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लूट से बचने के लिए किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून की मांग

मध्यप्रदेश में 1 मई से मॉडल मंडी एक्ट लागू हो चुका है। इसमें निजी क्षेत्रों में मण्डियों की स्थापना के लिए प्रावधान है तथा गोदाम, साइलो, कोल्ड स्टोरेज को भी प्राइवेट मण्डी घोषित करने का प्रावधान किया गया है।
लूट से बचने  के लिए किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून की मांग

 ग्राम मेढ़की ताल जिला छिंदवाड़ा में लगभग डेढ़ सौ किसान परिवारों को नए कृषि कानूनों के बारे ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। हां, इतना जरूर मालूम है कि इन कानूनों के खिलाफ किसान दिल्ली के बार्डरों पर डटे हैं क्योंकि यह कानून किसानों के हित में नहीं है। इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार की ओर से कोई गारंटी नहीं दी गई है। इस गांव के किसानों की मांग है कि सरकार को अनुबंध खेती की अनुमति समाप्त कर मण्डियों में  न्यूनतम समर्थन मूल्य में अनाज खरीदने का प्रावधान करना चाहिए। किसान उदयलाल कुशराम इसकी वजह गिनाते हुए कहते हैं कि रघुनाथ नामक एक व्यापारी अपने गरीबी का रोना रोकर उनके छोटे भाई के मकान में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहने आया। उसने गांव के किसानों की मदद के नाम पर वे फसल पकते ही मण्डी ले जाकर उसे बेचने और वापस आकर किसानों के पैसे लौटा देता था। कुछ महीनों तक उसने ऐसा किया भी।

किसान भी उस पर विश्वास कर उसे मण्डी में अनाज बेचने के लिए सौंपने लगे। इस तरह उसने एक साल तक गांव में रहकर गांव वालों का विश्वास जीता। उसने गांव वालों से काफी अनाज और नगद उधार लिए। ग्रामीण अपनी भलमनसाहत दिखाते हुए उसे रकम और अनाज देकर उसकी मदद करते रहे। फिर  एक दिन अचानक  रघुनाथ अनाज और नगदी लेकर बीवी और बच्चों के साथ गांव से भाग निकला। उदयलाल ने कहा कि रघुनाथ ने उसके भाई से 50 हजार रूपए उधारी और कुछ गल्ला, रेखा के घर से 10 कुंतल गेहूं, सबिताबाई और सरस्वती धुर्वे से 10- 10 हजार रूपए और 10 कुंतल मक्का के साथ ही कई ग्रामीणों से नगद और अनाज लेकर वह गांव से भागा है। ग्रामीणों ने इसकी रिपोर्ट संबंधित कुण्डीपुरा थाना में की। लेकिन इस मामले में पुलिस ने कुछ नहीं किया। जबकि उसके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ाई कर रहे थे और पूरे परिवार का आधार और राशन कार्ड भी इसी गांव के पते पर बना था। पुलिस कोशिश कर उसे ढूंढ़ सकती है।

कुशराम ने बताया कि छिंदवाड़ा राजनीतिक प्रभाव वाला क्षेत्र है। यहां कांग्रेस के कमलनाथ और भाजपा के चौधरी चंद्रभान सिंह के बीच किसान बंटे हुए हैं। इसलिए बड़ा आंदोलन तभी होता है, जब इनमें से कोई एक नेता चाहते हैं। वरना किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं है कि वे आवाज उठा सके। उन्होनें कहा कानूनों को सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया है इसलिए उन्हें मालूम भी नहीं कि उसमें क्या लिखा है। जहां तक व्यापारियों द्वारा औने-पौने दामों में अनाज खरीदने और किसानों को लूटने की बात है, तो किसान संबंधित थानों में एफआईआर दर्ज करवाते हैं, लेकिन उसका कोई हल नहीं निकलता। लिहाजा किसान अपने अनाज के सही दाम के लिए खुद ही संघर्ष करता है।

