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दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं और संरचनाएं: 2013 से कितना आगे बढ़े हम

बीते 20-25 दिनों से जब देश के हर हिस्से में कोरोना की इस लहर के बीच हाहाकार मचा हुआ है तब देश की राजधानी में एक छद्म वाक युद्ध चल रहा है और ज़िम्मेदारियों की अदला-बदली की घिनौनी कोशिशें हो रही हैं।
Deen Dayal Hospital
फ़ोटो साभार: डीएनए

तो ये तय रहा कि देश का मतलब केवल दिल्ली होगा और एक आधे-राज्य की सरकार’ और पूरे देश की एक सरकार’ के बीच छद्म युद्ध चलता रहेगा। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय इस छद्म युद्ध में रैफरी बने रहेंगे। दिल्ली में अवस्थित और दिल्ली से संचालित मीडिया केवल देश की राजधानी के हालात पर दोनों सरकारों की तू-तू-मैं-मैं का सीधा प्रसारण करती रहेगी।

बीते 20-25 दिनों से जब देश के हर हिस्से में कोरोना की इस लहर के बीच हाहाकार मचा हुआ है तब देश की राजधानी में एक छद्म वाक युद्ध चल रहा है और जिम्मेदारियों की अदला-बदली की घिनौनी कोशिशें हो रही हैं।

ये हाल तब है जब केंद्र में भाजपा की सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का दूसरा वर्ष पूरा करने जा रही है और अर्ध-राज्य और लगभग केंद्र के अधीन आ चुके एक भौगोलिक क्षेत्र की आम आदमी पार्टी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल के दौर में है। दोनों ही विराट बहुमत की सरकारें हैं।

केंद्र सरकार की विफलता को केवल राजधानी क्षेत्र की बहस में घटाकर देखना उसके अपराधों को कम करके देखना होगा इसलिए उसकी गैर-जिम्मेदाराना और आपराधिक लापरवाहियों पर बात करना यहाँ मुनासिब नहीं है। आम आदमी पार्टी सरकार ने 2013 के बाद दिल्ली व राजधानी क्षेत्र में स्वास्थ्य संरचना के लिए क्या किया इसकी पड़ताल ज़रूरी है।

हालांकि दोनों के दूरगामी लक्ष्य विपक्ष मुक्त (कांग्रेस पढ़ें) लोकतन्त्र की स्थापना करना रहा है। दोनों ही सरकारों और इनके शीर्षस्थ नेताओं ने महज़ अपनी छवि गढ़ने और विज्ञापनों के आवरण में पूर्ववर्ती सरकारों के किए कामों को जन मानस की स्मृतियों से धो-पोंछने का आक्रामक अभियान चलाया है। पूरे देश के स्तर पर जहां लोग महज़ सात सालों में यह भूल गए हैं कि बीते सत्तर सालों में इस देश में कुछ निर्माण हुआ थाठीक उसी तरह दिल्ली में भी लोग 2013 से पहले की दिल्ली के निर्माण को भूल गए हैं। आक्रामक और झूठे प्रचार ने लोगों की याददाश्त पर बहुत गहरा असर किया है।

दिल्ली में आम आदमी सरकार ने एक भव्य मॉडल बनाए जाने का स्वांग लंबे समय तक भरा है। शिक्षास्वास्थ्य और फ्रीबीज यानी हर सुविधा फ्री किए जाने के विज्ञापनों का आवरण इस महामारी में उतर रहा है।

मोहल्ला क्लीनिक’ के नाम पर आम आदमी पार्टी ने भी विदेशों में डंके बजने की बात को विज्ञापनों के जरिये बताया है। इस महामारी के दौर में वो तमाम मोहल्ला क्लीनिक कहाँ हैंसच्चाई ये है कि वो इस विभीषिका में टिक ही नहीं सकते थे। उनकी बुनियादी समस्या यह थी कि वो संस्थागत संरचनाएं नहीं थीं। ज़रूर उनसे अस्पतालों पर सामान्य दिनों में पड़ने वाले बोझ को कुछ कम किया जा सकता था। लेकिन वो सामान्य दिनों की बात थी।

महामारी सामान्य दिनों की बात नहीं है। इससे यह तो साबित होता ही है कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टीहर लिहाज से देश के किसी भी हिस्से से बेहतर राजधानी क्षेत्र की मौजूदा स्वास्थ्य संरचनाओं के प्रति आश्वस्त थे और यही वजह रही कि उन्हें संस्थागत अधोसंरचना की ज़रूरत पेश नहीं आयी और संसाधन ऐसी जगह खर्च किए जिनसे व्यापक प्रचार मिले। अन्यथा इस बात के लिए कोई बहाना नहीं हो सकता कि सत्ता में इतने साल रहनेतीन-तीन बार मुख्यमंत्री होने के बाद भी एक भी अस्पताल नहीं बनाया गया। यह एक ऐसा मॉडल बनाने जैसा था जिसका आधार उन्हें पूर्ववर्ती सरकारों ने दिया और स्वास्थ्य की संस्थागत संरचनाएं मौजूद थीं।

