक्रमण हटाने और बुलडोज़र चला कर लोगों के घरों को मलबे में तब्दील करने की ख़बर आ रही है, जी20 के लिए दिल्ली को ख़ूबसूरत बनाया जा रहा है, लेकिन तीस-चालीस साल से उसी जगह पर रह रहे लोगों का कहना है कि '' जब हम बिजली का बिल दे रहे थे, हमारे आधार कार्ड बन रहे थे, हमसे वोट लिए जा रहे थे क्या उस वक़्त प्रशासन को इस बात का नहीं पता थी कि हमने ज़मीन पर अतिक्रमण कर रखा है''? 

''ग़रीबों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई नहीं देती''

दिल्ली में लगातार हो रही बुलडोज़र कार्रवाई में बेघर हो रहे लोगों के लिए काम कर रहे 'मज़दूर आवास संघर्ष समिति' से जुड़े निर्मल अग्नि से हमने बात की उन्होंने कहा कि '' ऐसा लग रहा है कि कोर्ट भी असंवेदनशील तरीक़े से आदेश दे रहा है, कोर्ट में जब सबसे अंतिम व्यक्ति की आवाज़ सुनी जाती थी वे अब बदल गया है, और कोर्ट अभी जिस तरह से आदेश जारी कर रहा है वे आदेश ग़रीबों के खिलाफ है, इसमें अगर हम पुनर्वास को देखें, तो पुनर्वास के लिए तो उन्हें ख़ुद ही संज्ञान लेना चाहिए था, यहां तो उल्टी ही गंगा बह रही है, पुनर्वास के नाम पर ग़रीबों के साथ भद्दे मज़ाक किए जा रहे हैं, वे कह रहे हैं कि रैन बसेरे में चले जाए, रैन बसेरे जो हैं वे बेघर लोगों के लिए है ये तो वे लोग हैं जिनके पास घर था, इस तरह की फैमली रैन बसेरे में रखने के लिए आपके पास मैकेनिज्म ही नहीं है, आप उन्हें वहां रखने का कैसे आदेश दे सकते हो? एक 'शकरपुर स्लम यूनियन' के नाम से मामला है जिसमें आदेश हुआ था कि ''इन्हें रैन बसेरे भेजो'', तब से उस आदेश के पीछे पड़ गए हैं और उसी तर्ज में हर बार यही आदेश दे दिया जाता है, पर ये भी देखना होगा कि आज तक जितने भी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं पिछले एक -दो साल में, एक भी परिवार रैन बसेरे में नहीं गया है, ये बहुत बड़ी बात है तो क्या कोर्ट इस बात को समझ पा रहा है कि क्यों कोर्ट के आदेश के बाद भी लोग रैन बसेरे नहीं जा रहे हैं, क्योंकि वहां परिवारों के लिए व्यवस्था नहीं है, एक हॉल में कैसे 18-19 साल की लड़की रह सकती हैं जहां बहुत से पुरुष रहते हों?  क्या आप नए रैन बसेरे बसा रहे हैं जो परिवारों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हों? क्या आपने ट्रांजिट कैंप डेवलप किए? सरकार इस दिशा में सोच ही नहीं रही है, सरकार तो कोर्ट के आदेश का पालन कर रही है, न तो सरकार में संवेदनशीलता है और न ही कोर्ट ग़रीबों के प्रति संवेदनशील दिखाई दे रहा है''। 

निर्मल अग्नि बताते हैं कि ''दिल्ली में जिस कोने में देखो मलबे पर बैठे बेघर लोग दिखाई देते हैं'', इस कार्रवाई के मानवीय पहलू भी हैं वे बताते हैं जब बेघर हुए बच्चों से बात करें तो डरा देने वाले संकेत दिखाई देते हैं, छोटे-छोटे बच्चों के सामने उनके घरों को तोड़ देना, उनका स्कूल छूट जाना, प्रशासन का उनके सामने उनके माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार बच्चों को बाग़ी बना सकता है जो किसी भी सूरत में समाज के लिए अच्छी बात नहीं है। 

स्कूल के बाहर लगा पेड़ जिसका नाम बच्चों ने 'ड्रीम ट्री' रखा था और उसपर टांगे गए बच्चों के सपने

क्या ''वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर'' में 'ड्रीम ट्री' पर लगे बच्चों के सपने भी शामिल हैं? 

हम भी लगातार दिल्ली में चल रहे अतिक्रमण के खिलाफ हो रही कार्रवाई को रिपोर्ट कर रहे हैं, महरौली, तुगलकाबाद, निजामुद्दीन, धौला कुआं, शांतिवन हर तरफ दिल्ली को ख़ूबसूरत बनाया जा रहा है लेकिन  ख़ूबसूरत बनाने की ये प्रक्रिया बड़ी असंवेदनशील दिखाई देती है। 

 टूटे हुए स्कूल 'सब की पाठशाला' से निकल कर लौटते वक़्त मेट्रो पकड़े वक़्त  जी 20 का एक  विशालकाय पोस्टर सुप्रीम कोर्ट मेट्रो स्टेशन पर लगा था जिसपर लिखा था  ''वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर'' जिसे देख हम सोच रहे थे कि यहां जिस वन फैमिली की बात हो रही है क्या उसमें दिल्ली में अब तब दो लाख से ज़्यादा बेघर हो चुके लोग भी शामिल हैं? और यहां किस 'वन फ्यूचर' की बात हो रही है क्या इस 'वन फ्यूचर' में उन बच्चों के भी सपने हैं जिनके सपने 'ड्रीम ट्री' पर आज भी लगे हैं ?

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