छिंदवाड़ा के किसान गुलाब पवार बताते हैं कि आज भी  लाइसेंस धारी व्यापारियों द्वारा मक्का 1200 रूपये में खरीदा जा रहा है। जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 है। वो आगे कहते हैं, “साथ ही मण्डी में व्यापारी उपज के तौल के बाद भुगतान में से बारदाने का 500 रूपये किसानों से जबरन काट लेते हैं। ऊपर से तौल में भी गड़बड़ी करते हैं। इसी तरह गांव में घुस कर व्यापारी आदिवासी और गरीब किसानों को मुर्ख बनाते हैं।” गुलाब ने कहा, “अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून बन जायेगा तो इस तरह लूटने वाले व्यापारियों पर कार्रवाई होगी । सजा और जुर्माने का प्रावधान भी होगा और किसान लुटने से बच जायेंगे।”

इसी जिले के सहजपुरी गांव के एक आदिवासी किसान गिरजालाल गोंड ने बताया, “हम गांव में आए व्यापारी को अनाज इसलिए बेचते हैं, ताकि हमें 40 किलोमीटर दूर मण्डी न जाना पड़े। वहां अनाज बेचने में दिनभर लग जाता है और शाम को 5 बजे के बाद भुगतान मिलना शुरू होता है, जो रात के 8-9 बजे तक चलता रहता है। इतनी रात में गांव लौटने के लिए सवारी नहीं मिलती और बाजार भी बंद हो चुका होता है। रात में नगदी लेकर चलने का खतरा रहता है। उन्होनें आगे कहा कि सरकार अगर किसानों का भला चाहती है तो उन्हें गांव के नजदीक अस्थाई मण्डियों का विस्तार करना चाहिए और बिना लाइसेंस के सिर्फ पेन कार्ड के सहारे व्यापारियों को गांव में घुसने से रोकने की व्यवस्था करनी चाहिए।

यह अकेले छिंदवाड़ा जिले का मामला नहीं है बल्कि मण्डियों के आस-पास लाइसेेंस धारी और गांव-गांव में घुसकर व्यापारियों का यह खेल वर्षों से चल रहा है। हाल ही में होशंगाबाद-हरदा जिले के सिवनी मालवा तहसील के ग्राम नंदरवाड़ा में 60 से अधिक किसानों से धान, मूंग, मक्का आदि खरीदकर एक व्यापारी बिना भुगतान किए गायब हो गया। होशंगाबाद जिले में भी एक व्यापारी द्वारा किसानों के 70 लाख रूपए की फसल लेकर भागने की घटना सामने आई है। देवास जिले के खातेगांव में भी दो व्यापारियों ने करीब दो दर्जन किसानों के साथ करीब 3 करोड़ रूपये का मूंग और चना खरीदा और किसानों को भुगतान के रूप में चेक भी दिये , जो बाद में बाउंस हो गए। खातेगांव के किसानों ने इस संबंध में एसडीएम कार्यालय में प्रदर्शन कर उन्हें ज्ञापन सौंपा है। इस संबंध में मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने सार्वजनिक रूप से बयान देकर बताया कि  इस तरह के मामले कृषि कानून से नहीं जुड़े है, बल्कि किसानों के लालच से जुड़ा होता है। इस तरह के मामलों पर पहले ही एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए जा चुके हैं।

पिछले चार दशक से किसानों के हित में लड़ रहे होशंगाबाद जिले के किसान लीलाधर सिंह राजपूत का कहना है कि दरअसल सरकार ने भी यह नहीं बताया कि कानूनों में किसानों का हित किस प्रकार से है। उनके तरफ से सिर्फ यह बताया जा रहा है, कि यह कानून किसानों के हित में है। इसलिए सबसे पहली आवश्यकता यह है, कि नए कृषि कानूनों के बारे में विस्तार से प्रचार-प्रसार हो। क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञापन, पम्पलेट छपे। जिसमें बिन्दुबार यह बताया जाए कि किसानों को इस कानून से क्या-क्या फायदा होगा।  किसान जब तक नए कानून को पढ़ेंगे नहीं, तब तक प्रतिक्रिया कैसे देंगे। जहां तक प्रश्न है न्यूनतम समर्थन मूल्य का तो सरकार एक तरफ अनुबंध वाली खेती को बढ़ावा दे रही है। मध्यप्रदेश में इसे लागू भी कर दिया गया है।