हर घंटे-दो घंटे में राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर आनेहर ब्रेक में एफ एम रेडियो पर प्रकट होकर दिल्ली की जनता का भरोसा जीतने और वास्तविक आँकड़ों से बनती तस्वीर के बीच एक विद्रूप फांक है। जिसे भी दिल्ली और देश की जनता को जानना चाहिए।

आज जब मीडिया और सरकारों ने पूर्ववर्ती सरकारों के लिए घनघोर कृतघ्नता का रवैया अपनाया हुआ है हमें उन पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किए गए कामों पर एक निगाह डालना चाहिए ताकि इन मौजूदा सरकारों के योगदानों का सही आंकलन हो। यह किसी विचारधारा या राजनीतिक दल की सरकार का पक्ष लेना नहीं है बल्कि मौजूदा सरकारों से ये सवाल पूछने के लिए महज़ आधार सामग्री है कि जहां पुरानी सरकारें अपने काम छोड़ गईं थीं आप उससे कितना आगे बढ़ेये समय सवाल पूछने का भी हैबल्कि सवाल पूछने का ही है। सकारात्मक बातों का मतलब मौजूदा सरकारों के मुफीद बात करना नहीं होता।

बहरहालप्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरोस्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग दिल्ली की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों को देखें तो हमें दो ज़रूरी जानकारियाँ मिलती हैं। पहली कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्वास्थ्य संरचनाओं को लेकर इन सात सालों में वेबसाइट अपडेट नहीं की है। यानी हम केवल वेबसाइट के माध्यम से यह नहीं जान सकते कि 2013 के बाद इस सरकार ने स्वास्थ्य से जुड़ी अधोसंरचना के क्षेत्र में क्या ठोस प्रगति की है।

दूसरी महत्वपूर्ण जानकारी ये मिलती है कि 2013-14 तक दिल्ली में स्वास्थ्य संरचनाओं व सेवाओं में क्या क्या किया गया था।

पहली जानकारी इसलिए थोड़ा महत्वपूर्ण है कि एक ऐसी सरकार जो हर किए को करोड़ों के विज्ञापनों के जरिये बताती है। उसने किस उदारता से अभी भी अपनी वेबसाइट को अपडेट नहीं कियायहाँ बिना-लाग लपेट यह कहे जाने की ज़रूरत है कि ठोस रूप से इस सरकार ने वाकई कुछ नहीं किया। इसका स्वीकार खुद दिल्ली सरकार ने एक आरटीआई के जवाब में किया है।

किसी पूर्ववर्ती सरकार की सराहना से इतर उसके द्वारा किए गए कामों का ज़िक्र करना यहाँ इसलिए ज़रूरी है ताकि आज केंद्र और राज्य में जिन राजनीतिक दलों की सरकारें हैं उन्हें आईना दिखाया जा सके।

दिल्ली में 1993 से लेकर 1998 तक भाजपा की सरकार रही है। इस कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री बनाए गए। सबसे पहले मदन लाल खुराना ( 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996) फिर साहिब सिंह वर्मा ( 26 फरवरी 1996 से 12 अक्टूबर 1998) उसके बाद महज़ 52 दिनों के लिए सुषमा स्वराज को दिल्ली की कमान सौंपी गयी। सुषमा स्वराज का कार्यकाल 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक ही रहा।

इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत हुई और श्रीमती शीला दीक्षित लगातार तीन पंचवर्षीय तक यहाँ मुख्यमंत्री रहीं। उनका कार्यकाल 3 दिसंबर 1998 से लेकर 28 दिसंबर 2013 तक रहा। उसके बाद आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में बनी जो अपने सात साल पूरे कर चुकी है और आठ साल पूरे करने जा रही है।

अगर 1998 को एक संदर्भ साल मानकर 2013 तक स्वास्थ्य सेवाओं और संरचनाओं का तुलनात्मक ब्योरे देखें तो हमें यह तस्वीर नज़र आती है।

1998 तक जहां दिल्ली में महज़ 179 डिस्पेन्सरी थींउनकी संख्या 2013-14 में 640 हो चुकी थी।

1998 तक दिल्ली सरकार के अधीन अस्पतालों की संख्या मात्र 18 थी जो 2013-14 तक बढ़कर 39 पहुँच गयी थी।

जहां 1998 तक एंबुलेंस की संख्या पूरी दिल्ली मेंदिल्ली सरकार के अधीन केवल 25 थीं वो 2013-14 तक 152 तक पहुँच गयी।

जहां 1998 तक दिल्ली सरकार के पास 443 डॉक्टर्स थे उनकी संख्या में इजाफा हुआ और कुल डॉक्टर्स की संख्या 2291 तक पहुंची।

जहां 1998 में सरकारी अस्पतालों की मरीजों के लिए बेड्स की संख्या 4301 थी वो 2013-14 तक आते आते 11,400 तक पहुँच गयी।

