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जलजमाव और जलवायु परिवर्तन से बिहार में महामारी बना डेंगू!

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से सात नवंबर को सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में कुल 6247 मरीजों में डेंगू के लक्षण पाए गए। अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। हालांकि, सरकारी तौर पर डेंगू से मृत्यु की पुष्टि नहीं की जा रही है।
dengue in bihar

मूल रूप से भोजपुर के रहने वाले पुलिस कॉन्स्टेबल सुनील सिंह पटना में एक आईपीएस अफसर के गार्ड के तौर पर नियुक्त थे। पिछले महीने के आखिरी हफ्ते में एक दिन अचानक उन्हें बुखार आ गया। उन्हें लगा कि आम बुखार होगा, तो मेडिकल दुकान (केमिस्ट) से दवाई खरीद कर खा ली, लेकिन बुखार ठीक नहीं हुआ।

बाद में उन्होंने खून की जांच कराई, तो पता चला कि उन्हें डेंगू हो गया है। उनके परिजनों ने आनन-फानन में उन्हें पाटलीपुत्र के निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन बहुत फायदा नहीं हुआ। खून में प्लेटलेट्स लगातार घट रहा था और एक दिन उनकी मौत हो गई।

इसी हफ्ते भागलपुर के कहलगांव में एनटीपीसी के एक कर्मचारी सत्येंद्र झा की मौत डेंगू के कारण हो गई। उनके परिजनों के अनुसार वे कुछ दिनों से डेंगू से पीड़ित थे। उन्हें बेहतर इलाज के लिए पटना के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मौत हो गई।

डेंगू से मौत के ऐसे कई मामले बिहार में हुए हैं, लेकिन बिहार सरकार इन मौतों की वजह डेंगू नहीं मान रही है। सरकार के ऐसा नहीं मानने के पीछे अपनी मजबूरी हो सकती है, लेकिन सच ये है कि बिहार में इस साल डेंगू ने महामारी की शक्ल ले ली है।

सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि बिहार में अब तक डेंगू के छह हजार से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं।

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से सात नवंबर को सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में कुल 6247 मरीजों में डेंगू के लक्षण पाए गए। अब तक कई लोगों की मौत भी हो चुकी है। हालांकि, सरकारी तौर पर डेंगू से मृत्यु की पुष्टि नहीं की जा रही है।

बुधवार (13 नवंबर) को भी डेंगू के नए मरीज मिले हैं। बुधवार को पटना मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल में 129 मरीजों के सैंपलों की जांच में 72 मरीजों में डेंगू के लक्षण पाए।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि डेंगू के सबसे ज्यादा मामले पटना में दर्ज किए गए हैं। पटना के अलावा नेपाल से लगे बिहार के जिले मसलन मधुबनी, सुपौल जैसे जिलों में भी डेंगू का कहर बरपा है।

बिहार में इतने बड़े पैमाने पर डेंगू का प्रकोप नई व चिंताजनक घटना है। हालांकि, डेंगू के छिटपुट मामले पहले भी होते रहे हैं लेकिन इसने महामारी का शक्ल पहली बार अख्तियार किया है।

भागलपुर के कहलगांव के निवासी पंकज कुमार सिंह और उनके 12 वर्षीय पुत्र को छठ पूजा से पहले से बुखार था। जब बुखार कम न हुआ, तो चेक-अप करवाया। जांच में पता चला है कि उन्हें डेंगू है। कई दिनों तक अस्पताल में इलाज चला, तब जाकर वे ठीक हो पाए।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग की एपिडेमिओलॉजिस्ट डॉ. रागिनी मिश्रा कहती हैं, “ये हमारे लिए चिंता का विषय है। वर्ष 2011-2012 से पहली बार बिहार में डेंगू के मामले सामने आने शुरू हुए थे, लेकिन इस बार ये मामले बहुत ज्यादा हैं।”