जिसमें कंपनी खाद, बीज किसानों को उपलब्ध करायेगी और फसल पकने के बाद उसे खरीद लेगी। दूसरी तरफ सरकार केह रही है कि मण्डिया समाप्त नहीं होगी। इसमें कितना विरोधाभास है। जब कंपनी खेतों से ही अनाज का सौदा कर लेगी, फिर मण्डियों में कौन जाएगा। हालांकि अनुबंध खेती में भी बहुत धोखा है। कंपनी लालच ज्यादा देती है और फसल पकने के बाद उसे खरीदने से मुकर जाती है। ऐसे भी कई प्रकरण सामने आये हैं। किसान तो दोनों तरफ से मारा जाता है। श्री राजपूत ने कहा कि जिस तरह संसद के दोनों सदनों से इन कानूनों को पास करवाया गया, उससे साफ जाहिर है कि इसमें किसानों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया होगा। उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए बताया  कि वे होशंगाबाद-इटारसी में किसानों के साथ बराबर आंदोलन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानून को वापस लेने के लिए ज्ञापन भी सौंप रहे हैं। साथ ही महाराष्ट्र और कर्नाटक से दिल्ली में भाग लेने जा रहे किसानों की मदद भी कर रहे हैं। श्री राजपूत ने कहा, “उन्होनें किसान साथियों के साथ राजधानी भोपाल में धरने पर बैठने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी, लेकिन सरकार ने अनुमति तो दी नहीं। उल्टे नियत तिथि से एक दिन पहले कई किसान साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।” हालांकि उन्होंने यह कहा कि वे भोपाल, होशंगाबाद और इटारसी के किसानों के साथ दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों को समर्थन देने पहुंचे थे और पुनः 26 जनवरी से पूर्व दिल्ली पहुंचने का इरादा रखते हैं।उन्होनें आगे बताया कि प्रदेश के किसान  26 जनवरी को कलेक्ट्रेट परिसरों का घेराव कर सरकार को ज्ञापन सौंपेंगे।  

बहरहाल प्रदेश के एक करोड़ से अधिक छोटे-छोटे किसानों ने मध्यप्रदेश सरकार से मांग की है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून में शामिल किया जाये। साथ ही  व्यापारी को कृषि उपज मण्डियों के मार्फत सौदा करने को बाध्य किया जाये। मण्डियों की संख्या बढ़ाई जाये। तभी सरकार किसानों के हितों की रक्षा कर सकती है।

इधर मण्डियों में कारोबार घटने से मंडी बोर्ड का टैक्स लगभग 70 फीसद घटा है। मण्डी बोर्ड की माने तो व्यापारी मण्डी शुल्क से बचने के लिए अक्सर ऐसा करते हैं। मध्यप्रदेश के मण्डियों में 6500 कर्मचारी कार्यरत हैं, 45,000 रजिस्टर्ड कारोबारी हैं। मंडी बोर्ड इन कारोबारियों से 1.5 फीसदी शुल्क लेकर 0.5 फीसदी राज्य सरकार को देता है। एक फीसदी से भी कम कर्चमारियों के वेतन-पेंशन और बिजली बिल के साथ ही मेंटनेंस पर खर्च किया जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मण्डी शुल्क एक रूपये 70 पैसे से घटाकर मात्र 50 पैसे कर दिये हैं। मण्डी कर्मचारियों की मानें तो ये सब मॉडल मंडी एक्ट की वजह से हो रहा है जो राज्य में 1 मई से लागू हो चुका है। इसमें निजी क्षेत्रों में मण्डियों की स्थापना के लिए प्रावधान  है। इसमें गोदाम, साइलो, कोल्ड स्टोरेज को भी प्राइवेट मण्डी घोषित करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही इस एक्ट में मण्डी के बाहर सीधे खरीद का प्रावधान भी है।

(रूबी सरकार एक स्वतंत्र पत्रकार है )

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