इस बीच निजी अस्पतालों में भी वृद्धि हुई और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कुल (सरकारी व निजी) बिस्तरों की संख्या 44417 तक पहुँच गयी।

ब्लड बैंक भी 40 से 65 हो गए।

1998 तक जहां 5 सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल थे उनमें 2013 तक पाँच नए अस्पताल जोड़े गए जिनमें इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिल्लरी साइंसेसशुश्रुत ट्रामा सेंटरदिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूटचाचा नेहरू बाल चिकित्सालय और मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेस हैं।

इसके अलावा दो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल भी निर्मित हुए जिनमें जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल और राजीव गांधी सुपर स्पेशलियटी हॉस्पिटल शामिल हैं। आयुर्वेद का एक मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल चौधरी ब्रह्मप्रकाश आयुर्वेदिक चरक संस्थान भी इसी दौर में निर्मित हुआ।

यह जानना दिलचस्प है कि आम पार्टी की सरकार के सात साल पूरे होने के बावजूद बिस्तरों की संख्या ठीक उतनी ही है जो 2013-14 में थी। इस बाबत खुद आम आदमी पार्टी की सरकार ने 3 जुलाई 2019 को तेजपाल सिंह द्वारा दायर एक आरटीआई (संलग्न) के जवाब में बताया कि अप्रैल 2015 से लेकर 31 मार्च 2019 तक सरकार ने एक भी नया अस्पताल न तो स्वीकृत किया है और न ही बनाया है। इन आंकड़ों की पुष्टि विभाग की वेबसाइट भी करती है क्योंकि उसे अपडेट नहीं किया गया है।

इसके अलावा शीला दीक्षित के ही कार्यकाल में गुरू तेग बहादुर अस्पतालजी.बी. पंत अस्पतालदीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और इन्स्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बेहेवियर एंड अलाइड साइंसेस जैसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में विस्तार किए गए।

2013 में स्वीकृत हुए नए अस्पतालों पर बात करें तो करीब 7 नए अस्पताल जिनकी कुल क्षमता 1800 बिस्तरों की है आम आदमी पार्टी के सरकार में आने तक निर्माणाधीन थे। इनमें मदीपुर (200), सरिता विहार (100), अंबेडकर नगर (200), द्वारका (700), विकासपुरी (200)  सिरसपुर(200) और ज्वालापुर में 200 बिस्तरों के अस्पताल निर्माणाधीन थे।

इन निर्माणाधीन अस्पतालों में से कितने अस्पताल आज संचालित हैं और मरीजों के काम आ रहे हैंइस सवाल के जवाब में दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने तेजपाल सिंह द्वारा आरटीआई के माध्यम से पूछे गए एक सवाल के जवाब में 3 दिसंबर 2019 को बतलाया कि इनमें से महज़ 3 अस्पताल ही शुरू हो सके हैं।

स्वास्थ्य संरचना के निर्माण में आम आदमी पार्टी सरकार ने जो नकारापन दिखलाया है उसकी कीमत आज पूरी दिल्ली भुगत रही है। बीते 3 सप्ताह से ज़्यादा से दिल्ली में ऑक्सीज़न के संकट ने दर्जनों मरीजों को तड़प तड़प कर मारा है। ऑक्सीज़न प्लांट्स बनाने के मामले में भी केंद्र व दिल्ली सरकार लगातार आमने-सामने हैं और जिम्मेदारियों को फुटबाल की तरह इधर से उधर धकेला जा रहा है लेकिन अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की तरफ से यह नहीं बतलाया जाता है कि केंद्र के मांगे जाने पर दिल्ली में ज़मीन उपलब्ध करा देने के बाद दिल्ली सरकार ने कितनी दफा केंद्र सरकार को इस बाबत पत्र लिखा या ऑक्सीजन को लेकर कितनी प्रेस कांफेंस कीं?

इस दूसरी लहर से बेखबर दिल्ली सरकार की दूरदर्शिता का आलम यह है कि पिछले साल अस्थायी रूप से खड़े किए अस्पताल मरीजों कि संख्या कम हो जाने की वजह से उखाड़ लिए गए। अब फिर से जब संक्रमण की दर बढ़ी है तो उन्हीं अस्थायी अस्पतालों को खड़ा किया जाने लगा है।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार देश की राजनीति में एक विकल्प के तौर पर देखी गयी और इसने परंपरागत राजनीतिक दलों के वर्चस्व में सेंध लगाई। विशेष रूप से देश के शिक्षित युवाओं और मध्यमवर्गीय जमात में इसने अपनी पकड़ बनाई उससे कम से कम इसे लंबे समय में एक स्थायी राजनीतिक विकल्प के तौर पर देखा भी जाने लगा था। लेकिन जिस तरह से इस सरकार ने मौजूदा महामारी की विभीषका का झूठ और बेईमानी के साथ सामना किया वह आपराधिक है। दूरदर्शिता और एक धीर गंभीर नेतृत्व व विचार का गंभीर अभाव ही आज इस पार्टी की असलियत है।

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

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