गौरतलब हो कि डेंगू के मच्छर ठहरे हुए पानी में पनपते हैं, लेकिन इसके लिए मौसम का गर्म होना जरूरी है। बिहार में ये दोनों स्थितियां बरकरार हैं, जिस कारण डेंगू के मच्छर पनप रहे हैं।

इस बार बिहार में मानसून का आगमन जून के आख़िरी हफ्ते में हुआ था। लेकिन, इसकी विदाई से ठीक पहले बिहार में जोरदार बारिश हुई थी। महज दो दिन में 300 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश होने से पटना समेत अन्य जिलों में जलजमाव हो गया था। जलनिकासी की व्यवस्था फिसड्डी होने के कारण पानी कई दिनों तक जमा रहा। कई इलाकों में तो अब भी पानी ठहरा हुआ है।

जलजमाव के साथ ही इस बार बिहार में सर्दी का पदार्पण भी देर से हो रहा है और इस बीच तापमान में काफी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है।

कभी गर्मी बढ़ जा रही है, तो कभी मौसम सर्द हो रहा है। जानकार बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर दुनियाभर में दिख रहा है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है।

मौसम पर लंबे समय से काम कर रहे दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के एनवायरमेंटल साइंस विभाग से जुड़े प्रो. प्रधान पार्थ सारथी कहते हैं, “इस बार सर्दी के आने में देर हो रही है और मौसम के गर्मी से सर्दी में प्रवेश करने के दौरान की जो अवधि है, उसमें अधिकतम और न्यूनतम तापमान में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। साथ ही अभी तापमान जितना होना चाहिए, उससे ज्यादा दर्ज किया जा रहा है।”

प्रो. प्रधान पार्थ सारथी आगे कहते हैं कि साल-दर-साल मौसम का पैटर्न बदल रहा है और ये जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है।

जलजमाव के साथ गर्म मौसम डेंगू के मच्छरों के लिए वरदान साबित हो रहा है। एपिडेमिओलॉजिस्ट डॉ. रागिनी मिश्रा ने बताया, “सर्दी की अवधि का कम होना और गर्मी का बढ़ना रोगवाहक किटाणुओं को पनपने का सकारात्मक माहौल देता है।”

जलजमाव व मौसम में बदलाव का असर बिहार से सटे यूपी, पूर्वोत्तर व नेपाल में भी दिख रहा है। इन क्षेत्रों में भी डेंगू के मामलों में प्रत्याशित इजाफा देखा जा रहा है। अकेले नेपाल में अब तक डेंगू के 9000 से ज्यादा सामने आ चुके हैं और आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। नेपाल में भी अगस्त में सामान्य ज्यादा बारिश हुई थी, जिस कारण जलजमाव हुआ था।

जानकारों का कहना है कि हालात भले ही डेंगू के मच्छरों के पनपने के अनुकूल बन गए हों, अगर सरकार ने समय रहते एहतियाती कदम उठाया होता, तो आज डेंगू के आंकड़े 5 हजार के ऊपर नहीं पहुंचते।

पटना के जान-माने चिकित्सक व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट डॉ अजय कुमार कहते हैं, “एक तो मानसून की विदाई के वक्त ज्यादा बारिश हो गई और दूसरा आर्द्रता बरकरार रही। इन दोनों के कारण बीमारी बढ़ गई। लेकिन, ये भी सच है कि अगर सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किया। मच्छर मारने की दवाइयों का छिड़काव नाकाफी रहा और डेंगू के खिलाफ सरकार बड़े स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम भी नहीं चला सकी। जो भी कदम उठाए गए, वे शहरी इलाकों में सिमट कर रह गए। मुफस्सिल इलाकों व गांवों में जागरूकता अभियान नाकाफी रहे।”

कहलगांव निवासी पंकज कुमार सिंह भी डॉ. अजय कुमार की बातों से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, “हमारे इलाके में सरकार की तरफ से जागरूकता का कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया था। बस, कभी-कभार नाम के लिए ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव व फॉगिंग कर दिया गया।”

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